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हमारे लिए पृथ्वी का जमीनी भू-भाग जितना महत्वपूर्ण है, उतने ही महत्वपूर्ण हमारे लिए हमारे
समंदर भी हैं। प्रारंग की अभी तक की विभिन्न पोस्टों में हमने पर्यावरण के संदर्भ में समुद्रों की
महत्ता का अवलोकन किया है, किन्तु इस पोस्ट में हम हमारे देश के आर्थिक विकास (आयात-
निर्यात) के संदर्भ में विशालकाय समुद्रों की भूमिका को समझेंगे।
किसी भी देश के आर्थिक विकास में उसके द्वारा आयात अथवा निर्यात किये जाने वाले सामान का
बड़ा अहम् योगदान होता है। प्रत्येक देश प्रतिवर्ष लाखों-करोड़ों टन माल, देश विदेशों से मंगवाते
अथवा निर्यात करते हैं। हालांकि इतनी बड़ी मात्रा में किसी भी सामान का व्यापार, जमीनी अथवा
हवाई मार्ग से भी किया जा सकता है, किंतु हवाई मार्ग बेहद खर्चीला और ज़मीनी मार्ग काफी समय
लेने वाला होता है। इसलिए आमतौर पर अधिक मात्रा में कच्चे माल का आयात और निर्यात करने
के लिए सबसे बेहतर माने जाने वाले बीच के रास्ते, यानी समुद्री मार्ग का प्रयोग किया जाता है।
बड़े-बड़े समुद्री जहाजों में इस सामान को विशालकाय डिब्बों, जिन्हें कंटेनर कहा जाता है, में बंद
करके ले जाया जाता है।
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते भारत का लक्ष्य अपने निर्यात को बढ़ावा देना है, सरकार आत्मनिर्भर
भारत कार्यक्रम के तहत शिपिंग लाइन विकसित करते हुए बड़े पैमाने पर कंटेनर विनिर्माण का
अवलोकन कर रही है। समुद्री मार्ग से एक देश से दूसरे देश माल भेजने के लिए कंटेनरों की
आवश्यकता होती है। बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय ने गुजरात के भावनगर में कंटेनरों
के निर्माण की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए एक समिति का गठन किया है। चूंकि अभी
तक अधिकांश निर्यातक मुख्य रूप से चीनी कंटेनरों पर निर्भर रहे हैं। लेकिन महामारी और
बदलती भू-राजनीतिक स्थिति के साथ, दुनिया भर में चीन से आयात में कमी आई है। अतः
कंटेनरों की कमी ने निर्यातकों को भी प्रभावित किया है, जिन्हें माल ढुलाई लागत में वृद्धि का
अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है। बढ़ते राजनीतिक तनाव के बीच भारत ने भी चीन से अपने
आयात को कम कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार यदि हम एक तरफ निर्यात को बढ़ावा देने और
दूसरी तरफ आयात को कम करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो हमें कंटेनरों के मुद्दे को जल्द से
जल्द सुलझाने की जरूरत है। इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (India Brand Equity
Foundation (IBEF) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में भारत के प्रमुख बंदरगाहों पर
यातायात 704.82 मिलियन टन तक पहुंच गया। कोरोनावायरस महामारी के बीच, भारत विश्व
स्तर पर चावल के दाने, मांस और अन्य कृषि उत्पादों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया है।
लेकिन कोविड 19 के बाद के दौर में, कंटेनरों की कमी से विभिन्न सामानों के शिपमेंट में देरी होने
की समस्याएं उत्पन्न हो रही है। चूंकि चावल का निर्यात बढ़ा है, इसलिए कंटेनरों की कमी एक बड़ी
बाधा साबित हुई है। 2020 में, भारत के कृषि निर्यात में लगभग 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई। IBEF
की रिपोर्ट में कहा गया है, कि भारतीय कृषि, बागवानी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ वर्तमान में 100
से अधिक देशों को निर्यात किए जाते हैं, उनमें से प्रमुख मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया, सार्क देश,
यूरोपीय संघ और अमेरिका हैं।
भारत, जो पहले से ही वैश्विक चावल की जरूरतों के 32 प्रतिशत से अधिक की आपूर्ति करता है, ने
चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-दिसंबर अवधि के दौरान बासमती और गैर बासमती दोनों चावल के
निर्यात में 80.4 प्रतिशत की वृद्धि देखी।
दुनिया में महामारी के प्रवेश से पूर्व यानी मार्च 2020 में, 20 फीट कंटेनर में कोचीन से मेलबर्न
(Cochin to Melbourne) तक समुद्री माल भाड़ा 650 डॉलर और 40 फीट कंटेनर के लिए 800
डॉलर था, जबकि वर्तमान में, 20 फीट के लिए यह भाड़ा $ 5,200 तक और 40 फीट के लिए
$8,800 तक भूतपूर्व रूप से बढ़ गया है। कुल मिलाकर यह आंकड़ा 20 फीट में 700 प्रतिशत और
40 फीट कंटेनर माल भाड़ा दरों में 1000 प्रतिशत की वृद्धि दिखा रहा है।
इसी तरह महामारी से पूर्व गुजरात के मुंद्रा बंदरगाह से न्यूयॉर्क (Mundra port in Gujarat to
New York) के लिए भाड़ा दर 20 फीट के लिए 1,300 डॉलर और 40 फीट कंटेनरों के लिए 1,600
डॉलर थी, जबकि वर्तमान में यह बढ़कर 20 फीट के लिए 9,000 डॉलर और 40 फीट कंटेनरों के
लिए 12,000 डॉलर हो गई है, जो एक वर्ष में क्रमशः 592 और 650 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है।
इस वैश्विक शिपिंग संकट ने भारतीय निर्यातकों को पंगु बना दिया है, जो समुद्री माल की दरों में
वृद्धि, पारगमन में देरी और कई प्रमुख बंदरगाहों में भीड़भाड़ बढ़ने जैसी कई चुनौतियों का सामना
कर रहे हैं।
इस बीच क्रिसमस के लिए माल ढुलाई शुरू होने के साथ ही कंटेनर जहाजों को पहले से ही ओवरबुक
कर दिया गया है। परेशान निर्यातकों को अपना माल बुक करने के लिए कंटेनर नहीं मिल रहे हैं,
और मूल जहाज निर्धारित समय पर नहीं आ रहे हैं। अगर वे आते भी हैं, तब भी उनके पास अपना
माल बुक करने के लिए खाली कंटेनर नहीं हैं। वास्तव में, वर्तमान में अधिकांश उत्पादन क्रिसमस
थीम वाले उत्पाद हैं, महामारी के बाद, यदि वे अधिक पैसा लगाते भी है, तो उन्हें यह पैसा वसूल
करने में छह महीने लग जाते हैं, और इसके कारण, वे नए ऑर्डर बुक नहीं कर सकते हैं। मुख्य
समस्या यह भी है कि अधिकांश कंटेनर अमेरिका में चले गए हैं, और वहां अवरुद्ध या वहीं पर
स्टॉक कर लिए गए हैं। परिणामस्वरूप, निर्यातकों को खाली कंटेनर वापस नहीं मिल रहे हैं।
भारत से क्रिसमस के सामान और सजावट की मांग में यह उछाल काफी हद तक मुरादाबाद के
निर्यात घरानों और रामपुर के हमारे जरी-जरदोजी कारीगरों को दिए गए प्रोडक्शन ऑर्डर से पूरा
होता है।
वैश्विक शिपिंग कंटेनरों में से लगभग 85 प्रतिशत चीन में निर्मित किये जाते हैं “तो वास्तव में, पूरी
आपूर्ति श्रृंखला पर चीन का कब्जा है। लेकिन भारत को अपने निर्यातकों के लिए कंटेनर बनाने की
जरूरत है। भारतीय शिपिंग कंपनियों को देश के बड़े हितों की सेवा के लिए शुरू करने और समृद्ध
होने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
कंटेनर संकट के बीच खुशी की बात यह है कि अमेरिका और यूरोपीय संघ से कपड़ा, रत्न, आभूषण,
इंजीनियरिंग सामान और अनाज आदि की बढती मांग के कारण पिछली दो तिमाहियों में भारत के
निर्यात को बढ़ावा मिला है। भारतीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार,
महामारी से व्यवधान के बावजूद, जुलाई में भारत से व्यापारिक निर्यात $ 35.43 बिलियन के
ऐतिहासिक उच्च स्तर को छू गया। अगस्त 2021 में भारत का व्यापारिक निर्यात 33.14 बिलियन
डॉलर था, जिसने अगस्त 2020 में 22.83 बिलियन डॉलर की तुलना में 45.17 प्रतिशत से अधिक
की वृद्धि है, और प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार अगस्त 2019 में 25.99 बिलियन डॉलर से अधिक
27.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है,। जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को इससे उबरने में मदद मिलने की
संभावना है।
जब दुनिया भर में लॉकडाउन लगाया गया, तो घरेलू उत्पादों और सेवाओं की मांग आसमान छू
गई। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर लॉजिस्टिक (Logistics) संसाधनों में तेज और अचानक
गिरावट ने संकट को और बढ़ा दिया। जिसके परिणाम स्वरूप मानव जाति अब विश्व स्तर पर
शिपिंग कंटेनरों की भारी कमी का सामना कर रही है।
हालांकि भारत ने कोविड महामारी के वर्षों में व्यापार में तेज वृद्धि देखी। 'आत्मनिर्भर भारत'
पहल के परिणामस्वरूप 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम के तहत विनिर्माण और उत्पादन गतिविधियों
में वृद्धि हुई, इस प्रकार, भारत के कंटेनरीकृत निर्यात को बढ़ावा मिला। देश में वर्तमान में इसके
निपटान में लगभग 1.5 मिलियन कंटेनर मौजूद हैं। हालांकि, यह कोष आपूर्ति और मांग के
असंतुलन स्थिर करने में असमर्थ है। इसलिए, 5 टन की अर्थव्यवस्था की अपनी महत्वाकांक्षी
योजनाओं को पूरा करने और कंटेनर की चल रही कमी को रोकने के लिए, भारत अपने और दुनिया
के लिए शिपिंग कंटेनरों के एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरने की कोशिश कर रहा है।
भारत में बहुत सारे शिपयार्ड (जहाँ जलपोतों की मरम्मत या निर्माण का काम हो, पोतशाला) हैं, जो
कंटेनरों के निर्माण के लिए तैनात किए जा सकते हैं। भारतीय स्टील कंपनियां पहले से ही इस
अवसर का उपयोग इस क्षेत्र में प्रवेश करने और अपना निर्माण शुरू करने की योजना बना रही हैं।
घरेलू भागीदारी और सरकार द्वारा बढ़ावा मिलने पर चीन जैसे अन्य देशों से कंटेनरों की खरीद की
लागत को कम करेगा, जो वैश्विक शिपिंग कंटेनरों का लगभग 90% बनाता है। इस समस्या को
संभावना के रूप में देखते हुए भारत सरकार ने बंदरगाह, शिपिंग और जलमार्ग मंत्रालय की मदद
से, गुजरात के भावनगर में कंटेनरों के निर्माण की व्यवहार्यता का अध्ययन करने के लिए पहले ही
एक समिति का गठन किया है। इसे यदि अच्छी तरह और योजनाबद्ध तरीके से बढ़ाया जाता है,
तो कंटेनर निर्माण को बढ़ावा देने के भारत के निर्णय से न केवल भारत के अंदर और बल्कि देश के
बाहर भी रसद लागत कम होगी।
संदर्भ
https://bit.ly/3ogMfQ3
https://bit.ly/3Ic0SMd
https://bit.ly/3Ip1crg
https://bit.ly/31mJ00q
https://bit.ly/3DlARqa
चित्र संदर्भ
1. रामपुर में कपड़े पर कड़ाई करते कारीगर को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
2. समुद्र में क्षतिग्रस्त कंटेनरों से लदे जहाज को दर्शाता एक चित्रण (
World Cargo News)
3. भारतीय जलपोत को दर्शाता एक चित्रण (joc)
4. रामपुर के नन्हे कारीगरों को दर्शाता एक चित्रण (prarang)
5. भारत और चीन की कंटेनर प्रतिस्पर्धा को संदर्भित करता एक चित्रण (
Alfa Logistics Family)
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