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जौनपुर का समृद्ध इतिहास, शहरों में पुस्तकालयों की भूमिका को उजागर करता है

जौनपुर

 26-07-2023 09:49 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

किसी भी शहर के सामाजिक विकास में, उस शहर में मौजूद अच्छे पुस्तकालय बहुत ही अहम् भूमिका निभाते हैं। एक समय में हमारे जौनपुर शहर को भी शिक्षा और विज्ञान का बहुत बड़ा केंद्र माना जाता था। जहां पर बेहतर शिक्षा की तलाश में पूरी दुनियां से लोग ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते थे। शर्की काल में जौनपुर जनपद, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला और साहित्‍य के क्षेत्र में अपना महत्‍वपूर्ण स्‍थान रखता था। शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान जौनपुर को 'शिराज़-ए-हिंद" की पदवी से नवाजा गया। यह तथ्य दर्शाते हैं, कि किसी भी शहर के निरंतर विकास और प्रसिद्धि में, वहां मौजूद शिक्षा केंद्र या सार्वजनिक पुस्तकालय कितनी अहम भूमिका निभा सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया की आधी से अधिक आबादी शहरों में रहती है और 2050 तक, इसमें तीन अरब और जुड़ जायेंगे। हालांकि शहर, केवल इमारतों का एक ढेर नहीं होता बल्कि लोगों, सेवाओं और अवसरों के बीच संबंधों का विशाल नेटवर्क (Network) होता हैं। लोग और उनके द्वारा निर्मित समुदाय, शहरी संरचना के केंद्र में होते हैं। इसलिए, जब हम शहरों के भविष्य के बारे में सोचते हैं, तो हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होती है कि, मानव समुदाय सतत शहरी विकास के केंद्र में रहें। समुदाय-केंद्रित शहरी विकास में, “पुस्तकालय” महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
ये पुस्तकालय शहर और लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में अहम योगदान देते हैं। आखिर कैसे? आइये, लेख में जानते हैं:
1. पुस्तकालय सूचना और सांस्कृतिक विरासत तक पहुंच प्रदान करते हैं।
2. पुस्तकालय रचनात्मकता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रोत्साहित करते हैं।
3. पुस्तकालय संस्कृति और सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देते हैं।
4. पुस्तकालय सभी के लिए खुले सांस्कृतिक केंद्र होते हैं, जो संग्रह और सेवाओं तक पहुंच प्रदान करते हैं।
5. पुस्तकालय दस्तावेजी तौर पर शहर की विरासत को संरक्षित करते हैं।
पर्यावरणीय स्थिरता में भी पुस्तकालय अहम भूमिका निभाते हैं, क्योंकि यहां पर जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों का समाधान खोजा जा सकता है। इसके अलावा, पुस्तकालय सामाजिक स्थिरता, साक्षरता, सूचना और सहभागी समाजों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालय शहरी, उपनगरीय और ग्रामीण सभी क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। सार्वजनिक पुस्तकालयों को स्वागत योग्य और मैत्रीपूर्ण स्थानों के रूप में देखा जाता है। कई समुदायों में, वहां के लाइब्रेरियन (Librarian), तदर्थ सामाजिक कार्यकर्ता और मार्गदर्शक के रूप में भी कार्य करते हैं। अमेरिका जैसे देशों में बेघर आबादी की जरूरतों को पूरा करने में भी पुस्तकालय महत्वपूर्ण संस्थान बन गए हैं। यहां पर पोषण, मानसिक स्वास्थ्य समाधान और नेतृत्व कार्यक्रम सहित सभी उम्र और पृष्ठभूमि के लोगों के लिए कार्यक्रम और सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा, पुस्तकालय विशेष आवश्यकताओं वाले विशिष्ट समूहों, जैसे वरिष्ठ नागरिकों और अप्रवासियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
किसी भी शहर के विकास में पुस्तकालय कितनी अहम् भूमिका निभा सकते हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण स्वयं हमारा जौनपुर शहर है। पहले के समय में हमारा जौनपुर शहर मुस्लिम शिक्षा और विज्ञान का बहुत बड़ा केंद्र हुआ करता था। शर्की काल में जौनपुर की शिक्षा संस्कृति इतनी उन्नत मानी जाती थी कि, यहां पर भारत के अलावा ईरान के हेरात और बदख्शां जैसे शहरों से भी छात्र पढ़ने के लिए आते थे। उस समय यहां पर दुनिया के कुछ शीर्ष मदरसे हुआ करते थे। मदरसा शब्द का अर्थ होता है ‘एक ऐसी जगह जहां पर शिक्षा दी जाती है” और इनकी शुरूआत मस्जिदों में हुई थी। चौथी शताब्दी से ही मस्जिदों का इस्तेमाल शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से किया जाता है। देखते ही देखते मदरसे पूरे इस्लामी जगत में प्रचलित हो गये। ये मदरसे मुख्य रूप से इस्लामी नियम कानून के अध्ययन पर केंद्रित थे, लेकिन, यहां पर धर्मशास्त्र, चिकित्सा और गणित जैसे अन्य विषयों को भी पढ़ाया जाने लगा। ऐतिहासिक रूप से मुसलमानों को ये प्रतिष्ठित शिक्षण (जैसे दर्शन और चिकित्सा शास्त्र) पूर्व इस्लामी सभ्यताओं से विरासत में मिली। हालांकि, उस समय के मदरसों में औपचारिक अध्ययन केवल पुरुषों को दिया जाता था। उस समय इस्लामी शिक्षा संस्मरण पर केंद्रित थी। 1351 ईस्वी में सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा इसकी नींव रखने और शर्की राजाओं (1394-1500 ईस्वी) की राजधानी बनने के बाद, जौनपुर में सुंदर और विशाल मस्जिद, मदरसा और मठों की संख्या बढ़ने लगी। मुहम्मद शाह के शासन काल तक जौनपुर में 50 प्रसिद्ध मदरसे स्थापित हो चुके थे, जिन्हें इस्लामी अध्यात्मवाद में विश्व के सर्वश्रेष्ठ मदरसों में से एक माना जाता था। उस समय जौनपुर शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला और साहित्‍य के क्षेत्र में सबसे आगे था। परंतु आज इन ऐतिहासिक मदरसों में से नाम मात्र के ही मदरसे बचे हुए हैं। जब दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने जौनपुर पर आक्रमण कर अपना कब्जा किया, तो उसने सभी मस्जिदों और मदरसों को नष्ट करवा दिया। लेकिन, अभी भी जौनपुर में अटाला मस्जिद, लाल दरवाजा मस्जिद और जामा मस्जिद जैसी कई मस्जिदें मौजूद हैं, जो जौनपुर में इस्लामिक शिक्षा की विशालता को दर्शाती हैं।
जौनपुर के अलावा दिल्ली, आगरा, लाहौर, फ़तेहपुर सीकरी, मुल्तान, गुजरात, कश्मीर, गौड़ (लक्ष्मणावती), इलाहाबाद (प्रयागराज), अजमेर, पटना, हैदराबाद, अहमदाबाद और बीदर भी महत्वपूर्ण केंद्र हैं। हालांकि, वर्तमान में जौनपुर की शिक्षा प्रणाली केवल मदरसों पर ही केंद्रित नहीं रही है। राजा श्री कृष्ण दत्त पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज (Raja Shri Krishna Dutt Post Graduate College) को जौनपुर में सबसे पुराना और सबसे प्रतिष्ठित कॉलेज में से एक माना जाता है। इसकी स्थापना 1841 में राजा बाल दत्त द्वारा एक मिशनरी स्कूल (Missionary School) के रूप में की गई थी। आज यह एक डिग्री कॉलेज (Degree College) के रूप में विकसित हो गया है। 1996 में, प्राचार्य डॉ. बी.बी. दुबे के नेतृत्व एवं राजा यादवेंद्र दत्त दुबे के मार्गदर्शन और समर्थन से, काफी कड़ी मेहनत के बाद यह एक स्नातकोत्तर महाविद्यालय बन गया है। यह कॉलेज शहर की घनी आबादी वाले इलाके में अटाला मस्जिद और ऐतिहासिक शाही किले के बीच स्थित है। यहां पर 52 सुयोग्य प्रोफेसर हैं, जो अपने ज्ञान और शिक्षण कौशल के लिए जाने जाते हैं। इस कॉलेज में लगभग 4,000 छात्र विज्ञान, कला, शिक्षा और वाणिज्य जैसे विभिन्न संकायों (विषयों) में पढ़ाई कर रहे हैं। आज भी यह कॉलेज अपनी नवीन शिक्षण विधियों और शोध कार्यों की गुणवत्ता के लिए पहचाना जाता है। कॉलेज परिसर 14 एकड़ में फैला है और यहां सुंदर उद्यान और एक प्राचीन भगवान शिव मंदिर भी है, जिसे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के समान डिजाइन किया गया है। कॉलेज रणनीतिक रूप से पवित्र नदी गोमती के पास स्थित है, जहां से जौनपुर का किला लगभग 300 मीटर की दूरी पर है। जौनपुर जंक्शन स्टेशन से केवल 1 किलोमीटर और जौनपुर सिटी स्टेशन (Jaunpur City Station) से 5 किलोमीटर दूर होने के कारण यहां रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। कॉलेज से रोडवेज बस स्टेशन (Roadways Bus Station) 1.5 किलोमीटर दूर है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/b3uva574
https://tinyurl.com/bdd8eywe
https://tinyurl.com/27rt5z7a
https://tinyurl.com/49wpwfvv
https://tinyurl.com/yc7392vz
https://tinyurl.com/29nbkbap

चित्र संदर्भ
1. जौनपुर रेलवे स्टेशन और बुजुर्गों के दिनचर्या में पुस्तकालय की भूमिका को दर्शाता चित्रण(wikimedia)
2. पुस्तकालय में पठन करते छात्रों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. पुस्तकालय में एकत्रित महिलाओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. जौनपुर में वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. जौनपुर के शाही किले को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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