संचालित उड़ान केवल चार बार विकसित हुई है: पहले कीड़ों में, फिर टेरोसॉर (pterosaurs) में, पक्षियों में और
आखिरी में चमगादड़ में।चमगादड़ अब तक उड़ने वाले एकमात्र स्तनपायी जीव हैं।चमगादड़ों की उत्पत्ति अभी भी
कुछ हद तक एक रहस्य बनी हुयी है, क्योंकि चमगादड़ का जीवाश्म रिकॉर्ड बहुत कम मात्रा में उपलब्ध है।
कुछ क्लैडिस्टिक (cladistic) विश्लेषणों से संकेत मिलता है कि चमगादड़ डर्मोप्टेरन (dermopterans) से
सबसे अधिक निकटता से संबंधित हैं। वहीं कुछ का मानना है कि वे इतनी निकटता से संबंधित नहीं हैं।
हालाँकि, उनके पूर्वज कुछ पारिस्थितिक मामलों में समान रहे होंगे।वंशावली और कार्यात्मक आंकड़े इस ओर
संकेत करते हैं कि इनके काल्पनिक पूर्वज निशाचर, कीटभक्षी, वृक्षीय और एक ग्लाइडर (glider) रहे होंगे।
सबसे पहले ज्ञात चमगादड़ इओसीन युग (Eocene epoch) में दिखाई देते हैं, जिनकी लंबी पूंछ थी और वे
उड़ान भर सकते थे, जो कि लगभग आधुनिक चमगादड़ के समान थे। हम अनुमान लगा सकते हैं कि
चमगादड़ों ने धीरे-धीरे एक ग्लाइडिंग अर्बोरियल (gliding arboreal) पूर्वज से वास्तविक उड़ान विकसित की
होगी, संभवतः वे ग्लाइडिंग झिल्ली (gliding membrane ) का उपयोग "नेट" (net) के रूप में करते हैं
जबकि उड़ान स्ट्रोक (flight stroke) इनमें विकसित होता है।
फ्रूट बैट (fruit bat), जिसे इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (Indian Flying Fox) के नाम से भी जाना जाता है,
दक्षिण एशिया (South Asia) में पाए जाने वाले चमगादड़ों की सबसे बड़ी प्रजातियों में से एक है।
यह मुख्य
रूप से पके फलों पर रहता है और मांसाहारी नहीं है। फ्रूट बैट मेगाबैट परिवार (megabat family) का हिस्सा
है। सभी मेगाबैट प्रजातियों को इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (International Union for
Conservation of Nature (IUCN)) द्वारा "खतरे" की सूची में सूचीबद्ध किया गया है। यह दुनिया के
सबसे बड़े चमगादड़ों में से एक है।भारत सरकार द्वारा भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में चमगादड़ को
दरिंदा या वर्मिन (vermin) के रूप में वर्गीकृत करने के बावजूद, इसे भारत में पवित्र माना जाता है। यह
एशिया महाद्वीप के बांग्लादेश (Bangladesh), भूटान (Bhutan), भारत(India), तिब्बत (Tibet), मालदीव
(Maldives), म्यांमार (Myanmar), नेपाल (Nepal), पाकिस्तान (Pakistan) और श्रीलंका (Sri Lankas)
क्षेत्रों में पाया जाता है तथा खुले पेड़ की शाखाओं पर बड़े पैमाने पर स्थापित उपनिवेश में, विशेषकर शहरी क्षेत्रों
में या मंदिरों में घूमता है तथा छोटे व्यास वाले ऊंचे पेड़ों पर बैठना पसंद करता है। इनका निवास स्थान
भोजन की उपलब्धता पर अत्यधिक निर्भर करता है। यह निशाचर है और मुख्य रूप से पके फलों, जैसे आम
और केले आदि को खाता है। फलों के खेतों के प्रति विनाशकारी प्रवृत्ति के कारण इस प्रजाति को अक्सर कृमि
के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसके परागण और बीज प्रसार के लाभ अक्सर इसके फलों की खपत के प्रभावों
से अधिक होते हैं। शहरीकरण या सड़कों के चौड़ीकरण की वजह से इनकी आबादी काफी खतरे में है और
मनुष्यों द्वारा पेड़ों को अत्यधिक काटने की वजह से इनके उपनिवेश अक्सर बिखर जाते हैं।
यह मुख्यत: रोग वाहक के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह कई विषाणुओं को मनुष्यों तक पहुँचाने का कार्य
करता है। जैसा कि हम जानते ही हैं कि रोगवाहक होने की वजह से ये विभिन्न प्रकार के रोगजनकों का वहन
करते हैं और मनुष्यों को संक्रमित करने में सक्षम होते हैं। रेबीज (Rabies), निपाह (Nipah), हेंड्रा
(Hendra), इबोला (Ebola) और मारबर्ग (Marburg) सभी चमगादड़ द्वारा धारण किये गए विषाणु हैं, जो
मनुष्यों में गंभीर बीमारी का कारण बन सकते हैं। मारबर्ग और इबोला विषाणु के कुछ उपभेदों से संक्रमित
मनुष्यों की 80-90% तक मौत हो सकती है। इन बीमारियों के प्रसार के लिए केवल चमगादड़ ही नहीं बल्कि
मनुष्य भी उत्तरदायी है क्योंकि मनुष्यों ने चमगादड़ क्षेत्र पर कब्जा किया है, जिसके कारण इन जानवरों के
संपर्क का खतरा बढ़ गया है।
एक रोवाहक होने के बावजूद भी यह स्वयं संक्रमित होकर मरते नहीं हैं,वैज्ञानिकों
के अनुसार यह वास्तव में उड़ान भरने की उनकी क्षमता के कारण होता है। उड़ान भरने की वजह से उनका
शरीर काफी ऊर्जा की खपत करता है, और जब चमगादड़ द्वारा अधिक ऊर्जा का उपयोग किया जाता है तो
बहुत अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है। चमगादड़ के डीएनए (DNA) को नुकसान पहुंचाने वाले इस
प्रतिक्रियाशील अपशिष्ट को रोकने के लिए, चमगादड़ों ने परिष्कृत रक्षा तंत्र विकसित किए हैं जो आसानी से
चमगादड़ को बीमारी से बचाने में मदद करते हैं। अब आप सोच रहे होंगे- चमगादड़ में विषाणु कैसे जीवित
रहते हैं? इसका उत्तर भी उनके उड़ान भरने की क्रिया से संबंधित है। विषाणु जीवाणुओं के विपरीत, पूरी तरह से
मेजबान पर निर्भर होते हैं, और परिणामस्वरूप उन्हें काफी विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। जब
चमगादड़ उड़ते हैं, तो उनका आंतरिक तापमान लगभग 40 डिग्री सेल्सियस (104 डिग्री फ़ारेनहाइट
(fahrenheit)) तक बढ़ जाता है, जो कई विषाणुओं के लिए बहुत गर्म होता है। यह चमगादड़ में बहुत सारे
विषाणु को मार देता है, केवल उन शक्तिशाली विषाणु को छोड़कर, जो सहिष्णुता तंत्र विकसित कर चुके हैं।
हमारे लिए दुर्भाग्य से, इसका मतलब यह भी है कि वे एक जलते हुए मानवीय बुखार को सहन कर सकते हैं।
लेकिन इस वजह से चमगादड़ों से द्वेष न करें क्योंकि वे अविश्वसनीय रूप से महत्वपूर्ण परागणकर्ता हैं और वे
मच्छर भी खाते हैं।
कोरोना के प्रथम चरण की शुरूआत में जब इसके प्रमुख कारण को खोजने के प्रयास किए जा रहे थे, उस
दौरान सोशल मीडिया (social media) में खबर फैली कि चीन में चमगादड़ों का सूप पिया जाता है जिसके
कारण कोविड-19(COVID-19) फैला है, जिसके चलते लोगों ने कई जगहों पर चमगादड़ों को मारना भी शुरू
कर दिया, ऐसी ही एक घटनाएं मेरठ शहर में भी देखने को मिली।
संदर्भ:
https://bit.ly/3gLGCVW
https://bit.ly/2STK8o9
https://bit.ly/3iWzd7M
https://bit.ly/3gPV7XJ
चित्र संदर्भ
1. चमकादड़ का एक चित्रण (unsplash)
2. इंडियन फ्लाइंग फॉक्स (पेरोपस गिगेंटस गिगेंटस), जामत्रा, मध्य प्रदेश, भारत का एक चित्रण (wikimedia)
3. एक संरक्षित मेगाबैट दिखा रहा है कि कंकाल अपनी त्वचा के अंदर कैसे फिट बैठता है जिसका एक चित्रण (wikimedia)
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