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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि, “सैमगुक युसा (Samguk Yusa) नामक एक दक्षिण कोरियाई साहित्य में भी, प्रभु श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या का उल्लेख मिलता है।” इस कोरियाई साहित्य में अयोध्या को “अयुता (Ayuta) ” कहा गया है। सैमगुक युसा नामक इस कोरियाई पाठ में अयोध्या की एक राजकुमारी का भी वर्णन मिलता है, जो लगभग 2,000 साल पहले काया साम्राज्य “Kaya kingdom” (अब दक्षिण कोरिया में किम्हे शहर (Kimhae city) के रूप में जाना जाता है) तक यात्रा करके पहुंची थी। वहां उन्हें, उस राज्य के शासक किम सुरो (Kim Suro) से प्रेम हो गया, जिसके बाद उन्होंने उनसे विवाह कर लिया था।
वर्तमान कोरियाई शासकों को “किम सुरो” और “अयोध्या की राजकुमारी” की 72वीं पीढ़ी का वंशज माना जाता है। हमारे प्यारे भारत में, विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्र जी को अयोध्या की राजकुमारी के वंशजों में से एक माना जाता हैं। उन्हें कभी-कभी 'राजा साहब' या 'पप्पू भैया' के नाम से भी संबोधित किया जाता है। हाल के वर्षों में उन्हें दक्षिण कोरियाई प्रधान मंत्री द्वारा, राजा सुरो के एक स्मारक समारोह के लिए आमंत्रित किया गया था। दक्षिण कोरियाई सरकार ने अपनी पूर्व रानी की याद में भारत की अयोध्या नगरी में एक स्मारक भी बनवाया है।
कोरियाई लोग, मिश्र जी को, काया शाही परिवार के वंशज के रूप में देखते हैं। हालांकि, अपने गौरवपूर्ण शाही वंश की उपाधि हासिल होने के बावजूद, वह यही मानते हैं कि वह एक सामान्य व्यक्ति हैं। साथ ही वह आमतौर पर अपनी शाही पृष्ठभूमि को कम महत्व देते हैं। विमलेन्द्र प्रताप मिश्र जी का भगवान रामलला से गहरा नाता रहा है। ऐसा कहा जाता है कि बाबरी विध्वंस के बाद प्रभु श्री राम के परम भक्त माने जाने वाले, विमलेंद्र जी ने अपने घर में ही मूर्ति स्थापित कर ली थी। विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र, अयोध्या में राजवंश परिवार के अंतिम राजा माने जाते हैं, जिन्हें आज भी अयोध्या के लोगों के बीच राजा साहब कहकर संबोधित किया जाता है। 2016 में स्वयं देश के प्रधानमंत्री ने राजा बिमलेंद्र सिंह जी को अयोध्या में राम मंदिर के संरक्षक और ट्रस्ट के अध्यक्ष का पद व्यक्तिगत रूप से सौंपा था।
मिश्र, कई पीढ़ियों बाद अपने शाही परिवार में पैदा हुए, “पहले पुरुष उत्तराधिकारी थे”। उनसे पहले अन्य के उत्तराधिकारियों को गोद लिया गया था। इसी कारण उन्हें बचपन से ही कड़ी सुरक्षा में रखा गया था। इसी के मद्देनजर उन्हें एक प्रतिष्ठित और बड़े स्कूल में भेजने के बजाय, एक स्थानीय स्कूल में भेजा गया। यहां तक की 14 साल की आयु तक उन्हें अपनी उम्र के लड़कों के साथ खेलने की भी अनुमति नहीं थी।
हम सभी जानते हैं कि, धार्मिक नगरी के रूप में प्रसिद्ध अयोध्या को भारत में एक बहुत ही ऐतिहासिक और पवित्र शहर माना जाता है। एक समय में मिश्र परिवार के पूर्वज अयोध्या के शासक हुआ करते थे। आज इस परिवार के अधिकांश सदस्य, अयोध्या के राजभवन में निवास करते हैं। अयोध्या के इस पूर्व शाही परिवार के सदस्यों में राजा साहब बिमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र के साथ-साथ रानी साहब ज्योत्सना देवी मिश्र, राजकुमार यतींद्र मोहन प्रताप मिश्र और उनकी बहन राजकुमारी मंजरी मिश्र भी शामिल हैं।
राजकुमारी मंजरी मिश्र और उनके भाई, लेखक यतींद्र मिश्र, दोनों ही बहुत सुसंस्कृत और पढ़े-लिखे माने जाते हैं। राजकुमारी मंजरी मानती हैं, कि “वह बहुत भाग्यशाली थीं कि, उनका जन्म ऐसे परिवार में हुआ, जिसकी इतनी समृद्ध विरासत रही है।” वह अवध में ही पली-बढ़ीं हैं। राजकुमारी मंजरी मिश्र का अपना खुद का व्यवसाय है, जिसमें वह साड़ी, कपड़ा और आभूषणों का व्यापार करती हैं। उनके ब्रांड का नाम "शिल्प मंजरी" है।
अयोध्या या अवध अपनी पारंपरिक हस्तकला जैसे आरी, जरदोजी और चिकनकारी के लिए प्रसिद्ध है। इस हुनरमंद काम को करने वाले कई कारीगर अयोध्या और फैजाबाद में रहते थे तथा पीढ़ियों से मिश्र परिवार के लिए काम कर रहे हैं। लेकिन चूँकि स्थानीय स्तर पर उनके लिए पर्याप्त काम नहीं था, इसलिए इनमें से कई कारीगरों को जीविकोपार्जन के लिए दूसरे शहरों में जाना पड़ता था। हालांकि राजकुमारी मंजरी मिश्र इनके लिए अँधेरे में चिराग लेकर आई, और "शिल्प मंजरी" नामक एक शिल्प परियोजना उन्होंने इन्हीं कारीगरों की मदद करने के लिए शुरू की है। इस परियोजना के माध्यम से, वह कई होनहार कारीगरों को रोजगार देती है, जिनमें से अधिकांश मुस्लिम हैं। गौरतलब है कि राजकुमारी के पिता और अयोध्या के राजा बिमलेंद्र सिंह, राम मंदिर के संरक्षक और ट्रस्ट के भी अध्यक्ष हैं, इसलिए राजकुमारी द्वारा उठाया गया यह कदम क्षेत्र में धार्मिक एकता की मिसाल बन गया है।
राजकुमार यतींद्र मोहन प्रताप मिश्र भी फिल्म और संगीत के जाने-माने विद्वान माने जाते हैं। वह एक पुरस्कार विजेता, लेखक और कवि भी हैं। उन्हें प्रसिद्ध भारतीय गायिका लता मंगेशकर जी से जुड़ी एक किताब लिखने के लिए 2016 में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी दिया गया था। इस पुस्तक का नाम "लता: सुर गाथा" है। उन्होंने "यादा-कदा" (एक काव्य पुस्तक), "विस्मया का बखान" (कला का इतिहास पुस्तक) और "सुर की बारादरी" (प्रसिद्ध संगीतकार उस्ताद बिस्मिल्लाह खान पर एक पुस्तक) जैसी अन्य उल्लेखनीय रचनाएं भी लिखी हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cwktt7w
https://tinyurl.com/5a49hpju
https://tinyurl.com/u4ujhndb
https://tinyurl.com/47fvvm9r
चित्र संदर्भ
1. पवित्र नगरी अयोध्या के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कोरियाई शासक “किम सुरो” को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्र जी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के लोगो को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. विमलेंद्र मोहन प्रसाद मिश्र जी के एक अन्य चित्र को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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