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पांडुलिपि और पुस्तकें दोनों हैं ज्ञान का भंडार, लेकिन फिर भी दोनों में है अंतर, आइए जानें

जौनपुर

 08-04-2024 09:41 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

प्राचीन भारतीय पांडुलिपियों को ज्ञान का भंडार माना जाता है जिन्होंने सदैव ही सदियों से दुनिया का ध्यान अपनी और आकर्षित किया है। सातवीं शताब्दी की शुरुआत में चीनी यात्री ह्वेन त्सांग (Hiuen Tsang) भारत से सैकड़ों पांडुलिपियाँ अपने साथ ले गए। बाद में अठारहवीं शताब्दी के अंत में, अवध के नवाब ने इंग्लैंड के राजा जॉर्ज III (King George III) को ‘पादशाहनामा’ (Padshahnama) की एक शानदार प्रबुद्ध पांडुलिपि उपहार में दी। आज, इसे रॉयल कलेक्शन (Royal Collection) में सबसे बेहतरीन संग्रहित वस्तुओं में से एक माना जाता है। कुछ लोगों को पांडुलिपि के वास्तविक अर्थ को लेकर भ्रांति होती है। वे पांडुलिपि को एक पुस्तक समझते हैं। जबकि वास्तव में पांडुलिपि कागज़, छाल, कपड़े, धातु, ताड़ के पत्ते या किसी अन्य सामग्री पर हाथ से लिखी गई एक ऐसी रचना होती है जो कम से कम पचहत्तर साल पुरानी हो और वैज्ञानिक, ऐतिहासिक या सौंदर्य मूल्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो। शिला मुद्रण (Lithographs) तथा मुद्रित लेख पांडुलिपि की श्रेणी में नहीं आते। पांडुलिपियाँ विभिन्न भाषाओं और लिपियों में लिखी हो सकती हैं। अक्सर, एक ही भाषा को कई अलग-अलग लिपियों में लिखा जा सकता है। उदाहरण के लिए, संस्कृत भाषा को उड़िया लिपि, ग्रंथ लिपि, देवनागरी लिपि और कई अन्य लिपियों में लिखा गया है। पांडुलिपियाँ ऐतिहासिक अभिलेखों जैसे चट्टानों पर अभिलेख, फ़रमान, राजस्व अभिलेख जो इतिहास में घटनाओं या प्रक्रियाओं के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी प्रदान करते हैं, उनसे भी भिन्न होती हैं। आज भी हमारे देश भारत में देश के इतिहास, विरासत और विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाली अनुमानतः 50 लाख पांडुलिपियाँ उपलब्ध हैं, जो संभवतः दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है। इन पांडुलुपियों में विभिन्न प्रकार के विषय, संरचनाएँ और सौंदर्यशास्त्र, लिपियाँ, भाषाएँ, सुलेख, रोशनी और चित्र निहित हैं। भारत सरकार के पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय (Ministry of Tourism and Culture, Government of India) द्वारा फरवरी 2003 में एक महत्वाकांक्षी परियोजना के रूप में ‘राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन’ की स्थापना की गई है जिसका उद्देश्य भारत की इन पांडुलिपियों में निहित ज्ञान के भंडार का पता लगाना, इनका दस्तावेज़ीकरण करना, संरक्षण करना और प्रसार करना है। इन पांडुलिपियों के विषय में अधिक जानकारी आप भारत सरकार द्वारा शुरू की गई वेबसाइट पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं, जिसका लिंक नीचे दिया गया है:
National Mission for Manuscripts | (namami.gov.in)
वहीं दूसरी ओर एक पुस्तक, जानकारी को लेखन या छवियों के रूप में दर्ज करने का एक माध्यम है। पुस्तकें आम तौर पर कई पृष्ठों से बनी होती हैं, जो एक साथ बंधे होते हैं और एक आवरण द्वारा संरक्षित होते हैं। पुस्तकों में अधिक मात्रा या लंबाई में लिखे गए कार्यों को संग्रहित किया जाता है और इन्हें भौतिक रूप से या ईबुक जैसे डिजिटल रूपों में मुद्रित किया जा सकता है। पुस्तकों की विषय सूची काल्पनिक या गैर काल्पनिक दोनों हो सकती है। पुस्तकों को कई श्रेणियों में भी विभाजित किया जा सकता है, जैसे कि कुछ पुस्तकें बच्चों के साहित्य एवं उनकी रूचियों के आधार पर बनी होती है तो कुछ पुस्तकों में गहन एवं गम्भीर दार्शनिक विचार निहित होते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि एक पुस्तक में लेखन सामग्री उपलब्ध हो। कुछ पुस्तकों में केवल चित्र, पहेलियाँ नक्शे या अन्य सामग्री ही मुख्य रूप से होती है। आज प्रौद्योगिकी के विकास के कारण समकालीन पुस्तक उद्योग में कई बड़े बदलाव देखने को मिले हैं। यद्यपि, ई-पुस्तकों के बढ़ते उपयोग के कारण मुद्रित पुस्तकों की बिक्री में कमी आई है। लेकिन फिर भी मुद्रित पुस्तकें अभी भी बड़े पैमाने पर ई-पुस्तकों से अधिक बिकती हैं, और बहुत से लोग आज भी मुद्रण को प्राथमिकता देते हैं। इसके साथ ही अब ऑडियोबुक्स की लोकप्रियता में भी तेजी से वृद्धि देखी जा रही है, जो कि पढ़ती हुई आवाज के साथ किताबों की रिकॉर्डिंग होती हैं। इसके अतिरिक्त जो लोग अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण मुद्रित सामग्री को नहीं देख पाते हैं, उनके लिए अब ब्रेल मुद्रण (braille printing) या टेक्स्ट-टू-वॉयस (text-to-voice)अर्थात पाठ से आवाज तक का समर्थन करने वाले प्रारूप भी उपलब्ध हैं। गूगल Google का अनुमान है कि 2010 तक, लगभग 130,000,000 अद्वितीय पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी थीं।
क्या आप जानते हैं कि सबसे पुराना ज्ञात पांडुलिपि एटलस 17वीं शताब्दी में हमारे शहर जौनपुर में बनाया गया था। मुहम्मद सादिक इस्फ़हानी द्वारा 1646-47 में लिखित यह एटलस, इंडो-इस्लामिक मानचित्रकला के इतिहास में अद्वितीय है। यद्यपि हमारे शहर के नाम ऐसे न जाने कितने हि अनगिनत अद्वितीय कारनामे जुड़े हुए हैं, लेकिन जो बात आज भी खलती है, वह यह है कि हमारे शहर में एक भी राजकीय प्रेस नहीं है। राजकीय प्रेस पर पूरी तरह राज्य का स्वामित्व होता है और इनके द्वारा राज्य की विभिन्न संस्थाओं के लिए सरकार के आदेश पर मुद्रण का कार्य किया जाता है। हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में राज्य के सभी सरकारी विभागों के लिए लेखों की छपाई और लेखन सामग्री की आपूर्ति करने का कार्य मुद्रण एवं लेखन सामग्री निदेशालय द्वारा किया जाता है जो उत्तर प्रदेश सरकार के औद्योगिक विकास विभाग के प्रशासनिक नियंत्रण में है। इस सरकारी प्रेस की एक गरिमामयी पृष्ठभूमि और गौरवशाली इतिहास रहा है जो 150 वर्ष से भी अधिक पुराना है। राज्य का पहला राजकीय प्रेस आगरा में खोला गया था, जिसे वहाँ से स्थानांतरित करके इलाहाबाद में पुनः स्थापित कर दिया गया। वर्तमान में निदेशालय के नियंत्रण में चार प्रेस और एक लेखन सामग्री भंडारगृह आते हैं। सरकारी प्रेस नियमित रूप से उत्तर प्रदेश विधानमंडल, विभिन्न सरकारी विभागों के प्रकाशनों अर्थात राजपत्र, बजट साहित्य आदि, भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग और माननीय उच्च न्यायालय के लिए उनकी आवश्यकताओं के अनुसार मुद्रण कार्य करता है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/zecuzdbm
https://tinyurl.com/29969jdb
https://tinyurl.com/4dv3bxp3
https://tinyurl.com/4jhdca8b

चित्र संदर्भ
1. पांडुलिपि बनाम पुस्तक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,picryl)
2. तांत्रिक पाण्डुलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ताड़ पत्र पांडुलिपि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. हिंदू धार्मिक पुस्तकों को दर्शाता एक चित्रण (2Fpixahive)
5. ई पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (needpix)
6. जौनपुर में निर्मित एटलस (मानचित्र), को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)



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