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कागज हमारे दैनिक जीवन में सबसे अधिक उपयोग होने वाली वस्तुओं में से एक है। लेकिन आपको शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि एक पतले से कॉपी पेपर (Copy Paper) को बनाने में कितनी मेहनत लगती है और पर्यावरण को कितना नुकसान होता है। आपको जानकर हैरानी होगी कि दुनियां में केवल टॉयलेट पेपर (Toilet Paper) बनाने के लिए ही, हर दिन लगभग 27,000 पेड़ों को काट दिया जाता है, जो संख्या प्रति वर्ष 9.8 मिलियन पेड़ों के बराबर पहुंच जाती है। हालांकि हमारे भारत में टॉयलेट पेपर की खपत दुनिया के मुक़ाबले बहुत कम होती है, किंतु हमारे जौनपुर सहित देश के कई होटलों में विदेशियों की सुविधा के लिए टॉयलेट पेपर उपलब्ध कराए जाते हैं। आज हम जानेंगे कि एक कागज बनाने के लिए हमारे पर्यावरण को कितनी बड़ी लागत चुकानी पड़ सकती है? लेकिन उससे पहलेयह जान लेते हैं कि:
कागज बनाने की प्रक्रिया क्या होती है?
कागज (Paper) एक बहुमुखी सामग्री होती है, यानी इसका उपयोग पत्रिकाओं, टॉयलेट पेपर और कई अन्य मुद्रण स्रोतों के रूप में किया जाता है। कागज को लकड़ी के रेशों (Wood Fibers) को संसाधित करके बनाया जाता है, जिन्हें व्यवस्थित तरीके से एक साथ दबाया जाता है। पहले के समय में कागज को मैन्युअली प्रसंस्कृत (Manually Processed) किया जाता था, लेकिन तकनीकी प्रगति ने इस उद्योग को भी स्वचालित (Automatic) कर दिया है। इससे कागज उत्पादन क्षमता और दक्षता में काफी सुधार हुआ है।
आज भी अधिकांशतः कागज़ पेड़ों की लकड़ियों से ही बनते हैं। कागज उत्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले पेड़ों को दो श्रेणियों सॉफ्टवुड और हार्डवुड (Softwood And Hardwood) में वर्गीकृत किया जाता है। 85% कागज उत्पादन के लिए सॉफ्टवुड पेड़ों का ही प्रयोग किया जाता है। इन पेड़ों में स्प्रूस (Spruce), पाइन (Pine), देवदार, लार्च और हेमलॉक (Larch And Hemlock) आदि शामिल हैं। सॉफ्टवुड के पेड़ों में लंबे सेलूलोज़ फाइबर (Cellulose Fiber) होते हैं, जो कागज को पर्याप्त मजबूती प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, यूकेलिप्टस (Eucalyptus), ओक (Oak), एस्पेन (Aspen), बर्च और मेपल (Birch And Maple) जैसे दृढ़ लकड़ी के पेड़ों में छोटे सेलूलोज़ फाइबर होते हैं। यूकेलिप्टस (Eucalyptus) भी एक ऐसी ही दृढ़ लकड़ी है, जिसका उपयोग आमतौर पर कागज उत्पादन के लिए किया जाता है।
इन पेड़ों के अलावा भी कागज विभिन्न प्रकार की सामग्रियों से बनाया जाता है, जिनमें कपास, बांस, गोबर और भांग आदि शामिल हैं। हालाँकि, अधिकांश कागज़ पेड़ों से ही बनाया जाता है। पेड़ों से कागज बनाने की प्रक्रिया कच्ची लकड़ी को "लुगदी (Pulp)" में बदलने से शुरू होती है। लुगदी को लकड़ी, रेशेदार फसलों, या बेकार कागज से सेलूलोज के रेशों को अलग करके बनाया जाता है।
लकड़ी को लुगदी में बदलने के दो तरीके होते हैं:
1. मैकेनिकल पल्पिंग (Mechanical Pulping) या यांत्रिक लुगदी
2. रासायनिक लुगदी (chemical pulp)
मैकेनिकल पल्पिंग में लकड़ी के बारीक चिप्स (Chips) जैसे टुकड़ों को पीसकर, लुगदी बनाने के लिए मशीनों का उपयोग किया जाता है। हालाँकि कागज बनाने के लिए आमतौर पर रासायनिक पल्पिंग विधि (Chemical Pulping Method) का प्रयोग होता है, जिसे "क्राफ्ट (Craft)" के रूप में भी जाना जाता है। सेल्युलोज फाइबर से लिग्निन (Lignin) “लिग्निन जटिल कार्बनिक पॉलिमर का एक वर्ग है, जो अधिकांश पौधों के समर्थन ऊतकों (tissues) में प्रमुख संरचनात्मक सामग्री बनाता है।” को अलग करने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है, जिससे एक लुगदी मिश्रण निकलता है, जिससे मजबूत कागज बन सकता है। पेपर निर्माता लुगदी को अपने पसंदीदा रंग में ब्लीच (Bleach) करने के लिए विभिन्न प्रकार के रसायनों का उपयोग करते हैं।
कागज बनाने के लिए, पहला कदम लकड़ी को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर और उन्हें तेजाब के घोल में पकाकर लुगदी मिश्रण (pulp mixture) बनाना होता है। फिर एक स्तरित चटाई (Layered Mat) यानी कागज की परत बनाने के लिए लुगदी मिश्रण को अलग किया जाता है। इस परत से पानी निकालने और उसे सुखाने के लिए कई अलग-अलग प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है। अंत में, बचे हुए पानी को निचोड़ने के लिए कागज की इस परत को गर्म रोलर्स (Rollers) के माध्यम से दबाया जाता है और इसे कागज के एक रोल में संपीड़ित किया जाता है, जो 30 फीट तक चौड़ा हो सकता है। एक बार कागज की वांछित मोटाई होने के बाद इसे एक विशेष बनावट, अतिरिक्त मजबूती या पानी प्रतिरोध देने के लिए इसे रंगा जा सकता है या विशेष रसायनों के साथ लेपित किया जा सकता है। अंतिम चरण के रूप में, पेपर रोल को अलग-अलग आकारों में काटा जाता है और अतिरिक्त प्रसंस्करण के लिए पैक किया जाता है, ताकि इसे सभी प्रकार के विशेष कागजों में बदल दिया जा सके।
हालांकि कागज के निर्माण की प्रक्रिया का एक दूसरा और दुखद पहलू भी है, जिसके बारे में हम सभी को पता होना चाहिए। आपको जानकर हैरानी होगी कि टॉयलेट पेपर बनाने के लिए हर दिन लगभग 27,000 पेड़ काटे जाते हैं, जो प्रति वर्ष 9.8 मिलियन पेड़ों के बराबर है। हालांकि, यह केवल एक अनुमान है, क्योंकि यह निर्धारित करना बहुत मुश्किल है कि अकेले टॉयलेट पेपर के लिए कितने पेड़ काटे जाते हैं। उपभोक्ता डेटा विशेषज्ञ स्टेटिस्टा (Statista) के अनुसार, यूके (UK) में एक औसत व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 127 शौचालय रोल (प्रति वर्ष लगभग 8.5 बिलियन शौचालय रोल) का उपयोग कर लेता है।
इसलिए ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से हमें टॉयलेट पेपर के लिए पेड़ों को काटना बंद कर देना चाहिए। टॉयलेट पेपर बनाने के लिए वनों की कटाई एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा है, जिससे निवास स्थान का नुकसान, जलवायु परिवर्तन और मिट्टी के क्षरण सहित जैव विविधता का भी नुकसान होता है। जलवायु परिवर्तन के लगभग 10% के लिए वनों की कटाई को ही जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि टॉयलेट पेपर के कई स्थायी विकल्प भी हैं। उदाहरण के लिए, बांस पारंपरिक टॉयलेट पेपर का एक बढ़िया विकल्प साबित हो सकता है। दुनिया भर के समुदाय अपनी आजीविका और सांस्कृतिक परंपराओं के लिए जंगलों पर निर्भर हैं। पेड़ों को काटने से इन समुदायों की प्राकृतिक संसाधनों तक पहुंच कम हो सकती है और उनकी जीवन शैली बाधित हो सकती है।
संदर्भ
http://tinyurl.com/2rs5cmxc
http://tinyurl.com/yc2vcpyz
http://tinyurl.com/5ab8ufaj
चित्र संदर्भ
1. पेड़ काटते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels, wikimedia)
2. टॉयलेट पेपर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लकड़ी के रेशों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. कागज के सफर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5.सॉफ्टवुड को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
6. मैकेनिकल पल्पिंग को संदर्भित करता एक चित्रण (
Rawpixel)
7. कागज के ढेर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
8. टॉयलेट पेपर की पैकिंग करते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (Collections - GetArchive)
9. बांस के पेड़ों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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