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विज्ञान की प्रगति के साथ-साथ वर्तमान समय में ऐसी कई जीन-संपादन तकनीकें विकसित हो चुकी हैं, जिनकी मदद से मनुष्य में मौजूद कई बीमारियों और विकृतियों को गर्भावस्था के दौरान ही ठीक किया जा सकता है। हालांकि, ऐसा करना एक चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि यह मानव के इस दृष्टिकोण को उजागर करता है, कि वह अस्वस्थ या अक्षम को स्वीकार नहीं करना चाहता है। इसी प्रकार की एक तकनीक से संबंधित एक शब्द ने 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में अत्यधिक लोकप्रियता प्राप्त की और वह था यूजेनिक्स (Eugenics)।
यूजेनिक्स "नस्लीय सुधार" और "नियोजित प्रजनन" का एक वैज्ञानिक सिद्धांत है, जो कि वास्तव में अनैतिक है। दुनिया भर में यूजेनिक्स का अनुसरण करने वाले लोगों का विचार था कि वे आनुवंशिकता के माध्यम से मनुष्यों को पूर्ण रूप से स्वस्थ बना सकते हैं और तथाकथित अस्वस्थता और अक्षमता रूपी सामाजिक बुराइयों को नष्ट कर सकते हैं। ऐतिहासिक रूप से यूजेनिक्स के समर्थकों ने हीन माने जाने वाले लोगों और समूहों को संपूर्ण समाज से अलग करके मानव जीन भण्डार (Gene pool) को बदलने का प्रयास किया । और जैसा कि वर्तमान समय में ‘क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पेलिंड्रॉमिक रिपीट्स (Clustered regularly interspaced short palindromic repeats) या क्रिस्पर (CRISPR) और जेनेटिक स्क्रीनिंग (Genetic screening) जैसी नई तकनीकों का उपयोग बढ़ता जा रहा है, इस शब्द को लेकर बहस और भी बढ़ गई है। इसके अलावा इन तकनीकों को यूजेनिक्स कहा जाना चाहिए या नहीं, यह भी एक चर्चा का विषय बना हुआ है। 19वीं शताब्दी में युजेनिक्स के शुरुआती समर्थकों ने इसे एक ऐसा तरीका बताया, जिसके जरिए लोगों के समूहों में सुधार किया जा सकता है। तो आइए आज यूजेनिक्स के इतिहास और विकास के बारे में जानकारी प्राप्त करें।
यूजेनिक प्रथाएं और मान्यताएं किसी न किसी रूप में काफी समय पूर्व से मौजूद थी । पूर्व औपनिवेशिक काल में ब्राजील (Brazil) में कुछ लोग उन बच्चों को मार देते थे, जो शारीरिक असामान्यताओं के साथ पैदा होते थे। प्राचीन यूनान में, दार्शनिक प्लेटो (Plato) ने भी चयनात्मक संभोग का सुझाव दिया था, ताकि एक स्वस्थ या सक्षम वर्ग का निर्माण हो सके। स्पार्टा (Sparta) में, गेरोसिया(Gerousia), जो कि उम्र में बड़े व्यक्तियों की एक परिषद थी, द्वारा स्पार्टा के प्रत्येक बच्चे का निरीक्षण किया जाता था, कि वह जीवित रहने के लायक है या नहीं। भूगोलवेत्ता स्ट्रैबो (Strabo) बताते हैं कि सेमनियम (Samnium) में रहने वाले इटली (Italy) के प्राचीन लोग उन 10 कुंवारी महिलाओं और 10 युवकों का चयन करते थे, जो सबसे स्वस्थ या सक्षम होते थे। इसके बाद, सबसे सक्षम महिला और सबसे सक्षम या श्रेष्ठ पुरुष की जोड़ी बनाई जाती थी।
इसके बाद दूसरे नंबर पर जो सबसे सक्षम होता था, उनकी जोड़ी बनाई जाती थी। यह क्रम तब तक जारी रहता था, जब तक सभी चयनित लोगों की उनके अनुसार जोड़ी नहीं बन जाती। यदि कोई इसे अस्वीकार करता था, तो जबरदस्ती की जाती थी । ऐसा इसलिए किया जाता था, ताकि बनाई गई जोड़ियों की संतानें सर्वश्रेष्ठ हों। रोमन (Roman) गणराज्य के शुरुआती वर्षों में, एक रोमन पिता इस बात से कानूनन बाध्य था कि अगर उसका बच्चा विकृत होता है, तो उसे अपने बच्चे को मारना होगा। चयनात्मक प्रजनन के माध्यम से मानव आबादी में सुधार के लिए एक आधुनिक परियोजना का विचार मूल रूप से फ्रांसिस गैल्टन (Francis Galton) द्वारा विकसित किया गया था और शुरू में यह डार्विनवाद (Darwinism) और उसके प्राकृतिक चयन के सिद्धांत से प्रेरित था। 1883 में गैल्टन द्वारा सबसे पहले "यूजेनिक्स" शब्द प्रयोग किया गया था। गैल्टन ने भविष्य की पीढ़ियों के नस्लीय गुणों को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रभावित करने वाली सामाजिक नियंत्रण के तहत विभिन्न संस्थाओं के अध्ययन को "यूजेनिक्स" के रूप में परिभाषित किया। गैल्टन के अनुसार स्वास्थ्य और रोग के साथ-साथ सामाजिक और बौद्धिक विशेषताएँ भी, आनुवंशिकता और नस्ल की अवधारणा पर आधारित थीं। 1870 और 1880 के दशक के दौरान, "मानव सुधार" और वैज्ञानिक नस्लवाद की विचारधारा की चर्चा आम हो गई। तथाकथित विशेषज्ञों द्वारा व्यक्तियों और लोगों के समूहों को, या तो श्रेष्ठ, या हीन व्यक्तियों की श्रेणी में निर्धारित किया जाने लगा । 1920 के दशक तक, यूजेनिक्स एक वैश्विक आंदोलन बन गया । जर्मनी (Germany), संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), ग्रेट ब्रिटेन (Great Britain), इटली (Italy), मैक्सिको (Mexico), कनाडा(Canada) और अन्य देशों में यूजेनिक्स को कुलीन व्यक्तियों एवं सरकारों का समर्थन प्राप्त होने लगा ।
आधुनिक युग में यूजेनिक्स शब्द वैज्ञानिक नस्लवाद से सम्बंधित माना जाता है। आधुनिक जैवनैतिकताविद (Bioethicists) ,जो नए यूजेनिक्स का समर्थन करते हैं, समूह सदस्यता की परवाह किए बिना इसे व्यक्तिगत गुणों को बढ़ाने का एक तरीका मानते हैं। वैज्ञानिक नस्लवाद एक विचारधारा है, जो गोरे यूरोपियों को श्रेष्ठ और गैर-गोरे लोगों को हीन बताने के लिए विज्ञान के तरीकों और वैधता को अपनाती है। एक प्रकार से यह नस्लीय पूर्वधारणा को सही बताती है। यूजेनिक्स के सिद्धांतों और वैज्ञानिक नस्लवाद को समकालीन ज़ेनोफ़ोबिया (Xenophobia), असामाजिकता, लिंगवाद, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद आदि से भी जबरदस्त समर्थन प्राप्त हुआ।
वर्तमान समय में ऐसी कई बीमारियां हैं, जिन्हें क्रिस्पर और जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic engineering) की मदद से ठीक किया जा सकता है। यह संभावित रूप से नए टीकों को विकसित करने में भी योगदान देती है। किंतु इसके आलोचकों का तर्क है कि यह तकनीकें यूजेनिक्स के सिद्धांतों का अनुसरण करती हैं। इनके द्वारा उन लोगों को, जो शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हैं, उन्हें समाज में अपनाए जाने पर जोर दिया जाता है। किंतु आलोचकों के अनुसार, यदि उनकी अक्षमता को क्रिस्पर और जेनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से दूर किया जा रहा है, तो इसका मतलब है कि समाज ऐसे लोगों को स्वीकार नहीं करना चाहता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3S5Yood
https://bit.ly/3xut5d4
https://bit.ly/3I8I1CM
चित्र संदर्भ
1. बच्चे के विकास क्रम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गर्भाशय में बच्चे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. CRISPR स्क्रीनिंग को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. प्राचीन यूनान के दार्शनिक, प्लेटो (Plato) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. यूजीनिक्स सोसाइटी प्रदर्शनी (1930) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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