प्रौद्योगिकी में प्रगति, डिजिटलीकरण, और विकासोन्मुख नीतियों के कार्यान्वयन के साथ, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर है। जबकि इस राह में सफलता के लिए भारत की विशाल जनसंख्या एक महत्वपूर्ण घटक साबित हुई है, वहीं रोज़गार का अनौपचारिक क्षेत्र देश के सामने अपनी मंजिल तक पहुंचने में सबसे बड़ी रुकावट है। भारत में, 80% से अधिक श्रम रोज़गार अनौपचारिक क्षेत्र के तहत आता है जिसके द्वारा देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 50% योगदान दिया जाता है। आइए आज के अपने इस लेख में भारत में औपचारिक और अनौपचारिक रोज़गार क्षेत्रों के विषय में जानें और कार्यबल औपचारिकीकरण की आवश्यकता की विस्तार से जांच करें। इसके साथ ही भारतीय श्रम नियमों को भी समझें।
भारत में कार्यबल की संरचना के अनुसार इसे दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है; औपचारिक या संगठित क्षेत्र और अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्र। औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत ऐसे रोज़गार आते हैं जिनमें निश्चित वेतन और विशिष्ट कार्य घंटे होते हैं; जबकि, अनौपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कार्यबल के कार्य के घंटे और वेतन निश्चित नहीं होते हैं। सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के वे सभी उद्यम जो 10 या अधिक कर्मचारियों को रोज़गार देते हैं, औपचारिक/संगठित क्षेत्र की श्रेणी में आते हैं।
औपचारिक या संगठित क्षेत्र में वे सभी कंपनियाँ या उद्यम शामिल हैं जहाँ कर्मचारियों को नियमित और गारंटीकृत काम और वेतन मिलता है। इस क्षेत्र के निश्चित नियम व कायदे होते हैं और यह क्षेत्र औपचारिक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए कार्य करता है। औपचारिक या संगठित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को औपचारिक क्षेत्र श्रमिक के रूप में जाना जाता है। भारत में, केंद्र और राज्य सरकारों, बैंकों, रेलवे आदि के कर्मचारियों को संगठित क्षेत्र के श्रमिक कहा जा सकता है। वहीं वे सभी निजी उद्यम जिनके अंतर्गत 10 से कम कर्मचारी कार्य करते हैं, अनौपचारिक/असंगठित क्षेत्र की श्रेणी में आते हैं। असंगठित क्षेत्र में ऐसी गतिविधियाँ शामिल हैं जो वस्तुओं और सेवाओं के प्राथमिक उत्पादन और छोटे पैमाने पर रोज़गार और आय के सृजन पर ध्यान केंद्रित करती हैं। इस क्षेत्र में न तो निश्चित नौकरी या वेतन की गारंटी है और न ही काम के घंटे निश्चित हैं। अनौपचारिक या असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों को अनौपचारिक क्षेत्र के श्रमिकों के रूप में जाना जाता है।
इन दोनों क्षेत्रों के बीच के अंतर को निम्नलिखित तालिका की सहायता से आसानी से समझा जा सकता है:
अर्थ |
औपचारिक क्षेत्र |
अनौपचारिक क्षेत्र |
व्यवसाय और आर्थिक गतिविधियाँ |
सरकार की देखरेख में होते हैं। |
सरकार के विनियमन के अंतर्गत नहीं आते हैं। |
सामाजिक सुरक्षा के लाभ |
कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा लाभ के हकदार होते हैं। |
कर्मचारी सामाजिक सुरक्षा लाभ के हकदार नहीं होते हैं। |
वेतन |
वेतनमान अधिक और निश्चित होता है। |
वेतन तुलनात्मक रूप से कम और अनिश्चित होता है। |
सुरक्षा |
नौकरी की सुरक्षा और निश्चित कार्य घंटों का आनंद मिलता है। |
कोई नौकरी सुरक्षा या निश्चित घंटे उपलब्ध नहीं हैं। |
कर लाभ |
उद्यम सरकार को कर चुकाने के लिए उत्तरदायी होते हैं। |
उद्यम सरकार को कर देने के लिए उत्तरदायी नहीं होते हैं। |
कर्मचारी |
सभी सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के उद्यम जो 10 से अधिक लोगों को रोज़गार देते हैं, उन्हें औपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता है। |
वे सभी उद्यम जिनमें 10 से कम लोगों को रोज़गार मिलता है, अनौपचारिक क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। |
व्यापार संघ |
श्रमिकों को अपने हितों की रक्षा के लिए व्यापार संघ बनाने का अधिकार होता है। |
श्रमिकों को व्यापार संघ बनाने का कोई अधिकार नहीं होता है। |
इन्ही सभी मुद्दों के चलते लंबे समय से भारत सरकार कार्यबल को पूरी तरह औपचारिक बनाना चाहती है, लेकिन अब कोविड-19 महामारी के बाद से इसकी तात्कालिक आवश्यकता महसूस की जा रही है।
महामारी के दौरान चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं, नौकरी की सुरक्षा और सहायक सरकारी योजनाओं जैसे कर्मचारी लाभों तक पहुंच नहीं होने के कारण, स्व-रोज़गार श्रमिकों या MSME में काम करने वाले कार्य बल को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा। हालांकि महामारी का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने के साथ, आर्थिक स्थितियाँ भी धीरे-धीरे सामान्य हो रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी अर्थव्यवस्था निकट भविष्य में सामने आने वाली ऐसी ही चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है? औपचारिक कार्यबल से आय असमानता को कम किया जा सकता है, सामाजिक सुरक्षा और उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है तथा किसी संगठन में सभी स्तरों पर जवाबदेही का स्तर लागू किया जा सकता है।
बेहतर समझ के लिए, कार्यबल को औपचारिक बनाने के कुछ प्रमुख लाभ निम्न प्रकार से समझें जा सकते हैं:
1) कपटी कर्मचारियों से छुटकारा - कंपनियां, विशेष रूप से विनिर्माण इकाइयां, अपने उत्पादों को प्रभावी ढंग से बाज़ार तक पहुंचाने में मदद करने के लिए वितरकों की एक विस्तृत श्रृंखला के साथ काम करती हैं। हालाँकि, जब एक विशाल नेटवर्क के साथ वास्तविक बनाम कपटी कर्मचारियों पर नज़र रखने का मुद्दा आता है, तो उन्हें अनावश्यक रोज़गार लागत वहन करनी पड़ती है। GAPS ढांचे के साथ, पूर्ण पारदर्शिता बनाए रखी जा सकती है और कंपनियां कपटी कर्मचारियों को आसानी से निपट सकती हैं। साथ ही, ब्लू-कॉलर कर्मचारी औपचारिकीकरण प्रक्रिया के प्रामाणिक दस्तावेज़ीकरण और सामाजिक सुरक्षा लाभों से बहुत लाभ उठा सकते हैं।
2) कर्मचारियों द्वारा नौकरी छोड़ने में कमी - रोज़गार अनुबंध में बताए गए स्वास्थ्य लाभ, नौकरी पर प्रशिक्षण, वित्तीय सुरक्षा और कई अन्य सुविधाएं प्रदान करने से कर्मचारियों में वफादारी की भावना उत्पन्न हो सकती है। जब उन्हें लगता है कि उनकी चिंताओं को सुना और संबोधित किया गया है, तो वे स्वचालित रूप से कंपनी के विकास में योगदान देने के लिए अपना अधिकतम प्रयास करते हैं। परिणामस्वरूप, क्षय दर कम हो जाती है और उत्पादकता बढ़ जाती है।
3) तकनीक के साथ उत्पादकता को बढ़ावा - कार्यबल को औपचारिक बनाते समय तकनीक-संचालित उपकरणों को शामिल करने से उत्पादकता स्तर और उपस्थिति पर नज़र रखने में सहायता मिल सकती है, जिससे लंबे समय में व्यावसायिक दक्षता में सुधार हो सकता है। इसके साथ ही, यदि कंपनियां यह सुनिश्चित कर सकें कि आवश्यक कार्यबल सही समय पर उपलब्ध है, तो वे लगातार ज़बरदस्त मुनाफा दर्ज़ कर सकती हैं।
4) वैधानिक अनुपालन - वैधानिक कानूनों का अनुपालन नियोक्ताओं और कर्मचारियों दोनों के लिए अत्यधिक फायदेमंद हो सकता है। नवीनतम श्रम कानूनों और संहिताओं का पालन करके, व्यवसाय कानूनी देनदारियों से बच सकते हैं, शीर्ष प्रतिभा को आकर्षित कर सकते हैं, कर्मचारियों के साथ मजबूत संबंध बना सकते हैं, और बाज़ार में आवश्यक प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल कर सकते हैं। निर्बाध कार्यबल औपचारिकता के लिए, संगठनों को सरकार के पूर्व-निर्धारित कानूनी ढांचे का पालन करना चाहिए और अपने रोजमर्रा के व्यावसायिक संचालन में कर्मचारी-उन्मुख दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए। दूसरी तरफ कर्मचारियों को किसी भी उल्लंघन के मामले में कानूनी संरक्षण प्राप्त हो सकता है।
भारतीय संविधान में श्रम को विनियमित करने हेतु भारतीय श्रम कानून (Indian Labour law) का भी प्रावधान है। हालांकि श्रम भारतीय संविधान की समवर्ती सूची में एक विषय है अतः इसका स्वरूप प्रत्येक राज्य में भिन्न है।
आइए ऐसे ही कुछ प्रमुख श्रम कानूनों के विषय में जानते हैं:
1. 'न्यूनतम वेतन अधिनियम' 1948 (Minimum Wages Act 1948) के तहत कंपनियों को कार्य सप्ताह को 40 घंटे (एक घंटे के ब्रेक सहित प्रतिदिन 9 घंटे) तक सीमित करने के साथ-साथ सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन का भुगतान करने की आवश्यकता होती है। कानून के तहत ओवरटाइम को सख्ती से हतोत्साहित किया गया है क्योंकि ओवरटाइम पर प्रीमियम कुल वेतन का 100% होता है।
2. वेतन भुगतान अधिनियम 1936 (The Payment of Wages Act, 1936) के तहत बैंक हस्तांतरण या डाक सेवा के माध्यम से हर महीने के अंतिम कार्य दिवस पर समय पर मजदूरी का भुगतान अनिवार्य है।
3. 'फ़ैक्टरी अधिनियम' (1948 Factories Act 1948) और 'दुकान और प्रतिष्ठान अधिनियम', 1960 (Shops and Establishment Act 1960) के तहत प्रत्येक कर्मचारी को प्रत्येक वर्ष 15 कार्य दिवसों का पूर्ण भुगतान अवकाश और 7 आकस्मिक अवकाश, साथ ही अतिरिक्त 7 पूर्ण भुगतान वाले बीमार दिन अवकाश का प्रावधान है।
4. 'मातृत्व लाभ (संशोधन) अधिनियम', 2017 (Maternity Benefit (Amendment) Act, 2017) प्रत्येक कंपनी की महिला कर्मचारियों को 6 महीने का पूर्ण भुगतान मातृत्व अवकाश लेने का अधिकार देता है। यह गर्भपात या गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति के मामले में 6 सप्ताह के सवैतनिक अवकाश का भी प्रावधान करता है।
5. इसके अलावा कानून के तहत कर्मचारी भविष्य निधि संगठन और कर्मचारी राज्य बीमा द्वारा कर्मचारियों को क्रमशः सेवानिवृत्ति लाभ और चिकित्सा और बेरोज़गारी लाभ के लिए आवश्यक सामाजिक सुरक्षा प्रदान किए जाने का भी प्रावधान है। कर्मचारी राज्य बीमा के तहत वे श्रमिक, जो 21000 रुपये प्रति माह से कम कमाते हैं, भी 90 दिनों के भुगतान योग्य चिकित्सा अवकाश के हकदार हैं।
भारतीय संसद द्वारा 2019 और 2020 सत्र में चार श्रम कोड पारित किए गए। ये चार संहिताएं 44 मौजूदा श्रम कानूनों को समेकित करती हैं। ये संहिताएं हैं: औद्योगिक संबंध संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020, व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्य स्थिति संहिता, 2020 और मजदूरी संहिता 2019।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bddjw8sm
https://tinyurl.com/4pczufz7
https://tinyurl.com/5n89dj93
चित्र संदर्भ
1. अनौपचारिक श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. रेल की पटरियों पर काम करते श्रमिकों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारत में स्ट्रीट वेंडर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. काम पर जाती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
5. बांस के उत्पाद बनाती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)