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प्राचीन समय में, समृद्ध अफ्रीकी देश एबिसिनिया (Abyssinia), जिसे अब इथियोपिया (Ethiopia) कहा जाता है के व्यापारी भारत की यात्रा करते थे और इसलिए उन्हें यहां एबिसिनी (Abyssini) या हब्शी (Habashi) के नाम से जाना जाता था। लेकिन समय के साथ लोगों द्वारा सभी साँवले रंग वाले अफ्रीकियों को हब्शी कहा जाने लगा। मध्यकाल में कई अफ्रीकी भारत में बंदी बनाकर गुलामों के रूप में लाए गए या व्यापारियों की भांति आए, लेकिन अंततः भारत के साम्राज्यों, विजयों और युद्धों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए यहां बस गएजिनमें से कई हब्शी उच्च पद पर आसीन हुए और कुछ स्वतंत्र हो गए। उनमें से सबसे प्रसिद्ध अहमदनगर (गुजरात) के अंबर मलिक थे, जिन्होंने कई वर्षों तक मुगलों का विरोध किया। पश्चिमी भारत में जंजीरा के सिद्दी द्वारा बीजापुर के बेड़े की कमान संभाली गई और वे स्वतंत्र शासक बन गए। उन्होंने मराठों को ललकारा और 1670 में मुगल बादशाह औरंगजेब के प्रति अपनी निष्ठा स्थानांतरित कर दी।
उसके बाद उनके द्वारा ब्रिटिश वर्चस्व को स्वीकार कर लिया गया और 1948 में नए भारतीय संघ के बॉम्बे राज्य के साथ एकीकृत किए जाने तक उनके द्वारा अपने राज्य को बनाए रखा गया । आज के गुजरात और महाराष्ट्र में अफ्रीकियों/ हब्शियों की बस्तियाँ मौजूद थीं, कुछ के पास अपने राज्य और किले (जैसे मुंबई के पास जंजीरा किला) भी थे, और उन्हें लोकप्रिय रूप से "सिद्दी" भी कहा जाता है। सिद्दी राजकुमारियों में से एक का विवाह अवध/लखनऊ के राजा वाजिद अली शाह से हुआ था।
भारत में वर्तमान में सिद्दी या हब्शियों की आबादी लगभग 850,000 होने का अनुमान है, भारत में कर्नाटक, गुजरात और हैदराबाद तथा पाकिस्तान में मकरान और कराची हब्शियों के मुख्य जनसंख्या केंद्र के रूप में कार्यरत हैं। सिद्दी मुख्य रूप से मुसलमान होते हैं, हालांकि कुछ हिंदू भी होते हैं जबकि अन्य कुछ कैथलिक (Catholic) चर्च से संबंधित हैं। हालाँकि आज यह समुदाय आर्थिक और सामाजिक रूप से थोड़े पिछड़े हुए हैं, लेकिन सिद्दीयों ने उपमहाद्वीप की राजनीति में बड़ी भूमिकाएँ निभाई हैं। जैसा कि ऊपर बताया गया, सबसे प्रसिद्ध सिद्दी, मलिक अंबर, प्रभावी रूप से दक्कन में अहमदनगर सल्तनत को नियंत्रित करते थे। उन्होंने दक्कन के पठार में मुगल शक्ति के प्रवेश को सीमित करके, भारतीय इतिहास में, राजनीतिक और सैन्य रूप से एक प्रमुख भूमिका निभाई।
हालांकि सिद्दी नाम की उत्पत्ति पर परस्पर विरोधी परिकल्पनाएँ हैं। एक सिद्धांत यह है कि यह शब्द ‘साहिबी’ शब्द से निकला है, जो उत्तरी अफ्रीका में सम्मान के लिए उपयोग किया जाने वाला एक अरबी शब्द है। यह भी माना जाता है कि सिद्दी शब्द अरब जहाजों के कप्तानों द्वारा उपयुक्त की जाने वाली उपाधि से लिया गया है, जो भारत में बसने वाले पहले सिद्दियों को भारत लाए थे; इन कप्तानों को सैय्यद के नाम से जाना जाता था। इसी तरह, सिद्दियों के लिए उपयुक्त किए जाने वाले शब्द, ‘हब्शी’ को ‘अल-हबाश’ शब्द से लिया गया माना जाता है, जिसे अरबी में अबीसीनिया के नाम से जाना जाता है । सिद्धियों को कभी-कभी अफ्रीकी-भारतीय भी कहा जाता है।
भारत और इथियोपिया के बीच आधुनिक राजनयिक संबंध भारत की स्वतंत्रता के बाद जुलाई 1948 में कानूनी स्तर पर स्थापित किए गए थे। 1952 में रिश्ते को राजदूत स्तर तक बढ़ा दिया गया था। हालांकि भारत और इथियोपिया के बीच लगभग दो सहस्राब्दियों से व्यापार के साथ-साथ लोगों के पारस्परिक संपर्क भी मौजूद हैं, उत्तरी इथियोपिया के डेब्रे डैमो (Debre Damo) से कुषाण काल के सिक्कों की खुदाई की गई है।
छठी शताब्दी में एक्सुमाइट (Axumite) साम्राज्य के समय से, भारतीयों ने इथियोपियाई लोगों के साथ रेशम, मसाले, सोना और हाथी दांत का व्यापार किया।16वीं शताब्दी में इथियोपिया के राजा को पुर्तगाली सहायता द्वारा इथियोपिया से गोवा में लाया गया था।1868 में इथियोपिया में ब्रिटिश हस्तक्षेप ने जनरल रॉबर्ट नेपियर (General Robert Napier) के तहत सम्राट टेवोड्रोस द्वितीय (Emperor Tewodros II) द्वारा कैद किए गए यूरोपीय राजनयिकों को मुक्त कराया और 1941 में इतालवी कब्जे को समाप्त कर दिया, दोनों में भारतीय सैनिकों की बड़ी टुकड़ी शामिल थी, जो ब्रिटिश नियंत्रित सैन्यबलों के हिस्से के रूप में लड़े थे। इथोपिया में उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासी भी रहते थे, जिनमें व्यापारी और कारीगर शामिल थे। सम्राट हैले सेलासी (Haile Selassie) के शासनकाल के दौरान बड़ी संख्या में भारतीय शिक्षक इथियोपिया गए, जिससे इथियोपियाई लोगों के बीच भारत के प्रति महत्वपूर्ण सद्भावना का विकास हुआ। भारत के पश्चिमी तट पर रहने वाले सिद्दी समुदाय को इथियोपियाई वंश का माना जाता है।
दिल्ली में ‘द न्यू यॉर्क पब्लिक लाइब्रेरी’ (The New York Public Library) के ‘शोम्बर्ग सेंटर फॉर रिसर्च इन ब्लैक कल्चर’ (Schomburg Center for Research in Black Culture) द्वारा आयोजित एक प्रदर्शनी में भारत के इतिहास में अफ्रीका की भूमिका की "विस्मृत" कहानियों को प्रदर्शित किया गया था। प्रदर्शनी के सह-संरक्षक द्वारा यह बताया गया कि दक्कन के सुल्तान अफ्रीकी सैनिकों पर निर्भर थे क्योंकि उत्तरी भारत के मुगल शासकों ने उन्हें अफगानिस्तान और अन्य मध्य एशियाई देशों से पुरुषों की भर्ती करने की अनुमति नहीं दी थी। साथ ही दक्षिणी भारत में डेक्कन सल्तनत के अलावा, अफ्रीकी भारत के पश्चिमी तट पर भी प्रमुखता से उभरे। उनमें से कुछ अपने पारंपरिक संगीत और सूफी इस्लाम को अपने साथ लाए थे। 1887 में कच्छ की एक चित्रकारी में सिद्दी दमल (Siddi Damal) का चित्रण किया गया है, जिसमें पूर्वी अफ्रीका से भारत लाए गए मुस्लिम सिद्दीयों के एक धार्मिक, उन्मादपूर्ण नृत्य रूप को दिखाया गया है। अफ्रीकियों द्वारा अपना संगीत भी भारत में लाया गया। 1640-1660 की एक कलाकृति अफ्रीकी वीणा के एक वादक को दर्शाती है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3UM8Kee
https://bit.ly/3mPyjOT
https://bit.ly/3Au223j
https://bit.ly/3GSdQQg
https://bbc.in/3MYZXnc
चित्र संदर्भ
1. गार्ड ऑफ ऑनर समारोह में भारत के पूर्व राष्ट्रपति, श्री राम नाथ कोविंद को इथियोपिया के राष्ट्रपति महामहिम डॉ. मुलतु तेशोम के साथ दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. सासन गिर में सिद्दी गांव को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दिल्ली में सिद्दी आदिवासी नृत्य प्रदर्शन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. कर्नाटक में सिद्धि आदिवासी नृत्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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