माइक्रोवेव ओवन (Microwave Oven) आज हर घर की ज़रूरत बन गया है, क्योंकि इसकी कार्यप्रणाली ही ऐसी है कि कोई इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। कम समय में ही भोजन को गर्म करने या पकाने वाले इस उपकरण ने जहां समय की बचत की वहीं खाना बनाने की प्रक्रिया को भी सरल बनाया।
रसोई में काम आने वाला यह विद्युतीय ओवन माइक्रोवेव आवृत्ति सीमा (फ्रीक्वेंसी रेंज-Frequency Range) में विद्युतचुम्बकीय विकिरण का प्रयोग कर भोजन को गर्म करता या पकाता है। वास्तव में छोटे से पर्याप्त तरंग दैर्ध्य (माइक्रोवेव) के विद्युतचुम्बकीय तरंगों के उत्पादन को एक मैग्नेट्रॉन (Magnetron) के विकास ने संभव बनाया। अमेरिकी ब्यूरो ऑफ लेबर स्टेटिस्टिक्स (Bureau of Labour Statistics) के अनुसार अमेरिका के लगभग 90% घरों में आज माइक्रोवेव ओवन मौजूद है। दो बटनों के स्पर्श के साथ यह सर्वव्यापी उपकरण पानी को उबाल सकता है, बचे हुए खाने को गर्म कर सकता है और पॉपकॉर्न (Popcorn) को भी मात्र कुछ मिनटों में पका सकता है। इसका आविष्कार द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में किया गया। इन उपकरणों द्वारा उपयोग किए जाने वाले विकिरण और महंगे दामों के कारण पहले इसकी लोकप्रियता कम थी लेकिन तकनीक में आये सुधारों की वजह से यह धीरे-धीरे लोकप्रिय होने लगा। लेखक जे. कार्लटन गलावा के अनुसार 2000 के दशक तक अमरीकियों के अनुसार माइक्रोवेव ओवन दुनिया की नंबर 1 तकनीक बन गया था क्योंकि इसने जीवन को आसान बनाया।
इसका आविष्कार भी कुछ आकस्मिक था। दरसल पर्सी स्पेंसर जब रेथियॉन कार्पोरेशन (Raytheon Corporation) में थे तब उन्होंने मैग्नेट्रोन - वैक्यूम ट्यूब (Vacuum Tube) पर काम किया जो कि माइक्रोवेव विकिरण का उत्पादन करती थी तथा रडार सिस्टम (Radar System) में उपयोग की जाती थी। जब स्पेंसर एक मैग्नेट्रॉन का परीक्षण कर रहे थे तो उन्होंने देखा कि उनकी जेब में रखी चॉकलेट (Chocolate) पिघल गयी थी। स्पेंसर ने पॉपकॉर्न कर्नेल सहित अन्य खाद्य पदार्थों का भी परीक्षण किया और पाया कि ये सभी पककर फूल गये थे। स्पेंसर ने महसूस किया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि खाद्य पदार्थ कम घनत्व वाले माइक्रोवेव ऊर्जा के संपर्क में थे। अगली बार उन्होंने एक धातु का डिब्बा बनाया और उसमें माइक्रोवेव विद्युत को सिंचित किया। उन्होंने पाया कि माइक्रोवेव, ऊष्मा का उपयोग करने वाले पारंपरिक ओवन की तुलना में तेजी से भोजन पका सकता है। 1947 में बोस्टन के एक रेस्तरां में पहले व्यावसायिक माइक्रोवेव ओवन का परीक्षण किया गया था। उस वर्ष के बाद रेथियॉन कम्पनी ने रैडारेंज (Radarange) 1161 की पेशकश की जो 1.7 मीटर लंबा और 340 किलोग्राम वज़नी था और इसकी लागत 5,000 डॉलर थी। जैसे-जैसे इसकी तकनीक में सुधार हुआ और कीमतें भी गिरने लगी वैसे-वैसे यह खाद्य उद्योगों में लोकप्रिय होने लगा। कॉफी बीन्स (Coffee Beans) और मूंगफली भूनने, मांस को पकाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाने लगा। माइक्रोवेव की ऊष्मा का उपयोग अन्य उद्योगों जैसे कॉर्क (Cork), मिट्टी के पात्र, कागज़, चमड़े, तंबाकू, वस्त्र, पेंसिल (Pencil), फूल, गीली किताबों और माचिस को सुखाने में भी किया जाने लगा।
इनके बड़े आकार और उच्च लागत के कारण 1955 में उपकरण बनाने वाली एक कंपनी टप्पन (Tappan) ने घरेलू उपयोग के लिए पहला माइक्रोवेव ओवन पेश किया। इसके बाद रेथियॉन (Raytheon) ने अमाना रैडारेंज (Amana Radarange) पेश किया जो रसोई में आसानी से लग सकता था। इसकी कीमत 500 डॉलर से भी कम रखी गयी थी। आंकड़ों के अनुसार 1975 में केवल 4% अमेरिकी घरों में ही माइक्रोवेव ओवन था, 1976 में यह संख्या बढ़कर 14% हुई जबकि आज यहां लगभग 90 प्रतिशत घरों में इसका उपयोग हो रहा है।
माइक्रोवेव के आविष्कारक के जीवन की कथा भी अपने आप में संघर्ष भरी है। जब पर्सी स्पेंसर केवल एक महीने के थे तो उनके पिता की मृत्यु हो गई थी और माँ ने भी उन्हें उनके चाचा के पास छोड़ दिया था। सात साल की आयु में उनके चाचा का भी देहांत हो गया। स्पेंसर ने 12 साल की उम्र में ही अपना विद्यालय छोड़ दिया था तथा करीब 16 साल की उम्र तक एक मिल (Mill) में दिन रात काम किया। उन्होंने कभी भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग (Electronic Engineering) में कोई औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त नहीं किया था लेकिन इसके बाद भी उन्होंने विद्युतीकरण का कार्य सीखा और उसमें निपुण हुए। वायरलेस (Wireless) संचार में भी रूचि होने के कारण उन्होंने अमेरिकी नौसेना में शामिल होने का फैसला किया।
नौसेना के साथ रहते हुए उन्होंने खुद को रेडियो (Radio) तकनीक का विशेषज्ञ बनाया। बाद में उन्होंने स्वयं ही त्रिकोणमिति, कैलकुलस (Calculus), रसायन विज्ञान, भौतिकी, धातु विज्ञान और अन्य विषयों का अध्ययन किया। 1939 में स्पेंसर ने रेथियॉन कम्पनी में बिजली ट्यूब विभाग के प्रमुख के रूप में काम किया।
भारत के परिपेक्ष में माइक्रोवेव ओवन का उपयोग केवल खाना गर्म करने के लिये किया जाता है। अधिकतर भारतीय व्यंजनों को ओवेन में तैयार नहीं किया जा सकता क्योंकि तले जाने के लिए इन्हें कुछ मसालों की आवश्यकता होती है। भारत में अधिकांश गृहिणियों के लिये यह आज अनिवार्य उपकरण बन गया है क्योंकि भोजन को संरक्षित करने के लिये फ्रिज (Fridge) में रखने के बाद वे भोजन को जल्दी से माइक्रोवेव में गर्म कर लेती हैं। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों का यह मानना भी है कि यह खाद्य पदार्थों में मौजूद जीवाणुओं को मारने में भी सक्षम है। हालांकि इसके कुछ हानिकारक प्रभाव भी देखे गये हैं किंतु इस बात में कोई शक नहीं है कि इसने मानव जीवन को बहुत सरल बना दिया है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Microwave_oven
2. https://www.livescience.com/57405-who-invented-microwave-oven.html
3. http://www.todayifoundout.com/index.php/2011/08/the-microwave-oven-was-invented-by-accident-by-a-man-who-was-orphaned-and-never-finished-grammar-school/
4. https://achahome.com/microwave-ovens-in-india/
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://pixabay.com/photos/oven-stove-nostalgia-3505881/
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.