लखनऊ, जो अपनी समृद्ध संस्कृति और इतिहास के लिए जाना जाता है, खूबसूरत बाग़ों और रंग-बिरंगे फूलों के लिए भी मशहूर है। यहाँ का हल्का मौसम और उपजाऊ मिट्टी पूरे साल अलग-अलग प्रकार के फूलों को खिलने का आदर्श वातावरण प्रदान करते हैं। चमेली की हल्की ख़ुशबू से लेकर गुलाब की मीठी महक तक, लखनऊ की हवा फूलों की सुगंध से महकती रहती है। ये फूल न केवल शहर की ख़ूबसूरती बढ़ाते हैं, बल्कि लोगों के दैनिक जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चाहे धार्मिक अनुष्ठान हों या त्योहार, इन फूलों की महक वातावरण को पवित्र और ख़ुशहाल बना देती है और शहर की समृद्ध परंपराओं को प्रकृति से जोड़ती है।
आज हम बात करेंगे लखनऊ की नवाबी संस्कृति का हिस्सा रही इन सुगंधों के बारे में। फिर हम शहर के व्यस्त फूल बाज़ारों
की सैर करेंगे। अंत में, लखनऊ में पाए जाने वाले सबसे आम फूलों पर चर्चा करेंगे।
लखनऊ की नवाबी संस्कृति को परिभाषित करती सुगंध
17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान, इत्र और सुगंधित पदार्थों का व्यापार यूरोप और मध्य पूर्व के साथ फल-फूल रहा था। इन महंगे आयातित सामग्रियों से बने इत्र का उपयोग मुख्य रूप से राजघरानों और मंदिरों में किया जाता था। 17वीं शताब्दी के यात्री, जैसे मनूची और फ़्रांस्वा बर्नियर, ने हिंदू अनुष्ठानों और अंतिम संस्कारों में इत्र के उपयोग का उल्लेख किया। उन्होंने यह भी देखा कि शाही दरबारों में इत्र का प्रयोग बंद होना शोक की अवधि का संकेत माना जाता था।
18वीं शताब्दी तक, अवध के नवाब सुगंध उद्योग के बड़े संरक्षक बन गए थे। इत्र के प्रति उनका ऐसा लगाव था कि कहा जाता है, नवाब ग़ाज़ी-उद-दीन हैदर शाह (1769-1827 ई.) ने अपने रहने के स्थान के आसपास इत्र के फ़व्वारे बनवाए थे। कई नर्तकियाँ अपने पसीने की गंध को छिपाने के लिए इत्र का उपयोग करती थीं। नवाब वाज़िद अली शाह ने अपने शासनकाल के दौरान मेहंदी के इत्र को लोकप्रिय बनाया। ये इत्र न केवल आम जनता के बीच प्रसिद्ध हुए बल्कि अवध की तवायफ़ संस्कृति का भी अहम हिस्सा बन गए।
नवाबों ने इत्र-साज़ या गंधियों (इत्र बनाने वालों) को ज़मीनें आवंटित कीं और उनके हुनर को प्रोत्साहित किया। इत्र बनाने के लिए जो उपकरण उपयोग किए जाते थे, वे सरल थे, लेकिन समय की ज़रूरतों के अनुसार उनमें बदलाव किया गया। इन उपकरणों ने नई विधियों को अपनाया और उत्पादन में नवीनता लाई गई । इसका परिणाम यह हुआ कि भाप आसवन (steam distillation) की तकनीक इत्र निर्माण की मुख्य विधि बन गई, जो आज भी कन्नौज जैसे स्थानों में प्रचलित है।
इस अवधि में इत्र की माँग भारतीय आबादी और अंग्रेज़ों दोनों के बीच बढ़ गई। 1816 में स्थापित गुलाब सिंह जौहरीमल जैसे प्रतिष्ठान, जो दिल्ली के चाँदनी चौक की गलियों में स्थित थे और मुंबई के भेंडी बाज़ार की ‘अत्तर गली’ जैसे स्थान, इत्र की बढ़ती माँग को पूरा करने के लिए प्रसिद्ध हो गए।
आधुनिक भारत में भी अत्तर या इत्र का जीवन और सांस्कृतिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल शरीर और मन को सुकून प्रदान करता है, बल्कि पहनने वाले और उनके आसपास के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इत्र का उपयोग विशेष अवसरों जैसे शादियों, त्योहारों और धार्मिक समारोहों में किया जाता है, जहाँ इसकी समृद्ध और मोहक ख़ुशबू वातावरण में परंपरा और शान का अहसास कराती है। कई घरों में, इत्र का उपयोग मेहमानों को सम्मान के प्रतीक के रूप में भेंट करने के लिए भी किया जाता है।
लखनऊ की फूल मंडी की सैर
लखनऊ की ऐतिहासिक 200 साल पुरानी ‘फूल मंडी’, जो चौक के पास स्थित है और शहर की इकलौती पारंपरिक फूल मंडी है।
स्थानीय फूल व्यापारियों के अनुसार, राज्य की राजधानी के अधिकांश धार्मिक स्थलों पर उपयोग किए जाने वाले फूल इसी मंडी से आते हैं। चौक से किसान बाज़ार में इस मंडी का स्थानांतरण लखनऊ के सांस्कृतिक परिदृश्य के एक ऐतिहासिक और सुगंधित अध्याय के समाप्त होने जैसा है, जो पिछले दो सौ वर्षों से शहर की पहचान का हिस्सा रहा है।
इस फूल मंडी को किसान बाज़ार में स्थानांतरित करने की चर्चा कई वर्षों से हो रही है। 2018 से इसके प्रस्ताव दिए गए थे, लेकिन फूल व्यापारियों ने विभिन्न कारणों का हवाला देते हुए अब तक इस कदम को टाल दिया।
पुराने शहर में नवाबी युग की भव्य इमारतें ही नहीं, बल्कि पारंपरिक बाज़ार, व्यंजन, संस्कृति और अन्य चीज़ें इसे उत्तर प्रदेश का एक ऐतिहासिक केंद्र बनाती हैं। चौक के पास स्थित यह पारंपरिक फूल मंडी भी इसी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।
फूल मंडी का ऐतिहासिक महत्व
यहाँ की फूल मंडी की सटीक शुरुआत को लेकर मतभेद हैं, लेकिन इतिहासकारों का मानना है कि यह नवाब आसफ़-उद-दौला के शासनकाल (1775 से) के दौरान अस्तित्व में आई। शुरू में यह मंडी चौक की ‘फूल वाली गली’ में स्थित थी और इसने लखनऊ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
फूल वाली गली का लखनऊ के इतिहास में गहरा महत्व है। यह चौक बाज़ार के साथ अस्तित्व में आई, जो राज्य के सबसे पुराने बाज़ारों में से एक है और लखनऊ की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है।
फूलों की विविधता और मंडी की खासियत
फूल वाली गली की शुरुआत गजरे, विशेष रूप से चमेली के गजरे, के लिए हुई थी, जिन्हें नवाब और शाही परिवार बेहद पसंद करते थे। समय के साथ, खासतौर पर नवाबी युग के पतन के बाद, यहाँ फूलों की विविधता बढ़ गई। अब यहाँ सूरजमुखी, ग्लैडियोलस, गुलाब और रजनीगंधा जैसे कई प्रकार के फूल मिलते हैं।
लखनऊ की पारंपरिक फूल मंडी न केवल स्थानीय मांग पूरी करती है, बल्कि देशभर में फूलों की आपूर्ति करती है। व्यापारियों के अनुसार, इस मंडी में मिलने वाले ग्लैडियोलस की गुणवत्ता दिल्ली और मुंबई के फूलों से बेहतर है। इन फूलों की ताज़गी 8 से 10 दिनों तक रहती है, जबकि दिल्ली या मुंबई के फूल केवल 4 से 5 दिनों तक टिकते हैं।
चौक मंडी का सांस्कृतिक महत्व
फूल मंडी के अलावा, चौक का बाज़ार प्रामाणिक ज़री के काम, चिकनकारी, हस्तनिर्मित आभूषण, सजावटी सामान, लकड़ी, बाँस और हाथी दाँत की कारीगरी, नागरा (जूते), इत्र, रेवड़ी, खस्ता, कचौड़ी, मक्खन, नहारी, कबाब और अन्य कई चीज़ों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। इस बाज़ार ने न केवल लखनऊ की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित रखा है, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर ख्याति दिलाई है।
लखनऊ की चौक और इसकी फूल मंडी हमेशा लखनऊ की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बनी रहेंगी।
लखनऊ के सबसे आम फूल
लखनऊ की खुशबूदार फ़िज़ाओं में कई प्रकार के फूल अपनी महक और सुंदरता से शहर को सजाते हैं। यहाँ के बगीचों और गमलों में कुछ फूल बेहद लोकप्रिय हैं। आइए, इन फूलों के बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. सदाबहार (मेडागास्कर पेरीविंकल)
मैडागास्कर पेरिविंकल, जिसे हिंदी में सदाबहार कहा जाता है, एक सदाबहार झाड़ी या शाकीय पौधा है। इसे लंबे समय से उगाया जा रहा है और इसके कई प्रकार विकसित किए गए हैं। इन किस्मों को अक्सर नए रंग जोड़ने या पौधे को ठंड सहने योग्य बनाने के लिए तैयार किया गया है। इसकी कम देखभाल की आवश्यकता और पूरे साल खिलने वाले फूल इसे लखनऊ के बगीचों का पसंदीदा पौधा बनाते हैं।
2. गुड़हल (चाइनीज़ हिबिस्कस)
चाइनीज़ हिबिस्कस या गुड़हल एक छोटा फूलदार पेड़ है। इसके सुगंधित और आकर्षक फूल दुनियाभर में प्रसिद्ध हैं। यह मलेशिया का राष्ट्रीय फूल है और वहाँ के सिक्कों पर भी अंकित है। हालांकि इसका वैज्ञानिक नाम हिबिस्कस रोज़ा-सिनेंसिस है, जिसका अर्थ है “चीन का गुलाब,” यह असली गुलाबों से संबंधित नहीं है। लखनऊ में इसे बगीचों की सुंदरता बढ़ाने के लिए बड़े चाव से उगाया जाता है।
3. कनेर (नेरियम ओलियंडर)
ओलियंडर, जिसे हिंदी में कनेर कहा जाता है, एक झाड़ी या छोटा पेड़ है। इसके गुलाबी, पाँच पंखुड़ियों वाले फूल और गहरे हरे रंग की पत्तियाँ इसे बेहद आकर्षक बनाते हैं। हालांकि यह पौधा दिखने में सुंदर है, लेकिन यह बेहद ज़हरीला होता है। इसलिए छोटे बच्चों और पालतू जानवरों को इससे दूर रखने की सख्त सलाह दी जाती है।
4. चमेली के फूल (क्रेप जैस्मिन)
क्रेप जैस्मिन, जिसे हिंदी में चमेली के फूल कहा जाता है, एक सदाबहार झाड़ी है जो 2.5 मीटर तक ऊँची हो सकती है। इसके सफ़ेद, पिनव्हील जैसे फूलों में लौंग की खुशबू होती है और ये पूरे साल खिलते रहते हैं। इसे हल्की छाया से लेकर पूरी धूप में आसानी से उगाया जा सकता है। यह बगीचों के बैकड्रॉप और प्राकृतिक हेज के रूप में बेहद लोकप्रिय है।
5. रुक्मिणी (फ़्लेम ऑफ़ द वुड्स)
फ़्लेम ऑफ़ द वुड्स, जिसे हिंदी में रुक्मिणी कहा जाता है, गर्म मौसम में उगने वाली एक झाड़ी है। इसके चमकदार लाल फूल इसे अन्य पौधों से अलग बनाते हैं। इसे हेज़, फ़्लैगनर बेड, या छोटे पेड़ के रूप में तैयार किया जा सकता है। यह एक सोलो पॉटेड प्लांट के रूप में भी लोकप्रिय है। इसका दस्तावेज़ नाम इक्सोरा, हिंदू देवता शिव के नाम के एक गलत अनुवाद से लिया गया है।
लखनऊ में फूलों की विविधता
इन खूबसूरत फूलों की मौजूदगी न केवल लखनऊ के बगीचों को सजाती है, बल्कि शहर की सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर को भी समृद्ध करती है। ये फूल पूरे साल अपनी सुंदरता और खुशबू से माहौल को जीवंत बनाए रखते हैं।
संदर्भ -
https://tinyurl.com/yfsbh896
https://tinyurl.com/2nrfyk4v
https://tinyurl.com/tnzdu6ke
चित्र संदर्भ
1. फूलों की क्यारी को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. कोलियस के फूल को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. एक इत्र विक्रेता को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. फूलों की मंडी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
5. एक पुष्प विक्रेता को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
6. मेडागास्कर पेरीविंकल के पौधे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. नेरियम ओलियंडर के फूलों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. फ़्लेम ऑफ़ द वुड्स नामक फूलों के समूह को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)