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आइए, आज हम कोलकाता के ऐतिहासिक परिदृश्य की आधारशिला – भारतीय संग्रहालय की मनोरम यात्रा के माध्यम से, भारतीय विरासत और संस्कृति की जीवंत गाथा को समझेंगे। एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल (Asiatic Society of Bengal), के तत्वावधान में 1814 में स्थापित, यह भारतीय उपमहाद्वीप और एशिया व प्रशांत महासागर क्षेत्र में सबसे पुराना और सबसे बड़ा बहुउद्देश्यीय संग्रहालय है। कलाकृतियों के भंडार से अधिक, यह आधुनिकता की शुरुआत और मध्ययुगीन युग से परिवर्तनकाल का प्रतीक है।
प्राचीन अवशेषों से लेकर आधुनिक चमत्कारों तक, आज हम विभिन्न प्रकार के संग्रहालयों का पता लगाएंगे, जिनमें से प्रत्येक संग्रहालय मानवता के अतीत, वर्तमान और भविष्य की एक अनूठी झलक पेश करता है। हमारे शहर जौनपुर में भी, एक वनस्पति विज्ञान संग्रहालय है। जिसकी स्थापना 1956 में हुई थी।
कोलकाता के भारतीय संग्रहालय की स्थापना और विकास का इतिहास, भारत की विरासत और संस्कृति के विकास की दिशा में उल्लेखनीय घटनाओं में से एक है। इस संग्रहालय को 1814 में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के मूल स्थान पर स्थापित किया गया था। भारतीय संग्रहालय न केवल भारतीय उपमहाद्वीप में, बल्कि, दुनिया के एशिया व प्रशांत महासागर क्षेत्र में भी, सबसे पुराना और सबसे बड़ा बहुउद्देशीय संग्रहालय है।
1814 में शुरू हुए इस आंदोलन रूपी संग्रहालय ने, वास्तव में देश की सामाजिक-सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उपलब्धियों की शुरुआत करने वाले एक महत्वपूर्ण युग की शुरुआत की। अन्यथा, इसे आधुनिकता की शुरुआत और मध्यकालीन युग का अंत माना जाता है। भारतीय संग्रहालय की स्थापना के साथ, भारत में संग्रहालय आंदोलन शुरू हुआ, और उसके बाद के वर्षों में इसे एक नई गति मिली। तब से, यह भव्यता से विकसित हुआ है और आज देश में 400 से अधिक संग्रहालयों के उपयोगी अस्तित्व में परिणत हुआ है।
पहली बार “संग्रहालय” इस शब्द का उपयोग,लोरेंजो डी मेडिसी(Lorenzo de Medici) के आधुनिक संग्रहालय रूपी संग्रह का वर्णन करने के लिए, 15वीं शताब्दी में किया गया था। 17वीं शताब्दी तक, यह ओले वर्म(Ole Worm) और जॉन ट्रेडस्केंट(John Tradescant) के संग्रह जैसी जिज्ञासाओं का नाम था। जब 1677 में, जॉन ट्रेडस्केंट का संग्रह एलियास एशमोल(Elias Ashmole) की संपत्ति बन गया, तो इसे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय(University of Oxford) में, इसके लिए विशेष रूप से बनाई गई एक इमारत में स्थानांतरित कर दिया गया। इस इमारत को 1683 में जनता के लिए खोला गया था, और इसका नाम एशमोलियन (Ashmolean)संग्रहालय रखा गया था। इसे जनता के लिए खोला गया, और इसे पहला संग्रहालय भी माना जाता है, जिसका नाम “म्यूज़ियम(Museum)” रखा गया था। यह उस क्षण को चिह्नित करता है, जब “संग्रहालय” केवल वस्तुओं का संग्रह न होकर, एक संस्थान बन गया। और, यह 19वीं और 20वीं शताब्दी के दौरान वैसा ही बना रहा।
समय के साथ संग्रहालयों के कुछ अन्य रूप भी सामने आने लगे, क्योंकि उनमें विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों को रखा जाने लगा। अब तो, खुले व मुक्त संग्रहालय भी हैं, जिनमें इमारतों को वस्तुओं के रुप में संग्रहित किया गया है। इसके अलावा, पर्यावरण संग्रहालय और आभासी संग्रहालय भी हैं, जो इंटरनेट पर केवल इलेक्ट्रॉनिक (electronic) रूप में मौजूद हैं। ऐसे पुरातत्व संग्रहालय भी हैं, जिनमें पुरातात्विक कलाकृतियां हैं। दूसरी ओर, कला संग्रहालय है, जो कला के विभिन्न रूपों को प्रदर्शित करते हैं। साथ ही, विश्वकोश संग्रहालय भी अस्तित्व में है, जो स्थानीय और वैश्विक इतिहास के बारे में जानकारी देते हैं।
ये संग्रहालय आज के तकनीकी रूप से उन्नत समाज के लिए अभी भी प्रासंगिक हैं। संग्रहालय इस संदर्भ में संबंध बनाने में सक्षम होते हैं कि, पहले क्या हुआ करता था; आज चीजें कैसे बदल गई हैं और हम कहां पहुंच सकते हैं। कला संग्रहालय हमें दिखाते हैं कि, अन्य लोग समाज और उसकी आदतों को कैसे देखते हैं।
संग्रहालय की हर चीज़ हमारी पीढ़ी को परिप्रेक्ष्य में रखती है। हम संग्रहालयों से बहुत कुछ सीख सकते हैं। संग्रहालय भी लोगों को इलेक्ट्रॉनिक उपकरण से जुड़े बिना ही, बहुत कुछ सीखने का मौका दे सकते हैं। साथ ही, उन्हें मौखिक रूप से, दूसरों के साथ बातचीत करने की अनुमति दे सकते हैं।
हां, हम आज कुछ भी, इंटरनेट पर जांच सकते हैं, लेकिन, इसे प्रत्यक्ष रूप से देखने पर, हमें पूरी तरह से अलग एहसास प्राप्त होता है। संग्रहालय अभी भी बहुत प्रासंगिक हैं, क्योंकि, कोई ऑनलाइन तस्वीर, किसी वस्तु के साथ न्याय नहीं कर सकती है।
इसके अलावा, किसी संग्रहालय में हम टूर गाइड द्वारा बताई गई जानकारी से, नई जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जो इंटरनेट पर नहीं मिलती है। कहा जाता है कि, जिंदगी को पर्दे के जरिए नहीं जिया जा सकता; वहां से बाहर निकलना, देखना, सूंघना, सुनना और छूना ही जीवन को अर्थ देता है। इसीलिए, संग्रहालयों का निर्माण किया गया है।
जौनपुर को भी एक ऐसे ही अनूठे संग्रहालय का घर माना जाता है। वनस्पति विज्ञान संग्रहालय, हमारे शहर जौनपुर के सर्वश्रेष्ठ संग्रहालयों में से एक है। छात्रों को वनस्पति विज्ञान का अतिरिक्त ज्ञान प्रदान करने के उद्देश्य से, यह संग्रहालय 1956 में बनाया गया था। जनता के लिए, यह संग्रहालय सभी कार्य दिवसों पर, सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
जौनपुर के इस वनस्पति संग्रहालय में आपको विभिन्न प्रकार के पौधे और उनके जीवाश्म देखने को मिल जाएंगे, जिनमें से कुछ पौधे दुर्लभ और अनोखी विशेषताओं वाले है। संग्रहालय में इन सभी नमूनों को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया है, और इस प्रकार से व्यवस्थित किया गया है कि, यह देखने वालों को अपनी ओर आकर्षित करते है। संग्रहालय के परिसर में आवश्यक जानकारी प्रदान करने हेतु, विशेष गाइड भी मौजूद होते हैं। संग्रहालय के भीतर पर्यटकों को किसी भी वस्तुओं की तस्वीरें लेने की अनुमति नहीं है। यहां से आप बस अपने मन में बहुमूल्य ज्ञान और यादों को संजो कर ले जा सकते है।
हमारे, जौनपुर में, एक प्राणी संग्रहालय भी मौजूद है। जौनपुर का प्राणी संग्रहालय, टी. डी. स्कूल द्वारा छात्रों को उन्नत शिक्षा प्रदान करने के लिए बनाया गया था। यह प्राणी संग्रहालय जनता के लिए सभी कार्य दिवसों पर, सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक खुला रहता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/rbaxkhux
https://tinyurl.com/3vh3bw3c
https://tinyurl.com/449tssk9
https://tinyurl.com/42mdrd3v
https://tinyurl.com/mu8shmry
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के वनस्पति विज्ञान संग्रहालय को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. कोलकाता के भारतीय संग्रहालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. लोरेंजो डी मेडिसी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्रदर्शनी पार्क लॉस एंजिल्स को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. इसाबेला स्टीवर्ट गार्डनर संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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