जानिए, भारत में मोती पालन उद्योग और इससे जुड़े व्यावसायिक अवसरों के बारे में

जौनपुर

 27-12-2024 09:24 AM
समुद्री संसाधन
भारत में मोती पालन उद्योग हाल के वर्षों में तेज़ी से बढ़ा है। वाराणसी के पास स्थित नारायणपुर गांव उत्तर प्रदेश में मोती पालन का एक प्रमुख केंद्र बन चुका है। तो आज हम समझेंगे कि भारत में मोती पालन क्यों किया जाता है। इसके बाद, हम मोती पालन व्यवसाय शुरू करने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानने की कोशिश करेंगे। फिर हम यह जानेंगे कि भारत में मोती पालन कैसे किया जाता है। इसके बाद, हम वाराणसी में मोती पालन उद्योग पर ध्यान केंद्रित करेंगे, खासकर नारायणपुर गांव में मोती उत्पादन के बारे में। अंत में, हम यह जानेंगे कि बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के छात्रों को “ फ़्रेशवाटर पर्ल कल्चर में उद्यमिता विकास और अवसर” (Entrepreneurship Development and Opportunities in Freshwater Pearl Culture) नामक एक कार्यशाला के माध्यम से मोती पालन के बारे में कैसे जानकारी दी जाती है।
भारत में मोती पालन क्यों किया जाता है?
उच्च बाज़ार मूल्य: मोती पालन का सबसे अच्छा पहलू यह है कि ये प्राकृतिक रत्न काफ़ी मांग में होते हैं। सोने और चांदी के मुकाबले, इनके दाम अक्सर बदलते नहीं हैं। खेती किए गए मीठे पानी के मोती की कीमत लगभग 280 रुपये प्रति ग्राम होती है, जबकि खेती किए गए खारे पानी के मोती की कीमत लगभग 6,000 रुपये प्रति ग्राम होती है।
सहज रख-रखाव और भंडारण: एक बार मोती तैयार हो जाने के बाद, इन हल्के वज़न वाले मोतियों को किसी भी समय रखा जा सकता है। ये अत्यधिक नाशवान नहीं होते और इन्हें किसी भी समय आभूषण बनाने या कपड़ों को सजाने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
कम श्रम लागत, उच्च रोज़गार क्षमता: मोती पालन श्रम प्रधान नहीं होता क्योंकि यह प्रक्रिया संरचित होती है और इसमें कम श्रमिकों की आवश्यकता होती है, जिससे श्रम लागत में कमी आती है। अगर आप मोती पालन प्रशिक्षण संस्थान से सही कौशल और ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो लाभ की संभावना काफ़ी अधिक होती है। यह वाणिज्यिक खेती उच्च लाभ देती है, इसलिए आय का वितरण भी अधिक होता है।
कम खर्च और संसाधन की आवश्यकता: मोती पालन के लिए कम सेटअप और निवेश लागत की आवश्यकता होती है। इसके संसाधन और तरीके आसानी से उपलब्ध होते हैं और न्यूनतम खर्च पर किए जा सकते हैं। यदि आपको मोती पालन व्यवसाय का सही प्रशिक्षण मिलता है, तो आप संसाधनों की योजना बना सकते हैं और उनके खर्चों को अनुकूलित कर सकते हैं। उचित योजना के साथ, आप अपने निवेश को बेहतर तरीके से उपयोग कर सकते हैं।
भारत में मोती पालन व्यवसाय शुरू करने से पहले ध्यान में रखने योग्य बातें
➜ सबसे पहले, आपको अपने समय का समर्पण करना होगा और शुरूआत में निवेश के साथ अतिरिक्त मेहनत करनी होगी, क्योंकि भारत में मोती पालन एक दीर्घकालिक परियोजना है, जिसे आपके धैर्य और प्रबंधन की आवश्यकता होती है।
➜ आपको भारत में व्यावसायिक मोती पालन के लिए एक सुरक्षित स्थान चुनना होगा। यह स्थान बाढ़, शिकारी और अन्य खतरों या आपदाओं से मुक्त होना चाहिए।
➜ इसके अलावा, आपको तालाब में पालन के लिए अच्छे ऑयस्टर का स्रोत चाहिए होगा।
➜ आपको मोती पालन परियोजनाओं में, महत्वपूर्ण माने जाने वाले ग्राफ़्टिंग के कौशल में उत्कृष्टता होनी चाहिए, जो मोती पालन में ज़रूरी होता है।
➜ भारत में, मीठे पानी में मोती की खेती के बारे में जानकारी या मार्गदर्शन पाने के लिए आप अपने आस-पास पहले से स्थापित मोती फार्मों पर भी जा सकते हैं।
➜ अंततः, आपको अपने खेतों में तैयार मोतियों को बेचने के लिए एक बढ़िया मार्केटिंग चैनल तैयार करने या उसे अंतिम रूप देने के बारे में सोचना होगा।
➜ इस तरह, आप भारत में मोती की खेती के लिए एक व्यवसाय योजना बनाने के लिए आगे बढ़ सकते हैं, जिसमें फ़ार्म के विभिन्न वित्तीय पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है, जिसमें सीपियों की खरीद से लेकर बाज़ारों में मोतियों की मार्केटिंग तक शामिल है।

भारत में मोती की खेती कैसे शुरू करें?
1. स्थान का चयन : मोती पालन के लिए सही स्थान का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। आपको ऐसे स्थान का चयन करना होगा, जहाँ प्राकृतिक जल निकाय हो, जैसे तालाब, झीलें या नदियाँ, जिनमें साफ़ पानी, उचित तापमान (23°C से 28°C के बीच) और पानी की नमक की मात्रा (salinity) सही हो। इसके अलावा, जल की गुणवत्ता की निगरानी करनी होती है, ताकि उसमें किसी भी तरह के प्रदूषण या दूषित तत्व न हों। एक अच्छा स्थान वह है, जहाँ बाढ़ या पानी की कमी जैसी समस्याएँ न हों, और जल स्तर स्थिर हो।
2. प्रजातियों का चयन: मोती के उत्पादन के लिए सबसे पहले आपको सही प्रजातियों का चयन करना होगा। विभिन्न प्रकार के ऑयस्टर (oysters) और मोलस्क (molluscs) हैं, जिनसे मोती उत्पन्न होते हैं, जैसे पांगसियस, ब्लैक लिप ऑयस्टर, और पर्ल मोलस्क। इनका चयन मुख्य रूप से आपके फार्म के जलवायु और पर्यावरण की स्थिति के आधार पर किया जाता है। साथ ही, बाज़ार में जो प्रजातियाँ अधिक मूल्य की होती हैं, उनका चयन भी किया जा सकता है, जैसे स्वच्छ जल मोती और समुद्री मोती।
3. अनुकूल पर्यावरण बनाना: मोती का उत्पादन करने के लिए आपको एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण बनाना होता है। ग्राफ़्टिंग प्रक्रिया में, एक कृत्रिम नाभिक (shell bead) को मोलस्क के शरीर के अंदर एक विशिष्ट स्थान पर लगाया जाता है। इसके बाद, मोलस्क अपने नाभिक के चारों ओर नेकर (nacre) की परत चढ़ाता है, जो अंततः मोती का रूप लेता है। इस प्रक्रिया में 12 से 24 महीने तक का समय लगता है, और किसानों को इस दौरान पानी की गुणवत्ता, तापमान और मोलस्क की सेहत का ध्यान रखना होता है।
4. ग्राफ़्टिंग प्रक्रिया: ग्राफ़्टिंग मोती पालन का एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसमें ऑयस्टर के ऊतक में कृत्रिम नाभिक का प्रत्यारोपण किया जाता है। इस प्रक्रिया में तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है, क्योंकि यदि ग्राफ़्टिंग सही तरीके से न हो, तो मोती का विकास नहीं हो पाता। इसके अलावा, पानी के तापमान, अम्लता (pH), और आक्सीजन स्तर का ध्यान रखना आवश्यक होता है। सही पर्यावरण में ऑयस्टर और मोलस्क स्वस्थ रहते हैं और अच्छी गुणवत्ता के मोती उत्पन्न करते हैं।
5. संग्रहण और विपणन: मोती की सफल खेती के बाद, अगला कदम इन मोतियों का संग्रहण और विपणन है। मोती की कटाई सर्जिकल प्रक्रिया द्वारा की जाती है, जिसमें ऑयस्टर को सावधानीपूर्वक खोला जाता है और उसके अंदर मौजूद मोती को निकाला जाता है। इस प्रक्रिया में विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है, क्योंकि मोती को निकालते समय कोई नुकसान न हो। इसके बाद, मोतियों को गुणवत्ता के हिसाब से बाज़ार में बेचा जाता है। विपणन के लिए, आपको अच्छे व्यापार नेटवर्क और स्थानीय बाज़ारों की पहचान करनी होगी। इसके अलावा, ऑनलाइन विपणन और निर्यात का विकल्प भी विचारणीय हो सकता है, खासकर अगर आपके पास उच्च गुणवत्ता वाले मोती हैं।
इन सभी कदमों को ध्यान में रखते हुए, आप भारत में सफलतापूर्वक मोती पालन व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
वाराणसी में मोती पालन की स्थिति
वाराणसी जिले के नारायणपुर गांव में किसान धीरे-धीरे पारंपरिक खेती से हटकर मोती पालन की ओर बढ़ रहे हैं। यह बदलाव 2018 में श्वेतांक पाठक द्वारा मोती पालन की शुरुआत के साथ हुआ, जिसने गांव में इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया।
इस प्रक्रिया के लिए, लगभग 10 x 10 फ़ीट के क्षेत्र में 6 फीट गहरा तालाब बनाना होता है। फिर, ऑयस्टर को इकट्ठा या खरीदा जाता है। इसके बाद, एक छोटे नाभिक को जीवित ऑयस्टर के अंदर डाला जाता है और उसके चारों ओर मोती का निर्माण होता है। जब ऑयस्टर के धूसर खोल को खोला जाता है, तो एक खूबसूरत नाशपाती आकार का मोती मिलता है।
यह प्रक्रिया मोती की किस्म के आधार पर 3 महीने से लेकर 3 साल तक की हो सकती है। मोतियों के तीन प्रकार होते हैं — डिज़ाइनर, हाफ़ -राउंड और फ़ुल -राउंड। जहां डिज़ाइनर मोती को उगने में 3 महीने लगते हैं, वहीं हाफ़ -राउंड को 18-20 महीने और फ़ुल -राउंड को लगभग 3 साल का समय लगता है।
शुरुआत में लगभग 2,000 ऑयस्टर से काम शुरू करने के बाद, अब उनके पास उत्तर प्रदेश के आठ ज़िलों में फैले फ़ार्मों में 31,000 से अधिक ऑयस्टर हैं। प्रत्येक मोती की कीमत बाज़ार में 90 रुपये से 200 रुपये तक होती है। इसने उन्हें अपनी शुरुआती निवेश से 10 गुना अधिक लाभ कमाने में मदद की है।
वर्तमान में, फार्म के मोती हैदराबाद के बाज़ारों में बेचे जा रहे हैं।
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के छात्रों को वाराणसी में मोती पालन की जानकारी कैसे मिलती है?
वाराणसी स्थित महिला महाविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के जूलॉजी विभाग द्वारा ‘ फ़्रेशवाटर पर्ल कल्चर में उद्यमिता विकास और अवसर’ (EDOFPC) पर आयोजित पांच दिवसीय कार्यशाला शनिवार को संपन्न हुई। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफ़ेसर रीता सिंह ने की, जबकि मत्स्य पालन के उपनिदेशक अनिल कुमार ने इसे संबोधित किया। जूलॉजी विभाग की प्रभारी प्रोफ़ेसर सुनीता सिंह ने कार्यशाला का परिचय दिया।
इस कार्यशाला में छात्रों को फ़्रेशवाटर मसल पर्ल कल्चर के विभिन्न चरणों और इसके व्यावसायिक अवसरों के बारे में प्रशिक्षित किया गया। इस प्रशिक्षण को अशोक मनवानी और उनकी टीम ने आयोजित किया। कार्यक्रम के माध्यम से मोती पालन में देशी प्रजातियों के उपयोग को बढ़ावा दिया गया।
समापन सत्र में BHU के रजिस्ट्रार प्रोफ़ेसर अरुण कुमार सिंह ने भाग लिया। कार्यशाला के आयोजन समिति के सदस्य में प्रोफ़ेसर सुनीता सिंह और प्रोफेसर करूणा सिंह सहित आयोजक सचिव गीता जे गौतम और उषा कुमारी शामिल थीं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5fa5ebde
https://tinyurl.com/33tnt5sk
https://tinyurl.com/sszh9b9k
https://tinyurl.com/jfusr82n
https://tinyurl.com/3u95kzcj

चित्र संदर्भ
1. मोती पालन उद्योग के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सुवैदी पर्ल फ़ार्म, यू ए ई (UAE) में, उगाए गए सीप में एक मोती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मोतियों के संग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. उवाकाई सागर (Uwakai sea) में फैले एक मोती फ़ार्म  को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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