भारत से निकले प्रतिभाशाली संगीतकार देबाशीष चौधरी, पश्चिमी संगीत की दुनिया में धूम मचा रहे हैं। उन्होंने 1995 में कोलकाता में एक संगीत शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया और उनका सपना एक दिन किसी मंच पर प्रदर्शन करने का था। लेकिन तब उन्हें खुद भी नहीं पता था कि एक दिन वह पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के सर्वश्रेष्ठ सिम्फोनिक संवाहकों (Symphonic Conductors) में से एक बन जाएंगे। आज चेक गणराज्य (Czech Republic) में रहते हुए, वह कई प्रसिद्ध यूरोपीय ऑर्केस्ट्रा (European Orchestras) के साथ काम कर चुके हैं।
चौधरी को संगीत में उनके योगदान के लिए वैश्विक स्तर पर मान्यता मिली है। 2021 में, भारत सरकार ने उन्हें “प्रवासी भारत सम्मान” से सम्मानित भी किया, जो अनिवासी भारतीयों (NRI) को मिलने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है। उसी वर्ष चेक गणराज्य ने उन्हें देशों के बीच कूटनीति में विशिष्ट योगदान पदक से भी सम्मानित किया ।
संगीत हमेशा से ही देबाशीष का जुनून रहा है। वह पश्चिम बंगाल के एक संगीत घराने में पले-बढ़े, जहां उन्हें संगीत की विभिन्न शैलियों से अवगत कराया गया। कई लोगों के मना करने के बावजूद भी उन्होंने संगीत में अपना करियर बनाने का फैसला किया। अपना संगीत डिप्लोमा पूरा करने के बाद, वह कोलकाता के सेंट जेम्स स्कूल (St James's School) में दाखिल हो गये और कई ऑर्केस्ट्रा कम्पोज़िशन (Orchestra Compositions) बनाए। उन्होंने बोहुस्लाव मार्टिनो फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा (Bohuslav Martino Philharmonic Orchestra), बर्नो फिलहारमोनिक (Brno Philharmonic), पीकेएफ-प्राग फिलहारमोनिया (PKF-Prague Philharmonia) सहित विभिन्न आर्केस्ट्रा के साथ काम किया है। उन्हें एल्गर (Elgar), नीलसन (Nielsen) और शुबर्ट (Schubert) जैसे शास्त्रीय संगीतकारों से लेकर जॉन मेयर और जीन-मिशेल जर्रे (John Mayer And Jean-Michel Jarre) जैसे समकालीन कलाकारों तक, संगीत की एक विस्तृत श्रृंखला के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।हालाँकि चौधरी, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन आज भी वह अपनी भारतीय जड़ों से जुड़े हुए हैं।