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वैश्विक खाद्य प्रणाली का एक मह्त्वपूर्ण हिस्सा- मछली और अन्य जलीय खाद्य पदार्थ

लखनऊ

 19-12-2020 09:57 AM
मछलियाँ व उभयचर

मनुष्य आदि काल से ही भोजन के लिए शाक और मांस दोनों स्त्रोतों पर निर्भर है। जहाँ एक ओर शाकाहार के लिए उसने खेती के उन्नत तरीकों की खोज की है वहीं दूसरी ओर-मांसाहार के लिए न केवल थलचर बल्कि जलीय जीवों का शिकार करना भी सीखा। बीते कुछ दशकों की बात करें तो जलीय जीवों को भोजन के रूप में ग्रहण करना हमारी खाद्य प्रणाली का हिस्सा बन चुका है। कई स्थानों पर मत्स्य और अन्य जलीय जीवों को वहाँ के पारंपरिक भोजन (traditional food) के रूप में ग्रहण किया जाता है। ऐसे स्थानों पर मत्स्य पालन (Fisheries) आजीविका का एक प्रमुख साधन है। जिसमें न केवल मछली बल्कि अन्य जलीय जीव जैसे केकड़ा (crab), झींगा (shrimp) इत्यदि भी शामिल हैं। प्रकृति ने मनुष्य के जीवन निर्वाह के लिए असंख्य संसाधन प्रदान किए हैं किंतु हमने अपने स्वार्थ के लिए इन संसाधनों का अनुचित प्रयोग किया है। जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान समय में स्थिति यह है कि ये संसाधन ख़तरे की कगार पर आकर खड़े हो गए हैं। मछलियाँ जो खाद्य की दॄष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण जीव है, पिछले 40 वर्षों में मीठे पानी की मछलियों की आबादी में लगभग 76% की गिरावट दर्ज की गई है जोकि वास्तव में एक चिंता क विषय है। केंद्रीय अंतर्देशीय मत्स्य अनुसंधान संस्थान (Central Inland Fisheries Research Institute) (CIFRI) के अनुसार, “बांधों के निर्माण और पानी के बहाव (construction of dams and water abstractions) से नदी के पूरे हाइड्रोलॉजिकल चक्र (hydrological cycle) में गंभीर और कठोर बदलावों ने अधिकांश जलीय प्रजातियों को प्रभावित किया है, जो बहते पानी में निवास और पलायन करती हैं। बड़े बांध जलीय पर्यावरण के क्षरण (degradation of aquatic environment) और नदियों के किनारे मत्स्य पालन पर निर्भर समुदायों की आजीविका के विघटन (disruption of livelihood) का प्रमुख कारण हैं”।
आधुनिक विकास के चलते देश में तकनीकी विकास (Technological development), सड़क व रेल परिवहन (road and rail transport), बाँध परियोजना (dam project), विद्युत उत्पादन (power generation) आदि प्राथमिक आवश्यकता बन गया है, परंतु विकास के इन चरणों से मछलियों के पलायन में बाधा उत्पन्न होती है, जो अपने जीवन-चक्र (life-cycle) को पूरा करने केलिए एक स्थान से दूसरे स्थान में जाती हैं।पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया (East Asia and Southeast Asia) की सीमा-पारकी मेकांग नदी ( trans-boundary Mekong river) जो मांसाहारी लोगों के लिए मछली की आपूर्ति का एक बहुत बड़ा स्त्रोत है, बाँध निर्माण के कारण संकट का सामना कर रही है। जिन लोगों का मुख्य आहार मछली है उनके लिए यह एक गम्भीर समस्या है। मानव द्वारा प्रकृति को क्षति पहुँचाने वाले क्रियाकलाप जैसे बढ़ती जनसंख्या (growing population), जल-प्रदूषण (water pollution), अत्यधिक मछली पकड़ना (overfishing), बड़े पैमाने पर रेत खनन (Large scale of sand mining) आदि भी मछलियों के जीवन-चक्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहे हैं। नदी के पानी में मत्स्य पालन (water fisheries), सिंचाई (irrigation), जल आपूर्ति (water supply) और विद्युत बांधों के निर्माण (construction of electric dams) के साथ-साथ जलीय जीवों की प्रजातियों के संरक्षण (conserve species of aquatic organisms) के लिए वैज्ञानिक उपाय (Scientific measures) खोजे जा रहे हैं। इसके अलावा, बढ़ती जलीय समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर कई प्रभावशाली योजनाएँ बनाने की भी आवश्यकता है जिससे देशों के विकास के साथ-साथ जैव-विविधता का भी संरक्षित किया जा सके। भारत दुनिया में मछली का दूसरा सबसे बड़ा अंतर्देशीय उत्पादक है। हमारे देश में जहाँ प्रकृति से प्रदत्त प्रत्येक तत्व को ईश्वर से जोड़कर देखा जाता है जिनका वर्णन हमारे शास्त्रों में भी मिलता है। उदाहरण के लिए गंगा नदि (river Ganga), ताजे पानी का विशाल स्त्रोत, जिसका सांस्कृतिक दॄष्टि से ही नहीं बल्कि सामाजिक दॄष्टि से भी विशेष महत्व है। वर्तमान में, गंगा नदि में मीठे पानी की मछलियोंकी लगभग 300 प्रजातियाँ निवास करती हैं। साथ ही यह सैकड़ों मछ्वारों के लिए आजीविका का एक बहुत बड़ा साधन है। भारत सरकार विश्वबैंक (World Bank) के साथ मिलकर गंगा नदि में हर 100 किलोमीटर के बाद बैराज (Barrage) बनाने की योजना पर कार्य कर रही है और इस प्रोजेक्ट (Project) को एक 'नेविगेशनल कॉरिडोर' (navigational corridor) के रूप में देखा जा रहा है। जैव विविधता (Biodiversity) के संरक्षण के उद्देश्य से नदी की परियोजनाओं के पुनर्स्थापना (restoration) और मछ्वारों के लिए आजीविका के वैकल्पिक संसाधनों (alternative resources) की आपूर्ति करने पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। साथ ही घरों तथा फैक्ट्रियों (factories) से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों (waste materials) के नदियों में निस्तारण (disposal) पर कड़े प्रतिबंध (restrictions) लगाने की ओर ध्यान केंद्रित करने की भी आवश्यकता है, विशेषकर शहरी क्षेत्रों जैसे कानपुर, इलाहाबाद-वाराणसी, मथुरा-आगरा, उत्तर प्रदेश में लखनऊ, पटना, बिहार में बरौनी, दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और पश्चिम बंगाल में दुर्गापुर और कोलकाता क्षेत्र इत्यादि। इसके अलावा, चंबल, घाघरा, गंडक, बाघमती, राप्ती और कोसी नदियों मेंरेत-खनन (sand-mining), रिवरफ्रंट अतिक्रमण (riverfront encroachment) और तटबंध निर्माण (embankment construction) पर सख्त प्रतिबंध लगाने की आवश्यकता है। हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) द्वारा एक समीक्षा के आधार पर नदी के तल से रेत-खनन बंद होने का मामला सामने आया है, यदि नियमों कोप्रभावी ढंग से लागू किया जाए तो नदी के किनारों के अनियमित विनाश को कम किया जा सकता है।
कोविड-19 (COVID-19) सेजहाँ एक ओर पूरा विश्व गंभीर रूप से प्रभावित हुआ है। लगभग हर देश स्वास्थ्य और सुरक्षा की दॄष्टि से चुनौतियों का सामना कर रहा है। वहीं दूसरी ओर इस महामारी ने देशों के सामाजिक और आर्थिक ढाँचे (Social and economic structure) को भी बदल के रख दिया है। खाद्य और पोषण सुरक्षा (Food and nutritional security), नौकरी (job), आजीविका के साधन (means of livelihood) भी गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। विशेषकर विकासशील देश (developing countries) में रहने वाले ग़रीब और मध्यम वर्गीय लोग जो आजीविका के लिए आय के दैनिक साधनों (means of daily income) पर निर्भर हैं। उदाहरण के लिए मछुआरे (fisherman) शीघ्र ख्रराब होने वाले खाद्य सामग्री विक्रेता (perishable food vendors) आदि। एक अनुमान के अनुसार कोविड महामारी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में उप-सहारा अफ्रीका (Sub-Saharan Africa), उत्तरी अफ्रीका (North Africa) और मध्य पूर्व (Middle East) के समुदायों को सबसे अधिक नुकसान पहुँचा है। अरबों लोग गरीबी का सामना करने के लिए विवश हो गए हैं। जिनको बहतर स्थिति में वापस लाने के लिए प्रभावी तरीकों पर गंभीरता से विचार करने और योजना बनाने की आवश्यकता है।दूसरे पहलू की ओर ध्यान दें तो पता चलता है कि जलीय खाद्य पदार्थों के लिए आपूर्ति श्रृंखलाओं (supply chains) में व्यवधान पहले से ही परिवहन, व्यापार और श्रम में कमी के कारण हो रहा है। मछली पकड़ने के प्रयासों में कमी से इन खाद्य पदार्थों की आपूर्ति, पहुंच और खपत कम हो जाएगी। फलस्वरूपमांग में कमी और लेनदेन की लागत में वृद्धि होगी। जिससेमछली व अन्य जलीय खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ा जाएँगी। गरीब लोगों के लिए मछली इत्यादि महँगे दामों पर खरीदना बहुत मुश्किल है अत: वे इसे नहीं खरीद पाएँगे। साथ ही इनकी आपूर्ति श्रृंखलाओं में नियुक्त लोग, जैसे मछली विक्रेता (fish vendors), प्रोसेसर (processors), आपूर्तिकर्ता या परिवहन कर्मचारी (suppliers or transport workers) भी अपनी नौकरी खो सकते हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिए सरकार को ठोस नीतियाँ बनानेऔर उन्हें देशभर में लागू करने की आवश्यकता है। इन नीतियों को वैज्ञानिक डेटाऔर ज्ञान (scientific data and knowledge) द्वारा निर्देशितकिया जाना चाहिए। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन का सामना कर रहे जलीय जीव-जंतुओं कि रक्षा न केवल सरकार का बल्कि आम नागरिकों का भी कर्तव्य है। प्रदूषण के कारकों की पहचान कर उन्हें रोकाजाना चहिए ताकि भविष्य के लिए पौष्टिक मछली और जलीय खाद्य पदार्थ (Nutritious fish and aquatic foods) सुरक्षितरह सकें और सुलभता से उपलब्ध हो सकें।

संदर्भ:
https://bit.ly/3alJjLi
https://bit.ly/3ns7HP3
https://bit.ly/3nygIWW
https://bit.ly/3p24ZjC
चित्र संदर्भ:
मुख्य चित्र में मछली और अन्य जलीय खाद्य पदार्थों को दिखाया गया है। (Unsplash)
दूसरी तस्वीर झींगा दिखाती है। (Unsplash)
आखिरी तस्वीर में मछली पकड़ने वाली नौकाओं को दिखाया गया है। (Unsplash)


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