भूमि उपयोग योजना की आवश्यकता एवं महत्व

मेरठ

 27-04-2022 09:44 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

नीति आयोग (NITI AAYOG) के अनुसार, शहरी बस्तियां भारत के भौगोलिक क्षेत्र के 3% पर कब्जा करती हैं, लेकिन राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 60% का योगदान करती हैं। समय के साथ शहरीकरण की दर लगातार बढ़ रही है। 2000 और 2011 के बीच वृद्धि की यह दर लगभग 3.36% थी। आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने इस अवधि में देश भर में 2,774 नई बस्तियों के निर्माण की सूचना दी। यह अनुमान है कि 2036 तक भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.52 बिलियन हो जाएगी। इसके साथ, आजीविका विकल्पों की कमी और आवासीय स्थानों की कमी के कारण, लोग भारत के लगभग सभी शहरों में आस-पास के गांवों की ओर पलायन कर रहे हैं।
2014 में हुई कृषि जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 86 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम भूमि उपलब्ध है। इसीलिए, ज्यादातर भारतीय किसान 'आर्थिक रूप से हाशिए पर' हैं और वे अपने परिवार को पालने के लिए पर्याप्त कमाई करने में असमर्थ हैं। आर्थिक रूप की यह कमी उन्हें देश भर में तेजी से औद्योगिकीकरण वाले शहरी केंद्रों में शरण लेने के लिए मजबूर करती है। संपूर्ण भारतवर्ष में भूमि उपयोग के तरीके तीव्र गति से बदल रहे हैं और इसके साथ ही पर्यावरण पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा है। भारत एक ऐसा देश है, जहां 166 मिलियन से अधिक लोग कृषि पर निर्भर हैं। यहां भूमि उपयोग के तरीकों में कोई भी बदलाव, पर्यावरण और जीवन की गुणवत्ता पर बहुत बड़ा प्रभाव डाल सकता है। भारत में विविध जैव विविधता, जलवायु, स्थलाकृति और सामाजिकआर्थिक स्थिति भूमि उपयोग के कई कारक हैं। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और भू-जल की कमी पूरे देश में मिट्टी के संसाधनों को प्रभावित कर रही है। शहरों में वायु, जल, भूमि प्रदूषण, असंगठित कचरा और डंप, भीड़भाड़ वाली गली व शहरों में जीवन की गुणवत्ता को कम कर रही है। ये बाधाएं कम प्रदूषित और कम भीड़-भाड़ वाले गांवों की ओर पलायन का मुख्य कारण बन गई हैं। इस प्रकार, पिछले कुछ दशकों में ग्रामीण इलाकों में घरों की मांग में काफी वृद्धि हुई है।
इसी के साथ पिछले कुछ वर्षों में प्रौद्योगिकी, सड़क प्रबंधन और परिवहन सुविधाओं में काफी सुधार हुआ है। इन ग्रामीण इलाकों के कस्बों में उच्च मांग के कारण, भारतीय गांव धीरे-धीरे छोटे शहरों में परिवर्तित हो रहे हैं। दुर्भाग्य से, यह निर्माण प्रक्रियाएं पर्यावरण के अनुकूल नहीं हैं, क्योंकि ये गतिविधियां भूमि उपयोग के कारकों को प्रभावित करती हैं, मौजूदा जैव विविधता को नष्ट करती हैं और भू-जल पुनर्भरण को भी कम करती हैं। विश्व में प्रतिवर्ष पर्याप्त कंक्रीट का उत्पादन होता है, जो 13,000 वर्ग किमी से अधिक भूमि को समेटता है, जो इंग्लैंड (England) के क्षेत्रफल के बराबर है, इससे काफी विस्तृत मात्रा में कृषि उपयोगी भूमि में गिरावट आ जाती है। भारत लगातार बढ़ती जीडीपी (GDP) के साथ तेजी से विकासशील देश का सबसे अच्छा उदाहरण है। भारत की संपूर्ण आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी खुद को कृषि कार्यों में शामिल करता है। हालांकि, गांवों और कस्बों से शहरों की ओर पलायन करने वाले लोगों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इस वृद्धि के कारण, शहरीकरण में भी तेजी से विकास हुआ है। शहरी क्षेत्रों में सीमित संसाधन और भूमि के प्रबंधन और इस तेजी से शहरीकरण को व्यवस्थित बनाने के लिए, भारत में भूमि उपयोग की योजना बनाना अत्यंत आवश्यक हो जाता है। इसलिए, भारत में भूमि उपयोग की योजना मुख्य रूप से विशिष्ट उद्देश्यों के लिए क्षेत्रों को विभाजित करने के लिए की जाती है। फिर जिन क्षेत्रों को विशिष्ट कार्य सौंपे गए हैं वे उन कार्यों के अलावा कोई भी अन्य कार्य नहीं करेंगे। यह समग्र भूमि की उपयोगिता को अधिकतम करने और उसी गतिविधि के लिए भूमि के उपयोग की पुनरावृत्ति की संभावना को नकारने के लिए किया जाता है। यह भविष्य के किसी अन्य नकारात्मक प्रभाव को भी रोकने में सक्षम है। भारत में कस्बों और शहरों के नियोजित विकास की आवश्यकता महसूस होने के बाद ही भूमि उपयोग नियोजन की अवधारणा का विकास हुआ।
पहले, जनसंख्या वृद्धि और संसाधनों की उपलब्धता एक दूसरे के अनुरूप थी और इसलिए मानव नियोजन की कोई आवश्यकता नहीं थी। हालाँकि, जनसंख्या में वृद्धि और घटते संसाधनों के साथ, भूमि उपयोग नियोजन की आवश्यकता महसूस की गई। यह मुख्य रूप से भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद हुआ। इससे पहले शहरों की स्थापना ज्यादातर आवश्यक संसाधनों के स्थान के आधार पर की जाती थी। जैसे जो शहर तट के पास थे, उन्हें बंदरगाह शहरों के रूप में स्थापित किया गया था। भारत में आयोजित नई नगर नियोजन अवधारणा अभी भी ध्यान आकर्षित करने के लिए संघर्ष कर रही है। हालांकि, जीवन की गुणवत्ता के महत्व की बढ़ती समझ के साथ, भूमि उपयोग योजना पर ध्यान दिया जा रहा है। किसी भी प्रकार की राष्ट्रीय स्तरीय योजना भारत के योजना आयोग द्वारा की जाती है, जिसे अब नीति आयोग (NITI AAYOG) के नाम से जाना जाता है। इस आयोग द्वारा पारित पंचवर्षीय योजनाओं में विभिन्न क्षेत्रों को धन के आवंटन का विवरण भी दिया गया है। शहरी क्षेत्रों का विकास विभिन्न नियोजन योजनाओं के माध्यम से किया जाता है। मास्टर प्लान (MASTER PLAN) एक ऐसी योजना है, जो विशेष रूप से शहरी क्षेत्र के विकास के लिए बनाई गई है। यह ध्यान देने योग्य है कि इन सभी योजनाओं का सबसे महत्वपूर्ण घटक भूमि उपयोग योजना है, क्योंकि यह एक योजना के लिए एक स्थानिक प्रकृति को दर्शाता है।
सरल शब्दों में भूमि उपयोग योजना का तात्पर्य भूमि के प्रत्येक टुकड़े को एक विशिष्ट उद्देश्य प्रदान करने से है। भूमि उपयोग प्रबंधन शहरी और ग्रामीण आबादी को स्थापित करने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों, पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उपजाऊ भूमि में अस्थिर बस्ती और भवन निर्माण, कृषि योग्य भूमि की अनुपलब्धता का कारण बनेंगे जो किसानों को फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए अधिक रासायनिक-गहन तरीकों को उपयोग करने के लिए मजबूर करेगा। रसायनों के व्यापक उपयोग से भूमि का क्षरण होता है और यह बंजर हो जाती है। इसीलिए, शहरीकरण के साथ-साथ कृषि, दोनों ही बड़े पैमाने पर पर्यावरण के दो मुख्य पहलू हैं। इसीलिए नीति निर्माताओं को भूमि आवंटन में ध्यान देने की जरूरत है। उपजाऊ भूमि सिकुड़न और शहरी ताप प्रदूषण को कम करने के लिए सतत भूमि उपयोग प्रबंधन विकल्पों की आवश्यकता है। न्यूनतम कंक्रीट से ढका हुआ क्षेत्र सौंदर्यपूर्ण लगेगा, साथ ही हमें स्वस्थ वनस्पति भी देगा। विला निर्माण के बजाय ऊंचे मकानों का निर्माण अधिक लोगों को समायोजित करेगा और कम भूमि का उपयोग करेगा। इस तरह, पर्यावरण और जैव विविधता के साथ साथ कृषि योग्य भूमि को बचाया जा सकता है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3EHJFJk
https://bit.ly/3OAgFHS
https://bit.ly/3ELvgfk

चित्र संदर्भ

1  जमीन का सर्वे करते कर्मचारियों एक चित्रण (wikimedia)
2. कोरापुट, ओडिशा के आदिवासी लोगों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दिल्ली-नोएडा डायरेक्ट फ्लाईवे को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. नीति आयोग (NITI AAYOG) के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. तराई क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id