भारत आजादी के बाद से ही गुटनिरपेक्ष आंदोलन का एक प्रमुख सदस्य था। गुटनिरपेक्ष आंदोलन, जो अनिवार्य रूप से शीत युद्ध के दौरान एक अमेरिकी विरोधी संगठन के रूप में बना था, आज सभी प्रासंगिकता खो चुका है। शीत युद्ध के दौरान भी, भारत वास्तव में गुटनिरपेक्ष नहीं था। गुटनिरपेक्ष आंदोलन के अधिकांश सदस्यों का झुकाव सोवियत संघ की ओर था। लेकिन कोरोना वायरस जैसी महामारी के बाद, भारत ने फिर से गुटनिरपेक्ष आंदोलन को पुनर्जीवित करने की कोशिश की है, क्योंकि विश्व व्यापी भू-राजनीतिक बदलाव स्पष्ट हैं और साथ ही ये महामारी आर्थिक चुनौतियों और युद्ध की भांति परिदृश्य ला रही है। लेकिन जैसा कि हाल ही में चीन की सीमा पर हुए हमलों से पता चलता है कि अब भारत के हितों में बड़े गुटनिरपेक्ष आंदोलन का पुनरुद्धार और प्रभावशीलता बहुत कठिन हो सकती है, फिर चाहे ही यह चीन बनाम संयुक्त राज्य अमेरिका की आर्थिक लड़ाई के बीच चयन करने के लिए धर्मी मध्य-मार्ग ही क्यों ना हो।

गुटनिरपेक्ष आंदोलन विश्व के 120 विकासशील राष्ट्रों का एक मंच है, जो औपचारिक रूप से किसी भी प्रमुख सत्ता गुट के साथ गठबंधन नहीं करता है। संयुक्त राष्ट्र के बाद, यह विश्व भर के राष्ट्रों का सबसे बड़ा समूह है। 1955 में बांडुंग सम्मेलन में सहमत सिद्धांतों से आकर्षित, तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंडोनेशियाई राष्ट्रपति सुमालो, मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर और यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज़ टीटो द्वारा एक पहल के माध्यम से 1961 में बेलग्रेड, एसआर सर्बिया, यूगोस्लाविया में गुटनिरपेक्ष आंदोलन की स्थापना की गई थी।

1979 के अपने हवाना घोषणा में फिदेल कास्त्रो (Fidel Castro) द्वारा संगठन का उद्देश्य "राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और गुटनिरपेक्ष देशों की सुरक्षा" सुनिश्चित करना था और साथ ही उनके "साम्राज्यवाद, उपनिवेशवाद, नव-उपनिवेशवाद, नस्लवाद, विदेशी आक्रमण, कब्जे, वर्चस्व, हस्तक्षेप या आधिपत्य के सभी रूपों के साथ-साथ महान सत्ता और गुट राजनीति के खिलाफ संघर्ष करना शामिल था।" गुटनिरपेक्ष आंदोलन के देश संयुक्त राष्ट्र (United Nation) के लगभग दो-तिहाई सदस्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं और इसमें विश्व की 55% आबादी शामिल है।
गुटनिरपेक्ष आंदोलन के 120 स्थायी सदस्यों में से, भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों, जनसंख्या और अर्थव्यवस्था के आकार के कारण समूह के नेता के रूप में उभरने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसके अलावा, मिस्र और पूर्ववर्ती यूगोस्लाविया के साथ भारत का गुटनिरपेक्ष आंदोलन के तीन संस्थापक देशों में से एक के रूप में भी इसके पक्ष में कार्य करता है। वहीं ऐसा माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी और भारत को गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करने से दोहरा लाभ प्राप्त हो सकता है। सबसे पहला, मोदी के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर अपनी सत्तावादी और राष्ट्रवादी छवि का मुकाबला करना रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, गुटनिरपेक्ष आंदोलन भी विदेश नीति के नेहरूवादी आदर्श को पुनर्परिभाषित करता है, जिसे पश्चिम और मध्य पूर्व, दो क्षेत्रों में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया था।

दूसरा, जैसा कि विश्व को कोरोना वायरस के बाद एक नए वैश्विक क्रम के उद्भव की उम्मीद है, भारत जैसी उभरती मध्य शक्तियों को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए निर्धारित किया गया है। इसके अलावा, संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बीच एक "नए शीत युद्ध" की बयानबाजी जोर पकड़ रही है। इस तरह के परिदृश्य की संभावना में, गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर ध्यान केंद्रित करने के लिए विश्व की मध्य शक्तियों के एक प्रमुख सामूहिक गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर ध्यान केंद्रित करेगा। चल रही महामारी के दौरान नई दिल्ली की कूटनीति बताती है कि बदलती वैश्विक गतिशीलता को पहचानना जल्दबाज़ी है। सार्क (SAARC) को पुनर्जीवित करने और नेहरूवादी गुटनिरपेक्ष आंदोलन में वापस जाने की मोदी की कोशिश बदलती परिस्थितियों के दौरान दृष्टिकोण बदलने का एक स्पष्ट मामला है। वर्तमान स्थिति से अवसर प्राप्त करने के लिए भारत को अपने नए दृष्टिकोण के अनुरूप बने रहना होगा।
चित्र सन्दर्भ:
1. प्रथम गुट निरपेक्ष सम्मलेन (Wikipedia)
2. गुट निरपेक्ष सम्मलेन का वर्तमान और प्रथम लोगो (Prarang)
3. बेल्ग्रेड कॉन्फ्रेंस, सितम्बर 1961 (Belgrade Conference, September 1961) (Wikipedia)
4. कोरोना विषाणु के कारण वर्तमान में गुट निरपेक्ष सम्मलेन ऑनलाइन सम्पूर्ण हुआ। (Flickr)
संदर्भ :-
https://bit.ly/38nGAxK
https://bit.ly/2VIaY0F
https://en.wikipedia.org/wiki/Non-Aligned_Movement
https://bit.ly/38nAqhc