उत्तर भारत में इस बार मार्च में ही जून जैसी गर्मी पड़ने लगी है। जिस वजह से कई स्थानों में जल
संकट का खतरा दिख रहा है। इस गर्मी में पानी की समस्या को दूर करने के लिए गर्मी से परेशान
राजस्थान की जनता को सरकार ट्रेन के जरिए पानी पहुंचा रही है।भारतीय रेलवे कुछ दिनों से
पश्चिमी राजस्थान के पाली जिले में पानी पहुंचा रहा है क्योंकि इस क्षेत्र के जलाशय मार्च की तेज
गर्मी के कारण सूख गए हैं।ये ट्रेनें अब न केवल पाली के मानव निवासियों बल्कि सरीसृपों के भी
जीवित रहने की कुंजी बनी हुई हैं।
मार्च में अत्यधिक और शुरुआती गर्मी ने पाली में अधिकारियों को
जवाई नदी (जो लूनी की एक सहायक नदी है जो पाली से होकर बहती है) पर बने जवाई बांध से
पानी छोड़ने के लिए विवश कर दिया है।मगरमच्छ बाह्यउष्मीय हैं, जिसका अर्थ है कि उनके शरीर कातापमान पर्यावरण के तापमान से निकटता से जुड़ा हुआ रहता है। खारे पानी के मगरमच्छ
(Crocodylusporosus) एक दिन में 11 घंटे तक पानी में डूबे रहते हैं। शिकारियों से बचने, पानी के
भीतर शिकार के लिए खुराक, आराम और सामाजिकता के लिए गोता लगाने की उनकी क्षमता
महत्वपूर्ण है।पानी के तापमान में वृद्धि होने की वजह से ऑक्सीजन भंडार अधिक तेजी से खपत
होते हैं, जिससे जानवरों को सांस लेने के लिए अधिक बार सतह पर आना पड़ता है या गोता लगाने
के बीच में सतह पर अधिक समय बिताने के लिए विवश होना पड़ता है।
जवाई में मौजूद मगरमच्छ मग्गर या मार्श मगरमच्छ (Crocodyluspalustris) होते हैं जो मीठे पानी में
रहना पसंद करते हैं। ये दक्षिण-पूर्वी ईरान (Iran) के अलावा पूरे दक्षिण एशिया (भारत, पाकिस्तान
(Pakistan), श्रीलंका (Sri Lanka), नेपाल (Nepal) और बांग्लादेश (Bangladesh)) में पाए जाते हैं।
ये लगभग 5 मीटर (16 फीट 5 इंच) तक लंबे होते हैं और काफी शक्तिशाली तैराक हैं, लेकिन गर्म
मौसम के दौरान उपयुक्त जल निकायों की तलाश में जमीन पर भी चलते हैं। जब परिवेश का
तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है या 38 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाता है‚ तो
युवा और वयस्क दोनों मगरमच्छ मिलकर खुदाई करते हैं। मादाएं घोंसले के लिए रेत को खोदती
हैं और शुष्क मौसम आने पर रेत में किये छेद में 46 अंडे देती हैं।माता पिता दोनों एक वर्ष तक
बच्चों की रक्षा करते हैं। वे कीड़ों का भोजन करते हैं और वयस्क मछली‚ सरीसृप‚ पक्षियों और
स्तनधारियों का शिकार करते हैं।ये मरे हुए जानवरों का भी सेवन करते हैं।
शुष्क मौसम के दौरान,
पानी और शिकार की तलाश में मगरमच्छ जमीन पर कई किलोमीटर चलते हैं। मग्गर मगरमच्छ
कम से कम 4.19 मिलियन साल पहले विकसित हुआ था और वैदिक काल से ही नदियों की
फलदायी और विनाशकारी शक्तियों का प्रतीक रहा है।
यह पहली बार 1831 में वैज्ञानिक रूप से वर्णित किया गया था और ईरान(Iran)‚ भारत(India) और
श्रीलंका(Sri Lanka) में कानून द्वारा संरक्षित है। हालांकि संरक्षित क्षेत्रों के बाहर‚ इन्हें प्राकृतिक आवासों
के परिवर्तन से काफी खतरा होता है‚ मछली पकड़ने के जाल में फंस जाने और मानव–वन्यजीव
संघर्ष स्थितियों और यातायात दुर्घटनाओं में मारे जाने का खतरा बना रहता है। सभी मगरमच्छों की
तरह, मग्गर मगरमच्छ एक बाह्यउष्मीय है और उसके शरीर का इष्टतम तापमान 30 से 35 डिग्री
सेल्सियस (86 से 95 डिग्री फारेनहाइट) होता है और 5 डिग्री सेल्सियस (41 डिग्री फारेनहाइट) या
नीचे के तापमान के संपर्क में आने पर ठंड या अतिताप क्रमशः 38 डिग्री सेल्सियस (100 डिग्री
फारेनहाइट) से ऊपर से मरने का जोखिम होता है।
यह अत्यधिक तापमान और अन्य कठोर जलवायु
परिस्थितियों से बचने के लिए बिल खोदकर रहते हैं। इनके बिल पानी के स्तर से ऊपर के प्रवेश द्वार
और अंत में एक कक्ष के साथ 0.6 और 6 मीटर के बीच गहरे होते हैं जो कि मग्गर को घूमने की
अनुमति देने के लिए काफी बड़े होते हैं।क्षेत्र के आधार पर अंदर का तापमान 19.2 से 29 डिग्री
सेल्सियस (66.6 से 84.2 डिग्री फारेनहाइट) पर स्थिर रहता है।
संदर्भ :-
https://bit.ly/3vfQnmK
https://bit.ly/3F5paGR
https://ab.co/3xRBbOp
https://bit.ly/3MBQbUP
चित्र संदर्भ
1 प्यासे मगरमच्छ को दर्शाता एक चित्रण (Max Pixel)
2. नदी किनारे आराम करते मगरमच्छ को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. मगरमच्छ के साथ व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. मगरमच्छ को खाना देते कर्मचारी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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