जौनपुर में किसी प्रकार के भी प्रीत भोज से लेकर के अन्य किसी भी प्रकार के भोज के लिए दोना और पत्तल का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता था। प्रत्येक गाँव का अपना एक प्रमुख पत्तल देने वाला परिवार हुआ करता था जिनका प्रमुख काम था चुनित गाँव में किसी भी प्रकार के भोज में पत्तल लेकर जाना। उनके द्वारा बनाये गए पत्तल पर ही सभी लोग खाना खाते थे। जौनपुर में पत्तल बनाने का प्रमुख काम मुशहर जाती के लोग करते हैं। मुशहर एक यायावर जाति है जो कि जंगलों आदि में विचरण करते हैं और वहां से पलाश, साल, ढाक आदि की पत्तियां इकट्ठी करते हैं। इन्ही पत्तियों से वे पत्तल बनाते हैं। आधुनिकता के डंक ने यदि सबसे ज्यादा किसी को डसा है तो ये पत्तल बनाने वालों को। आज जौनपुर में सभी प्रमुखता से बुफ्फे के खाने का इंतज़ाम करने लगे हैं जिसमें थर्माकोल का या प्लास्टिक की थाली और चम्मच प्रयोग में लायी जाती है। यहाँ तक कि पात में बैठा कर खिलाने की परंपरा में भी थर्माकोल के पत्तल और दोने ने एक स्थान ग्रहण कर लिया है। पत्ते के पत्तलों की घटती मांग ने पत्तल बनाने वालों के ऊपर मानो पहाड़ ही तोड़ दिया है।
अब हम बात करते हैं कि पत्ते के पत्तल का क्या महत्व है?
आज वर्तमान काल में पूरा विश्व अनष्ट कचरे की समस्या से जूझ रहा है। जौनपुर शहर के वाजिद पुर तिराहे से लेकर पचहटिया तक बड़े-बड़े कूड़ों के अम्बार हम देख सकते हैं। पत्तल का प्रयोग करने से यह फायदा होता है कि पत्ता किसी भी प्रकार का कोई कचरा नहीं करता और यह जल्द ही मिटटी में मिल कर खाद का निर्माण कर देता है जिसका व्यक्ति खेती में प्रयोग कर सकता है। पत्तल में खाना खाने के स्वास्थ सम्बंधित फायदे भी कई हैं। थर्माकोल, प्लास्टिक और कागज आदि के प्लेट में खाना खाने से बिमारी का भी खतरा रहता है परन्तु पत्ते के बर्तन में खाना खाने से किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होती। आज हम आँखें बंद कर सभी पश्चिमी प्रवृत्तियां अपना रहे हैं क्योंकि हमारे दिमाग में यह बैठा हुआ है कि यदि पश्चिम में किसी चीज़ का पालन हो रहा है तो वह निस्संदेह ही प्रगति का प्रतीक है। परन्तु हमारे बड़े-बुजुर्गों ने कई ऐसी चीज़ों का निर्माण किया था जिनमें कभी कोई सुधार की आवश्यकता ही नहीं थी जैसे पत्ते के बने पत्तल।
पत्तल पर खाना खाने का धार्मिक कारण भी है- जैसा कि भारत में शादियों से लोग पत्ते के पत्तल पर ही खाना खाते चले आ रहे हैं। विभिन्न धर्म ग्रंथों में भी पत्तल पर खाना खाने का निर्देश दिया गया है। वर्तमान में आज भी दक्षिण भारत में केले के पत्ते पर खाना खाने की परम्परा चली आ रही है। पत्ते के पत्तल का प्रयोग बड़े पैमाने पर धन व वातावरण की बचत करता है। पत्तल का प्रयोग साथ ही साथ वैदिक काल से चली आ रही हमारी संस्कृति को भी प्रदर्शित करता है।
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Patravali
2. http://www.jagrantoday.com/2016/05/done-pattal-mein-khana-khane-ka-mahtv.html
3. http://www.dw.com/hi/pattal-the-green-plates-are-dying/a-37040304
4. https://timesofindia.indiatimes.com/city/varanasi/Traditional-pattal-loses-out-to-convenient-plastic/articleshow/11594352.cms
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.