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जर्मन भाषा के महान दार्शनिक विल्हेम हम्बोल्ट ने पाई भगवद् गीता में संपूर्ण दार्शनिक प्रणाली

जौनपुर

 27-07-2023 09:44 AM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

भगवद् गीता का हिंदू धर्म में अनन्य, असाधारण महत्व है। हिंदू धर्म में, गीता एक धार्मिक ग्रंथ से परे, हमारी आस्था का केंद्र बिंदु भी है। भगवद् गीता ने श्री अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी आदि महापुरुषों के अलावा कई अन्य महत्वपूर्ण विदेशी व्यक्तियों को भी प्रभावित किया हैं। एल्डस हक्सले(Aldous Huxley), हेनरी डेविड थोरो(Henry David Thoreau), जे रॉबर्ट ओपेनहेइमर(J. Robert Oppenheimer), राल्फ वाल्डो एमर्सन(Ralph Waldo Emerson), कार्ल जंग(Carl Jung), बुलेंट एसेविट(Bulent Ecevit), हरमन हेस (Hermann Hesse), हेनरिक हिमलर (Heinrich Himmler), जॉर्ज हैरिसन(George Harrison), निकोला टेस्ला(Nikola Tesla) सहित कुछ अन्य विचारकों और संगीतकारों ने भगवद् गीता से प्रेरणा ली हैं। भगवत गीता से प्रभावित एक लेखक– विल्हेम वॉन हम्बोल्ट (Wilhelm von Humboldt)एक जर्मन दार्शनिक(German philosopher), भाषा विज्ञानी, राजनयिक और तत्कालीन प्रशिया राज्य (Prussian state) की सरकार में प्रशासक थे। वह बर्लिन(Berlin) के हम्बोल्ट विश्वविद्यालय(Humboldt University) के संस्थापक भी थे। तत्कालीन शिक्षा नीतियों को निर्मित करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था।
वर्ष 1823 में विल्हेम हम्बोल्ट अपने मित्र ऑगस्ट विल्हेम श्लेगल (August Wilhelm Schlegel)द्वारा किए गए, गीता के लैटिन(Latin) अनुवाद से प्रेरित हुए थे। तब उन्होंने गीता का संस्कृत से जर्मन में अनुवाद करने का प्रयास किया था। हम्बोल्ट ने गीता पर दो निबंध प्रकाशित किए थे। पहला निबंध 30 जून 1825 और 15 जुलाई 1826 को आयोजित उनके खुद के दो व्याख्यानों के आधार पर लिखा गया था। दूसरा निबंध, ऑगस्ट श्लेगल के गीता अनुवाद की, अलेक्जेंड्रे लैंग्लोइस (Alexandre Langlois) द्वारा की गई आलोचना पर उनकी टिप्पणी है। अलेक्जेंड्रे लैंग्लोइस एक संस्कृत विद्वान थे। इसकी मूल प्रति 17 जून 1825 को श्लेगल को उनके द्वारा लिखे गए पत्र पर आधारित है। 1820 के दशक में हम्बोल्ट को संस्कृत भाषा ने अन्य भाषाओं के अलावा सबसे ज्यादा आकर्षित किया था। 1820 में संस्कृत भाषा के अपने अध्ययन की शुरुआत में उनकी मुलाकात,लंदन(London) में एक युवा तुलनात्मक भाषा विज्ञानी, फ्रांज बोप(Franz Bopp) से हुई और बाद में उन्होंने एक अध्ययन शुरू किया।हम्बोल्ट ने उनके साथ संस्कृत का गहन अध्ययन किया। संस्कृत भाषा का अध्ययन करने के बाद,हम्बोल्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि, प्राचीन और आधुनिक यूरोपीय भाषाओं(European languages) के व्याकरणिक रूप संस्कृत से ही प्राप्त हुए हैं। चूंकि, संस्कृत यूरोपीय भाषाओं के विज्ञान को अधिक व्यापक रूप से समझने की कुंजी थी, उनका मानना था कि, सभी लोगों को संस्कृत का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त करना होगा। अब शायद आपको पता चल गया होगा कि, हम भारत में, संस्कृत को सभी भाषाओं की जननी क्यों कहते हैं!
दूसरी ओर, गीता की व्याख्या करते हुए, हम्बोल्ट सबसे पहले इसके आधार के रूप में, गीता की दार्शनिक जनकारी को निम्नलिखित दो सिद्धांतों में सारांशित करते हैं:
1) आत्मा एकल और अमर है, और अपनी संपूर्ण प्रकृति के अनुसार यौगिक और नश्वर शरीर से बिल्कुल अलग है।
2) जो लोग पूर्णता प्राप्त करने का प्रयास करते हैं, उन्हें प्रत्येक कार्य को उसके परिणामों पर विचार किए बिना और कर्म के प्रति बिना किसी लापरवाही के साथ करना होता है। इन दोनों सिद्धांतों में हम्बोल्ट को क्रिया और मृत्यु पर काबू पाने का सुराग मिलता है। अर्थात, उन्हें वे मूलभूत तथ्य मिलते है, जिनका सभी जीवित प्राणियों को अपने संपूर्ण जीवनकाल में सामना करना पड़ता है।
इसके साथ ही, गीता में हम्बोल्ट को सबसे अधिक आकर्षित कर्म-योग के विचार ने किया था। इस विचार में उन्हें न केवल दार्शनिक उदात्तता मिली, बल्कि अपने जीवन के प्रश्नों के दार्शनिक और व्यावहारिक उत्तर भी मिले थे।हम्बोल्ट ने न केवल कर्म-योग के विचार के लिए, बल्कि गीता में “दार्शनिक कविता” की अवधारणा के लिए भी अपनी प्रशंसा बनाए रखी, जो सीधे तौर पर कविता और दर्शन के बीच के संबंध को व्यक्त करती है। जिस प्रकार कर्म-योग में क्रिया को अकर्म में बदल दिया जाता है, उसी प्रकार एक दार्शनिक कविता में प्रत्येक संवेदी उत्तेजना को विशुद्ध रूप से आदर्श ध्यान में विलीन कर दिया जाता है। इस कारण, हम्बोल्ट ने गीता को एक कविता एवं “संपूर्ण दार्शनिक प्रणाली” कहा; और इसे दर्शन और कविता के संश्लेषण के रूप में उच्च दर्जा दिया। फिर कुछ साल बाद, एक अन्य जर्मन दार्शनिक, ज.डबल्यू. एफ.हेगेल(G.W.F. Hegel) ने भी हम्बोल्ट और उनकी गीता की टिप्पणी पर और टिप्पणियाँ की ।यह बहुत कम लोग जानते हैं कि,कार्ल मार्क्स(Karl Marx) के महान शिक्षक,हेगेल ने भी गीता पर विस्तार से लिखा था। हेगेल ने इस संदर्भ में एक निबंध लिखा था। यह निबंध न केवल हम्बोल्ट के इंडोलॉजिकल कार्यों (Indological work) की, बल्कि गीता की दार्शनिक नींव और शिक्षाओं की भी विस्तृत आलोचना थी।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4fn9hvzy
https://tinyurl.com/2p9y37hr
https://tinyurl.com/3ndt9n7a
https://tinyurl.com/mptjvvby

चित्र संदर्भ

1. लेखक विल्हेम हम्बोल्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. बर्लिन (जर्मनी) में हम्बोल्ट-विश्वविद्यालय के सामने लेखक विल्हेम हम्बोल्ट की मूर्ति, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
3. भगवद् गीता के श्लोक को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. कुरुकक्षेत्र के दृश्य को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. लेखक विल्हेम हम्बोल्ट की प्रतिमा को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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