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महाभारत काल से ही अत्यंत प्रभावशाली हैं भोटिया या ‘हिमालयन शीपडॉग’ की विशेषताएं

मेरठ

 22-05-2024 09:34 AM
शारीरिक

आपने अलग-अलग देशों से एक विशेष देशी कुकुर (Dog) की नस्ल के नाम के विषय में तो सुना ही होगा। जैसे जर्मनी से जर्मन शेफर्ड (German Shepherd) और रॉटवीलर (Rottweiler), चीन से पग (Pug), फ्रांस से फ्रेंच बुलडॉग (French Bulldog) और इंग्लैंड से इंग्लिश बुलडॉग (English Bulldog) । लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश भारत से ऐसी कौन सी नस्ल है जिसके लिए भारत जाना जाता है? शायद ऐसी कोई नहीं है! आज जबकि हर कोई अंतरराष्ट्रीय कुकुरों की नस्लों के प्रति आकर्षित हो रहा है और उन्हें अपने घर में रखना चाहता है, हम उन विभिन्न देशी नस्लों के बारे में पूरी तरह से भूल गए हैं जो अपने देश भारत में बड़ी आसानी से उपलब्ध हैं और वे किसी भी अन्य अंतरराष्ट्रीय नस्ल की तरह ही आकर्षक हैं। अधिकांश विदेशी नस्लें बीमारी के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं और उनका जीवन काल अपेक्षाकृत कम होता है क्योंकि वे भारत के पर्यावरण में अच्छी तरह से अनुकूलित नहीं हो पाती हैं। इसके साथ ही उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत कमजोर होती है। कुछ वंशावली कुकुरों में कमजोर हड्डियों, मधुमेह और कई पाचन संबंधी समस्याओं का होना आम बात है। ऐसी स्थिति में हमारे देश की कई ऐसी भारतीय नस्लें हैं जो अपनी वफादारी, दृढ़ता, सुरक्षा और रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होने के लिए जानी जाती हैं। इन सभी कारणों से अब एक आदर्श बदलाव भी देखने को मिला है, जिसमें लोगों का नज़रिया अब विदेशी नस्लों की तुलना में भारतीय नस्लों को अपनाने के लिए अधिक खुला है। भारत की एक ऐसी ही नस्ल भोटिया कुकुर की है जिसे ‘हिमालयन शीपडॉग’ (Himalayan Sheepdog) के नाम से भी जाना जाता है। हिमालयी क्षेत्र के होने के कारण इन्हें नेपाल से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। ये कुकुर अपने साहस, आक्रामकता और झुंड की रक्षा के दृढ़ संकल्प के लिए सबसे प्रसिद्ध हैं। माना जाता है कि ये तेंदुए तक का सामना करने की क्षमता रखते हैं और इसलिए गांवों में मवेशियों की रक्षा करने के लिए तैनात किए जाते हैं। प्रारंभ से ही भूटिया नस्ल का उपयोग विशेष रूप से अपने क्षेत्र के कठोर पहाड़ी इलाकों में शिकार के लिए भी किया जाता था। फिलहाल, भूटिया नस्ल को केवल भारत की सीमाओं के भीतर ही देखा जा सकता है। इस नस्ल के कुकुर मुख्य रूप से उत्तराखंड के कुआरी दर्रा के घास के मैदानों के आसपास पाए जाते हैं। इसके अलावा इस नस्ल के कुत्तों को उत्तराखंड के नैनीताल, वाल्केश्वर, गमसाली, बद्रीनाथ, उत्तरकाशी, मिलम ग्लेशियर, रालम ग्लेशियर, पिंडारी ग्लेशियर सहित हिमाचल प्रदेश के भी कुछ हिस्सों में भी देखा जा सकता है। हालांकि अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है। उदाहरण के लिए, नेपाल और हिमाचल प्रदेश में इन्हें क्रमशः भोटे कुक्कुर या भूटिया गद्दी लेपर्डहुंड (Bhutia Gaddi Leopardhund) के नाम से जाना जाता है। यह एक रक्षक कुकुर माना जाता है जो अपने मालिक के लिए अपनी जान जोखिम में डालने से पहले दो बार नहीं सोचता। यह एक बेहतरीन साथी होता है क्योंकि यह अपने मालिक के प्रति बहुत मिलनसार और स्नेही होता है। भूटिया नस्ल अपनी उग्रता और ताकत के लिए जानी जाती है। पहाड़ी इलाकों में यह चरवाहों और मवेशियों की रखवाली करता है। पर्वतीय क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को तेंदुओं की संख्या के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए भूटिया नस्ल के एक जोड़े को तेंदुए या किसी अन्य जंगली जानवर को डराने के लिए पर्याप्त माना जाता है। केवल इसकी गर्दन के चारों ओर एक तेज नुकीला कॉलर लगाने की आवश्यकता होती है, ताकि तेंदुआ सीधे उसकी गर्दन पर हमला न कर सके। भूटिया या हिमालयी शीपडॉग मुख्य रूप से काले और भूरे, गहरे भूरे और कभी-कभी लाल, काले और मटमैले सफेद रंग के होते हैं। उनकी औसत ऊंचाई 26-32 इंच के बीच होती है और औसत वजन 60-84 पाउंड के बीच होता है। यह प्रतिदिन 20-25 किलोमीटर तक चल सकता है। इसके अलावा, व्यायाम के लिए रोजाना कम से कम 5 किलोमीटर पैदल चलना जरूरी है। इनके पैर बड़े और गद्देदार होते हैं जिसके कारण ये आश्चर्यजनक रूप से तेज़ और सक्रिय होते हैं, और हमेशा आस-पास का निरीक्षण करने के लिए इधर-उधर घूमते रहते हैं। इनकी गहरी छाती और ठोस गर्दन इन्हे बड़े शिकारियों से मुकाबला करने की शक्ति प्रदान करती है। इनके दांत कैंची से भी तेज माने जाते हैं। इनकी गर्दन के चारों ओर अक्सर बालों की एक परत होती है, और उनकी पूंछ अक्सर झाड़ीदार और ऊँची होती है, कभी-कभी ऊपर की ओर मुड़ी हुई और उनकी पीठ के ऊपर होती है। इनके कान मुड़े हुए चेहरे के किनारे पर लटके रहते हैं और उनकी आंखें गोल होती हैं जो हमेशा सतर्क रहती हैं। हिमालयन शीपडॉग के शरीर पर घना फर होता है, जो इसे हिमालय के कठोर परिवेश के लिए एकदम उपयुक्त और इसके साथ ही बेहद आकर्षक भी बनाता है।
माना जाता है कि हिमालयी नस्ल महाभारत काल से ही मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि यह अपने अभियानों के दौरान पांडवों के साथ था। यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि महाभारत की शुरुआत एक कुकुर की कहानी से होती है और अंत भी। इसके अलावा दिलचस्प बात यह है कि महाभारत की कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ बीच में एक कुकुर (एकलव्य का प्रकरण) के कारण भी आया था। कहानी के अनुसार, जब महाभारत के रचयिता वेदव्यास के शिष्य 'उग्रश्रवा' नियामिषारण्य जाते हैं, तो वहां सौनकादि महर्षि और अन्य लोग ‘धीरगा सत्र यज्ञ’, जो 12 वर्षों तक चलता है, कर रहे थे। उग्रश्रवा के विषय में कहा जाता है कि वे सूतजी थे, जिन्होंने शौनक आदि 88000 ऋषियों को कथा पुराण सुनाये थे। ये पदवी इनको इनके पिता रोहर्षण के पश्चात प्राप्त हुई थी। क्योंकि इनके पिता को बलराम जी नें आवेश में आकर मार दिया था। तत्पश्चात प्रायश्चित स्वरूप में बलराम जी नें इनको सूतजी के आसन पर विराजमान किया तथा स्वतः ही इनको सारा ज्ञान अपने आशिर्वाद स्वरूप प्रदान किया। वेदव्यासजी के विषय में तो हम सभी जानते हैं कि उन्होंने वेदों को 4 भागों में विभाजित किया, ऋग, यजु, साम और अथर्व। जिसके बाद उन्होंने 18 महापुराण लिखे। उन्होंने पुराणों को पूरा करने के बाद महाभारत लिखा। महाभारत को पंचम वेद (5वां वेद) भी कहा जाता है। सौनाकादि महर्षि और अन्य ने उग्रश्रवा से पूछा कि वह कहां से आ रहे हैं, तो उन्होंने उन्हें बताया कि वे सामंतका पंचकम और जनमेजय की यज्ञशाला से आ रहे हैं। जनमेजय परीक्षित के पुत्र, अभिमन्यु के पोते और पांडवों के प्रपौत्र हैं। उग्रश्रवा जनमेजय की यज्ञशाला की अपनी यात्रा के बारे में वर्णन करना शुरू करते हैं। यहीं से महाभारत की शुरुआत होती है। जनमेजय अपने लोगों के कल्याण के लिए एक यज्ञ कर रहे थे। यज्ञशाला के बाहर एक छोटा कुकुर जिज्ञासावश देख रहा था कि क्या हो रहा है। यह कुकुर दिव्य देव मादा कुकुर सरमा का पुत्र है। यदि कोई कुकुर यज्ञशाला में प्रवेश कर जाता है तो देवता यज्ञ में अर्पित किए गए प्रसाद को स्वीकार नहीं करते हैं। इसलिए जनमेजय के तीन भाई श्रुतसेन, उग्रसेन, भीमसेन ने कुकुर को बंद कर दिया, जिससे उसे वहां बहुत कष्ट हुआ। बाद में यज्ञ के संपूर्ण होने पर जब इस कुकर को छोड़ा जाता है तो यह अपनी माँ के पास जाकर रोते हुए अपनी व्यथा बताता है। सरमा जनमेजय के पास आकर अपने पुत्र के प्रति हुए दुर्व्यवहार की शिकायत करती हैं। यद्यपि वह जनमेजय को श्राप नहीं देती और केवल अपनी बात कह कर वापस आ जाती है, लेकिन यह एक तथ्य है कि बिना किसी विचार के और बिना सोचे-समझे यदि कोई सत्तासीन व्यक्ति किसी साधु के प्रति अपराध करता है, तो उसे ऐसे कुकृत्य का परिणाम भुगतना होता है। उसके बाद जन्मेजय अपने पुरोहित की तलाश में निकल पड़ते हैं। । महाभारत के मध्य में एकलव्य द्वारा कुकुर के मुंह में तीर भर देने की कहानी से तो हम सभी परिचित हैं। महाभारत के अंत के विषय में कहा जाता है कि जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तो युधिष्ठिर का कुकर भी उनके साथ उनके पीछे-पीछे आ रहा था। जिसके लिए इंद्रदेव ने उसे स्वर्ग में प्रवेश देने से मना कर दिया। तब युधिष्ठिर ने स्वयं भी स्वर्ग में प्रवेश लेने से मना कर दिया, जिसके बाद युधिष्ठिर की धर्म भावनाओं से प्रभावित होकर इंद्र ने दोनों को स्वर्ग में प्रवेश करने दिया।
वास्तव में हमारे इस लेख का उद्देश्य भूटिया या हिमालयन शीपडॉग और अन्य स्वदेशी कुकुरों की नस्लों पर प्रकाश डालना है, जिन पर अक्सर अंतरराष्ट्रीय नस्लों के शोर के बीच किसी का ध्यान नहीं जाता है। इनकी दृढ़ बनावट, चपलता और अटूट वफादारी जैसी अनूठी विशेषताओं को उजागर करके, और उनके ऐतिहासिक महत्व को बताकर, हमारा लक्ष्य सक्षम संरक्षक और साथी के रूप में इन नस्लों की सराहना को बढ़ावा देना है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bdw6xhsj
https://tinyurl.com/4mrnbj7k
https://tinyurl.com/46cb4dmw

चित्र संदर्भ
1. भोटिया या ‘हिमालयन शीपडॉग’ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. युवा हिमालयन शीपडॉग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बर्फ में बैठे हिमालयन शीपडॉग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सामने की ओर देख रहे हिमालयन शीपडॉग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. देव मादा कुकुर 'सरमा' को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. एक कुत्ते के साथ देवता को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

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