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शिक्षा का केंद्र होने के बावजूद मेरठ में शिक्षा की गुणवत्ता एक बड़ी चिंता का विषय

मेरठ

 12-06-2023 09:29 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

हमारे जिले मेरठ को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का “शिक्षा केंद्र” माना जाता है। जिले में 4 विश्वविद्यालय, 80 तकनीकी-पेशेवर कॉलेज, 150 शैक्षणिक महाविद्यालय और 2 मेडिकल महाविद्यालय (Medical college) मौजूद हैं। इसके अलावा जिले में 380 से अधिक विद्यालय भी हैं। लेकिन इसके बावजूद, मेरठ सहित राज्य के अन्य जिलों, या विशेषतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर निराशाजनक ही रहा है!
मेरठ में शैक्षणिक संस्थानों की संख्या हर साल बढ़ रही है, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय बनी हुई है। दिल्ली की सीमा तक उत्तर प्रदेश के 900 महाविद्यालयों को मान्यता देने वाला ‘चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय’ (Chaudhary Charan Singh University (CCSU) अपना विस्तार नहीं कर पा रहा है। अभी भी बहुत से महाविद्यालय, विश्वविद्यालय से संबद्धता की कतार में हैं। महाविद्यालयों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण विश्वविद्यालय सभी पर उचित निगरानी नहीं रख पा रहा है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। सीसीएसयू विश्वविद्यालय सालाना तकरीबन 150,000 छात्रों को उपाधि प्रदान करता है, लेकिन विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से निकले, स्नातकों के लिए रोजगार के पर्याप्त अवसर ही नहीं हैं। हालांकि, कुछ महाविद्यालय शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने की कोशिश जरूर कर रहे हैं। ‘डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम तकनीकी विश्वविद्यालय’ (Dr. A. P. J. Abdul Kalam Technical University) जैसे कई तकनीकी महाविद्यालय पिछले तीन वर्षों से अपनी सीटें नहीं भर पा रहे हैं। कुछ महाविद्यालयों ने प्लेसमेंट (placement) अर्थात नौकरियों को लेकर भी पारदर्शिता नहीं बरती है। हालांकि, कुछ महाविद्यालय समय तथा उद्योग की मांग के अनुसार छात्रों को तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं। उच्च शिक्षा के तहत शिक्षक-छात्र अनुपात भी असंतुलित नजर आ रहा है। छात्रों की संख्या कम होने के कारण कई निजी विद्यालयों में केवल आठ छात्रों को एक शिक्षक द्वारा पढाया जा रहा है, जबकि अन्य सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में केवल एक शिक्षक द्वारा 87 छात्रों को पढाया जा रहा है। निजी विद्यालयों में भी केवल कुछ ही चुनिंदा विद्यालयों ने शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखी है, लेकिन इन निजी विद्यालयों की फीस बहुत अधिक होती है। शहर में तीन केन्द्रीय विद्यालय भी हैं, जो अच्छी शिक्षा प्रदान करते हैं। सरकारी विद्यालयों के हाल तो और भी अधिक दयनीय हैं। कुछ विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त होने के बावजूद, छात्र अक्सर अनुपस्थित रहते हैं। वहीँ अधिक छात्रों वाले ग्रामीण विद्यालयों में शिक्षकों का भारी अभाव हैं, और कुछ ग्रामीण विद्यालय तो केवल एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं। कई विद्यालयों के भवनों की हालत बेहद जर्जर हो गई है। हर साल शिक्षक पदों पर नई नियुक्तियों की कमी और शिक्षकों के सेवानिवृत्त होने से, माध्यमिक और बुनियादी शिक्षा में भी शिक्षक-छात्र अनुपात बिगड़ता जा रहा है।
मेरठ के शिक्षा संस्थानों में कानून व्यवस्था बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है। छात्रों के बीच संघर्ष के कारण, विद्यालयों से लेकर महाविद्यालयों तक, छात्राओं की सुरक्षा को लेकर चिंता भी बढ़ गई है। यह समस्या सीसीएसयू परिसर में भी है। इन सभी समस्याओं के कारण मेरठ के शिक्षा संस्थान अपनी बनी बनाई साख खो रहे हैं और अब मेरठ से कई प्रतिभाशाली छात्र बड़ी संख्या में हर साल दिल्ली और अन्य शहरों में प्रवास करने जा रहे हैं। मेरठ के अलावा उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले में 49 गाँव ऐसे हैं, जहां प्रति किलोमीटर के दायरे में कोई भी प्राथमिक विद्यालय नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां की आबादी 300 से कम है। और नियमों के अनुसार 300 से कम आबादी वाले गाँवों में विद्यालय नहीं खोला जा सकता है। लेकिन इसका परिणाम यह हुआ कि लगभग 500 बच्चे अपने घरों में बैठे हैं, और उनमें से 50 तो कभी स्कूल गए ही नहीं। शेष बच्चों को भी दूसरे गांवों में विद्यालय जाने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। सरकार के आदेश के अनुसार प्राथमिक विद्यालयों को प्रत्येक 1 किमी के दायरे के भीतर, और उच्च प्राथमिक विद्यालयों को प्रत्येक 3 किमी के दायरे के भीतर होना चाहिए। लेकिन ये नियम 300 से कम आबादी वाले गांवों पर लागू नहीं होते हैं, इसलिए ऐसे गांवों में विद्यालय नही खुल पा रहे हैं। हालांकि, यहां के मकरोनिया, अमनगढ़ और झूलन खट्टा जैसे कुछ गांवों की आबादी 300 से अधिक है, लेकिन वे घने वन क्षेत्रों में बसे हैं, जहां विद्यालय बनाना बहुत मुश्किल है। इन गांवों में 150 से अधिक बच्चे हैं, लेकिन उनमें से कई ठीक से पढ़ या लिख नहीं सकते। बाकी लोग लंबी दूरी तय कर जंगल से बाहर पढ़ने जाते हैं। मुस्लिम बहुल गांवों के बच्चे अपना बचपन घने जंगलों और मवेशियों की देखभाल में ही बिता देते हैं। उनमें से कुछ तो जीविकोपार्जन के लिए दूध भी बेचते हैं। बिजनौर के ये गांव जंगलों के पास या नदियों के किनारे दूरदराज के इलाकों में बसे हैं। इन घने जंगलों के बीच जो बच्चे स्कूल जाते भी हैं, उन्हें घने जंगलों में मौजूद बाघ और हाथी जैसे जंगली जानवरों का सामना करना पड़ता है, जिस कारण बच्चे डर जाते हैं। इन गांवों में विद्यालयों का न होना उन बच्चों के भविष्य के साथ-साथ, उनकी जान से भी खिलवाड़ करने जैसा है। चौंकाने वाली बात यह है कि पूरे भारत में लगभग 95 मिलियन से अधिक बच्चे ऐसे हैं जो विद्यालय नहीं जाते हैं, जिनमें से अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। लड़कों की तुलना में अधिक लड़कियां बुनियादी शिक्षा से वंचित हैं। ऊपर से शिक्षा का स्तर तो पूछिए मत! छठी कक्षा में पहुचने के बाद भी, आधे से ज्यादा छात्र तीसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तक नहीं पढ़ सकते हैं, या गणित की बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर सकते हैं।
इन सभी चुनौतियों से पार पाने के लिए, केवल साक्षरता दर बढ़ाने पर ध्यान देने के बजाय, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता देने की जरूरत है। युवाओं को ऐसी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए, जो उनके दैनिक जीवन में उपयोगी हो। दूरस्थ क्षेत्रों में शिक्षा व्यवस्था, शहरी क्षेत्रों की तुलना में काफी खराब है, इसलिए सरकार को भारत में ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा में सुधार के लिए कदम उठाने की जरूरत है।
ग्रामीण शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
१. मुफ्त शिक्षा प्रदान करना: शिक्षा मुफ्त होने पर माता-पिता अपने बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए अधिक उत्सुक होंगे। सरकार को कम आय वाली पृष्ठभूमि के छात्रों को पाठ्य पुस्तकें, पुस्तकालय सुविधाएं और प्रयोगशाला सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए।
२. स्कूल के बुनियादी ढांचे में सुधार: ग्रामीण विद्यालयों में उचित बुनियादी ढांचे और अच्छी तरह से प्रशिक्षित शिक्षकों की भारी कमी है। छात्र-शिक्षक अनुपात भी गड़बड़ा गया है, जिसके परिणामस्वरूप शिक्षा की गुणवत्ता कमजोर हो रही है। अतः मजबूत शैक्षिक नींव तभी बनाई जा सकती है जब स्कूलों का बुनियादी ढांचा सुरक्षित हो।
३. नवीन शिक्षण तकनीकें अपनाना: ग्रामीण विद्यालयों के संचालक अभी भी पारंपरिक शिक्षा प्रणाली पर भरोसा करते हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में नई शिक्षण विधियों की शुरुआत हो गई है। अतः ग्रामीण क्षेत्रों में भी नई शिक्षण विधियों को अपनाने की आवश्यकता है ।
४. कंप्यूटर प्रवीणता को बढ़ावा देना: ग्रामीण क्षेत्र तकनीकी प्रगति में काफी पिछड़े हुए हैं, जिससे एक डिजिटल (Digital) विभाजन पैदा हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यालयों को इस अंतर को पाटने के लिए कंप्यूटर साक्षरता और तकनीकी शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में स्मार्ट क्लास (smart class) और आधुनिक सुविधाओं की कमी नजर आती हैं। एक ओर निजी विद्यालयों में जहां छात्रों के पास वातानुकूलित कक्षाएँ, वाई-फाई (Wi-Fi) परिसर और लैपटॉप (Laptops) उपलब्ध हैं, वहीं सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में पर्याप्त शिक्षकों, उचित कक्षाओं, छात्र एवं छात्राओं के लिए अलग शौचालयों, पीने के पानी, चाक और डस्टर (Chalk and Duster) तथा बिजली जैसी बुनियादी ज़रूरतों का भी अभाव है।
इन विद्यालयों में पढ़ाने का तरीका भी पुराना है, जहाँ आज भी छात्र टाट-पट्टी पर बैठते हैं। शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए छात्रों को स्कूल परिसर से बाहर जाना पड़ता है। वे पेयजल के लिए हैंडपंप (hand pump) पर निर्भर हैं। इन सभी अव्यवस्थाओं को देखकर प्रतीत होता है कि सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बड़े सुधार लाने के लिए अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है। हालांकि, इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, ‘भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान’ (Indian Institute of Technology (IIT) कानपुर ने उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने हेतु ‘ऑनलाइन ग्रामीण शिक्षा पहल’ (Online Rural Education Initiative (OREI) नामक एक कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम भारत सरकार के ‘उन्नत भारत अभियान’ (Unnat Bharat Abhiyan) कार्यक्रम से जुड़ा हुआ है। इस प्रतिष्ठित संस्थान ने हाल ही में दो विद्यालयों (कानपुर में राम जानकी इंटर कॉलेज और लखनऊ में भारतीय ग्रामीण विद्यालय) में एक पायलट कार्यक्रम (Pilot program) भी शुरू किया। इस कार्यक्रम का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि प्रत्येक बच्चे तक, चाहे वह कहीं भी रहता हो, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा की पहुंच हो। उत्तर प्रदेश शिक्षा विभाग भी इस परियोजना का समर्थन कर रहा है और इसे सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में लागू करने पर विचार कर रहा है। यह कार्यक्रम जल्द ही 100 ग्रामीण विद्यालयों में विस्तारित किया जाएगा और अंततः राज्य के सभी विद्यालयों में लागू किया जाएगा। इसी क्रम में उत्तर प्रदेश सरकार मुख्य सचिव, दुर्गा शंकर मिश्र, ने हाल ही में लखनऊ के ‘राजकीय यूपी सैनिक इंटर कॉलेज’ (Government UP Sainik Inter College) में भी ‘पहल' नामक इस ऑनलाइन शिक्षा कार्यक्रम का शुभारंभ किया। यह कार्यक्रम भी आईआईटी कानपुर के सहयोग से माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा विकसित किया गया है। इस कार्यक्रम के पहले चरण में, राज्य भर के 10 ग्रामीण सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में छात्रों को मुफ्त ऑनलाइन शिक्षा प्रदान की जाएगी। मुख्य सचिव के अनुसार, यह ऑनलाइन ग्रामीण शिक्षा कार्यक्रम एक सकारात्मक कदम है। यह ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों को विज्ञान और गणित की नवीनतम जानकारी देने में मदद करेगा।

संदर्भ

https://shorturl.at/FHP05
https://shorturl.at/mqvHT
https://shorturl.at/bPTZ7
https://shorturl.at/CWX48
https://shorturl.at/eELV7
https://shorturl.at/giJT4
https://shorturl.at/oKLOX

 चित्र संदर्भ
1. एक खाली कक्षा को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के गेट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. विद्यालय प्रांगण में खेलते छात्रों को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
4. कक्षा में बैठे बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (Pxfuel)
5. कूड़ा एकत्र करती छोटी बच्ची को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
6. एक भारतीय स्कूल में चल रही कक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण ( Rawpixel)
7. एक स्मार्ट क्लास को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. लैपटॉप चलाते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)

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