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आपने देशभर में साँपों द्वारा इंसानों को काटे जाने की ख़बरें अक्सर सुनी होंगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे अपने जौनपुर में एक ऐसा गावं भी है, जहां के बच्चे ज़हरीले साँपों से खिलौनों की तरह खेलते हैं। लेकिन इस गाँव के बारे में अधिक जानने से पहले हम हमारे देश और राज्य में साँपों और सर्पदंशों की स्थिति पर एक नजर डाल लेते हैं।
उत्तर प्रदेश को 90 से अधिक विभिन्न प्रकार के सांपों की प्रजातियों का घर माना जाता है। यहां पर सांपों की सबसे बड़ी आबादी, तराई क्षेत्र में स्थित लखीमपुर खीरी जिले में पाई जाती है। इस क्षेत्र में बहुत सारे जंगल, नदियाँ और हरे पौधे हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश को सांपों की कई प्रजातियों का घर माना जाता है, जिनमें ग्रीन मांबा और कोरल रेड कुकरी (Green Mamba And Coral Red Kukri) जैसे कुछ दुर्लभ सांप भी शामिल हैं। मानसून के दौरान सांपों के अपने बिलों से बाहर आने की संभावना अधिक होती है, जिस कारण इसी दौरान लोगों और सांपों के बीच टकराव होने की घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
उत्तर प्रदेश में 75 जिलों में से लगभग 20 ज़िलों में सर्पदंश की संख्या तुलनात्मक रूप से अधिक मानी जाती है। साल 2022 से 2023 के बीच सोनभद्र ज़िले में सर्पदंश के कारण 45 मौतें हुईं, जो अन्य किसी भी ज़िले की तुलना में सबसे अधिक थी। हालाँकि, यह संख्या इसके पिछले वर्ष की तुलना में कम थी, जब सोनभद्र ज़िले में सांप के काटने से लगभग 100 लोगों की मौत हो गई थी।
साँप काटने से हुई 38 मौतों के कारण बाराबंकी ज़िला, राज्य में सर्पदंश से दूसरा सबसे अधिक प्रभावित ज़िला बन गया था। वहीं सर्पदंश से हुई 34 मौतों के साथ कौशांबी जिला तीसरे स्थान पर है। फतेहपुर, सिरतापुर और ललितपुर ज़िलों में सर्पदंश से क्रमशः 28, 27 और 26 मौतें हुईं।
पूरी दुनिया भर में हर साल अनुमानित पाँच मिलियन लोगों को सांप काट लेते हैं। इनमें से तकरीबन 81,000 से 138,000 लोगों की मृत्यु हो जाती है, और लगभग 400,000 लोग स्थायी विकलांगता और अंग-विच्छेदन के शिकार हो जाते हैं। भारत में इस तरह की मौतों का बोझ सबसे अधिक है। आपको जानकर हैरानी होगी कि अकेले 2019 में देशभर में सांप के काटने से कथित तौर पर 54,600 लोगों की मौत हो गई और लगभग 2.5 मिलियन लोग घायल हो गए।
भारत सांपों की 300 से अधिक प्रजातियों का घर माना जाता है, जिनमें से लगभग 60 प्रजातियां जहरीली मानी जाती हैं। हालांकि, 10 में से लगभग 9 मौतें केवल "बिग फोर “Big Four” (कोबरा (Spectacled Cobra), कॉमन क्रेट (Common Krait), सॉ-स्केल्ड वाइपर (Saw-Scaled Viper) और रसेल वाइपर (Russell's Viper)" के काटने से होती हैं।
भारत में सांप के काटने से होने वाली मौतों की इतनी बड़ी संख्या होने के बावजूद, इस मुद्दे पर उतना ध्यान नहीं दिया गया, जितना कि दिया जाना चाहिए। ऐसा आंशिक रूप से इसलिए है, क्योंकि सांप के काटने को अक्सर "गरीब आदमी की समस्या" माना जाता है।
इसके अलावा भी भारत में सांप के काटने से होने वाली मौतों की उच्च संख्या के पीछे कई कारण हैं। इनमें शामिल है:
१. सांप और सांप के काटने के बारे में जागरूकता की कमी: ग्रामीण भारत में बहुत से लोग यह नहीं जानते कि जहरीले सांपों की पहचान कैसे करें, या उनके काटने से कैसे बचें।
२. एंटीवेनम (Antivenom) तक पहुंच का अभाव: सांप के काटने पर एंटी वेनम ही एकमात्र प्रभावी उपचार होता है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में यह अक्सर अनुपलब्ध या पहुंच से बाहर रहते हैं।
३. ख़राब स्वास्थ्य सुविधाएं: कई ग्रामीण अस्पतालों और क्लीनिकों (Clinics) में सर्पदंश से पीड़ितों के इलाज के लिए आवश्यक सुविधाएं नहीं हैं।
सर्पदश से हमारा जौनपुर शहर भी अछूता नहीं है। हाल ही में जौनपुर के कौलीपुर में रहने वाले अजय शर्मा जी के 26 वर्षीय पुत्र अच्छेलाल की सर्प दंश से मौत हो गई। उसे सांप तब काटकर चला गया, जब वह गहरी नींद में था। सुबह जब मृतक के परिजन उठे और उसे जगाने के लिए गए तो उन्होंने देखा कि वह बिस्तर के नीचे गिरा हुआ था। इसके बाद उसे निकट के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सुजानगंज में ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इसके अलावा जौनपुर के ही सरायख्वाजा के हड़ही गांव में भी 11वीं के छात्र आकाश कुमार के एक स्कूल बैग में घुसे सांप द्वारा उसे डस लेने से उसकी मौत हो गई। वह अपने छोटे भाई को स्कूल भेजने के लिए खूंटी से बैग उतार रहा था। खूंटी पर टंगे बस्ते को उतारते समय उसके हाथ से बैग छूटकर गिर गया। बैग गिरते ही उसमें छिपकर बैठे साप ने खुद पर खतरा देखते हुए आकाश कुमार के पैर को डस लिया। जिसके बाद उपचार के लिए ले जा रहे आकाश की रास्ते में ही मौत हो गई।
हालांकि इस तरह की घटनाओं के बाद, सांप का नाम सुनते ही जहां लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं, वहीं हमारे जौनपुर में ही “सोंगर” नाम का एक ऐसा गांव भी है जहां के बच्चे खतरनाक चीतर प्रजाति के सांपों के साथ खिलौनों की तरह खेलते हैं। इतना ही नहीं साप के डसने पर भी यहां के लोगों पर कोई असर नहीं होता। इतना ही नहीं मान्यता है कि अगर किसी दूसरे गांव के किसी व्यक्ति को सांप डस ले तो सोंगर की सरहद में दाखिल होते ही उसके शरीर में फैला जहर बेअसर हो जाता है।
गांव वालों के अनुसार लगभग 600 साल पहले शर्की राजवंश के दौरान वर्ष 1422 में नेत्रहीन सूफी संत हज़रत कुतुबुद्दीन यहां के रास्ते से गुजर रहे थे। उनके साथ उस्ताद हजरत नज़मुद्दीन भी थे। हज़रत कुतुबुद्दीन के उस्ताद ने उन्हें यहीं रहने का आदेश दिया। एक दिन चीतर प्रजाति का सांप हज़रत कुतुबुद्दीन के पैरों से उलझ गया और उसने उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश की। जिसके बाद उन्होंने सर्प को इस गांव में केंचुए जैसा स्वभाव का होने का श्राप दे दिया। तभी से चीतर सांप का ज़हर इस गांव में प्रभावहीन हो गया। गांव वालों का कहना है कि चीतर सांप का डसा व्यक्ति, बेहोशी की हालत में भी सोंगर गांव की सीमा में पहुंचते ही पूरी तरह होश में आ जाता है। इसी कारण दूसरे गांवों के लोग भी सर्पदंश के पीड़ित को यहां लेकर आते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5bwf7k5d
https://tinyurl.com/3n8anw3n
https://tinyurl.com/2sekba9p
https://tinyurl.com/3p3ybbzy
https://tinyurl.com/4x2ve4nz
https://tinyurl.com/2p9dc4jr
https://tinyurl.com/2c9tbwhv
चित्र संदर्भ
1. सांप को पकड़े व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
2. सपेरे को दर्शाता एक चित्रण (Needpix)
3. सर्पदंश से पीड़ित महिला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक खेत में बैठे सांप को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
5. भारत में सर्पदंश के जोखिम को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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