Post Viewership from Post Date to 07-Sep-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2696 10 2706

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस विशेष: बुनकरों की मेहनत और लगन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है हथकरघा वस्त्रों में

मेरठ

 08-08-2022 09:00 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

भारत में हर साल 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गाँधी जी ने स्वदेशी आँदोलन की शुरुआत की। इस दिन, सरकार और अन्य संगठन देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में हथकरघा बुनाई समुदाय को अपने अपार योगदान के लिए सम्मानित करते हैं। यह दिन भारत की अपनी गौरवशाली हथकरघा विरासत की रक्षा करने और आजीविका सुनिश्चित करने के लिए अधिक से अधिक अवसरों के साथ बुनकरों और श्रमिकों को सशक्त बनाने की पुष्टि का भी प्रतीक है।
भारत में अंग्रेजी शासन से पूर्व हाथ के बुने हुए वस्त्रों का खूब चलन था। ग़ुलामी के दौरान महात्मा गाँधी जी ने भारतीय बुनकरों को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने के लिए स्वदेशी आंदोलन शुरू किया। इसके अंतर्गत विदेशी सामान को छोड़ स्वदेशी वस्तुएँ अपनाने और खादी वस्त्र धारण करने पर जोर दिया। इस आंदोलन का समर्थन प्रत्येक भारतीय द्वारा किया गया। भारतीय बुनकर अपने विशिष्ट डिजाइनों, सांस्कृतिक छवि और पारंपरिक कौशल के लिए विश्व भर में विख्यात हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा हथकरघा वस्त्र निर्यातक है। भारतीय वस्त्र आभूषण वर्षों से विश्व भर के लोगों को अपनी और आकर्षित करते आए हैं। मिस्र व बेबीलोन के समय के भारतीय कारीगरों के कौशल और उनकी हाथ कताई, बुनाई और मुद्रण तकनीकों के लिए विश्व स्तर पर प्रशंसा की जाती थी। आज हम जिन कृत्रिम रूप से तैयार किए वस्त्रों का उपयोग करते हैं पहले वस्त्र इस प्रकार नहीं बनाए जाते थे। कपड़ा बनाने के लिए सूत या कपास को चरखे के माध्यम से काता जाता था। सूत कातने की यह प्रक्रिया आमतौर पर घरों में ही अपनाई जाती थी। मानव निर्मित यह वस्त्र और उनके डिजाइन देखने में सुंदर, गुणवत्ता में उत्तम और प्राकृतिक रंगों से बने होते थे। हालाँकि इन्हें तैयार करने में अधिक समय लगता है परंतु फिर भी भारत में कृषि के बाद हथकरघा सबसे बड़े व्यवसाय का माध्यम है।
हमारे देश में हथकरघा का इतिहास लगभग 5000 वर्ष पुराना है। ऐतिहासिक रूप से हथकरघा भारत के प्रत्येक राज्य में फैला हुआ है। राजस्थान की टाई एंड डाई तकनीक, मध्य प्रदेश की चंदेरी और उत्तर प्रदेश के जैक्वार्ड जैसे अनेक हथकरघा उत्पाद अपनी विशिष्टता के लिए पहचाने जाते हैं। हाथों से तैयार किए गए वस्त्र मशीनों से तैयार किए गए वस्त्रों की तुलना में अधिक सुंदर और आरामदायक होते हैं। यदि इसे भारतीय परंपरागत उद्योग का नाम दें तो यह गलत नहीं होगा। जब भी हम हथकरघा उत्पाद खरीदते हैं तो खुद को अपनी पाश्चात्य संस्कृति के समीप महसूस करते हैं। हथकरघा वस्त्रों में बुनकरों की मेहनत और लगन की झलक स्पष्ट दिखाई देती है। हथकरघा उत्पादों में प्रत्येक बुनकर की शैली भिन्न-भिन्न होती है। यह भी हो सकता है कि किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशिष्ट प्रकार की शैली या 20-30 बुनाई शैलियों का प्रयोग किया जाता है।
भारत में विदेशी शासन से पूर्व हाथ से बुने हुए वस्त्रों का कार्य सक्रिय रूप से होता था। भारत के प्रत्येक गांव तथा कस्बे में बुनकरों का समुदाय मौजूद था जो चरखे की सहायता से सूत कातकर कपड़ों का उत्पादन करते थे। किंतु देश में ब्रिटिश शासन के बाद स्थिति पहले जैसी नहीं रही। ब्रिटिश सरकार ने भारत में मशीनों से बने धागों को प्रस्तुत किया जो कम समय में और अधिक मात्रा में प्राप्त किए जा सकते थे। प्रारंभ में लाभदायक दिखने वाला यह प्रस्ताव बाद में भारतीय बुनकरों के लिए अभिशाप साबित हुआ और उन्हें अपने उत्पादन को बंद करने के लिए विवश होना पड़ा। इसके बाद मशीनों और बिजली से चलने वाले करघों की शुरुआत के साथ चरखा और पारंपरिक हथकरघा उद्योग धीरे-धीरे कमजोर होता चला गया। प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त का दिन राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप मनाया जाता है। इसी दिन महात्मा गाँधी जी ने स्वदेशी आँदोलन की शुरुआत की। इस आंदोलन के माध्यम से गाँधी जी भारतीय बुनकरों की सहायता करना चाहते थे और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे। इस आंदोलन के अंतर्गत गांधी जी ने लोगों को विदेशी वस्तुओं का परित्याग कर भारतीय हथकरघा उत्पादों और खादी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन का प्रत्येक भारतीय पर गहरा प्रभाव पड़ा और साथ ही लोगों ने विदेशी सरकार द्वारा दिए गए सिंथेटिक रेशों को भी जला दिया। सभी विदेशी मिलों को नष्ट कर दिया गया। इन सभी गतिविधियों का उस समय की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। हालाँकि वर्तमान समय में विदेशी कपड़ों और वस्तुओं का भारत में काफी मात्रा में उत्पादन और विक्रय होता है। परंतु आज भी खादी को वही सम्मान दिया जाता है जो आजादी के समय दिया जाता था। आधुनिक युग का पर्यावरण पर पड़ रहा बुरा प्रभाव प्राकृतिक रेशों की आपूर्ति पर भी गहरा असर डाल रहा है। जिस कारण प्राकृतिक रेशों की कीमत दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। जिसके फलस्वरूप हथकरघा क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। इसके अलावा वस्तु एवं सेवा कर में वृद्धि, बदलते फैशन (Fashion), प्राकृतिक संसाधनों में कमी के कारण हथकरघा बुनकरों की आय में लगातार कमी आती जा रही है। आज के समय में हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है तभी हम आने वाली पीढ़ी को अपनी पारंपरिक संस्कृति के बारे में बताने में सक्षम हो पाएँगे। सस्ते सिंथेटिक रेशों से बने कपड़ों के बजाय हथकरघा वस्त्रों के उपयोग के प्रति जागरूकता होना और दूसरों को भी जागरूक करना हमारा कर्तव्य है।
वर्ष 2019-20 की हथकरघा जनगणना के अनुसार हथकरघा क्षेत्र लगभग 35 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करता है। देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि के बाद हथकरघा दूसरा सबसे बड़ा आय का स्रोत है। हालाँकि भारतीय कपड़ा निर्यात में हथकरघा उद्योग का बड़ा योगदान नहीं है। हथकरघा निर्यात संवर्धन परिषद के अनुसार, भारत में हथकरघा निर्यात वर्ष 2015-16 में ₹2,353.33 करोड़ से घटकर वर्ष 2019-20 में ₹2,245.33 करोड़ रह गया। भारत में हुए औद्योगिक विकास ने हथकरघा बुनकरों को आर्थिक रूप से कमजोर कर दिया है। पावरलूम के चलन में आने से कपड़ा उद्योग की निर्भरता हथकरघा से बदलकर मशीनों और बिजली से चलने वाले करघों पर स्थानांतरित हो गई है। हालाँकि कई सरकारी योजनाएँ भारतीय हथकरघा उद्योग को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में लगी है। हथकरघा जनगणना के अनुसार अभी भी 67% बुनकर लगभग ₹5000 प्रतिमाह कमाते हैं। जो कि न्यूनतम वेतन नियम के अनुसार एक सामान्य जीवन जीने के लिए बहुत कम है। इसके अलावा बढ़ते कर की समस्या के परिणामस्वरूप बुनकरों की कुल संख्या 2009-10 में 43.31 लाख से घटकर 2019-20 में 35.25 लाख रह गई है। इसके अलावा कई बुनकर इस पारंपरिक व्यवसाय को अगली पीढ़ी को सौंपने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। कई बुनकर ऐसे हैं जो व्यवसाय के लिए ऋण के अप्रत्यक्ष स्रोतों पर निर्भर हैं इन स्रोतों की ब्याज दर बहुत उच्च होती है जो बुनकरों के लिए एक समस्या का कारण बनती हैं। हथकरघा जनगणना की एक रिपोर्ट के अनुसार 76% बुनकर बैंकिंग सुविधाओं से वंचित हैं। इस कारण बैंकों से ऋण प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं।
सरकार द्वारा हथकरघा क्षेत्र के सशक्तिकरण के लिए कई कदम उठाए गए हैं। सूक्ष्म और लघु उद्यम - क्लस्टर विकास कार्यक्रम (MSE- CDP) का उद्देश्य हथकरघा उद्योग के विकास के माध्यम से रोजगार को बढ़ावा देना, इस क्षेत्रों में उत्पादकता को बढ़ाना, और छोटे कारीगरों को आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान करना है।

संदर्भ:
https://bit.ly/3oWpNLo
https://bit.ly/3ztUxIA 
https://bit.ly/3BLUk68
https://bit.ly/3bxxYeec

चित्र संदर्भ
1. भारतीय महिला बुनकर को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. त्रिपुरा महिला अपने हथकरघा के साथ, श्रीमंगल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. चरखे के साथ गांधीजी को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. सुंदर हस्तनिर्मित वस्त्रों को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)

***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए जानें, देवउठनी एकादशी के अवसर पर, दिल्ली में 50000 शादियां क्यों हुईं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:23 AM


  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id