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भाग्य वास्तव में क्या है:श्री कृष्ण ने बताया कि सुकर्म व् प्रयास का मार्ग है सर्वोच्च

जौनपुर

 10-11-2023 09:38 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

क्या आपने कभी, ईमानदारी और खुशी से आगे बढ़ने के वास्तविक मूल्य के बारे में सोचा हैं? दरअसल, एक बात को समझकर हम इस राह पर चल सकते हैं, यह कि, हमारे जीवन का अधिकांश भाग केवल दो शक्तियों द्वारा शासित होता है: ‘भाग्य’ और ‘समय’, हम सब मोह–माया छोड़कर ईमानदारी और खुशी से आगे बढ़ सकते हैं। भाग्य तथा समय दुनिया पर राज करते हैं।और, जितनी जल्दी हमें इसका एहसास होता है, हम उतने ही समझदार होंगे, और अपने जीवन में सही निर्णय लेंगे ।
भाग्य और समय द्वारा निभाई गई भूमिकाओं को स्वीकार करने का स्वभाव, हमें सभी स्थितियों में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने से नहीं रोक सकता है। बल्कि, परिणाम की चिंता करे बिना, कार्य करते रहना, हमें स्वतंत्रता और ख़ुशी का अनुभव कराएगा । और, वास्तव में, यहीं परम सत्य है।हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि, घटनाएं हमारे प्रयासों के बावजूद भी, भाग्य एवं समय के अनुसार ही परिणाम प्रस्तुत करेंगी। यह स्वीकार करना कठिन हो सकता है, क्यूंकि कई बार, आप अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हैं और फिर भी असफल हो सकते हैं। अतः यह समझना कि, जीवन का अधिकांश हिस्सा हमारे नियंत्रण से बाहर है, खुशहाल जिंदगी का एक रहस्य है। यह हमें, जब चीजें सही ढंग से चल रही होती हैं तो अहंकार से मुक्ति दिलाने एवं जब ऐसा नहीं होता है, तो पूर्ण आत्म-ह्रास से मुक्ति दिलाने में भी मदद करता हैं। साथ ही, यह स्वीकार करते हुए, हमें खुद को निराशा या निष्क्रियता की ओर नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की ओर ले जाना चाहिए।
शायद आप जानते ही हैं कि, दर्शन (Philosophy) किसी के दिमाग पर नियंत्रण स्थापित करने के परिणामस्वरूप, व्यक्तिगत समृद्धि के लिए समर्पित है। हम अपने विचारों और उसके बाद होने वाली घटनाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं। हम अपनी परिस्थितियों पर इस तरह से प्रतिक्रिया देने के लिए भी जिम्मेदार हैं, जिसका परिणाम सर्वोत्तम संभव होगा। कोई भी हमसे हमारी इच्छा नहीं छीन सकता। हालांकि, यहां इस एक सोच को उजागर करना आवश्यक है कि, उस चीज़ पर विलाप करने में मूर्खता है, जो हमारे नियंत्रण से बाहर होती है, अर्थात जो हमें, भाग्य और समय के बदौलत मिलता हैं, और जो हमें नहीं मिलता है। अतः हमारे काम में, रिश्तों में और वस्तुतः किसी भी चीज़ में, जो मायने रखता है, वह लक्ष्य और हमारी गतिविधि की गुणवत्ता है, परिस्थितियों की गुणवत्ता नहीं। कई लोग मानते हैं कि, सब कुछ पूरी तरह से भाग्य ही है।जबकि, कई लोग कहते हैं कि, कड़ी मेहनत, बुद्धिमत्ता एवं सही तैयारी, अधिक मायने रखती है। लेकिन, कड़ी मेहनत एवं तैयारी ही भाग्य है, है ना? कड़ी मेहनत करने के लिए,हमारे पास उद्देश्य की स्पष्टता, स्थिर दिमाग, उत्साह आदि होना चाहिए।
मानसिक रूप से विक्षिप्त लोग भी इंसान ही हैं। क्या इस सन्दर्भ में “मेहनत करने, हमारे विचार ही सब कुछ होने, होशियार होने”, आदि की सलाह उनके लिए काम करती है? दरअसल,नहीं।और तो और, सभी मनुष्य समान भी नहीं हैं। हमारे जन्म, स्थान, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, आदि में अंतर होता है। बेशक, अंत में यह सब भाग्य पर निर्भर करता है, परन्तु अलग-अलग ढंग से ।
रोम(Rome)के एक दार्शनिक सेनेका(Seneca) ने सही कहा है,“भाग्य तब होता है,जब हमारी तैयारी और उपस्थित अवसरों का मेल हो जाता है ।” मोटे तौर पर कहें तो, यदि आप एक अमीर परिवार में पैदा हुए हैं या यदि आपके माता-पिता कुछ ऐसे पेशे में हैं, जिस पेशे को आपको भी अपनाना है, आदि, तो यह तैयारी है। और तब,आप स्वयं अवसर होते है। वैसे तो “भाग्य” शब्द के कई पर्यायवाची शब्द हैं। अंग्रेज़ी में भाग्य को “Luck” कहा जाता है, जो कुछ विशेषज्ञों के अनुसार धन और भाग्य की देवी “लक्ष्मी” से ही उत्पन्न हुआ है । जन्म कुंडली में, नौवां घर, भाग्य या सौभाग्य के लिए प्रासंगिक होता है। अतः माना जाता है कि,नवम स्वामी का प्रतिनिधित्व करने वाले देवता की आराधना, हमारे भाग्य को बढ़ाने में मदद करती है।
भाग्य उस चीज़ को दर्शाता है, जो हमें किसी “संयोग” से मिलती है। हम हमेशा “सौभाग्य” या “दुर्भाग्य” की बात करते हैं। लेकिन, हम कभी भी ‘अच्छा भाग्य’ या ‘बुरा भाग्य’ नहीं कहते हैं। इसलिए, भाग्य के साथ अस्थिरता या सौभाग्य की भावना हमेशा ही जुड़ी रहती है।
वास्तव में, ईसाई और इस्लाम धर्म में, भविष्य की घटनाओं में भाग्य के बजाय सर्वोच्च शक्ति या भगवान की इच्छा को प्राथमिक प्रभाव माना जाता हैं।जबकि, हिंदू धर्म में भाग्य के बारे में, दृष्टिकोण थोड़े अलग है। हिंदू धर्म के अनुसार, हर जीवित प्राणी में एक आत्मा होती है और ‘भगवत गीता’ के अनुसार, यह आत्मा अविनाशी है। आत्मा पुनर्जन्म लेती रहती है। एक जन्म में रहते हुए, आत्मा अच्छे और बुरे कर्मों में लिप्त होती है। अगले जन्म में, आत्मा का होने वाला पुनर्जन्म, उसके पिछले जन्म के कर्मों की गुणवत्ता और भार से निर्धारित होता है। महाभारत से, निम्नलिखित उद्धरण प्रासंगिक है- “मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है। एक जन्म में,हमें हमारे द्वारा पूर्व जन्म में किए गये कर्मों का फल मिलता है। आत्मा अपने संचित कर्म के भार के साथ पुनः जन्म लेती है। केवल पुण्य कर्म करने से ही, कोई आत्मा देवलोक को प्राप्त होती है। जबकि, अच्छे और बुरे कर्मों के संयोग से, वह मनुष्य की स्थिति प्राप्त करती है। और, कामुकता तथा इसी तरह के अन्य बुरे कामों में लिप्त होकर, आत्मा निचले जानवरों के बीच पैदा होती है।
यह कथन यह स्पष्ट करता है कि, मानव जाति में पुनर्जन्म भी भाग्य की बात है। यह उसके पिछले जन्मों के संचित कर्मों पर निर्भर करता है।इसलिए, भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि,“पिछले जन्मों के कर्म, अगले जन्मों में व्यक्ति के भाग्य या नियति को दर्शाते हैं।”
इसके अलावा, महाभारत में भगवान कृष्ण ने निम्नलिखित शब्द कहे थे, जो काफी प्रासंगिक हैं। “भाग्य और मानव प्रयास एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। उच्च विचार वाले लोग, अच्छे और महान कार्य करते हैं। तथा, केवल किन्नर ही भाग्य की पूजा करते हैं।” यही संदेश निम्नलिखित उद्धरण में भी परिलक्षित होता है– “हम सभी की किस्मत बुरी और अच्छी होती है। जो आदमी बुरी किस्मत के बावजूद भी डटा रहता है एवं आगे बढ़ता रहता है, वही आदमी अच्छी किस्मत आने पर वहां मौजूद रहता है, और उसे प्राप्त करने के लिए तैयार रहता है।”

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc3btw2c
https://tinyurl.com/y6s56n64
https://tinyurl.com/2pfhj58m

चित्र संदर्भ
1. अर्जुन को समझाते श्री कृष्ण को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
2. भाग्य शब्द को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
3. एपीजे अब्दुल कलाम के विचार को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गरीबी और अमीरी के भेद को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. श्री कृष्ण के उपदेश को दर्शाता एक चित्रण (picryl)



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