भारत के संगीत का एक लंबा और आकर्षक इतिहास है। भारत के अन्य देशों से सम्बंध केवल व्यापारिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक भी थे, जिसमें संगीत भी शामिल है। संगीत में मुख्य रूप से दो रागों "यमनी" और "काफ़ी" का विनिमय हुआ जो उनके अरबी मूल को इंगित करते हैं। भारत में संगीत के विकास का श्रेय अमीर खुसरो, नायक गोपाल, इब्राहिम शाह शर्की, तानसेन आदि को दिया जाता है। नायक गोपाल ने प्राचीन ध्रुपद (संस्कृत के छंद) गीतों का प्रतिपादन पुरजोर तरीके से किया। नायक गोपाल ने ध्रुपद का अनुवाद ब्रज भाषा में किया जिससे ब्रज के संगीत का भी प्रचार हुआ। इब्राहिम शाह शर्की ने संस्कृत ग्रंथ संगीत-शिरोमणि का संकलन किया तथा संगीत में संस्कृत भाषा का विकास किया। इसी प्रकार इतिहासकार अबुल-फ़ज़ल के अनुसार संगीत के क्षेत्र में तानसेन जैसा कोई संगीतकार नहीं हुआ। अकबर के शासनकाल को तानसेन का समय कहा जा सकता है। आज गाये जाने वाले सबसे प्रसिद्ध राग तानसेन द्वारा रचे गए थे। जिसमें "मियाँ-की-मल्हार", "मियाँ-की-सारंग", "मियाँ-की-टोडी" और "दरबारी" शामिल हैं।
भारत में संगीत के क्षेत्र में अमीर खुसरो को मुख्य रूप से याद किया जाता है या यूं कहें कि वे हिंदुस्तानी संगीत के पहले महान संगीतज्ञ थे जिनका जन्म 1234 में हुआ था। उनका पूरा नाम अबुल हसन यामीन उद-दीन खुसरो था। दिल्ली के निज़ामुद्दीन औलिया के आध्यात्मिक शिष्य के रूप में उन्होंने जीवन का एक दर्शन विकसित किया जो सरल, मानवीय और सहनशील था। उन्हें "भारत की आवाज़" भी कहा जाता है क्योंकि फ़ारसी कविता की कई शैलियों के साथ-साथ उन्होंने भारत में गीत की गज़ल शैली भी पेश की। हालाँकि खुसरो उत्तर भारत के एटा जिले में पैदा हुए थे लेकिन उनके पूर्वज तुर्क के थे और इसलिए उन्होंने खुद को हिंदू तुर्क कहा। अमीर खुसरो को हिंदवी भाषा का पहला कवि भी कहा जाता है। हिंदवी को अब हिंदी कहा जाता है जो मुख्य रूप से फारसी, अरबी, तुर्की, दिल्ली की खड़ी बोली और इसके आसपास के क्षेत्रों की बोलियों का मिश्रण है। उनके हिंदवी क़लाम के नमूने विभिन्न स्रोतों में पाए जाते हैं जैसे दीबाका-ए-दीवान-ए-घुर्रत-उल-कमाल, निकात-अस-शोआरा, चमनिस्तान-ए-शोआरा आदि। उनके अनुसार भारतीय संगीत वह अग्नि है जो दिल और आत्मा को जलाती है तथा किसी भी अन्य देश के संगीत से बेहतर है। उन्होंने राग के प्रदर्शन में अनुग्रह और लालित्य का परिचय दिया। उन्होनें मौजूदा वीणा को संशोधित कर उसमें सुधार किया। "सरफ़र्दा" और "ज़िलाफ़" जैसे नए रागों का आविष्कारक भी खुसरों को माना जाता है। वे संगीत की तराना शैली के प्रवर्तक भी थे।
अमीर खुसरो की कुछ लोकप्रिय रचनाएं निम्नलिखित हैं:
अम्मा मेरे बाबा को भेजो री
अम्मा मेरे बाबा को भेजो री कि सावन आया
बेटी तेरा बाबा तो बूढ़ा री कि सावन आया
अम्मा मेरे भाई को भेजो री कि सावन आया
बेटी तेरा भाई तो बाला री कि सावन आया
अम्मा मेरे मामू को भेजो री कि सावन आया
बेटी तेरा मामु तो बांका री कि सावन आया
दोहे
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी वा की धार
जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार
सूफी दोहे
रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ।
जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।।
खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।।
चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय।
ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।।
ढकोसले या अनमेलियां
भार भुजावन हम गए, पल्ले बाँधी ऊन।
कुत्ता चरखा लै गयो, काएते फटकूँगी चून।।
काकी फूफा घर में हैं कि नायं, नायं तो नन्देऊ
पांवरो होय तो ला दे, ला कथूरा में डोराई डारि लाऊँ।।
खीर पकाई जतन से और चरखा दिया जलाय।
आयो कुत्तो खा गयो, तू बैठी ढोल बजाय, ला पानी पिलाय।
पहेलियां
बीसों का सर काट लिया
ना मारा ना ख़ून किया
(नाखून)
एक थाल मोती से भरा। सबके सिर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे। मोती उससे एक न गिरे॥
(आकाश)
खेत में उपजे सब कोई खाय।
घर में होवे घर खा जाय॥
(फूट)
शास्त्रीय संगीत में आपने ख़याल गायकी के बारे में भी सुना होगा। ख़याल एक फारसी शब्द है जिसका मतलब होता है कल्पना या विचार। ख़याल गायकी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे पुरानी शैलियों में से एक है जिसे ध्रुपद और ठुमरी के बीच की शैली माना गया है। इसमें जहां राग की शुद्धता होती है वहीं भाव पक्ष पर भी पूरा जोर दिया जाता है। माना जाता है कि खयाल शैली की उत्पत्ति कवि हज़रत अमीर खुसरो ने ही की। शास्त्रीय रागों में प्रचलित इस शैली की पैदाइश को जौनपुरी माना जाता है क्योंकि खुसरो के बाद जौनपुर के सुल्तान मोहम्मद शर्की और हुसैन शर्की ने 14वीं शताब्दी में इस शैली को खूब बढ़ावा दिया। इसके बाद 18वीं शताब्दी में मुगल शासक मोहम्मद शाह रंगीला के दो दरबारी गायकों अदारंग और सदारंग ने इसे विकसित किया। इनके पास ख़याल गायकी की बंदिशों का भंडार था। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ख़याल गायकी राजदरबारों से निकलकर मंच तक पहुंची तथा ग्वालियर, किराना, आगरा, पटियाला और मेवाती घरानों के कलाकारों ने ख़याल गायकी की लोकप्रियता में चार चांद लगा दिए। इसकी कई बंदिशें ब्रज और अवधी में भी हैं। ख़याल गायकी में उस्ताद अमीर खान, बड़े गुलाम अली खान, पंडित भीमसेन जोशी, मल्लिकार्जुन मंसूर, पंडित कुमार गंधर्व जैसे कलाकारों का नाम अमर है।
जौनपुर ने शास्त्रीय संगीत की दुनिया को ख़याल और जौनपुरी जैसे भावपूर्ण राग उपहार स्वरूप दिये हैं। आज ख़याल शास्त्रीय रूपों के सबसे जीवंत और भिन्न रूपों में से एक है जिसने प्रमुख शास्त्रीय और लोक रूपों की विशिष्ट विशेषताओं को अपने स्वेच्छिक अभ्यंतर में आत्मसात किया है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Jq1AIo
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Amir_Khusrow
3. http://aalamekhusrau.com/Hindavi.aspx
4. https://www.amarujala.com/kavya/irshaad/best-five-avdhi-poems-of-amir-khusro
5. https://bit.ly/2XOg1Ps
6. https://bit.ly/2XvUaNy
7. https://bit.ly/2L13uSM
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