Post Viewership from Post Date to 25-Jan-2024
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2282 244 2526

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

आज क्रिसमस पर जौनपुर के निकट स्थित प्रयागराज के अनूठे 'इलाहाबादी केक' को ज़रूर चखें !

जौनपुर

 25-12-2023 08:34 AM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

क्रिसमस के त्यौहार पर उपहार देने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह प्रथा धन्यवाद और स्नेह व्यक्त करने की मानवीय आवश्यकता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। क्रिसमस उपहार देने का एक पारंपरिक समय है। हालांकि लोगों के मन में प्रश्न उठता है कि क्रिसमस के त्यौहार पर उपहार क्यों दिया जाता है? हमने अपने शोध में जाना है कि इसके पीछे कई अलग अलग कारण है जो कभी व्यक्तिगत हैं तो कभी सामाजिक। आइए जानते हैं इनके बारे में:
क्रिसमस पर उपहार देने की परंपरा पर यीशु (Jesus Christ) के जन्म की कहानी का महत्वपूर्ण प्रभाव है। ईसाई क्रिसमस के त्यौहार के दौरान उपहार देने के लिए बाइबिल के संदर्भ के रूप में ‘तीन बुद्धिमान पुरुष या मैगी’ (Three Wise Men, or Magi) की कहानी से प्रेरित होते हैं। इस कहानी के अनुसार मैगी भी चरनी में बालक यीशु के लिए सोना, लोबान और लोहबान के उपहार लेकर आए थे। और यही परंपरा ईसाई धर्म के अनुयायियों द्वारा अब तक निभाई जा रही है। ये बहुमूल्य उपहार बुद्घिमान लोगों के मन में परमेश्वर के पुत्र यीशु के प्रति आदर और सम्मान को दर्शाते हैं। ईसाई धर्म के लोग भी बालक रूप यीशु के सम्मान में तीन बुद्धिमान पुरुषों को याद करने के तरीके के रूप में अपने परिवार, मित्रों एवं जरूरतमंदों को उपहार देते हैं। उपहार देने के रिवाज़ का अर्थ ही यह माना जाता है कि आज का क्रिसमस का दिन यीशु के जन्म का दिन है। इसके अलावा क्रिसमस का उपहार उन अपनों को आश्चर्यचकित करने और प्रसन्न करने का भी एक तरीका है जिनसे हम प्यार करते हैं। अपनों के लिए क्रिसमस उपहार लाने और बदले में अपनों से क्रिसमस उपहार पाने के लिए लोगो में एक अलग ही उत्साह होता है।वर्ष का यह समय बच्चों की प्रत्याशा और आशा के लिए विशेष हो जाता है। बच्चे अपने छोटे छोटे हाथों से क्रिसमस ट्री पर सजे हुए उपहारों को लेने के लिए लालायित रहते हैं। दूसरी तरफ वयस्क और बुजुर्ग लोग अपनी पुरानी यादों और शौक के साथ अपने बचपन के क्रिसमस को याद करते हैं। क्रिसमस उपहार का व्यावसायिक रूप से भी महत्त्व है। अनेकों व्यवसाय वर्ष के इस समय का उपयोग प्रचार और विज्ञापन के लिए करते हैं। कई कंपनियाँ महत्वपूर्ण ग्राहकों को उनके व्यवसाय के लिए धन्यवाद देने के लिए क्रिसमस के मौके पर उपहार भेजती हैं। ये भी माना जाता है कि सर्दियों के मध्य में उपहार देने की प्रथा यीशु के जन्म से बहुत पहले से चली आ रही है। कई प्रारंभिक संस्कृतियों, जैसे कि रोमन (Romans) और नॉर्स (Norse), में शीतकालीन संक्रांति के त्यौहारों पर उपहार देने की परंपरा थी। यह भी मान्यता है कि प्राचीन रोमन गणराज्य (133-31 ईसा पूर्व) के दौरान, रोमन बुतपरस्त देवता, शनि, को समर्पित सैटर्नलिया (Saturnalia) नामक एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था। जो 17 दिसंबर से शुरू होता था और पूरे सप्ताह चलता था। इस दौरान शहरवासी विभिन्न प्रकार के आयोजन करते थे और जश्न मनाते थे। कुछ उत्सव प्रथाओं में शनि को उपहार देना और बलि देना भी शामिल था। उत्सव मनाने और उपहार देने की यह परंपरा ईसाई धर्म द्वारा इन संस्कृतियों को ईसाई धर्म में विलय करने के तरीके के रूप में अपनाई गई कई रीति-रिवाजों में से एक मानी जाती है। क्रिसमस पर उपहार देने की प्रथा, मोमबत्तियाँ जलाना, उत्सव के गीत और भव्य दावतें आयोजित करना जैसी अन्य मौसमी रीति-रिवाजों का एक स्वाभाविक अंगीकरण था।
क्रिसमस के मौके पर उपहार देने के अलावा एक और परंपरा का भव्य रूप से आयोजन किया जाता है, वह है भव्य भोज आयोजित करना। क्रिसमस भोज पारंपरिक रूप से क्रिसमस पर खाया जाने वाला भोजन है। यह भोज क्रिसमस की पूर्व संध्या से लेकर क्रिसमस दिवस की शाम तक किसी भी समय हो सकता है। धार्मिक उत्सव से संबंधित भोज में अनुष्ठान तत्व जैसे प्रभु की कृपा की कहानी भी शामिल होते हैं। क्रिसमस पर आयोजित होने वाले भोज विशेष रूप से भव्य एवं समृद्ध होते हैं। कई लोगों के लिए, क्रिसमस, दावत और मौज-मस्ती का समय है। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में क्षेत्रीय व्यंजनों और स्थानीय परंपराओं के अनुसार खाया जाने वाला भोजन अलग-अलग होता है। दुनिया के कई हिस्सों में, विशेष रूप से पूर्व ब्रिटिश उपनिवेशों में, क्रिसमस रात्रिभोज में भुना हुआ मांस और विशिष्ट प्रकार का हलवा शामिल होता है। क्रिसमस पुडिंग और क्रिसमस केक इसी परंपरा से विकसित हुए हैं। यदि बात की जाए हमारे देश भारत की, तो भारत में क्रिसमस पर विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं, जिनमें चिकन या मटन के साथ बिरयानी, चिकन और मटन करी, केक या खीर जैसी मिठाइयाँ शामिल होती हैं। भारत में जब भी क्रिसमस समारोह की बात आती है, तो केवल 3 राज्य,गोवा, पुडुचेरी और केरल पारंपरिक क्रिसमस भोजन बनाने में शीर्ष पर आते हैं। पहले दो राज्यों पर पश्चिमी औपनिवेश का बहुत प्रभाव रहा है, जबकि केरल एक ऐसा राज्य है जहां सबसे अधिक भारतीय ईसाई रहते आए हैं। गोवा के कैथलिक ईसाई समुदायों में पोर्क व्यंजन और बीफ व्यंजन क्रिसमस रात्रिभोज के मुख्य पाठ्यक्रम के हिस्से होते हैं।
इनमें पोर्क विंदालू (Pork Vindaloo) और सोर्पाटेल (Sorpatel) जैसे व्यंजन मुख्य रूप से शामिल होते हैं। केरलवासी आधी रात की सामूहिक प्रार्थना, क्रिसमस कैरोल और भोजन के साथ क्रिसमस मनाते हैं। यहाँ क्रिसमस का जश्न क्रिसमस की पूर्व संध्या से शुरू होता है। केरल में चर्च की सजावट, क्रिसमस ट्री और बड़े बड़े क्रिसमस सितारे मुख्य रूप से आकर्षण का केंद्र होते हैं। केरलवासी कैरोल समय के दौरान जश्न मनाने और नृत्य करने के लिए घर-घर जाते हैं। हिंदू और मुसलमानों सहित सभी केरलवासी पूरे उत्साह के साथ क्रिसमस मनाते हैं और मिठाइयाँ और उपहार बाँटते हैं और कैरोल और शहर समारोहों में भाग लेते हैं। क्रिसमस की सामूहिक प्रार्थना के बाद प्लम केक काटना केरल में एक परंपरा के रूप में माना जाता है। क्रिसमस पर बनने वाले व्यंजनों की बात आते ही सबसे पहले किसी के भी मन में यदि कोई ख्याल आता है तो वह पारंपरिक प्लम केक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर जौनपुर के निकट स्थित अपने ही प्रयागराज या आम तौर पर कहे जाने वाले इलाहाबाद में एक ऐसा इलाहाबादी केक बनाया जाता है, जो क्रिसमस केक का एक ऐसा संस्करण है जिसे पहले कभी कहीं नहीं देखा या चखा गया है। यदि आप सोच रहे हैं कि इसमें ऐसा क्या अनोखा है, तो हम आपको बता दें कि यह क्रिसमस केक 'पेठा' या लौकी का उपयोग करके बनाया जाता है!
शहर के एंग्लो-इंडियन समुदाय के प्रभाव से, यह पारंपरिक भारतीय क्रिसमस केक सदियों से बनाया जाता रहा है और यह बिल्कुल देसी है! इसके स्वाद को लाजवाब बनाने वाली बात यह है कि यह इलाहाबादी क्रिसमस केक बहुत सारे घी, मुरब्बा और पेठे के साथ बनाया जाता है। हालांकि यह आश्चर्य की बात है कि हमारे जौनपुर शहर में कोई चर्च नहीं है, लेकिन इससे यहाँ के ईसाइयों का क्रिसमस का त्यौहार मनाने का उत्साह कभी कम नहीं होता है और उन्हें विभिन्न प्रकार के क्रिसमस व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हुए देखा जा सकता है। जौनपुर के ईसाई, वाराणसी सूबा के अंतर्गत आते हैं।

संदर्भ
https://rb.gy/trvo8e
https://rb.gy/nvide4
https://rb.gy/r8xq85
https://rb.gy/ddcmse
https://shorturl.at/fpuXZ
https://shorturl.at/jBKS9

चित्र संदर्भ
1. इलाहाबादी केक को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. एक भारतीय स्कूल में क्रिसमस मनाते बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक भारतीय ईसाई को दर्शाता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
4. क्रिसमस भोज को संदर्भित करता एक चित्रण (PickPik)
5. कट रहे इलाहाबादी केक को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)



***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • बैरकपुर छावनी की ऐतिहासिक संपदा के भंडार का अध्ययन है ज़रूरी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:21 AM


  • आइए जानें, भारतीय शादियों में पगड़ी या सेहरा पहनने का रिवाज़, क्यों है इतना महत्वपूर्ण
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:18 AM


  • नटूफ़ियन संस्कृति: मानव इतिहास के शुरुआती खानाबदोश
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:24 AM


  • मुनस्यारी: पहली बर्फ़बारी और बर्फ़ीले पहाड़ देखने के लिए सबसे बेहतर जगह
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:24 AM


  • क्या आप जानते हैं, लाल किले में दीवान-ए-आम और दीवान-ए-ख़ास के प्रतीकों का मतलब ?
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:17 AM


  • भारत की ऊर्जा राजधानी – सोनभद्र, आर्थिक व सांस्कृतिक तौर पर है परिपूर्ण
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:25 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर देखें, मैसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी के चलचित्र
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, कौन से जंगली जानवर, रखते हैं अपने बच्चों का सबसे ज़्यादा ख्याल
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:12 AM


  • आइए जानें, गुरु ग्रंथ साहिब में वर्णित रागों के माध्यम से, इस ग्रंथ की संरचना के बारे में
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:19 AM


  • भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली में, क्या है आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और चिकित्सा पर्यटन का भविष्य
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:15 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id