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अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र

लखनऊ

 20-11-2024 09:32 AM
पर्वत, चोटी व पठार
अद्वैत आश्रम, एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक केंद्र है। यह आश्रम, उत्तराखंड के चंपावत ज़िले में लोहाघाट शहर के भीतर 'मायावती' नामक स्थान पर स्थित है। इस आश्रम को स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से प्रेरित होकर शांति और ध्यान हेतु बनाया गया है। अद्वैत आश्रम लोहाघाट के शांतिपूर्ण क्षेत्र में स्थित है। यह, आध्यात्मिक विकास और शांति की चाह रखने वाले लोगों के लिए एक आश्रय स्थल के रूप में कार्य करता है। यह आश्रम ध्यान, आत्म-जागरूकता और समुदाय की मदद करने से जुड़े कई कार्यक्रम प्रदान करता है। आज के इस लेख में हम सबसे पहले मायावती में अद्वैत आश्रम के इतिहास पर चर्चा करेंगे। इसके बाद, आश्रम में स्थित प्रिंटिंग प्रेस के बारे में जानेंगे। अंत में, हम अल्मोड़ा में स्थित श्री रामकृष्ण कुटीर के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे, जो श्री रामकृष्ण और रामकृष्ण मठ की विरासत को समर्पित है।
हिमालय को त्याग, योग और भगवान शिव के निवास स्थल के रूप में जाना जाता है। स्वामी विवेकानंद हमेशा से ही हिमालय की ओर आकर्षित थे। उन्होंने साल 1901 में मायावती में अद्वैत आश्रम का दौरा किया था। अमेरिका की अपनी ऐतिहासिक यात्रा से लौटते समय स्वामी विवेकानंद कुछ समय के लिए लंदन में भी रुके थे। उनके कुछ अनुयायियों द्वारा उनके लिए स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) में छुट्टियां मनाने की योजना बनाई गई।
स्विट्ज़रलैंड में स्विस आल्प्स (Swiss Alps) में रहने के दौरान उन्होंने भारत में एक ऐसा आश्रम शुरू करने के बारे में सोचा जो उसी के जितना शांतिपूर्ण हो। 1897 में भारत लौटने के बाद, उन्होंने अल्मोड़ा में, कैप्टन और श्रीमती सेवियर को अपने शिष्य स्वामी स्वरूपानंद के साथ अद्वैत दर्शन पर केंद्रित आश्रम के लिए एक अच्छा स्थान खोजने के लिए कहा। उनके शिष्यों ने समुद्र तल से 6,400 फ़ीट ऊपर बसे मायावती को खोजा, जो ऊँचे पहाड़ों से घिरा यह स्थान बर्फ से ढके हिमालय के सुंदर दृश्य पेश करता है।
अद्वैत आश्रम को आधिकारिक तौर पर मार्च 1899 में खोला गया। इसे बेलूर मठ की एक शाखा के रूप में मान्यता दी गई। जनवरी 1901 में स्वामी विवेकानंद स्वयं इस आश्रम आए और दो सप्ताह तक यहीं रहे।
इस आश्रम में पुस्तकों और पत्रिकाओं को छापने के लिए एक प्रिंटिंग प्रेस भी थी। इस प्रेस को 1898 में कलकत्ता में सेवियर दंपति ने खरीदा और फिर प्रबुद्ध भारत की छपाई के लिए अल्मोड़ा भेज दिया। एक अंग्रेजी मासिक पत्रिका प्रबुद्ध भारत का प्रकाशन स्वामी विवेकानंद ने जुलाई 1896 में ही शुरू कर दिया था। यह न केवल मिशन की सबसे पुरानी चलने वाली पत्रिका है, बल्कि इसे भारत की सबसे पुरानी अंग्रेजी मासिक पत्रिका भी कहा जाता है। शुरुआत में इसका इस्तेमाल अल्मोड़ा के थॉम्पसन हाउस (Thompson House) में किया गया। बाद में 1899 में इसे मायावती लाया गया। यह भी कहा जाता है कि संभवतः 1901 में आश्रम में रहने के दौरान विवेकानंद ने खुद प्रेस का कार्यभार संभाला होगा। इस प्रेस को 1930 के दशक में फ़ोर्टी गांव के स्वर्गीय पंडित हरि दत्त पुनेठा के परिवार को बेच दिया गया। पुनेठा परिवार ने इसे 1994 में एक यादगार के तौर पर आश्रम को ही वापस उपहार में दे दिया। यहां से रामकृष्ण, विवेकानंद और वेदांत के दर्शन पर कई किताबें प्रकाशित हुईं। इसका मुख्य संपादकीय कार्यालय भी बाद में अद्वैत आश्रम में स्थानांतरित कर दिया गया। आज यहां किसी भी तरह की छपाई नहीं होती, लेकिन पत्रिका के लिए संपादकीय काम अभी भी यहीं होता है और फिर फाइलें छपाई के लिए कोलकाता कार्यालय भेजी जाती हैं। वहां से इसे फिर सभी मिशन कार्यालयों में भेजा जाता है। यह आश्रम, एक चैरिटी अस्पताल भी चलाता है। इसकी स्थापना 1903 में हुई थी और यह 117 साल बाद भी अपनी सेवाएं लगातार प्रदान कर रहा है। देखते ही देखते, यह आश्रम पूर्व और पश्चिम दोनों क्षेत्रों के विचारकों के लिए एक बैठक स्थल के रूप में स्थापित हो गया। इस आश्रम ने अद्वैत के मुख्य विचार (आत्मा, या सच्चा स्व, शरीर और मन से परे है।) को दुनिया भर में फैलाने में भी मदद की। आश्रम के संचालकों ने संस्कृत, अंग्रेज़ी और हिंदी में वेदांत, रामकृष्ण, पवित्र माता और विवेकानंद के बारे में साहित्य का एक बड़ा संग्रह बनाने पर भी काम किया है। इस काम ने आध्यात्मिकता, दर्शन, मनोविज्ञान और संस्कृति में दुनिया भर में जागृति लाने में योगदान दिया।
आइए, अब उत्तराखंड के ही अल्मोड़ा ज़िले में मौजूद श्री रामकृष्ण कुटीर, आश्रम के बारे में जानते हैं:
श्री रामकृष्ण कुटीर अल्मोड़ा में ब्राइट एंड कॉर्नर (Bright End Corner) नामक स्थान पर स्थित एक छोटा आश्रम है। इसकी स्थापना 22 मई, 1916 को स्वामी तुरियानंद के द्वारा की गई थी। इस आश्रम ने स्वामी विवेकानंद के वर्षों पुराने सपने को पूरा किया। वह एक ऐसी जगह चाहते थे जहाँ वह प्रकृति की गोद में ध्यान कर सकें। इस शांतिपूर्ण वातावरण में, ध्यान भी जीवन का एक स्वाभाविक हिस्सा बन जाता है।
स्वामी तुरियानंद का जन्म 1863 में कोलकाता में हरिनाथ चट्टोपाध्याय के रूप में हुआ था। वह छोटी उम्र से ही एक सादा जीवन जीते थे। जब वह किशोर थे, तब उनकी मुलाकात श्री रामकृष्ण से हुई। 1887 में, वह रामकृष्ण आश्रम से जुड़ गए। उन्होंने वेदांत सिखाने के लिए पूरे भारत और यहाँ तक कि अन्य देशों की यात्रा की। 1899 में, वह उत्तरी कैलिफ़ोर्निया गए और वहां भी शांति आश्रम की शुरुआत की। वह 1902 में भारत लौट आए और 1916 में अल्मोड़ा में श्री रामकृष्ण कुटीर की स्थापना की।
स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा में एक रिट्रीट सेंटर (Retreat Center) की इच्छा जताई थी। स्वामी शिवानंद की मदद से तुरियानंद ने यह इच्छा पूरी की। उनकी इच्छानुसार रामकृष्ण कुटीर का निर्माण किया गया, जिसे बाद में श्री रामकृष्ण कुटीर के नाम से जाना गया। इस स्थान से, आगंतुक उस पहाड़ी को देख सकते हैं जहाँ स्वामी विवेकानंद ने तीन दिन और रात ध्यान किया था। वे पहाड़ियों के बीच से बहती कोसी नदी को भी देख सकते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2ak26ys9
https://tinyurl.com/28u4xyyx
https://tinyurl.com/26s97tk9

चित्र संदर्भ
1. अद्वैत आश्रम, मायावती को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अद्वैत आश्रम में स्वामी विवेकानंद की स्मृति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अद्वैत आश्रम की सामने से ली गई एक तस्वीर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. अल्मोड़ा में स्थित, रामकृष्ण कुटीर आश्रम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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