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हमारे शहर मेरठ की छावनी भारत की सबसे बड़ी छावनियों में से एक है। इसकी स्थापना 1803 में लासवारी की लड़ाई के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा की गई थी। क्या आप जानते हैं कि अंग्रेजों द्वारा सिर्फ मेरठ या भारत में ही नहीं बल्कि लगभग पूरे विश्व में छावनियों की स्थापना की गई थी। तो आइए आज जानते हैं कि छावनियों का निर्माण क्यों हुआ और इनका विकास कैसे हुआ। इसके साथ ही भारत के समान मलेशिया (Malaysia) और थाईलैंड (Thailand) की छावनियों के बारे में भी जानते हैं।
उन्नीसवीं सदी के मध्य तक पूरे भारत में 100 से अधिक स्थानों पर ब्रिटिश औपनिवेशिक सेनाओं द्वारा स्थायी सैन्य अड्डों के रूप में छावनियों की स्थापना कर दी गई थी। उत्तरी क्षेत्र की छावनियां बंगाल प्रेसीडेंसी (Bengal Presidency) के अधिकार क्षेत्र में आती थीं। इन छावनियों के तहत सैन्य दुर्गों, विशाल शिविरों, सेहतगाह हिल स्टेशनों की स्थापना की गई। इसके साथ ही पहले से निर्मित किलों का पुनरुद्धार किया गया। 1765 में इलाहाबाद की संधि के तहत कंपनी द्वारा अधिग्रहीत नए क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए पहली बार छावनियों की स्थापना की गई। फिर अंग्रेजों ने 1889 में भारत में सैन्य-नागरिक शहरों और उससे परे बस्तियों को विनियमित करने के लिए एक महत्वपूर्ण छावनी अधिनियम बनाया गया। इसके बाद जैसे जैसे छावनियों का निर्माण होता गया, सेना को शहरी बस्तियों से उचित दूरी बनाए रखते हुए स्थानीय आबादी से अलग रखा गया। इस पृथक्करण से सेना द्वारा स्थानीय क्षेत्रों पर नियंत्रण रखा जाने लगा। इसके साथ ही सेना छावनी के आंतरिक विकास और उसके स्वरूप में किसी भी समायोजन को भी नियंत्रित करने में सक्षम हो गई।
इसी तरह 18वीं सदी के अंत और 20वीं सदी के मध्य के बीच ब्रिटिश मलाया पर ब्रिटिश नियंत्रण स्थापित किया गया। मलाया प्रायद्वीप और सिंगापुर द्वीप पर राज्यों के एक समूह को ब्रिटिश मलाया (British Malaya) के नाम से जाना जाता है। अगस्त 1945 से द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, अप्रैल 1946 में मलयन संघ की स्थापना तक ब्रिटिश मलाया (British Malaya) पर ‘ब्रिटिश सैन्य प्रशासन’ (British Military Administration (BMA) का स्थापत्य रहा जो इसका अंतरिम प्रशासक था। प्रशासन ने पुन: कब्जे की अवधि के दौरान बुनियादी निर्वाह को बनाए रखने और राज्य संरचना को लागू करने का दोहरा कार्य किया। कब्जे से पहले, ब्रिटिश मलाया संघीय और गैर-संघीय राज्यों तथा जलडमरूमध्य बस्तियों में विभाजित था। 1945 की शुरुआत में, अंग्रेजों ने ऑपरेशन जिपर (Operation Zipper) के तहत 9 सितंबर को मलाया पर आक्रमण करने की योजना बनाई। 15 अगस्त 1945 को दक्षिण पूर्व एशिया के ‘सर्वोच्च सहयोगी कमांडर साउथ ईस्ट एशिया’ (Supreme Allied Commander South East Asia) की उद्घोषणा संख्या 1 द्वारा BMA की स्थापना की गई थी। BMA ने सिंगापुर सहित पूरे मलाया में सभी व्यक्तियों के साथ संपत्ति पर पूर्ण न्यायिक, विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक शक्तियां तथा जिम्मेदारियां एवं निर्णायक क्षेत्राधिकार ग्रहण कर लिया। सितंबर 1945 में एडमिरल लॉर्ड लुईस माउंटबेटन (Lord Louis Mountbatten) प्रशासन के निदेशक बने।
BMA के कब्जे के बाद विस्थापित जापानी न्यायाधिकरणों को हटा दिया गया और उनकी जगह सैन्य अदालतों, युद्ध और सैन्य संबंधी अपराधों के कानूनों और उपयोगों के खिलाफ आरोपित लोगों से निपटने के लिए एक सर्वोच्च न्यायालय और आपराधिक मामलों की सुनवाई और मौत की जांच के लिए एक जिला न्यायालय की स्थापना की गई। सशस्त्र बलों के सदस्यों को शराब और नागरिक खाद्य पदार्थों की बिक्री पर रोक लगा दी। पूर्व मलयन मुद्रा को कानूनी निविदा बना दिया गया और जापानी परिचालित मुद्रा को प्रभावी ढंग से रद्द कर दिया गया। इसके अलावा ज़मीन के सभी लेन-देन पर रोक लगा दी गई और सभी वित्तीय संस्थान बंद कर दिए गए। प्रशासन को सुव्यवस्थित करने और प्रस्तावित मलायन संघ की तैयारी के उद्देश्य से, युद्ध के बाद मलाया को 9 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। इन क्षेत्रों को एक वरिष्ठ नागरिक मामलों के अधिकारी (या तो कर्नल या लेफ्टिनेंट-कर्नल रैंक) द्वारा नियंत्रित किया जाता था। प्रशासन की सैन्य प्रकृति को देखते हुए, युद्ध-पूर्व नागरिक सरकारों की कुछ संस्थाओं की आधिकारिक शक्तियां निलंबित कर दी गईं, जिनमें मलय सल्तनत शासकों के अधिकार भी शामिल थे। नागरिक मामलों के अधिकारियों को जिला अधिकारियों के अधिकार दिए गए। BMA मुख्य रूप से एक सैन्य संगठन था। हालांकि इसमें नागरिक सलाहकार थे लेकिन इनमें से अधिकांश सैन्य अधिकारी थे। भारत में ब्रिटिश छावनियों के समान यहाँ पर यह संगठन भी अक्सर जनता की कठिनाइयों एवं परेशानियों के प्रति उदासीन था। इसका एक प्रमुख कारण यह था कि इसके लगभग तीन-चौथाई वरिष्ठ कर्मचारियों को सरकार में कोई पिछला अनुभव नहीं था और नागरिक मामलों के केवल एक-चौथाई वरिष्ठ कर्मचारियों को मलाया के बारे में कोई जानकारी थी।
ब्रिटिश भारत और ब्रिटिश मलाया के इतिहास से जुड़ी हुई एक अन्य सेना ‘रॉयल थाई सशस्त्र बल’ (The Royal Thai Armed Forces (RTARF) भी है। ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश बर्मा और ब्रिटिश मलाया पर हमला करने के लिए, जापान के साम्राज्य को थाईलैंड में ठिकानों का उपयोग करने की आवश्यकता थी। इसके लिए 8 दिसंबर 1941 को जापान ने समुद्र तट के किनारे और फ्रांसीसी इंडो-चीन से नौ स्थानों पर थाईलैंड पर एक आश्चर्यजनक हमला कर दिया। हालांकि थाई सेना ने इसका प्रतिरोध किया लेकिन जल्द ही उन पर काबू पा लिया गया। जिसके बाद थाई प्रधानमंत्री फ़िबुन ने जापान के साथ एक युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए जिसने जापानी सेना को थाई क्षेत्र से निकलने की अनुमति प्राप्त हो गई।
‘रॉयल थाई सशस्त्र बल’ (The Royal Thai Armed Forces (RTARF) थाईलैंड साम्राज्य की सशस्त्र सेनाएं हैं। थाईलैंड के राजा रॉयल थाई सशस्त्र बलों के सर्वोच्च कमांडर हैं। सशस्त्र बलों का प्रबंधन थाईलैंड के रक्षा मंत्रालय द्वारा किया जाता है, जिसका नेतृत्व रक्षा मंत्री करते हैं और इसकी कमान रॉयल थाई सशस्त्र बल मुख्यालय के पास होती है। कमांडर-इन-चीफ (Commander-in-chief) थाई सशस्त्र बलों में सबसे शक्तिशाली पद है। 1593 में बर्मा के वायसराय के खिलाफ लड़ाई में राजा नारेसुआन महान (King Naresuan the Great) की जीत की याद में प्रत्येक वर्ष 18 जनवरी को ‘रॉयल थाई सशस्त्र बल’ दिवस मनाया जाता है। रॉयल थाई सशस्त्र बलों का मुख्य उद्देश्य थाईलैंड की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना है। इसके अलावा देश के लिए सभी खतरों के खिलाफ थाई राजशाही की रक्षा करना, सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखना और राष्ट्रीय आपदा राहत तथा नशीली दवाओं के नियंत्रण में सहायता करना जैसे कर्तव्य भी इसके द्वारा निभाए जाते हैं।
संदर्भ
https://rb.gy/7e0wid
https://rb.gy/k4gsag
https://shorturl.at/bhDE4
चित्र संदर्भ
1. थाईलैंड और मेरठ की छावनी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह, picryl)
2. मेरठ छावनी बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. ब्रिटिश काल में मलेशियाई लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (getarchive)
4. लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन के साथ गांधी जी को संदर्भित करता एक चित्रण (
Collections - GetArchive)
5. रॉयल थाई सशस्त्र बल’ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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