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रावण का पसंदीदा वाद्ययंत्र रावणहत्था जी20 में आए वैश्विक नेताओं को भी भा गया

मेरठ

 11-11-2023 10:34 AM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

हम इसे रावण की अच्छाई तों नहीं कहेंगे, लेकिन रावण वास्तव में वेदों का प्रकांड ज्ञाता होने के साथ-साथ, संगीत की भी बहुत अच्छी समझ रखता था। आपको जानकर हैरानी होगी कि रावण के राज्य में एक ऐसे अनोखे वाद्ययंत्र की खोज हुई, जिसका उपयोग करने से आधुनिक संगीत में प्राण प्रतिष्ठित हो जाते हैं। इसी वाद्ययंत्र का प्रयोग वह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भी करता था।
“रावणहत्था” को “रावणस्त्रोण” या “रावण हस्त वीणा” के नाम से भी जाना जाता है। रावणहत्था एक झुके हुए आकार का प्राचीन वाद्य यंत्र होता है, जिसे सदियों से भारत, श्रीलंका और अन्य पड़ोसी क्षेत्रों में बजाया जाता रहा है। कुछ लोग इसे आधुनिक वायलिन का पूर्वज भी मानते हैं। रावणहत्था का ढांचा खोखली लौकी, नारियल के खोल, या खोखली लकड़ी के सिलेंडर से बनाया जा सकता है। खोकली की गई लौकी या कद्दू का उपयोग सदियों से संगीत वाद्य यंत्रों के निर्माण में किया जाता रहा है। इन्हें अक्सर वाद्य यन्त्र को हल्का रखने और ध्वनि को बढ़ाने के लिए अनुनादक के रूप में उपयोग किया जाता है। इसके अलावा रावणहत्था बकरी या अन्य जानवरों की खाल की फैली हुई झिल्ली से ढका होता है। इस वाद्य यंत्र की गर्दन, लकड़ी या बांस से बनी होती है और इसमें आम तौर पर एक से चार तार होते हैं, जो आंत, बाल या स्टील से बने हो सकते हैं। कुछ रावणहत्थों में सहानुभूतिपूर्ण तार (sympathetic strings) भी होते हैं, जो बजाए गए तारों की प्रतिक्रिया में कंपन करते हैं। रावणहत्था घोड़े के बाल से बने धनुष के आकार वाले ढांचे से बजाया जाता है। धनुष की लंबाई वाद्ययंत्र के आकार और वादक की पसंद के आधार पर भिन्न हो सकती है। यह वाद्य यंत्र एक मनमोहक, अलौकिक ध्वनि उत्पन्न करता है जिसका उपयोग अक्सर पारंपरिक भारतीय संगीत में किया जाता है। रावणहत्था एक समय पश्चिमी भारत और श्रीलंका में एक लोकप्रिय वाद्ययंत्र हुआ करता था, लेकिन अब यह अपेक्षाकृत दुर्लभ हो चला है। हालाँकि, अभी भी कुछ संगीतकार हैं जो इस पारंपरिक वाद्ययंत्र को बजाना पसंद करते हैं। रावणहत्था एक अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व वाला वाद्ययंत्र है। माना जाता है कि इसकी उत्पत्ति श्रीलंका में हेला लोगों के बीच लंकापति रावण के काल में हुई थी। इसे भारत के मध्ययुगीन इतिहास में भी शाही संरक्षण प्राप्त था, जिसने रावणहत्था की लोकप्रियता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजस्थान और गुजरात में, राजकुमारों को अक्सर रावणहत्था बजाना सिखाकर ही संगीत की शिक्षा दी जाती थी। राजस्थान की संगीत परंपरा ने भी महिलाओं के बीच रावणहत्था को लोकप्रिय बनाने में मदद की। कुछ ऐतिहासिक वृत्तांतों से पता चलता है कि अरब व्यापारी सातवीं और दसवीं शताब्दी ईस्वी के बीच रावणहत्था को भारत से निकट पूर्व तक ले गए थे। इस उपकरण ने अरब रिबाब और वायलिन परिवार के अन्य प्रारंभिक पूर्वजों के विकास की नींव के रूप में कार्य किया। किवदंतियों के अनुसार भगवान शिव का परम भक्त रावण भगवान् शिव को प्रसन्न करने के लिए रावणहत्था का प्रयोग करता था। राम और रावण के बीच महाकाव्य युद्ध के बाद, पवनपुत्र हनुमान एक रावणहत्था को उत्तर भारत में वापस ले आए, जिससे इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और मजबूत हो गई। इस वाद्य यंत्र की विरासत राजस्थान में कायम है, जहां यह संगीत परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है।
भारत से, रावणहत्था ने पश्चिम की भी यात्रा की जो इसे मध्य पूर्व और यूरोप तक ले गई, जहां 9वीं शताब्दी तक इसे 'रावण स्ट्रॉन्ग (Ravana Strong)' नाम से जाना जाने लगा। श्रीलंकाई संगीतकार और वायलिन वादक दिनेश सुबासिंघे के प्रयासों की बदौलत हाल के वर्षों में रावणहत्था की लोकप्रियता काफी बढ़ी है। उन्होंने इस वाद्ययंत्र को अपनी कई रचनाओं में शामिल किया है, जिनमें "रावण नाद" और बौद्ध वक्ता "करुणा नदी" शामिल हैं। दिनेश सुबासिंघे के रावणहत्था को कनाडाई उपन्यासकार (canadian novelist) और कवि माइकल ओंडाते( J is silent in many languages) (Michael Ondaatje) से भी प्रशंसा मिली है, जिन्होंने अपने उपन्यास "द इंग्लिश पेशेंट (The English Patient)" के लिए बुकर पुरस्कार (Booker prize) जीता था। ओंदाते ने रावणहत्था को "इतिहास का पहला वायलिन" बताया है। पिछले महीने भारत में आयोजित जी20 समिट के दौरान भी भारत की राष्ट्रपति द्रौपती मुर्मू जी के द्वारा वैश्विक नेताओं के लिए रखे गए एक विशेष रात्रिभोज में रावणहत्था और रुद्र वीणा जैसे प्राचीन शास्त्रीय वाद्ययंत्रों के साथ संगीत का प्रदर्शन किया गया था। यह औपचारिक रात्रिभोज नई दिल्ली में जी20 लीडर्स समिट (G20 Leaders Summit) के भारत मंडपम स्थल में आयोजित किया गया, जिसमें भारत की समृद्ध संगीत विरासत का जश्न मनाया गया और संगीत की शास्त्रीय तथा समकालीन शैलियों का अनोखा मिश्रण देखा गया। यह कार्यक्रम गंधर्व आराध्यम समूह द्वारा "भारत वाद्य दर्शनम" या "म्यूजिकल जर्नी ऑफ इंडिया (Musical Journey of India)" शीर्षक से प्रदर्शन प्रस्तुत किया गया था। इस तीन घंटे के प्रदर्शन में रावणहत्था और रुद्र वीणा जैसे प्राचीन संगीत वाद्ययंत्रों के साथ-साथ तबला और पियानो भी बजाये गए थे।

संदर्भ
https://tinyurl.com/mpatzkxc
https://tinyurl.com/3ptzakz4
https://tinyurl.com/ubx6cjcs

चित्र संदर्भ
1. दिनेश सुबासिंघे, महिंदा राजपक्षे को रावणहत्था का अपना नया संस्करण दिखा रहे हैं, इस दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
2. कासा म्यूजियो डेल टिम्पल, लैंजारोटे, स्पेन में भारतीय "रावणहत्था" वाद्ययंत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
3. भारत के जैसलमेर में रावणहत्था बजाते हुए आदमी को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)
4. रावणहत्था के साथ राजस्थानी लोक गायक को दर्शाता एक चित्रण (wikipedia)

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