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जापानी चित्र कला की कई विभिन्न श्रेणियां हैं। इस कला की शुरुआत 6वीं शताब्दी में चीन में बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर शुरू हुई थी। फिर लगभग 10वीं शताब्दी तक जापानी चित्रकला की अपनी विशिष्ट शैली धीरे-धीरे विकसित हुई । पारंपरिक जापानी चित्रकला अत्यंत पुरानी है तथा इसके चित्रों को तेलीय रंगों के बजाय पिसे हुए महीन धातु-संबंधी रंगद्रव्यों से रंगा जाता था। इसी वजह से इस कला के कुछ चित्रों पर कुछ उन्नयन रंगों का अधिव्यापन भी पाया जा सकता हैं।
अमेरिका के एक कला इतिहासकार अर्नेस्ट फ्रांसिस्को फेनोलोसा (Ernest Francisco Fenollosa) (1853-1908), जिन्हें 19वीं शताब्दी के अंत में जापान में तत्त्वज्ञान सिखाने के लिए आमंत्रित किया गया था, ने जापानी चित्रों के निम्नलिखित बिंदुओं को दिखाया था: -पहला, यह छायाचित्र (फोटो) की तरह यथार्थवाद का अनुसरण नहीं करते है।
दूसरा, चित्र छवि में कोई छायांकन नहीं होता है।
तीसरा, चित्र छवि में रूपरेखा होती है।
चौथा, इसमें प्रयुक्त रंग पक्के नहीं होते हैं।
पांचवा, कला की अभिव्यक्ति बहुत सरल होती है।
इन चित्रों के मुख्य विषय व्यक्ति, प्रकृति और देवता होते हैं।और चित्रों को न केवल कागजों पर बल्कि ‘बायोबू’ ( मुड़ने वाले पटल) या ‘फुसुमा’ (जापानी कमरे के सरकने वाले पटल) पर भी चित्रित किया गया था।
जापानी कलाएं, जो अत्यधिक प्रसिद्ध हैं, निम्न प्रकार हैं:
•सुइबोकुगा (Suibokuga) एक ऐसी जापानी चित्रकला है जिसके चित्र केवल काली स्याही से चित्रित होते है। इस चित्रकला को सूमी- ई (Sumi-e) भी कहते हैं । इस कला को 12वीं शताब्दी के आसपास चीन से जापान लाया गया था। सुइबोकुगा कला में हस्तलिपि (calligraphy) के लिए भी कूंचे (Brush) और केवल काली स्याही का ही उपयोग किया जाता है। हालांकि इसे विपरीत घनत्व और स्याही के उन्नयन के साथ चित्रित किया जाता है। सुइबोकुगा कला का मुख्य विषय प्रमुख रूप से परिदृश्य होता है।
• यूकीयो-ऎ (Ukiyo-e) 17वीं और 19वीं सदी के बीच लकड़ी के खंडों पर बनी एक मुद्रण कला है। “यूकीयो ” का अर्थ है “नागरिकों का जीवन”, जबकि “ऎ” का अर्थ है “चित्रकारी”। मुख्य रूप से, इस कला के अंतर्गत एक सुंदर महिला, एक काबुकी अभिनेता, एक सूमो पहलवान या किसी पर्यटन स्थल को एक कागज पर चित्रित किया जाता था। इसके अतिरिक्त, उन्हें किताबों में या दिनदर्शिकाओ पर चित्रण के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता था, जिनकी बहुत सारी प्रतियाँ बनती हैं, अत: इनका एक भाग यूरोप भी ले जाया गया था। परिणामस्वरूप, यूकीयो का फ्रांस के प्रभावशाली व्यक्तियों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा । यूकीयो विश्व के लोगों के लिए सबसे लोकप्रिय जापानी कलाओं में से एक है।
•एमाकिमोनो (Emakimono) जापानी चित्रकारिता का एक अनूठा रूप है। इसे अंग्रेजी में “पिक्चर स्क्रॉल”(Picture scroll) के रूप में अनुवादित किया जाता है। इन चित्रों को क्षैतिज रूप से जुड़े हुए कागज के गठ्ठे पर बनाया जाता है। इस पर सामान्य रूप से अविरत कहानी या दिखाऊ दृश्य चित्रित किए गए थे। यह शैली एक दर्शक के लिए एक किताब पढ़ने जैसी है। दर्शक इसे क्रम से शुरू से अंत तक घुमाते हुए देख सकते हैं। अधिकांश एमाकिमोनो मुख्य रूप से 11वीं से 16वीं शताब्दी के बीच निर्मित किए गए थे।
जापानी कला के बारे में जानते हुए, हमने काले रंग की स्याही के बारे में भी पढ़ा। और इस काली स्याही का इन कलाओं में अत्यधिक महत्व रहा है। हमारे द्वारा उपयोग की जाने वाली सभी चित्रकला सामग्री का एक इतिहास होता है, और उनमें से कुछ तो हमारी कल्पना से बहुत पहले से ही उपयोग में हैं। ऐसा ही ‘भारतीय स्याही’ का भी मामला है, जिसे कुछ देशों में “चीनी स्याही” के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि इसका उपयोग इन देशों में टैटू बनाने से लेकर हास्य कहानियों (Comics) तक के विषयों में किया जाता है। साथ ही इसका अस्तित्व देश के इतिहास से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
भारत की स्याही अस्तित्व में आने वाली सबसे पुरानी चित्रकला सामग्रियों में से एक है। इसकी उत्पत्ति सीधे चीनी वर्णमाला के उद्भव से जुड़ी हुई है। कुछ दस्तावेजों के अनुसार सबसे पुरानी चित्रलिपी रहस्यमई हड्डियों में पाई जाती हैं, जो 1250 ईसा पूर्व में बनाई गई थी। उनमें से कुछ हड्डियों में अक्षर उकेरे गए थे और अन्य हड्डियों ने स्याही के अभिलेख या उत्कीर्णन को संरक्षित किया था। इस प्रकार, स्थापित चीनी वर्णमाला के पहले ऐतिहासिक नमूनों में, हम स्याही के महत्व की सराहना कर सकते हैं।
चीनी शहरों ने कालिख और पानी के मिश्रण से बनी स्याही का उपयोग करते हुए सबसे पहले पहले हजारों साल बिताए थे। 221 ईसा पूर्व में, चीन के पहले सम्राट ने इसे अपने साम्राज्य के निर्माण का एक प्रमुख तत्व बनाया था। स्याही और एक लिखित वर्णमाला, जिसने हजारों नौकरशाहों को भूमि को व्यवस्थित करने की अनुमति दी, ने आज के चीन की नींव रखी। तब से, स्याही हमेशा चीनी राजनीतिक जीवन से अटूट रूप से जुड़ गई । अगर स्याही को हमेशा सरकार के संगठनात्मक प्रयासों से जोड़ा गया है, तो यह स्पष्ट है कि हस्तलिपि के पहले विशेषज्ञ कलाकार या रचनाकार नहीं थे, बल्कि वे नौकरशाह थे।
यह चित्रलिपी वस्तुओं और वास्तविक दुनिया की अवधारणाओं के सरलीकरण से ज्यादा कुछ नहीं थी; इसलिए, जैसे-जैसे सदियां बीतती गईं, नौकरशाहों ने प्रतीकों से परे जाकर वास्तविकता को चित्रित करना शुरू कर दिया।
वही दूसरी ओर, पश्चिम में, भारतीय स्याही विविध कलात्मक विषयों में एक आवश्यक भूमिका निभा रही थी, क्योंकि तब व्यापार मार्ग विकसित हुआ था। प्रत्येक देश ने इसे अपने रीति-रिवाजों और शैलियों के अनुकूल बनाने के लिए इसकी बहुमुखी प्रतिभा का लाभ उठाया है। उदाहरण के लिए, अंग्रेजों ने इसे भारत से आयात किया, और इस वजह से इसका अंग्रेजी नाम ब्लैक इंक (Black INK) भी प्रसिद्ध हो गया ।
लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि इसे किस नाम से बुलाया जाता है। वास्तव में महत्व इस बात का है कि जब भी इस स्याही का उपयोग किया जाता है चाहे वह हास्य कहानियां लिखने के लिए किया जाए या टैटू बनवाने के लिए या फिर चित्रों को उकेरने के लिए किया जाए,स्याही के उपयोग से हजारों साल पुरानी विरासत को और भी समृद्ध बनाया जाता है।
संदर्भ
https://bit.ly/410rlFX
https://bit.ly/3YZBVLy
चित्र संदर्भ
1. प्रसिद्ध जापानी काली स्याही कला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia, flickr)
2. समुराई लड़ाकों के एक प्रिंट को दर्शाता चित्रण (Rawpixel)
3. सुइबोकुगा को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. एक यूकीयो- ऎ चित्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. एमाकिमोनो कला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. कालीघाट पेंटिंग, 19वीं शताब्दी - त्रिविक्रमपद को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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