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भारत के सबसे शुरुआती अखबार, क्या आज इंटरनेट के साथ मिला पाएंगे क़दम से क़दम?

जौनपुर

 05-02-2024 09:20 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

हमारा देश भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और इसके नाते यहाँ मीडिया की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है। 1.2 बिलियन से अधिक आबादी वाले हमारे देश में मीडिया का प्रमुख कर्तव्य समाज को देश के मुद्दों के बारे में सूचित करना, शिक्षित करना, मार्गदर्शन प्रदान करना और जागरूक बनाना है, जिसे देश की मीडिया ने आज तक बखूबी निभाया है। आज मीडिया कई अलग अलग रूपों में उपलब्ध हैं, जिनमें मुख्य रूप से प्रिंट मीडिया (किताबें, पत्रिकाएं, समाचार पत्र), प्रसारण मीडिया (टेलीविजन और रेडियो), इंटरनेट मीडिया (सोशल मीडिया या पॉडकास्ट) शामिल हैं। इन सभी प्रसारण माध्यमों से सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला माध्यम समाचार पत्र हैं।
अधिकांश भारतीयों की सुबह चाय और अखबार के साथ ही होती है। लेकिन लोगों के जीवन में इतना अधिक महत्त्व रखने वाला अखबार कैसे अस्तित्व में आया, भारत का सबसे पहला अखबार कौन सा है, इसके साथ ही इंटरनेट ने प्रिंट मीडिया को कैसे प्रभावित किया और अखबारों का भविष्य क्या है... आदि ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर हम आज अपने लेख में समझने का प्रयास करेंगे। आधुनिक समाचार पत्र एक यूरोपीय आविष्कार है। सबसे पुराने हस्तलिखित समाचार पत्र 'अव्विसी' (Avvisi), या 'राजपत्र' (gazettes) 1566 की शुरुआत वेनिस (Venice) में साप्ताहिक रूप से एकल शीट पर जिसे चार पृष्ठों के रूप में मोड़ा जाता था, जारी किया जाता था। ये साप्ताहिक समाचार पत्रक मुख्य रूप से इटली (Italy) और यूरोप (Europe) में युद्धों और राजनीति की जानकारी से भरे होते थे। पहला मुद्रित समाचार पत्र 1605 से जर्मनी (Germany) में साप्ताहिक रूप से प्रकाशित किया गया था। सरकार द्वारा उस समय इन समाचार पत्रों पर विशेष रूप से निगरानी रखी जाती थी, विशेष रूप से फ्रांस में, जहाँ इन समाचार पत्रों द्वारा विदेशी समाचारों एवं वर्तमान कीमतों के विषय में रिपोर्ट किया जाता था। दुनिया का पहला दैनिक समाचार पत्र 1650 में लीपज़िग (Leipzig) में प्रकाशित हुआ था।
1695 में अंग्रेजी सरकार द्वारा निगरानी में ढील देने के बाद, लंदन (London), बोस्टन (Boston) और फिलाडेल्फिया (Philadelphia) सहित कुछ अन्य शहरों में समाचार पत्रों के क्षेत्र में प्रगति हुई। 1830 के दशक तक, हाई-स्पीड प्रेस के कारण मुद्रण की लागत काफी कम हो गई, जिससे दैनिक लागत भी बहुत कम हो गई। पहला अंग्रेजी भाषा का समाचार पत्र, ‘कोरंट’ (Corrant) 1620 एम्स्टर्डम (Amsterdam) में प्रकाशित हुआ था। क्या आप जानते हैं कि सबसे पुराना समाचार पत्र, जो आज भी अस्तित्व में है, लेकिन अब केवल ऑनलाइन ही प्रकाशित होता है। ‘पोस्ट-ओच इनरिकेस टिडनिंगर’ (Post- och Inrikes Tidningar) है और यह 1645 में स्वीडन (Sweden) में प्रकाशित हुआ था। भारत में समाचार पत्रों का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। पहला भारतीय समाचार पत्र, ‘बंगाल राजपत्र’ (Bengal Gazette), जिसे ‘हिक्की गजट’ (Hicky’s Gazette) के नाम से जाना जाता है, 1780 में प्रकाशित हुआ था। इसके बाद भारत में समाचार पत्रों का तीव्र गति से विकास हुआ। 1861 तक भारत में आठ हिन्दी और 11 उर्दू समाचार पत्र मौजूद थे। 1870 तक, मद्रास प्रेसीडेंसी के अलावा बॉम्बे प्रेसीडेंसी, उत्तर पश्चिम प्रांत, तत्कालीन अवध और मध्य प्रांतों में समाचार पत्रों की कुल पाठक संख्या 1,50,000 से अधिक थी। ये सभी समाचार पत्र लगभग 1,500 से 3,000 प्रतियों में छपते थे और इन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) या सरकार के लिए काम करने वाले अंग्रेजों और कुछ संपन्न भारतीय परिवारों का संरक्षण प्राप्त था। समाचार पत्रों द्वारा भारत में सामाजिक सुधार, स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन तथा ऐसे ही अन्य मुद्दों पर जनजागरूकता के प्रचार प्रसार का कार्य बखूबी किया गया। क्या आप जानते हैं कि भारत का सबसे पुराना अखबार, जो आज भी अस्तित्व में है, ‘मुंबई समाचार’, जिसे पहले ‘बॉम्बे समाचार’ के नाम से जाना जाता था। हाल ही में वर्ष 2021 में इस समाचार पत्र ने अपने 200 वर्ष पूरे किए हैं। मुंबई के प्रमुख हॉर्निमन सर्कल क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित लाल और सफेद रंग की आकर्षक औपनिवेशिक इमारत में स्थित इस गुजराती दैनिक समाचार पत्र ने कई तूफानों का सामना किया है, और वर्तमान में यह डिजिटल माध्यम की लोकप्रियता के कारण हाल ही में पाठकों की संख्या में भारी कमी का सामना कर रहा है। आज, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल प्रौद्योगिकी के विकास के कारण निस्संदेह प्रिंट मीडिया और विशेष रूप से समाचार पत्रों के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पन्न हो गयी है। भारतीय समाचार पत्र ज़बरदस्त प्रौद्योगिकी परिवर्तन से गुजर रहे हैं। टेलीग्राफ, रेडियो और टेलीविजन के आविष्कार के साथ, अखबारों को दशकों से चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, फिर भी प्रकाशकों ने हमेशा दृढ़ता के साथ इन चुनौतियों का सामना किया है। लेकिन अब, इंटरनेट के आगमन से पारंपरिक समाचार पत्रों के लिए पहले से कहीं अधिक प्रतिकूल स्थितियां उत्पन्न हो गई हैं।
आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों के बारे में, जिनका आज समाचार पत्र सामना कर रहे हैं:
विज्ञापन राजस्व: समाचार पत्रों की आय का 80 प्रतिशत हिस्सा विज्ञापन राजस्व से आता है। लेकिन अब, कॉर्पोरेट विज्ञापनदाता सस्ते और अधिक गतिशील ऑनलाइन विज्ञापन स्थान पर अधिक भरोसा कर रहे हैं, जिसके कारण 2005 से 2009 तक दैनिक समाचार पत्रों के विज्ञापन से राजस्व में 44 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। वास्तव में, 2009 के बाद से विज्ञापन राजस्व में वृद्धि का अनुभव करने वाला एकमात्र विज्ञापन माध्यम इंटरनेट बन गया है।
समाचार पत्र कार्मिक व्यवस्था: विज्ञापन राजस्व में इतनी नाटकीय कमी के चलते समाचार पत्रों को लागत में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। समाचार पत्रों की आय का लगभग 50% हिस्सा श्रम लागत पर खर्च होता है, जिसे कम करने के लिए समाचार पत्रों को न चाहते हुए भी अपने कर्मचारियों की कटौती करनी पड़ी। इसका सीधा सीधा असर समाचार पत्रों की कवरेज और कार्यक्षमता पर पड़ा। समाचार पत्रों द्वारा महत्वपूर्ण खबरों और समाचारों की रिपोर्टिंग में भी कमी आई।
समाचार स्रोत: अब तक प्रमुख समाचार पत्रों के स्रोत समाचार जगत के सबसे मजबूत और भरोसेमंद स्रोत माने जाते हैं, लेकिन कर्मचारियों की कमी के कारण इन समाचार स्रोतों में भी कमी आई है, जिसका सीधा सीधा असर समाचार पत्रों की कवरेज पर पड़ा है।
अनुकूलन: इस प्रकार की चुनौतियों का सामना करने के लिए समाचार पत्रों के पास अनुकूलन के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहता है। पाठकों द्वारा समाचार तक तुरंत पहुँच की मांग के चलते समाचार पत्रों द्वारा ऑनलाइन संस्करण बनाए गए हैं। जिनमें से कुछ संस्करण मुफ्त प्रसारित किए जाते हैं, जबकि अन्य कम दर पर पेश किए जाते हैं। हालांकि, इस तरह के प्रारूप से मुद्रण और वितरण लागत लगभग समाप्त हो गई है, और इसी कारण समाचार पत्र समाचारों को अधिक तेज़ी से और कुशलता से प्रसारित करने में सक्षम हो पा रहे हैं। इसी के साथ समाचार पत्र प्रकाशकों ने अपने समाचार पत्रों के क्षेत्रीय संस्करणों और क्षेत्रीय भाषा संस्करणों के प्रकाशन में एक नए अद्भुत आत्मविश्वास के साथ अपनी पूरी ताकत और हिस्सेदारी लगा दी है। शायद यही कारण है कि समाचार पत्र के पाठकों में जो कमी आई थी, वह अब कम होने लगी है। समाचारों को लगभग समान गति और प्रामाणिकता के साथ अपने पाठकों तक पहुंचाने के उद्देश्य के साथ समाचार पत्र और अन्य सभी प्रकार के प्रिंट मीडिया इस प्रकार के अनुकूल के साथ नई प्रोद्योगिकियों से प्रतिस्पर्धा करने के लिए तैयार हैं और भारत में समाचार पत्रों के विकास को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं।

संदर्भ
https://rb.gy/29wabr
https://rb.gy/8c2n31
https://rb.gy/tc400m
https://rb.gy/5g9vri

चित्र संदर्भ
1. पहले भारतीय समाचार पत्र, ‘बंगाल राजपत्र’ को दर्शाता एक चित्रण (Flickr,amazon)
2. पुराने भारथियार अख़बार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. हिक्की के बंगाल गजट के मुख पृष्ठ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. विविध भारतीय अखबारों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. ऑनलाइन अख़बार को दर्शाता एक चित्रण (youtube)



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