Post Viewership from Post Date to 19-Jul-2022 (30th Day)
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2584 11 2595

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

क्या सनसनीखेज खबरों का हमारे समाज से अब जा पाना मुश्किल हो चुका है?

लखनऊ

 20-06-2022 08:45 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

आज की डिजिटल दुनिया में सावधानी ही एकमात्र दुर्लभ संसाधन है। जब लगभग 71 साल पहले, भारत अपनी स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहा था, उस समय के प्रकाशनों, कट्टरपंथी पत्रकारों और सुधारित मीडिया द्वारा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई थी,जिनके द्वारा अपनी जान को जोखिम में डालकर भी लोगों को उपयुक्त जानकारी प्रदान की गई थी। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र राज्य है।और लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक जानकारी है, जिसे सभी नागरिकों को जानने का अधिकार है।लेकिन कोई क्या कर सकता है अगर हमें यह जानकारी देने वाला माध्यम ही दागदार हो? हम नकली और असली खबरों में कैसे अंतर करें? हम कैसे जाने कि किस स्रोत पर विश्वास करना चाहिए? वास्तविक कहानियों (जिन पर लोगों का ध्यान तुरंत आकर्षित करने और कार्रवाई की आवश्यकता होती है) की खबर देने के बजाय, मीडिया सतही और उथली खबरों पर ध्यान केंद्रित करता है,ताकि अधिक से अधिक पाठक उनकी सामग्री को पढ़ें।
दुनिया भर में चल रही घटनाओं के बारे में लोगों को जागरूक करने के बजाय, यह सबसे बेतुकी तुच्छ घटनाओं को अतिशयोक्तिपूर्ण रूप से प्रस्तुत करता है।इसे "पीली पत्रकारिता" के रूप में जाना जाता है।पीली पत्रकारिता शब्द का इस्तेमाल 1890 के दशक के मध्य में सनसनीखेज पत्रकारिता को चिह्नित करने के लिए किया जाने लगा, जिसमें जोसेफ पुलित्जर (Joseph Pulitzer) की न्यूयॉर्क वर्ल्ड (New York World) और विलियम रैंडोल्फ हर्स्ट (William Randolph Hearst) की न्यूयॉर्क जर्नल (New York Journal) के बीच प्रचलन युद्ध में कुछ पीली स्याही का इस्तेमाल किया गया था।
भारत में पीली पत्रकारिता के कई उदाहरण हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों की कीमत पर ताज मुंबई आतंकी हमले की लाइव कवरेज (Live coverage), गोपनीयता कानूनों के उल्लंघन की कीमत पर, आरुषि हत्याकांड के मुद्दे की व्यापक कवरेज, मीडिया द्वारा सुनवाई और आरोपियों के प्रति पूर्वाग्रह की कीमत पर निर्भया बलात्कार के मुद्दे का व्यापक कवरेज, और ये सूची अंतहीन है।
आजकल मीडिया अक्सर गैर-मुद्दों को वास्तविक मुद्दों के रूप में चित्रित करता है, जबकि वास्तविक मुद्दों को दर किनार कर दिया जाता है। हमारे देश की खराब आर्थिक स्थिति और किसान आत्महत्या जैसे वास्तविक मुद्दों को प्रकाशित करने के बजाय, सिमर ने कैसे एक घरेलू मक्खी के रूप में पुनर्जन्म लिया है, इस बारे में टीवी समाचार चैनल पर 1 घंटे के विशेष शो को दिखाता हैं।मीडिया का दूसरा प्रमुख दोष तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करना है। मीडिया अक्सर तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है ताकि वह अधिक विवादास्पद और दिलचस्प लगे।तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर और गलतखबरें प्रकाशित करके, मीडिया न केवल उन लोगों के निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है जिन्हें गलत तरीके से चित्रित किया जा रहा है, बल्कि आम जनता की जानकारी प्राप्त करने के अधिकार का भी उल्लंघन करता है।वहीं हाल ही में सूचना के अधिकार और गोपनीयता के अधिकार के बीच संतुलन बनाने पर भी चिंता जताई गई है। साथ ही आजकल की मीडिया अक्सर राजनीति से कई अधिक प्रेरित होती है और अक्सर ऐसे मुद्दों को लक्षित करता है जो तथाकथित "समाचार" को सावधानीपूर्वक सुनियोजित तरीके से राजनीतिक दलों के कार्यावली के रूप में पेश करते हैं।इसलिए मीडिया आजकल विभिन्न राजनीतिक दलों के एजेंट के रूप में काम कर रहा है, जो उनके लिए एक अवास्तविक तस्वीर पेश करते हैं और कभी-कभी ऐसे मुद्दों को भी सनसनीखेज बनाते हैं जो कभी- कभी अचानक प्रकोप का कारण बनते हैं या समाज के एक विशेष वर्ग को अपमानित करते हैं, जिससे समाज में राजनीतिक अशांति और अराजकता उत्पन्न होती है।
जबकि समाचार पत्र और पत्रिकाएँ पहले प्रतिस्पर्धा से अप्रभावित थीं, अब वे भी दौड़ में प्रवेश कर चुकी हैं, जहाँ वे खुद को आलोचक मानते हैं। उन्हें लगता है कि उन्हें यह तय करने का अधिकार है कि कौन सी खबर काफी महत्वपूर्ण है और कौन सी खबर नहीं।मीडिया वास्तविक प्रभाव के बजाय समाचारों के स्वरूप पर ध्यान केंद्रित करता है। समाचार एंकर (Anchor) और आलेखी वास्तविक समाचारों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण हैं, और खबर पर क्या है, यह दिखाने के बजाय, वे दिखाते हैं कि खबर में कौन है।मीडिया के साथ दूसरी समस्या संवेदनशीलता की कमी है। संपादक अपने वातानुकूलित कमरों में बैठकर आम आदमी के संघर्षों और कठिनाइयों के बारे में क्या जानते हैं? वे जरूरतमंद लोगों के लिए आराम और न्याय का स्रोत कैसे हो सकते हैं?साथ ही लोग स्वाभाविक रूप से साहसी और निडर की ओर आकर्षित होते हैं; इससे पत्रकारों को इसकी आवश्यकता महसूस होने लगती है। ये पत्रकार जिन कंपनियों के लिए काम करते हैं, वे भी इस बातपर ध्यान देते हैं और पाठकों का शोषण करते हैं।जबकि पाठक एक सनसनीखेज लेख खोलते समय नाराज हो सकते हैं, केवल यह पता लगाने के लिए कि सामग्री में शीर्षक द्वारा वादा किए गए सार की कमी है, हालांकि यह अंततः उन लोगों को प्रभावित नहीं करता है जो इसे बनाते हैं। लेख को अभी भी सहभागिता मिलेगी, जिससे अधिक विज्ञापन राजस्व प्राप्त होता है क्योंकि यह लोकप्रिय है।सुर्खियों में रहने वाले लोग जानते हैं कि अगर लेख को दर्शकों की संख्या नहीं मिलती है, तो इससे जुड़े लोग आर्थिक रूप से आहत होते हैं। जिससे वे एक सनसनीखेज शीर्षक का उपयोग करने लगते हैं।
सनसनीखेज खबरों का हमारे समाज से अब जा पाना काफी मुश्किल हो चुका है, क्योंकि सामग्री का उपभोग करने वाले और इसे बनाने वाले लोगों के बीच इसका हमेशा से एक जटिल संबंध बना रहेगा।इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि हम इन सामग्री से सावधान रहें और हमारे सामने प्रस्तुत किए जा रहे झूठ को देखने का प्रयास करें।

संदर्भ :-
https://bit.ly/3mWKtBQ
https://bit.ly/3b61pTY
https://bit.ly/39wYh2W

चित्र संदर्भ
1. ताज़ा खबर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. अख़बारों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. समाचार देखते व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
4. ब्रेकिंग न्यूज़ को दर्शाता चित्रण (pixabay)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • क्रिसमस विशेष: जानें रोमन सभ्यता में ईसाई धर्म की उत्पत्ति और विकास के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     25-12-2024 09:35 AM


  • आइए जानें, सौहार्द की मिसाल कायम करते, लखनऊ के ऐतिहासिक धार्मिक स्थलों को
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     24-12-2024 09:30 AM


  • आइए समझते हैं, कैसे एग्रोफ़ॉरेस्ट्री, किसानों की आय और पर्यावरण को बेहतर बनाती है
    भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)

     23-12-2024 09:32 AM


  • आइए देंखे, मोटो जी पी से जुड़े कुछ हास्यपूर्ण और मनोरंजक क्षणों को
    य़ातायात और व्यायाम व व्यायामशाला

     22-12-2024 09:27 AM


  • लखनऊ के एक वैज्ञानिक थे, अब तक मिले सबसे पुराने डायनासौर के जीवाश्म के खोजकर्ता
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     21-12-2024 09:35 AM


  • लखनऊ की नवाबी संस्कृति को परिभाषित करती, यहां की फ़िज़ाओं में घुली,फूलों व् इत्र की सुगंध
    गंध- ख़ुशबू व इत्र

     20-12-2024 09:24 AM


  • रक्षा क्षेत्र में, पूरे देश को आत्मनिर्भर बना रहा है, उत्तर प्रदेश
    हथियार व खिलौने

     19-12-2024 09:28 AM


  • शारदा सहायक परियोजना की नहरों ने, लखनऊ क्षेत्र के कई किसानों की मदद की है
    नदियाँ

     18-12-2024 09:28 AM


  • पक्षी जीवन से भरा हुआ है लखनऊ का प्राकृतिक परिदृश्य
    पंछीयाँ

     17-12-2024 09:32 AM


  • क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिज़ीज़ से बचाव करना, आज के समय है आवश्यक
    जलवायु व ऋतु

     16-12-2024 09:36 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id