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नवरात्रि उत्सव में, आदिशक्ति देवी मां दुर्गा के नौ रूपों या नवदुर्गा की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का यह प्रत्येक स्वरूप एक विशेष ग्रह से जुड़ा हुआ है। देवी के ये रूप वैदिक ज्योतिष प्रणाली के नौ ग्रहों को प्रसन्न करने में मदद कर सकते है।
वैदिक ज्योतिष में,वास्तव में, दरअसल किसी भी चीज़ को “ग्रह” के रूप में संदर्भित नहीं किया गया है। इसके बजाय,ज्योतिष शास्त्र तारकों(Planets)के लिए,संस्कृत शब्द ग्रह का उपयोग करते हैं।
एक अंग्रेजी लेखक, डेविडफ्रॉली(David Frawley) अपनी पुस्तक “एस्ट्रोलॉजी ऑफ द सीयर्स(Astrology of the Seers)” में लिखते हैं कि, “प्रत्येक ग्रह अपनी कक्षा में ऊर्जा एकत्रित करता है एवं इसे उत्सर्जित करता है। इस प्रकार, सौर मंडल के क्रम को बनाए रखने के लिए, आवश्यक ऊर्जा की एक विशेष तरंग यह संचारित करता है। ग्रह जीवन और सृजन का जाल बुनते हुए संचरण के विभिन्न स्वरूपों और चक्रों में ऊर्जा के साथ, निरंतर चमकते रहते हैं।”
यह ऊर्जा, उस समय के चरणों की गुणवत्ता निर्धारित करती है, जिसमें हम रहते हैं। दूसरे शब्दों में, ग्रह हमारे जीवन के प्रत्येक विशेष अध्याय की स्थिति को प्रभावित करते हैं। ग्रहों(तारकों) को अतः ‘ग्रह’ के रूप में वर्णित किया गया है।
वैदिक ज्योतिष, नौ ग्रहों पर ध्यान देता है, जिन्हें सामूहिक रूप से नवग्रह कहा जाता है। उनमें सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु(चंद्रमा का उत्तरी नोड(Node) एवं केतु(चंद्रमा का दक्षिणी नोड) शामिल हैं।
वास्तव में, राहु और केतु सूक्ष्म ग्रह हैं, जिनका कोई वास्तविक द्रव्यमान नहीं है। अंतरिक्ष में वे उन दो बिंदुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहां सूर्य और चंद्रमा का कक्षीय पथ एक दूसरे को काटता है। राहु और केतु को अक्सर “छाया ग्रह” कहा जाता है, और वे आम तौर पर नकारात्मक प्रभावों के संकेतक होते हैं।
वेदों के अनुसार, प्रत्येक ग्रह जीवन के एक विशेष पहलू का प्रतिनिधित्व करता है एवं प्रत्येक ग्रह एक विशेष देवता के अधिकार क्षेत्र में भी होता है। इसके साथ ही,ग्रह के साथव्यक्तित्व भी होते हैं, जो किसी व्यक्ति की ज़िंदगी की विभिन्न स्थितियों को प्रदान करने और बनाए रखने के लिए विशिष्ट होतेहैं।
अच्छे कर्म किसी व्यक्ति की चेतना को, जीवन के अधिक निस्वार्थ स्तर पर ले जाते हैं, जबकि बुरे कार्य उसकी चेतना को अधिक आत्म-केंद्रित स्तर पर गिरा देते हैं। इस प्रकार, वह व्यक्ति सहानुभूति का अनुभव करता है, तथा प्रेम और कृतज्ञता का जीवन जीने के लिए, प्रोत्साहित होता है।
लोग जन्म और मृत्यु के चक्र में, कई जन्मों तक कर्म का अनुभव करते हैं।इनमें उन्हें उन सबकों का सामना करना पड़ता है,जिनसे गुजरने के बाद ही, वे आगे बढ़ सकते हैं। नवग्रहों के देवता हमें ये सबक देते हैं।
उदाहरण के लिए, शुक्र ग्रह पर शुक्र देवता का शासन है।
शुक्र आम तौर पर पुरुष की कुंडली में, पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, खराब स्थिति वाला शुक्र,अक्सर ही वैवाहिक समस्याओं या यहां तक कि, जीवनसाथीन मिलने में आने वाली समस्याओं का संकेतक हो सकता है।
आइए, अब हम आपका ध्यान फिर से चंद्र नोड्स पर ले आते हैं। चंद्र नोड चंद्रमा के दो कक्षीय नोड्स होते हैं, यानी, वह दो बिंदु जहां, चंद्रमा की कक्षा क्रांतिवृत्त(Ecliptic) को काटती है। आरोही (या उत्तर) नोड वह होता है, जहां चंद्रमा उत्तरी क्रांतिवृत्त गोलार्ध में प्रवेश करता है, जबकि अवरोही (या दक्षिण) नोड वह है, जहां, चंद्रमा दक्षिणी क्रांतिवृत्त गोलार्ध में प्रवेश करता है।
कर्म ज्योतिष में, इन पहलुओं की मुख्य भूमिका विकसित की गई है। ये दो नोड्स आत्मा के विकासवादी पथ का प्रतिनिधित्व करते हैं।अलग-अलग ग्रहों की तरह, चंद्र नोड्स भी जन्म कुंडली का हिस्सा होते हैं।
आरोही चंद्र नोड विकासवादी बढ़ती के लिए, व्यक्ति की संभावनाओं, प्राप्त किए जाने वाले लक्ष्य, हमें कुछ सीखने की आवश्यकता है, आदि का प्रतिनिधित्व करता है। जबकि, अवरोही चंद्र नोड आराम संज्ञा का प्रतिनिधित्व करता है। यह उनआदतों से संबंधित है, जो आत्मा में जड़ें जमा चुकी होती हैं। साथ ही, यह दूरकरने लायक परीक्षणों, एक दूसरे का अनुसरण करने वाली एवं सबक नहीं सीखे जाने पर, हमेशा खुद को दोहराने वाली गतिविद्या से भी संबंधित हैं।
दोनों चंद्र नोड्स विपरीत बिंदुओं पर मेल पाते हैं,जब उत्तरी नोड सिंह राशि में होता है, तो दूसरी ओरदक्षिण नोड उसी बिंदु पर कुंभ राशि में होता है।अर्थात, विपरीत संकेतों के बीच पूरकता की कुंजी निहित होती है।
आइए, अब जानते हैं कि, किसी ग्रह के दोषों को दूर करने हेतु, मां दुर्गा के किन रूपों की पूजा करनी चाहिए…
चंद्रमा को प्रसन्न करने के लिए शैलपुत्री से प्रार्थना:
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। अपने दूसरे अवतार में,मां दुर्गा का जन्म पर्वतों के राजा हिमालय के यहां हुआ था। इसलिए उनका नाम शैलपुत्री या ‘पहाड़ों की बेटी’ रखा गया है। वह अपने सिर पर अर्धचंद्र धारण करती है और बैल की सवारी करती है।
मां का यह रूप चंद्रमा, मूलाधार चक्र और गाय से जुड़ा हुआ है। मूलाधारचक्र शरीर के अन्य सभी चक्रों का पोषण करता है, गाय हमें दूध से पोषण देती है और चंद्रमा मां का कारक है, जो अपने बच्चे का पोषण करती है।
मंगल ग्रह को प्रसन्न करने के लिए ब्रह्मचारिणी से प्रार्थना:
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। ब्रह्मचारिणी का अर्थ, ब्रह्मचर्य या संयम का पालन करने वाली माता है। मां के इस रूप से मंगल ग्रह जुड़ा होता है। मंगल ग्रह स्वयं ब्रह्मचारी भगवान कहलाता है।
शुक्र को प्रसन्न करने के लिए चंद्रघंटा से प्रार्थना:
नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। भगवान शिव जी से विवाह करने के बाद, मां दुर्गा ने चंद्रघंटा नाम धारण कर लिया। इस रूप में, वह अपने सिर पर अर्धचंद्र धारण करती हैं, क्योंकि, शिव जी भी अपने सिर पर अर्धचंद्र धारण करते है। शुक्र ग्रह स्त्री के वैवाहिक जीवन, दांपत्य सुख और सुंदरता पर शासन करता है। मां दुर्गा के इस रूप की पूजा करने से, उस व्यक्ति को आकर्षक रूप और आभा प्राप्त होती है।
सूर्य को प्रसन्न करने के लिए कुष्मांडा से प्रार्थना:
नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की पूजा की जाती है। इस रूप से जुड़ा ग्रह सूर्य है। सूर्य सृजन, प्रजनन और जीवन के भरण-पोषण का आधार बनता है।:
कुष्मांडा के रूप में मां दुर्गा ने तेज और प्रकाश को जन्म दिया है। वह गर्मी, चमक और सूर्य की ऊर्जा के स्रोत से भरपूर है। कुष्मांडा देवी ब्रह्मांडीय बीज की भी निर्माता मानी जाती है।
बुध की शांति के लिए स्कंदमाता से प्रार्थना:
नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की पूजा की जाती है। स्कंद, युद्ध के हिंदू देवता– कार्तिकेय का दूसरा नाम है। कार्तिकेय मां दुर्गा के प्रथम पुत्र हैं। उनके इस रूप की पूजा, उनके उग्र मातृ स्वरूप के लिए की जाती है।
वह शेर के ऊपर सवार होकर अपने बेटे को गोद में रखती है। ज्योतिष शास्त्र में बुध ग्रह छोटे बच्चों का प्रतिनिधित्व करता है। दुर्गा के इस रूप की प्रार्थना करने से बच्चों को खतरे और दुर्घटनाओं से बचाया जा सकता है।
बृहस्पति को प्रसन्न करने के लिए कात्यायनी से प्रार्थना:
नवरात्रि के छठे दिन कात्यायनी की पूजा की जाती है। देवताओं ने एक योद्धा देवी बनाने के लिए, अपनी ऊर्जा केंद्रित की थी, जिससेदेवी कात्यायनी का जन्म हुआ है। उन्हें ऋषि कात्यायन ने आकार दिया था। देवी के इस उग्र रूप ने, राक्षस महिषासुर का वध किया था।
देवी दुर्गा के इस अवतार का संबंध बृहस्पति से है। वह सकारात्मकता और ज्ञान का कारक है। आंतरिक राक्षसों से छुटकारा पाकर, हम अपने मन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और उच्चतम स्तर का ज्ञान, आत्मज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
शनि की शांति के लिए कालरात्रि से प्रार्थना:
नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि की पूजा की जाती है। वह देवी दुर्गा का सबसे सांवला रूप है। इस उग्र रूप में, वह हर प्रकार की नकारात्मकता का नाश करने वाली हैं। ‘काल’ का अर्थ,एक ही समय में समय और मृत्यु से है।
नवदुर्गा का यह रूप शनि ग्रह से संबंधित है। मां के इस रूप के निष्पक्ष और सख्त स्वभाव के कारण, शनि अक्सर उनसे डरता है।
राहु/उत्तर चंद्र नोड को प्रसन्न करने के लिए महागौरी से प्रार्थना:
नवरात्रि के आठवें दिन महागौरी की पूजा की जाती है। मां दुर्गा का यह परम सुंदर महागौरी रूप, सत्य, पवित्रता और निष्पक्षता से जुड़ा हुआ है।
राहु या उत्तरी चंद्र नोड, देवी माया का भ्रामक पहलू है। वह आम तौर पर भ्रम और इच्छाएं पैदा करता है, जो संसारवासियों के दुख का कारण बनती हैं। जो लोग महागौरी की पूजा करते हैं, वे द्वंद्व और ब्रह्मांड के तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) से परे जा सकते हैं और परम सत्य को पा सकते हैं। अतः इन्हें राहु देव परेशान नहीं कर सकेंगे।
केतु/दक्षिण चंद्र नोड को प्रसन्न करने के लिए सिद्धिदात्री: से प्रार्थना
नवरात्रि के आखिरी दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। ‘सिद्धि’ का अर्थ, किसी देवता द्वारा प्रदान की गई अलौकिक शक्ति है। इस स्थिति में, यह दयालु देवी अपने भक्तों को विशेष शक्तियां प्रदान करती हैं।
वह चंद्रमा के दक्षिणी नोड या स्वामी केतु से संबंधित है। वह जन्म चक्र के आरंभ और अंत का सूचक है। सिद्धिदात्री अंतर्ज्ञान, समाधि स्थिति, पिछले जीवन की प्रतिभा और रचनात्मकता को भी नियंत्रित करती है। उनका आशीर्वाद प्राप्त करके, आप अद्भुत उपलब्धि हासिल कर सकते हैं और अपनी इच्छानुसार किसी भी विषय का असीमित ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdfzfy27
https://tinyurl.com/mwcnumde
https://tinyurl.com/yx69ttev
https://tinyurl.com/2s3drjk9
चित्र संदर्भ
1. महामाया मंदिर में नवदुर्गा स्वरूपों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. नवग्रहों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. राहु और केतु को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. राहुचक्रम् को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. नवरात्रि के उत्सव में, नवदुर्गा स्वरूपों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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