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इंडियन कॉफ़ी हाउस में खिंची चली आती थी, भारत की महान विभूतियाँ

जौनपुर

 03-02-2024 09:38 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

हमारे जौनपुर के निकट स्थित प्रयागराज (पुराना नाम इलाहाबाद) में मौजूद इंडियन कॉफ़ी हाउस (Indian Coffee House) का राजनीतिक इतिहास, कोलकाता और दिल्ली में स्थित इंडियन कॉफ़ी हाउस के इतिहास के समान ही दिलचस्प माना जाता है। इसने उत्तर प्रदेश की राजनीति को आकार देने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। चलिए जानने की कोशिश करते हैं कि इलाहाबाद का इंडियन कॉफ़ी हाउस समय के साथ कैसे विविध सांस्कृतिक तथा बौद्धिक कार्यक्रमों का केंद्र बन गया। इंडियन कॉफ़ी हाउस क्या होते हैं?
“इंडियन कॉफ़ी हाउस भारत में मुख्य रूप से कॉफ़ी आधारित एक रेस्तरां श्रृंखला है, जिसके देश भर में लगभग 400 आउटलेट (Outlet) या यूं कहें शाखाएं हैं।” इसका संचालन श्रमिक सहकारी समितियों द्वारा किया जाता है। यह स्थान कई पीढ़ियों से कम्युनिस्ट (Communist) और समाजवादी आंदोलनों का केंद्र रहा है। भारत की राजनीति में कॉफ़ी हाउस की इस श्रृंखला ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।”
एक समय में इलाहाबाद (प्रयागराज) शहर लेखकों, शिक्षाविदों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए एक जीवंत केंद्र हुआ करता था। यह स्थान आचार्य नरेंद्र देव, गोविंद बल्लभ पंत, सुमित्रानंदन पंत और धर्मवीर भारती जैसी कई प्रभावशाली विभूतियों का घर हुआ करता था। अपनी प्रभावशाली हिंदी कविताओं के लिए जाने जाने वाले हरिवंश राय बच्चन जी भी यहीं पर पले बढ़ें हैं। हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाने वाले, “सूर्यकांत त्रिपाठी-निराला” जी ने भी अपने जीवन के बीस वर्ष इलाहाबाद में ही बिताए हैं। उस समय इलाहाबाद के ऐसे ही नामी लेखक, कवि, कलाकार और विचारक, इलाहाबाद के इंडियन कॉफ़ी हाउस में ही एकत्र होते थे। यहां पर वे लोग कॉफ़ी पीते-पीते निर्णायक बहसों, चर्चाओं और रचनात्मक सहयोग की बातें करते थे। धीरे-धीरे, यह कॉफ़ी हाउस शहर के साहित्यिक और कलात्मक समुदाय के लिए एक केंद्रीय मिलन स्थल बन गया। प्रसिद्ध साहित्यकार, राजनीतिक नेता और कलाकारों के मिलन का केंद्र होने के कारण यह स्थान विविध विचारों और विचारधाराओं का भी केंद्र बन गया, ठीक वैसे ही जैसे मधुमक्खियाँ अपने हिस्से के शहद को एक स्थान पर जमा कर देती हैं। इसने आधुनिक प्रयागराज के सांस्कृतिक परिदृश्य को भी गहराई से प्रभावित किया।
हालांकि न केवल प्रयागराज बल्कि पूरे देश के कॉफ़ी हाउसों ने, सामान्य तौर पर, सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी से ही संस्कृति के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। एक समय में कॉफ़ी हाउस शहर के प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों के मिलन का केंद्र हुआ करते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, सत्यजीत रे, अमर्त्य सेन और मन्ना डे (Manna Dey) जैसे प्रभावशाली लोग नियमित रूप से कॉफी हाउस में आया करते थे, जिससे यह देश के कई राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलनों की शुरुआत के लिए प्रजनन स्थल बन गया। ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण एक इंडियन कॉफ़ी हाउस कोलकाता में भी मौजूद है, जो बाहर से देखने पर दो किताबों की दुकानों के बीच बस एक पुरानी निशानी जैसा लग सकता है। लेकिन इसका अस्तित्व 300 साल से भी अधिक पुराना माना जाता है। इसे कोलकाता के इतिहास का एक संरक्षित टुकड़ा माना जाता है। यह स्थान आज भी भारत की आजादी से पहले के दिनों की यादों को ताज़ा कर देता है, जब यह प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) और कलकत्ता विश्वविद्यालय के छात्रों का पसंदीदा स्थान हुआ करता था।
यह स्थान आज भी यहां आने वाले ग्राहकों की हँसी, बातचीत और बहस के शोरगुल से हमेशा ही गुलजार रहता है। कोलकाता के 84 वर्षीय चंचल कुमार मुखर्जी, कॉफी हाउस से जुड़ी अपनी यादें साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे वे यहाँ के इंडियन कॉफ़ी हाउस के भूतल को 'हाउस ऑफ कॉमन्स (House Of Commons)' और बालकनी को 'हाउस ऑफ लॉर्ड्स (House Of Lords)' कहकर इनका मजाक उड़ाते थे। लेकिन समय के साथ कॉफ़ी हाउस बदल गया है। यहां परोसी जाने वाली मेनू (Menu) में चिकन ऑमलेट (Chicken Omelette) की जगह अब चाउमीन और सैंडविच (Chow Mein And Sandwiches) ने ले ली है। इन परिवर्तनों के बावजूद, यहां के कॉफ़ी हाउस में विभिन्न विषयों पर गहन चर्चाएं होती रहती हैं। दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित इंडिया कॉफ़ी हाउस का राजनीतिक इतिहास तो और भी दिलचस्प रहा है। यहां के स्टाफ सदस्यों का दावा है कि यह स्थान कम से कम नौ प्रधानमंत्रियों का पसंदीदा अड्डा रहा है। यह स्थान लंबे समय तक चलने वाली बौद्धिक बातचीत से गुलजार रहता था। यहाँ पर हो रही राजनीतिक चर्चाओं ने 1970 के दशक में भारत सरकार का ध्यान आकर्षित किया। कई जानकार मानते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने व्यक्तिगत रूप से इसे बंद करने का आदेश दे दिया था। हालांकि कनॉट प्लेस (Connaught Place) के मध्य में स्थित इसकी मूल इमारत को ध्वस्त कर दिया गया था, लेकिन इसके बाद कॉफी हाउस को मोहन सिंह प्लेस (Mohan Singh Place) में फिर से शुरू किया गया, जहां यह आज भी खड़ा है। कॉफी हाउस मोहन सिंह प्लेस की सबसे ऊपरी मंजिल पर स्थित है, जिसकी निचली मंजिल पर एक कपड़ों का बाजार है।

संदर्भ
http://tinyurl.com/2s3cd9yf
http://tinyurl.com/2esrwpkd
http://tinyurl.com/3uencdd6

चित्र संदर्भ
1. लखनऊ के इंडियन कॉफ़ी हाउस और सुभाष चन्द्र बोस को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, youtube)
2. शिमला के इंडियन कॉफ़ी हाउस को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नजदीक से इलाहाबाद के इंडियन कॉफ़ी हाउस को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. इंडियन कॉफ़ी हाउस में परोसी जाने वाली मेनू को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. दिल्ली के कॉफी हाउस दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)



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