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जानें चेकोस्लोवाकिया में आए बदलावों में, बापू के विचारों की क्या भूमिका थी ?

जौनपुर

 02-10-2024 09:20 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
हर साल, 2 अक्टूबर के दिन जौनपुर के सभी सरकारी कार्यालय और विद्यालय, शान से लहराते हुए तिरंगे और "गांधीजी ज़िंदाबाद" के नारों से गूँज उठते हैं। न केवल जौनपुर बल्कि पूरे देश में गाँधी जयंती को एक राष्ट्रीय पर्व की भांति मनाया जाता है। गांधीजी ने केवल भारत को औपनिवेशिक शासन से मुक्ति दिलाई, ऐसा कहना उचित न होगा। वास्तव में, 19वीं सदी की अधिकांश शांतिपूर्ण आंदोलनों और क्रांतियों में बापू ने भले ही प्रत्यक्ष रूप से न सही लेकिन वैचारिक रूप से बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। इसके एक उदाहरण के तौर पर आज हम चेकोस्लोवाकिया में घटित शांतिपूर्ण मखमली क्रांति (Velvet Revolution) में गांधीजी की वैचारिक भूमिका को समझेंगे।
वैक्लाव हैवेल (Václav Havel) को चेकोस्लोवाकिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण शख़्सियत माना जाता है। वैक्लेव हैवेल, चेकोस्लोवाकिया के अंतिम और चेक गणराज्य के प्रथम राष्ट्रपति थे। वह एक अनुभवी राजनीतिज्ञ, लेखक, कवि, नाटककार और एक प्रभावशाली क्रांतिकारी भी थे।
1989 से 1992 तक हैवेल चेकोस्लोवाकिया के अंतिम राष्ट्रपति बने। 1992 के अंत में चेकोस्लोवाकिया के दो देशों में विभाजित होने के बाद, वे चेक गणराज्य के पहले राष्ट्रपति बने। उन्होंने 1993 से 2003 तक इस पद पर कार्य किया।
चेकोस्लोवाकिया के इतिहास में मखमली क्रांति को हैवेल का सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। यह एक शांतिपूर्ण आंदोलन था। इस आंदोलन का लक्ष्य, 1989 में चेकोस्लोवाकिया में साम्यवादी शासन को समाप्त करना था। मखमली क्रांति, महात्मा गांधी के अहिंसक प्रतिरोध के विचारों से प्रेरित थी।
वैक्लाव हैवेल का जन्म, 1936 में चेक गणराज्य की राजधानी प्राग (Prague) में हुआ था। प्राग उस समय चेकोस्लोवाकिया का हिस्सा था। हैवेल का पालन पोषण एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके परिवार में शिक्षा को बहुत अधिक महत्व दिया जाता था। परिवार के कुछ सदस्य संस्कृति और राजनीति में भी सक्रिय थे। 1951 में अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, हैवेल ने उच्च शिक्षा की ओर कदम बढ़ाने की इच्छा जताई।
लेकिन उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि कम्युनिस्ट सरकार (Communist Government) के साथ जुड़ी हुई थी, जिस कारण उन्हें विश्वविद्यालय में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। इसके बाद उन्होंने एक रासायनिक प्रयोगशाला सहायक के रूप में काम किया। उन्होंने 1954 में अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी की।
हैवेल को चेकोस्लोवाकिया के सबसे प्रमुख नाटककारों में से एक माना जाता है। उन्होंने 20 से अधिक नाटक और कई गैर-काल्पनिक रचनाएँ लिखीं। कम्युनिस्ट शासन के दौरान, सरकारी उत्पीड़न के बुरे अनुभवों ने उनके लेखन को गहराई से प्रभावित किया।
उनके कुछ प्रसिद्ध नाटकों में शामिल हैं:
- द गार्डन पार्टी (The Garden Party)
- द इनक्रीस्ड डिफ़ीकल्टी आफ़ कंसन्ट्रेशन (The Increased Difficulty of Concentration)
- द मेमोरेंडम (The Memorandum)
- लार्गो डेसोलाटो (Largo Desolato)
- टेम्पटेशन (Temptation)
चेकोस्लोवाकिया के इतिहास में घटित मखमली क्रांति को हैवेल का सबसे महत्वपूर्ण योगदान माना जाता है। मखमली क्रांति, नवंबर से दिसंबर 1989 तक चेकोस्लोवाकिया में घटित हुई। यह एक शांतिपूर्ण विरोध आंदोलन था, जिसने 40 वर्षों से अधिक समय तक चले कम्युनिस्ट शासन का अंत किया।
1989 में, पूर्वी यूरोप के कई देशों में, कम्युनिस्ट सरकारों के खिलाफ़ व्यापक स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए। 16 नवंबर को, ब्रातिस्लावा में छात्रों ने एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन का आयोजन किया। अगले दिन, छात्रों ने प्राग में एक ऐतिहासिक विरोध की याद में मार्च निकाला, जिसे 50 साल पहले नाज़ियों द्वारा हिंसक तरीके से कुचल दिया गया था। इस मार्च के दौरान, छात्रों ने कम्युनिस्ट सरकार की नीतियों की आलोचना की। इसके जवाब में पुलिस ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दी।
कहा जाता है कि मखमली क्रांति की शुरुआत, इसी हिंसक प्रतिक्रिया के कारण हुई थी। क्रांति की शुरुआत चेकोस्लोवाकिया के औद्योगिक क्षेत्रों से हुई। इस दौरान, लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन और हड़तालें शुरू हो गई। इन हड़तालों का नेतृत्व "सिविक फ़ोरम (Civic Forum)" नामक समूह कर रहा था। वैक्लाव हैवेल, इस समूह के प्रमुख प्रवक्ता थे।
स्लोवाकिया में, "पब्लिक अगेंस्ट वायलेंस (Public Against Violence)" नामक एक अन्य समूह का गठन किया गया। इस दौरान विरोध प्रदर्शनों का दायरा भी तेज़ी के साथ बढ़ने लगा। 27 नवंबर के दिन हड़ताल अपने चरम स्तर पर पहुँच गई। इस हड़ताल के दौरान, लोगों ने स्वतंत्र चुनावों और एक-पक्षीय शासन के अंत की मांग की।
हालांकि मखमली क्रांति के बीज बहुत पहले ही पड़ गए थे, जिसे समझने के लिए हमें इतिहास में थोड़ा पीछे चलना होगा:
जनवरी 1968 में, सोवियत संघ द्वारा चेकोस्लोवाकिया के लिए, एलेक्ज़ेंडर डबसेक (Alexander Dubček) को नए लीडर के तौर पर नियुक्त किया गया। उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी थी और बाद में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गए थे। वे स्लोवाक कम्युनिस्टों (Slovak Communists) की एक नई पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते थे। वह अपने पूर्ववर्ती एंटोनिन नोवोत्नी (Antonín Novotný) की तुलना में अधिक उदार थे, जिन्होंने स्टालिन (Stalin) के कठोर नियमों का पालन किया था। डबसेक ने जल्दी ही सरकार और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव किए और लोगों को भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता प्रदान की।
हालांकि, यह उदारीकरण लंबे समय तक नहीं टिक सका। अगस्त 1968 तक, सोवियत संघ ने चेकोस्लोवाकिया के उदार रुख को अपनी शक्ति के लिए खतरा मान लिया। इसके बाद, संघ ने वारसॉ संधि (Warsaw Pact) के आधे मिलियन से अधिक सैनिकों को चेकोस्लोवाकिया पर आक्रमण का आदेश दे दिया। प्राग में सोवियत टैंक घुस गए और छात्रों के नेतृत्व वाले अधिकांश विरोध प्रदर्शनों को कुचल दिया गया। डबसेक (Dubček) की जगह गुस्ताव हुसाक (Gustáv Husák) ने ली। इसके बाद चेकोस्लोवाकिया में सत्तावादी कम्युनिस्ट शासन पुनर्स्थापित हो चुका था। लेकिन घटना के बाद लोगों की मानसिकता में बदलाव आ चुका था।
पूर्वी यूरोपीय विचारकों और कार्यकर्ताओं ने नागरिक समाज को 18वीं सदी के कानूनों से कहीं अधिक महत्वपूर्ण माना। वह ऐसे समूहों और संस्थाओं के निर्माण में विश्वास करने लगे, जो राज्य की शक्ति को सीमित कर सकें और सरकारी नियंत्रण से अलग एक लोकतांत्रिक राज्य स्थापित कर सकें।
यहीं पर इंट्री होती है चेक नेता वैक्लाव हैवेल की जिन्होंने "सत्य", "विवेक", "ज़िम्मेदारी" और "सभ्यता" जैसे विचारों पर ज़ोर दिया।
हैवेल चाहते थे कि लोग सच्चाई और न्याय के साथ जीकर राजनीतिक सत्ता का सामना करें। उन्होंने "शक्तिहीन की शक्ति (The Power of the Powerless)" की अवधारणा को विकसित किया। 1989 में, हैवेल और उनके सहयोगियों का लक्ष्य, साम्यवादी शासन को किसी दूसरे तानाशाह के हाथ में सौंपना नहीं था।
1989 के चेक प्रदर्शनकारियों ने "राजनीतिक जिउ-जित्सु (Political Jiu-Jitsu)" नामक एक विधि का उपयोग किया था। इस सौम्य दृष्टिकोण को सबसे पहले जीन शार्प (Gene Sharp) ने लोकप्रिय बनाया था। जीन शार्प, गांधी के विचारों से प्रेरित अहिंसक सक्रियता के एक अमेरिकी विशेषज्ञ थे। जब दुनिया भर में कई देश युद्ध में लिप्त थे, उस समय शार्प ने लोगों को बिना हथियारों के विरोध करना सिखाया। उन्होंने अहिंसक प्रतिरोध के प्रति प्रतिबद्धता की अपील की, जिसने लोगों के विरोध के तरीके को बदल दिया।
जब दुनिया, अनेक युद्धों में उलझी हुई थी, तब एक नेता ने अपने लोगों को बिना किसी हथियार के, यहां तक कि लाठी के बिना भी, लड़ने की कला सिखाई। उन्होंने लोगों को अहिंसक प्रतिरोध के प्रति प्रतिबद्ध होने के लिए प्रेरित किया। उनका दृष्टिकोण ने वैश्विक स्तर पर लोगों के विरोध के तरीकों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अहिंसक प्रतिरोध को विरोध के एक प्रभावी उदाहरण के तौर पर पेश किया गया। उदाहरण के लिए, कैलिफ़ोर्निया में सीज़र शावेज़ (César Chávez) के नेतृत्व में खेतिहर मज़दूरों ने और पोलैंड (Poland) के डांस्क (Gdańsk) में लेक वाल्सा (Lech Wałęsa) के नेतृत्व में गोदी मज़दूरों ने इस विधि का सफलतापूर्वक उपयोग किया। इसी तरह, चेकोस्लोवाकिया में वैक्लेव हैवेल और उनके सहयोगियों ने भी अपनी चिंताओं को व्यक्त करने और एक दमनकारी कम्युनिस्ट शासन को समाप्त करने के लिए अहिंसक प्रतिरोध का सहारा लिया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/23yhepf9
https://tinyurl.com/2dgvcpkv
https://tinyurl.com/2a6q6tng
https://tinyurl.com/25y66t5z
https://tinyurl.com/25npvm73

चित्र संदर्भ
1. गांधीजी की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. वैक्लाव हैवेल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वैक्लाव हैवेल की रंगीन छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1989 की मखमली क्रांति के दौरान, प्राग स्मारक पर स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए संघर्ष का स्मरण करते हुए वैक्लाव हैवेल और प्रदर्शनकरियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. नारोडनी स्ट्रीट, प्राग पर मखमली क्रांति स्मारक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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