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कब और किन उद्देश्यों के साथ हुई, अवध और रोहिलखंड में मेथोडिस्ट मिशन की स्थापना

मेरठ

 07-04-2023 10:16 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

ईसाई समाज में यीशु मसीह (Jesus Christ) के संदेशों, प्रेम और अनुग्रह का प्रसार करना प्रत्येक ईसाई का एक अहम् कर्तव्य माना जाता है। विलियम बटलर (William Butler) और क्लेमेंटीना रो (Clementina Rowe), जो कि अपने दौर के अग्रणी मेथोडिस्ट मिशनरी दंपति (Methodist Missionary Couple) माने जाते थे, ने अपने इस कर्तव्य का तत्परता से निर्वाह करते हुए भारत में मेथोडिस्ट मिशन (Methodist Mission) के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक न्याय और करुणा के प्रति बटलर की प्रतिबद्धता ने उन्हें भारत में भी एक लोकप्रिय शख्सियत बना दिया।
19वीं सदी के उत्तरार्ध में विलियम बटलर, जो मूल रूप से आयरलैंड (Ireland) के मिशनरी थे, धर्म परिवर्तन कर वेस्लीयन चर्च (Wesleyan church) में शामिल हो गए थे । वे अपने धार्मिक विश्वासों को फैलाने और जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए अक्सर दूसरे देशों में जाते रहते थे। 1850 में बटलर अमेरिका (America) चले गए, जहाँ उन्होंने क्लेमेंटीना रो से शादी की । 1856 में, अमेरिकी मेथोडिस्ट कार्य के संस्थापक के रूप में बटलर भारत आए और फिर यहां उन्होंने मेथोडिस्ट मिशन की शुरुआत की। मेथोडिस्ट चर्च (Methodist Church) भारत में प्रोटेस्टेंट ईसाई संप्रदाय द्वारा चलाए जाने वाले चर्च हैं । भारत में इनकी शुरुआत अमेरिकी मेथोडिस्ट्स (American Methodists) द्वारा की गई थी जो काफी समय पहले भारत आए थे। यह ब्रिटेन (Britain) और ऑस्ट्रेलिया (Australia) के अन्य मेथोडिस्ट चर्चों से अलग हैं, जो दक्षिण और उत्तर भारत के अन्य चर्चों के साथ विलय कर चुके हैं। भारत में मेथोडिस्ट चर्च का अपना एक अलग स्वायत्त चर्च है, लेकिन यह यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च (United Methodist Church) से भी जुड़ा हुआ है। इसके नेताओं को बिशप (Bishops) कहा जाता है।
1856 में अमेरिका से मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च (Methodist Episcopal Church) ने भारत में धार्मिक कार्य करना शुरू किया। विलियम बटलर भारत आनेवाले पहले मेथोडिस्ट मिशनरी थे, जिन्होंने सबसे पहले अवध और रोहिलखंड के क्षेत्रों में काम करना शुरू किया, लेकिन उन्हें बाद में बरेली जाना पड़ा क्योंकि उन्हें लखनऊ में रहने के लिए जगह नहीं मिली। हालांकि, स्वतंत्रता के पहले युद्ध के कारण बरेली में कुछ समय के लिए काम रुक गया। लेकिन जैसे ही 1858 में ब्रिटिश सेना द्वारा लखनऊ पर कब्जा होने के साथ साथ बरेली पर फिर से कब्जा हुआ, मिशन का काम फिर से शुरू हो गया। 1864 तक मिशन का काम काफी बढ़ गया और मिशन को ‘भारत मिशन सम्मेलन’ के नाम से आयोजित किया जाने लगा । मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च ने भारत के विभिन्न शहरों जैसे मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, कानपुर और बैंगलोर में चर्चों की स्थापना की और विशेष पुनरुद्धार बैठकें आयोजित कीं, जिससे चर्च को बढ़ने में मदद मिली और इसे राष्ट्रीय दर्जा प्राप्त हुआ ।
1870 में, विलियम टेलर को भारत में विशेष पुनरुद्धार बैठकें आयोजित करने के लिए आमंत्रित किया गया । उन्होंने अपना काम लखनऊ में शुरू किया और बाद में वे कानपुर चले गए। उनके आने के बाद पूरे दक्षिणी एशिया में मिशन के काम का विस्तार हुआ और कई शहरों में मेथोडिस्ट मंडलियां स्थापित हुईं।
बाद के वर्षों में, मिशन का काम बढ़ता रहा और विभिन्न क्षेत्रों में कई वार्षिक सम्मेलन आयोजित किए गए। मिशन का काम भारत से बाहर बर्मा (Burma), मलेशिया (Malaysia) और फिलीपींस (Philippines) जैसे अन्य देशों में भी फैल गया।
1920 में, भारत में मिशनरी कार्यों की देखरेख के लिए ‘मेथोडिस्ट मिशनरी सोसाइटी’ (Methodist Missionary Society) की स्थापना की गई और 1930 मे, दक्षिणी एशिया में आयोजित हुए केंद्रीय सम्मेलन में पहले राष्ट्रीय बिशप का चुनाव किया गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद से, जितने भी बिशप नियुक्त किए गए वे सभी भारतीय नागरिक रहे हैं। मेथोडिस्ट चर्च को भारत में 1981 में यूनाइटेड मेथोडिस्ट चर्च से एक ‘स्वायत्त संबद्ध’ चर्च के रूप में स्थापित किया गया था, किंतु अब इसका अपना संविधान और प्रशासनिक ट्रस्ट कंपनी है। भारत में मेथोडिस्ट चर्च का काम हमेशा ईसाई धर्म का प्रचार करने और शैक्षिक गतिविधियों पर केंद्रित रहा है, और ये चर्च अपनी शाखाओं के रूप में अन्य चर्चों की स्थापना करने, विशेष बैठकें आयोजित करने और महिलाओं को शिक्षा प्रदान करने में सफल रहे हैं। उनके काम से भारत में ईसाई समुदाय का विकास हुआ है और कई लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव आया है।
क्लेमेंटिना ने भारत में विभिन्न चर्चों में महिलाओं की जरूरतों के बारे में महिलाओं के समूहों से बात की । परिणामस्वरूप इन चर्चों में महिलाओं द्वारा महिला मिशनरियों का समर्थन किया गया और कई पहलें शुरू की गईं । क्लेमेंटिना, ‘मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च’ की ‘वुमन फॉरेन मिशनरी सोसाइटी’ (Woman Foreign Missionary Society) की संस्थापक भी थीं।
विलियम ने 1873 में मेक्सिको (Mexico) में भी अपने मेथोडिस्ट काम को जारी रखा। वहां उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस (Printing Press), स्कूल, लड़कियों के अनाथालय और चर्च की इमारतों की स्थापना की, ठीक वैसे ही जैसे उन्होंने भारत में किया था। उन्होंने भारत और मैक्सिको में अपने अनुभवों के बारे में किताबें भी लिखीं।
इन दोनों के बच्चों ने अपने माता-पिता का काम जारी रखा। उनके बेटे, जॉन डब्ल्यू बटलर (John W. Butler) ने मिशनरी के रूप में 44 वर्षों तक मेक्सिको में अपना काम जारी रखा और उनकी बेटी क्लेमेंटिना बटलर ने मिशन से जुड़ी कई किताबें लिखीं और अन्य देशों में महिलाओं और बच्चों के लिए ईसाई साहित्य प्रकाशित करने के लिए एक समिति की स्थापना भी की। मेथोडिस्ट चर्च का विश्वास है कि भारत में यह चर्च एक सार्वभौमिक चर्च के रूप में बड़े ईसाई समुदाय का हिस्सा है, और यह ईसा मसीह की शिक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। वे सभी के लिए भगवान के प्यार का संदेश फैलाना चाहते हैं और लोगों को उनके अनुयायी बनने के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं। वे कई स्कूलों का भी संचालन करते हैं जहाँ बच्चे शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, साथ ही उन लोगों के लिए छात्रावास की व्यवस्था भी करते हैं जिन्हें रहने के लिए जगह की आवश्यकता है। वे पूरे देश में कॉलेज और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र, अस्पताल और स्वास्थ्य देखभाल केंद्र और अन्य सामुदायिक विकास कार्यक्रम भी संचालित करते हैं।
कुल मिलाकर, विलियम और क्लेमेंटिना बटलर एक उल्लेखनीय युगल थे जिन्होंने भारत और मैक्सिको में मिशनरी कार्यों के माध्यम से दूसरों की मदद करने और अपने धार्मिक विश्वासों को फैलाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। मेथोडिस्ट चर्च में मौंडी गुरुवार (Maundy Thursday) जैसे गहरे दार्शनिक अर्थों वाले इसाई पर्वों को पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। दरसल, मौंडी गुरुवार ईस्टर (Easter) से पहले का गुरुवार होता है। माना जाता है कि इसी दिन यीशु (Jesus Christ) ने अपने शिष्यों के साथ अपना अंतिम भोज लिया । इस भोजन के दौरान, यीशु ने विनम्रता दिखाने के लिए अपने शिष्यों के पैर धोए और उन्हें दूसरों के लिए भी ऐसा ही करने की आज्ञा दी। ‘मौंडी’ शब्द लैटिन शब्द "मैंडेटम (Mandatum)" का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ ‘आदेश’ होता है। यीशु ने पापियों से अन्त तक प्रेम किया, यहाँ तक कि उनसे भी जो इसके योग्य नहीं थे। यीशु के बलिदान और दूसरों से प्यार करने और उनकी सेवा करने की भावना और उनके द्वारा शिष्यों को दी गई आज्ञा को प्रतिबिंबित करने के लिए कई चर्च मौंडी गुरुवार को एक भोज सेवा और पैर धोने की रस्म के साथ मनाते हैं। मौंडी गुरुवार एक दूसरे से प्यार करने, इंसानियत के लिए किये गए बलिदान को याद करने तथा यीशु की आज्ञा पर विचार करने का एक महत्वपूर्ण दिन होता है।

संदर्भ
https://bit.ly/3nBpzMe
https://bit.ly/2VawsBB
https://rb.gy/ekrz3

चित्र संदर्भ
1. मेथोडिस्ट मिशन चर्च को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. क्लेमेंटिना रोवे बटलर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. गांधीनगर में मेथोडिस्ट चर्च को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च के मिशन और मिशनरी समाज को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. मेथोडिस्ट एपिस्कोपल चर्च की महिला विदेशी मिशनरी सोसायटी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6. मौंडी गुरुवार को संदर्भित करता एक चित्रण (Pixabay)

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