जब दुनिया की ज्यादातर आबादी जंगलों में भटक रही थी, प्राचीन भारतीय सभ्यता अपने चरमोत्कर्ष पर थी।
सिंधु घाटी सभ्यता: विकास के सोपान
पूरे विश्व में कृषि का विकास सभ्यताओं के लिए हमेशा बड़ा मोड़ साबित हुआ है। अधिकांश मामलों में खेती-बाड़ी को शिकार और खानाबदोशी पर के ऊपर जगह दी गई है क्योंकि इससे जीवन में ठहराव और समूहों की वृद्धि होती थी। जीने के लिए भोजन की तलाश में दर-दर भटकना नहीं पड़ता। हालांकि कृषि पर आधारित हो जाने से शिकारी और खानाबदोश लोगों के स्वास्थ्य पर असर डाला। भारत में एक क्षेत्र विशेष की सारी जनसंख्या में कृषि का प्रसार एक साथ नहीं हुआ। सिंधु घाटी सभ्यता के उत्तर मध्य पाषाण काल से नवपाषाण काल तक कृषि की शुरुआत मानी जाती है, दक्षिण और पूर्व के समूह शिकार और खानाबदोशी करते रहे, जबकि पश्चिम के समूह ने खेती-बाड़ी शुरू कर दी। मध्य पाषाण काल के दो स्थानों 'लांघनाज' और 'महादहा' से प्राप्त मानव अवशेषों के दांतो के गुणों के अध्ययन से प्रमाण मिलते हैं कि लांघनाज( गुजरात) में कृषि का कार्य पूरे जोर-शोर से होता था, जबकि महादहा(उत्तर प्रदेश) में इस तरह के कोई प्रमाण नहीं मिले। लांघनाज पश्चिमी भारत में ऐसी जगह पर स्थित है, जहां हड़प्पा सभ्यता ने घर में भोजन बनाने की प्रथा शुरू की।
मध्य पाषाण काल
मध्य पाषाण काल की शुरुआत 8000 ईसा पूर्व के आसपास हुई। जलवायु गर्म और शुष्क हो गई। जलवायु परिवर्तन के साथ ही पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं में भी परिवर्तन हुए और मानव के लिए नए क्षेत्रों की ओर बढ़ना संभव हुआ।
यह पुरापाषाण काल और नवपाषाण काल के बीच का संक्रमण काल है।
मध्य पाषाण काल के लोग शिकार करके, मछली पकड़ कर और खाने पीने की चीजें एकत्र करके अपना पेट भरते थे। आगे चलकर ये पशु पालन भी करने लगे। इनमें शुरूआत के 3 पेशे तो पुरापाषाण काल से ही चले आ रहे थे लेकिन अंतिम पेशा नवपाषाण संस्कृति से जुड़ा है। अब न सिर्फ बड़े, बल्कि छोटे जानवरों का भी शिकार होने लगा।
औजार बनाने की तकनीक में भी बदलाव हुआ और छोटे पत्थरों का इस्तेमाल होने लगा।
इस काल के महत्वपूर्ण हथियार थे- एक धार फलक, बेघनी, अर्धचंद्र काल तथा समलंब।
महत्वपूर्ण स्थल: वीर भारपुर ( पश्चिम बंगाल), लंघनाज (गुजरात), टेरी समूह ( तमिलनाडु), आदमगढ़ ( मध्य प्रदेश), बागोर ( राजस्थान), महादहा, सराय नाहर राय ( उत्तर प्रदेश)।
इस काल में सामाजिक तथा आर्थिक दोनों ही जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव हुए। जनसंख्या में वृद्धि हुई और शिकार की सुगमता के कारण मनुष्य छोटी-छोटी टोलियों में रहने लगे। स्थाई निवास की परंपरा शुरू हुई। पशुपालन एवं कृषि की शुरुआत हुई और मिट्टी के बर्तन बनने लगे।
अन्य प्रमुख तथ्य
कृषि की शुरुआत हुई।
आग का आविष्कार पहले ही हो चुका था। उदाहरण स्वरूप सराय नाहर राय से पशुओं की अधजली हड्डियां मिली। महादहा से चूल्हे के इस्तेमाल के साक्ष्य मिले।
इस काल में बर्तन के नमूने भी मिले हैं। उदाहरण के लिए चोपानीमंडो (इलाहाबाद) से बर्तन के प्रमाण मिले हैं तथा महादा से सिलबट्टा के प्रमाण मिले हैं।
आवास: मध्य पाषाण में आवास अस्थाई होते थे। उदाहरण के लिए चोपानीमंडो ( इलाहाबाद) से झोपड़ियों के साक्ष्य मिले हैं, जो मधुमक्खी के छत्ते जैसी हैं। सराय नाहर राय और महादहा से स्तंभागरथ के सबूत मिले हैं तथा बागोर से भी आवास स्थल के प्रमाण मिले हैं।
पशुपालन: मध्य पाषाण काल में पशुपालन के सबूत मिलते हैं, लेकिन यह अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण आधार नहीं थे। उदाहरण के लिए आदमगढ़ ( मध्य प्रदेश) और राजस्थान के बागोर नामक स्थान से पशुपालन के प्राचीनतम प्रमाण मिले हैं।
नवपाषाण काल: कृषि और पशुपालन
विश्वस्तरीय संदर्भ में नवपाषाण काल का 9000 ईसा पूर्व में शुरू होने का उल्लेख मिलता है, लेकिन भारतीय उपमहाद्वीप में नवपाषाण काल की एक ऐसी बस्ती मिली है, जिसका आरंभ 7000 ईसा पूर्व माना जाता है। यह पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित मेहरगढ़ है। हालांकि मेहरगढ़ में नवपाषाण काल, ताम्र पाषाण काल और कांस्य युगीन तीनों संस्कृतियों के प्रमाण मिलते हैं।
दक्षिण भारत में पाई गई, नवपाषाण काल की बस्तियां 2500 ईसा पूर्व से ज्यादा पुरानी नहीं है।
इस युग में मनुष्य पॉलिशदार पत्थर के औजारों और हथियारों का प्रयोग करते थे। वे खासतौर से पत्थर की कड़ियों का इस्तेमाल किया करते थे।
अनेक क्षेत्रों में बदलाव हुए
जीवन शैली में परिवर्तन
सामाजिक क्षेत्र में बदलाव
आर्थिक क्षेत्र में बदलाव
राजनीतिक गतिविधियों में बदलाव
धार्मिक क्षेत्र
प्रागैतिहासिक पुरातात्विक साक्ष्य
स्थान- मेहरगढ़
प्राप्त साक्ष्य- प्रथम कृषि का साक्ष्य (रागी)
स्थान- इनामगांव
प्राप्त साक्ष्य- मातृ देवी की छोटी मूर्ति, सांड की मिट्टी की मूर्ति, हाथी दांत के मनके, सोने की बाली
स्थान- बागोर, आदमगढ़
प्राप्त साक्ष्य- पशुपालन का पहला प्रमाण, हड्डी के औजार
स्थान- हस्तिनापुर
प्राप्त साक्ष्य- जंगली गन्ना, चावल, कांच की चूड़ियां, गर्त आवास
स्थान- जखेड़ा
प्राप्त साक्ष्य- लोहे की हंसिया, कुदाल, ताम चूड़ियां
स्थान- कोल्डीहवा
प्राप्त साक्ष्य- चावल का पहला साक्ष्य, सूती कपड़े का साक्ष्य
स्थान- अंतरजीखेड़ा
प्राप्त साक्ष्य- कपड़े की छपाई का अवशेष
महत्वपूर्ण स्थल
बुर्ज होम(कश्मीर), चिरांद ( बिहार), मास्की, ब्रहागिरि, हल्लुक(कर्नाटक), पिकलीहल (आंध्र प्रदेश), पयमपल्ली (तमिलनाडु) इत्यादि।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में खेती करते हुए आदिमानव का कलात्मक चित्र दिखाया गया है। (Flickr)
2. दूसरे चित्र में महादहा से प्राप्त मानव शरीर के अवशेषों को दिखाया गया है। (Youtube)
3. तीसरे चित्र में भारत के विभिन्न पुरास्थलों से प्राप्त चित्र रचनओं में शिकार के चित्रण को दिखाया गया है। (Prarang)
4. चौथे चित्र में सिंधु घाटी सभ्यता के उत्खनन स्थलों से प्राप्त विभिन्न औज़ारों का चित्र है। सभी औजार पत्थर से बनाये गए थे। (Wikimedia)
5. पांचवां चित्र खेती करते हुए आदि मानव को प्रदर्शित करता है। (Publicdomainpictures)
6. छठवां चित्र में मोहनजोदड़ो के घरों का कलात्मक अंकन और वर्तमान में मोहनजोदड़ो का चित्र दिखाया गया है। (Prarang)
7. अंतिम चित्र में सिंधु सभ्यता से मिले बैलगाड़ी की एक मूर्ति को दिखाया गया है, जो हमारे पूर्वजों के पशुपालन, खेती और आवागमन के बारे में काफी महत्वपूर्ण तथ्य है। (Flickr)
सन्दर्भ:
https://minds.wisconsin.edu/bitstream/handle/1793/64726/Arista_Katherine_Thesis.pdf?sequence=1&isAllowed=y (evidence of health shift)
https://en.wikipedia.org/wiki/Langhnaj
https://bit.ly/2u260kw
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