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वर्तमान समय में दुनिया भर में लोग अपनी मातृभाषा से सम्बंधित किताबों और साहित्यिक इतिहास की ओर आकर्षित हो रहे हैं। शायद यही कारण है कि आज हमें विभिन्न प्रकार के "साहित्यिक संग्रहालय" भी देखने को मिल रहे हैं। ऐसे संग्रहालय जो साहित्य और साहित्यिक पर्यटन से संबंधित होते हैं, या एक व्यक्तिगत लेखक पर केंद्रित होते हैं, साहित्यिक संग्रहालय कहलाते हैं। ऐसे संग्रहालयों में ‘औज़ोव (Auezov) गृह संग्रहालय’, ‘बैतुरसिनोव (Baitursynov) गृह संग्रहालय’, ‘झांसुगुरोव (Zhansugurov) साहित्य संग्रहालय’, ‘एस. मुकानोव (S.Mukanov) और जी. मुसरेपोव (G.Musrepov) संग्रहालय, पेटोफी (Petőfi) साहित्य संग्रहालय, सरस्वती मंदिर आदि शामिल हैं। एक साहित्यिक संग्रहालय विशेष रूप से सांस्कृतिक विरासत माने जाने वाले साहित्य से सम्बंधित एक संस्था होती है। समाज में साहित्य की भूमिका के बारे में ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार की संग्रहालय संस्थाएँ साहित्य का अधिग्रहण, संरक्षण और संचार करती हैं।
उपरोक्त संग्रहालयों के अतिरिक्त वर्तमान समय में पूरे विश्व में अनेकों साहित्यिक संग्रहालय मौजूद हैं, जिनमें इंग्लैंड (England) में जेन ऑस्टेन हाउस संग्रहालय (Jane Austen’s House Museum), ब्रोंटे पार्सोनेज संग्रहालय (Bronte Parsonage Museum), न्यूस्टेड एबे, लॉर्ड बायरन हाउस (Newstead Abbey, Lord Byron’s house), हिल टॉप, बीट्रिक्स पॉटर हाउस (Hill Top, Beatrix Potter’s House), रोआल्ड डाहल संग्रहालय और कहानी केंद्र (Roald Dahl Museum and Story Centre) , नेशनल स्टाइनबेक सेंटर (National Steinbeck Centre), मार्क ट्वेन हाउस एंड म्यूजियम (Mark Twain House & Museum), राष्ट्रीय लियो टॉल्स्टॉय संग्रहालय-एस्टेट (The National Leo Tolstoy Museum-Estate), काफ्का संग्रहालय (The Kafka Museum), मैसन डू विक्टर ह्यूगो संग्रहालय (Maison du Victor Hugo) आदि शामिल हैं।
हालांकि पारंपरिक रूप से साहित्यिक संग्रहालयों ने साहित्य को समकालीन सामाजिक सरोकारों से नहीं जोड़ा है, इसके बजाय इन्होंने किताबों, कविताओं और नाटकों को मुख्य रूप से उनके ऐतिहासिक संदर्भ के लिए रखा है। आज, अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America) में साहित्य और लेखकों को समर्पित 100 से अधिक संग्रहालय मौजूद हैं। वर्तमान समय में साहित्यिक संग्रहालय का पारंपरिक मॉडल बदल रहा है। अब इसमें प्रदर्शन और प्रोग्रामिंग के नए रूप जुड़ गए हैं। इन संग्रहालयों में रखी गई किताबें, पांडुलिपियां, चलचित्र, रिकॉर्डिंग और रोजमर्रा की जिंदगी की वस्तुएं साहित्य को आगंतुकों के जीवंत जीवन से जोड़ती हैं, तथा आगंतुकों को संग्रहालयों में शामिल रचनात्मक प्रक्रिया से अवगत कराती हैं।
हमारे शहर जौनपुर से कुछ दूरी पर स्थित वाराणसी के निकट लमही शहर है, जहां भारत के महानतम हिंदी लेखक मुंशी प्रेमचंद का एक संग्रहालय मौजूद है। हालांकि सरकार ने इस संग्रहालय को निधि और समर्थन प्रदान किया है, लेकिन आज यह संग्रहालय अपनी जीवंतता को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। 2015 में बंगलौर शहर में साहित्य प्रेमी नागरिकों द्वारा इस संग्रहालय के लिए धन जुटाने हेतु एक अभियान भी चलाया गया था ।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले के लमही शहर में हुआ था। धनपत राय के रूप में जन्मे, साहित्यकार ने अपने छद्म नाम 'नवाब राय' और 'प्रेमचंद' के तहत उर्दू और हिंदी भाषाओं में व्यापक रूप से लिखा। लमही स्थित जिस घर में प्रेमचंद ने अपना पूरा जीवन बिताया, वह इस "कलम के सिपाही" की महान रचनाओं का स्मारक है। मुंशी प्रेमचंद ने अपने साहित्यिक जीवन को जनता के बीच साम्राज्यवाद का विरोध करने और समतावाद को बढ़ावा देने के लिए समर्पित किया। उनके देशभक्ति लघु कहानी संग्रह ‘सोज़-ए-वतन’ (राष्ट्र का विलाप) पर औपनिवेशिक सरकार द्वारा प्रतिबंध लगा दिया गया था, और इसकी प्रतियां जब्त कर जला दी गई थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान, उन्होंने प्रसिद्ध लघु कहानी समर यात्रा लिखी, जिसमें उन्होंने लोगों के दिमाग पर राष्ट्रीय आंदोलन के मुक्तिदायक प्रभाव का वर्णन किया।
वाराणसी-आजमगढ़ रोड के करीब स्थित, मुशी प्रेमचंद के दो मंजिला घर को 2005 में राष्ट्रीय स्मारक के रूप में मान्यता दी गई। प्रेमचंद स्मारक और शोध केंद्र ‘प्रेमचंद शोध एवं अध्ययन संस्थान’ की स्थापना उनके कार्यों और विचारों को उजागर करने, उनका अध्ययन करने और उन्हें प्रसारित करने के लिए की गई थी। इसमें एक संग्रहालय और 300 खंडों वाला एक पुस्तकालय भी है। लमही में उनकी कालजयी कृतियों पर अनेकों नाटक भी किए जाते हैं।
किंतु यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि मुंशी प्रेमचंद संग्रहालय को अपनी जीवंतता बनाए रखने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। कुछ समय पूर्व तक “उपन्यास सम्राट प्रेमचंद” के घर को उपेक्षित रखा गया था और यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था। यहां तक कि बिजली शुल्क का भुगतान न होने के कारण उनकी जयंती के मौके पर बिजली भी काट दी गई थी। किंतु बेंगलुरु में चलाए गए एक अभियान, जिसमें भारतीय साहित्य को पसंद करने वाले एक लाख छात्र और कुछ राष्ट्रवादी शामिल थे, ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक औपचारिक याचिका प्रस्तुत की। याचिका प्राप्त करने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस उद्देश्य के लिए 1.5 करोड़ रुपये और 2.5 एकड़ जमीन आवंटित करने की घोषणा की।
संदर्भ:
https://bit.ly/3oqNZbQ
https://bit.ly/3MZHG9f
https://bit.ly/3AhhRdg
https://bit.ly/41GAZNA
https://bit.ly/3KQpkVH
https://bit.ly/41Hwjam
https://bit.ly/3LdSVK7
चित्र संदर्भ
1. मुंशी प्रेमचंद्र स्मारक लमही को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
2. जेन ऑस्टेन हाउस संग्रहालय को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. मुंशी प्रेमचंद स्मृति द्वार, लमही, वाराणसी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. मुंशी प्रेमचंद के पैतृक निवास, को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. मुंशी प्रेमचंद और उनकी पत्नी शिवरानी देवी को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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