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तकनीकी क्रांति ने हमारी शारीरिक हरकतों को काफी हद तक सीमित कर दिया है। केवल दस मिनट अथवा एक या दो किलोमीटर चलने पर ही, कई लोगों के फेफड़े गुब्बारे बन जाते हैं। लेकिन भारतवर्ष में "आदिगुरु शंकराचार्य" एक ऐसी महान विभूति रहे हैं, जिन्होंने सनातन धर्म के चार सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों (चार धामों) की स्थापना करने के लिए, दसियों नहीं, बल्कि हजारों किलोमीटर की यात्रा, पैदल चलकर तय करी थी।
चार धाम, भारत में सनातन धर्म के उन चार पवित्र तीर्थ स्थलों को संदर्भित करते हैं, जिनकी स्थापना महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक आदि शंकराचार्य के द्वारा की गई थी। आदि शंकराचार्य ने पूजा के पंचकायतन रूप यानी एक साथ पांच देवताओं (गणेश, सूर्य, विष्णु, शिव और देवी) की पूजा की भी शुरुआत की। सनातन धर्म में ऐसी मान्यता है कि चार धामों में जाने से मोक्ष (सनातन धर्म का सबसे बड़े लक्ष्य) की प्राप्ति होती है। ये चार धाम क्रमशः बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम हैं, और इनमें से प्रत्येक धाम एक युग से जुड़ा हुआ है।
आइये इन चारों धामों का और अधिक विस्तार से अवलोकन करते हैं:
१. बद्रीनाथ: बद्रीनाथ धाम भारत के पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में स्थित है. और सतयुग से जुड़ा हुआ है। सनातन मान्यताओं के अनुसार, भगवान विष्णु के नर-नारायण अवतार ने इसी स्थान में तपस्या की थी। सतयुग के समय यह स्थान बेर के पेड़ों से ढका हुआ था। संस्कृत भाषा में बेर को "बद्री" कहा जाता है, इसलिए इस स्थान का नाम बद्रिका-वन रखा गया। स्थानीय लोगों का मानना है कि माता लक्ष्मी, भगवान नारायण को बचाने के लिए बेर का पेड़ बनीं।
२. रामेश्वरम: रामेश्वरम धाम तमिलनाडु में स्थित है और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान राम ने यहां एक शिव-लिंगम की स्थापना की थी। रामेश्वरम नाम का अर्थ "राम के भगवान" होता है। मान्यता है कि यहां भगवान राम के पद चिन्ह आज भी अंकित हैं।
३. द्वारका: श्री कृष्ण की नगरी के रूप में प्रसिद्ध द्वारका, गुजरात में स्थित है और द्वापर युग से जुड़ी हुई है। भगवान कृष्ण ने मथुरा के बजाय द्वारका को अपना कर्म स्थान बनाया।
४. पुरी: पुरी धाम, ओडिशा में स्थित है और कलियुग से जुड़ा हुआ है। इस धाम में भगवान विष्णु को वर्तमान युग के जगन्नाथ अवतार के रूप में पूजा जाता है।
यदि आप गौर करें तो पाएंगे कि ये चार धाम मुख्य रूप यह संदेश देते हैं कि “जहां भी भगवान विष्णु रहते हैं, भगवान शिव भी उनके निकट ही रहते हैं।” उदाहरण के तौर पर केदारनाथ को बद्रीनाथ की जोड़ी, रामसेतु को रामेश्वरम की जोड़ी, सोमनाथ को द्वारका की जोड़ी और लिंगराज को जगन्नाथ पुरी की जोड़ी माना जाता है। हिंदू धर्म के चार धामों में शंकराचार्य पीठ के रूप में चार हिन्दू मठों का निर्माण किया गया। यह शैव और वैष्णव समुदाय के आपसी मतभेद को भी मिटाता है!
नीचे दी गई तालिका में आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार अम्नया मठों और उनका विवरण दिया गया है।
इन प्रमुख चार धामों के अलावा पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में चार प्राचीन तीर्थ स्थलों अर्थात यमुनोत्री , गंगोत्री , केदारनाथ और बद्रीनाथ को चार धाम स्थलों को छोटा चार धाम कहा जाता है।
1. यमुनोत्री :- यह मंदिर यमुना नदी (हिंदू देवी, सूर्य देव की पुत्री) को समर्पित है।
2. गंगोत्री :- यह मंदिर देवी गंगा (भारत की सबसे पवित्र नदी) को समर्पित है।
3. केदारनाथ :- यह मंदिर केदारनाथ (केदार के भगवान) के रूप में भगवान शिव को समर्पित है। यह भारत के 12 प्रमुख ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
4. बद्रीनाथ :- यह मंदिर बद्रीनाथ (बद्री के भगवान) के रूप में भगवान विष्णु को समर्पित है।
माना जाता है कि आदि शंकराचार्य द्वारा भारत को आध्यात्मिक रूप से एकीकृत करने के लक्ष्य के साथ चार धाम यात्रा की परंपरा शुरू की गई। वह उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सांस्कृतिक विभाजन को पाटना चाहते थे। इस सांस्कृतिक दूरी को कम करने के लिए उन्होंने बद्रीनाथ में स्थित विशाल बद्री की प्रतिमा को दक्षिण का चंदन और रेशम चढ़ाने की व्यवस्था की, तथा रामेश्वरम में शिवलिंग के लिए उत्तर से गंगा जल लाकर चढ़ाने की व्यवस्था की। शायद आपको न पता हो लेकिन आज भी बद्रीनाथ के मुख्य पुजारी दक्षिण भारत से आते हैं, जबकि रामेश्वरम के पुजारी उत्तर भारत से आते हैं। अपने इन शानदार प्रयासों के माध्यम से शंकराचार्य ने पूरे भारत में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बनाने और देश को एकीकृत करने की शानदार कोशिश की तथा अपनी इस कोशिश में वह काफी हद तक सफल भी रहे।
सनातन धर्म में चार धाम यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि सभी चारों मंदिर भारत के चारों दिशाओं में फैले हुए हैं। प्राचीन मंदिरों में पवित्र ज्यामिति पर आधारित एक गुप्त यंत्र (उदाहरण के लिए, बद्रीनाथ मंदिर में एक भैरव यंत्र) होता है, जो उन्हें शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र बनाता है।
हिंदुओं को एकजुट रखने की मंशा से आदि शंकराचार्य ने कुंभ मेले की परंपरा भी शुरू की, जिसमें लाखों लोगों का एक विशाल आध्यात्मिक जमावड़ा, एक मजबूत आध्यात्मिक आनंद का प्रचार करता है। भारत को स्वतंत्र एवं एकजुट करने के उद्देश्य से महात्मा गांधी ने भी कुंभ मेले में भाषण दिए। कुंभ मेले के इसी प्रभाव से भयभीत होकर, अंग्रेजों द्वारा आज़ादी प्राप्त करने तक, कुंभ मेले पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया था। कुंभ मेले की शुरुआत करने वाले आदि शंकराचार्य वास्तव में एक महान संत थे, जिन्होंने हिंदू धर्म को पुनर्जीवित करने तथा अद्वैत वेदांत के अपने दर्शन को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपनी शिक्षाओं, बहसों और प्रवचनों के माध्यम से, उन्होंने हिंदू धर्म के एक नए युग की शुरुआत की और सूर्य, शिव, विष्णु, देवी और गणेश सहित विभिन्न देवताओं की पूजा भी प्रारंभ की। हिंदू पंचांग के अनुसार, आदि शंकराचार्य का जन्म 788 ई में वैशाख के महीने के शुक्ल पक्ष में अमावस्या के 5वें दिन हुआ था। उन्होंने केरल में अपनी जन्मस्थली कालाडी से लेकर, केदारनाथ, उत्तराखंड में अपनी समाधि स्थल तक, एक अविश्वसनीय दूरी तय की। बहुत ही कम उम्र में उन्होंने वेदों में महारथ हासिल कर ली थी। अपने इन्हीं सराहनीय कार्यों की वजह से आदि शंकराचार्य आठवीं शताब्दी के एक श्रद्धेय दार्शनिक माने जाते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/41RExwJ
https://bit.ly/43UCyJy
https://bit.ly/3KUuz6F
चित्र संदर्भ
1. आदि शंकराचार्य एवं चार धामों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. आदि शंकराचार्य द्वारा देखे गए प्रसिद्ध स्थानों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. बद्रीनाथ को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
4. रामेश्वरम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. द्वारका को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. पुरी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
7. आदि शंकराचार्य द्वारा प्रतिष्ठित रूप से स्थापित चार मुख्य शंकराचार्य अम्नया मठों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
8. कुंभ मेले को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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