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हमारे भारत में लगभग 1400 से अधिक तितली प्रजातियों को देखा जा सकता है। लेकिन इनमें से कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर खड़ी हैं। किंतु क्या आप जानते हैं कि यदि यह नन्हा सा शानदार कीट हमारी धरती से गायब हो गया, तो इस विलुप्ति के कितने विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं?
शोधकर्ताओं के अनुसार भारत में तितली की 35 प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं, जिसके पर्यावरण और कृषि पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। तितलियाँ परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और उनके बिना, सेब तथा कॉफ़ी सहित कई पौधों की प्रजातियाँ प्रजनन के लिए संघर्ष करने लगेंगी, जिससे उनकी संख्या में भी गिरावट आ जाएगी।
प्रदूषण, कीटनाशकों का उपयोग, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन जैसे कारक, तितली आबादी के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature) ने भारत में 35 तितली प्रजातियों को गंभीर रूप से लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया है, जबकि 43 प्रजातियों को तो लुप्तप्राय माना जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations, UN) का खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricultural Organization, FAO) भी इस बात पर जोर देता है कि दुनिया की 75% कृषि के लिए परागण बेहद आवश्यक है। यदि तितलियाँ विलुप्त हो जाती हैं, तो यह न केवल पौधों को बल्कि अन्य जीवों को भी प्रभावित करेगा जो भोजन स्रोत के रूप में तितली के लार्वा और प्यूपा (larva and pupa) पर निर्भर हैं। तितली संघ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले 20 से 100 वर्षों की अवधि में पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में तितलियों की 64 प्रजातियाँ गायब हो गई हैं। तितली ट्रस्ट के संस्थापक निदेशक संजय सोंधी के अनुसार वन विभाग के सर्वेक्षण के दौरान, उन्होंने 130 साल पुराने दस्तावेजों का अध्ययन किया और पाया कि ये 64 तितली प्रजातियां अलग-अलग समय सीमा के दौरान गायब हो गई थीं।
सोंधी ने प्रजातियों के नुकसान के लिए विभिन्न कारकों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने, जहां ये तितलियां अपने अंडे देती थीं, उन विशिष्ट पेड़ों के गायब होने और तितलियों के निवास स्थान के नुकसान के बीच एक संबंध पाया। इसके अतिरिक्त, कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने भी इस विलुप्ति में बड़ा योगदान दिया। इस संबंध में जंगल की आग भी एक बड़ा कारक साबित हुई, क्योंकि इसने तितली के जीवन चक्र के सभी तीन चरणों - अंडे, कैटरपिलर (caterpillar) और प्यूपा को नष्ट कर दिया। साथ ही जलवायु परिवर्तन को भी गिरावट का एक महत्वपूर्ण कारण माना गया।
उत्तराखंड में रहने वाले तितली विशेषज्ञ पीटर स्मेटाचेक (Peter Smetacek) का मानना है कि तितली की कई प्रजातियाँ पिछले 200 वर्षों से नहीं देखी गई हैं। हालांकि, तितली प्रजातियों के विलुप्त होने की पुष्टि के लिए जंगल में अधिक व्यापक शोध की आवश्यकता है। दुर्भाग्य से, 1972 के बाद से कीड़ों पर कोई व्यापक सर्वेक्षण नहीं किया गया है। सोंधी ने बताया कि इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की भारी कमी है, जिसके कारण तितलियों पर शोध भी बहुत कम हो रहे हैं। तितली की कुछ प्रजातियां जिन्हें लुप्त माना जाता है उनमें टाइगर हॉपर (Tiger Hopper), ब्लैक प्रिंस (Black Prince), ग्रेट येलो सेलर (Great Yellow Sailor), फॉरेस्ट हॉपर (Forest Hopper) और स्क्वायर वॉल (Square Wall) आदि शामिल हैं।
हालांकि इस समस्या के समाधान के लिए, भारत सरकार तितली की आबादी को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है। इसके तहत देश भर में तितली पार्क (Butterfly Park) स्थापित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र सहित कुछ राज्य पहले ही ऐसे पार्क स्थापित कर चुके हैं। इन पार्कों में, तितली की कई प्रजातियाँ देखी गई। सरकार ने तितलियों सहित लुप्तप्राय प्रजातियों की सुरक्षा के लिए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम भी बनाया है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के माध्यम से हिमालय क्षेत्र में दुर्लभ और लुप्तप्राय तितली प्रजातियों के संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं। हालाँकि प्रगति के बावजूद भी भारत में तितली आबादी की सुरक्षा के लिए और बड़े पैमाने पर शोध और संरक्षण उपाय लागू करना जरूरी है।
तितलियों से जुड़ा तितली प्रभाव या बटरफ्लाई इफ़ेक्ट (Butterfly Effect) एक ऐसा शब्द है, जो बताता है कि छोटे-छोटे परिवर्तन भी कैसे बड़े प्रभाव डाल सकते हैं। इसका मतलब है कि एक जटिल प्रणाली में छोटे-छोटे बदलाव ऐसे परिणाम दे सकते हैं जिनकी भविष्यवाणी करना असंभव है। उदाहरण के लिए, तितली के पंखों के फड़फड़ाने से हवा में छोटे-छोटे बदलाव हो सकते हैं, जिससे लंबे समय में मौसम की चरम स्थिति पैदा हो सकती है।
यह विचार 1890 से चला आ रहा है, लेकिन इसे 1961 में अधिक व्यापक रूप से स्वीकार किया गया जब एडवर्ड लॉरेंज (Edward Lorenz) नामक मौसम विज्ञानी ने मौसम के पैटर्न का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि छोटे-छोटे बदलाव भी मौसम पर बड़ा असर डाल सकते हैं। बटरफ्लाई इफ़ेक्ट, साल 1972 में सामने आया जब लॉरेन्ज ने एक भाषण दिया जिसमें पूछा गया कि क्या ब्राज़ील (Brazil) में एक तितली का पंख फड़फड़ाने से टेक्सास (Texas) में बवंडर आ सकता है?
यदि तितलियाँ गायब हो गईं, तो यह न केवल उन बच्चों के लिए बुरी खबर होगी जो उनसे इतने आकर्षित होते हैं, बल्कि इसका हमारे पर्यावरण पर भी बड़ा प्रभाव पड़ेगा। कई फूल और तितलियाँ जीवित रहने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इसलिए इनमे से एक भी प्रजाति के विलुप्त होने से एक श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया हो सकती है जो हमें भी प्रभावित करती है। अतीत में जीवों के विलुप्त होने की पांच बड़ी घटनाएं हुई हैं, जिससे हर बार पृथ्वी पर जीवन का एक बड़ा हिस्सा नष्ट हो गया। कई वैज्ञानिकों का मानना है कि हम मनुष्यों के कारण होने वाली छठी विलुप्ति की घटना होने वाली हैं, और हम स्वयं को नष्ट करने पर तुले हुए हैं।
चलिए नकारात्मक बातों के बजाय, इस पर ध्यान केंद्रित करें कि हम तितली प्रभाव का सकारात्मक तरीके से उपयोग कैसे कर सकते हैं। भले ही पर्यावरणीय परिवर्तन अपरिहार्य हो सकते हैं, लेकिन फिर भी हम बदलाव ला सकते हैं। आज लाखों लोग मिलकर जो छोटे-छोटे बदलाव करते हैं, वे आने वाले वर्षों में हम पर बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं। अभी कार्रवाई करके, हम अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकृति को बचा सकते हैं।
पर्यावरण के अनुकूल विकल्प चुनना कोई बलिदान नहीं है। वास्तव में, यह हमारा समय और पैसा दोनों बचा सकता है। बोतलबंद पानी खरीदने के बजाय घरेलू पानी फिल्टर का उपयोग करना, ऊर्जा-कुशल प्रकाश बल्बों पर स्विच करना और दूरसंचार जैसी सरल क्रियाएं हमें पैसे बचाने के साथ-साथ हमारे इस ग्रह या एकमात्र घर को भी बचा सकती हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2p8jm7zx
https://tinyurl.com/p4ade3vr
https://tinyurl.com/anjdu7b5
चित्र संदर्भ
1. एक मृत तितली को दर्शाता चित्रण (Pixabay)
2. जमीन पर बैठी तितलियों को दर्शाता चित्रण (Pexels)
3. मृत तितली को देखती जीवित तितली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. झुण्ड में बैठी तितलियों को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. तितलियों के पार्क को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. बटरफ्लाई इफ़ेक्ट को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
7. लॉरेन्ज़ अट्रैक्टर में तितली प्रभाव को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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