आज कपास की आसमान छूती कीमतें छोटी मिलों की स्थिरता, लाभ क्षमता के लिए नहीं अनुकूल

जौनपुर

 28-05-2022 09:18 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े

इन दिनों केवल भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया, दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली अनेक जरूरी वस्तुओं के आसमान छूते दामों से परेशान है! महंगाई ने रोटी, और मकान जैसी बेहद जरूरी आवश्यकताओं तक आम आदमी की पहुंच को और भी अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है! वास्तव में कपड़ा उद्योग भी इस महंगाई के बीच काफी संघर्ष कर रहा है! क्यों की कपास की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि ने, वस्त्र व्यवसाय को कम से कम, अभी के लिए अव्यावहारिक बना दिया है।
कपड़ा क्षेत्र, भारत में निर्यात और रोजगार का एक बड़ा स्रोत माना जाता है। भारत ने वित्त वर्ष 2011-22 में लगभग US $ 40 बिलियन मूल्य के वस्त्र, और संबद्ध उत्पाद निर्यात किये थे। हालांकि, पश्चिमी खरीदार अब यहां उच्च लागत के कारण, अन्य वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहे हैं।
साउथ इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन (The South India Spinners Association) के सभी सदस्यों ने, सर्वसम्मति से 22 मई 2022 को घोषणा की कि, वे अपनी सभी मीलों को बंद कर रहे हैं! उनके “सदस्य तब तक कपास नहीं खरीदेंगे, जब तक कि कपास की कीमत की स्थिति, मिलों की स्थिरता और लाभ क्षमता के लिए अनुकूल न हो जाए।” मिलों के बंद होने के पीछे के कारणों के रूप में, जनवरी-मई से कपास की कीमतों में 53% की वृद्धि और यार्न (yarn) की कीमतों में 21% की वृद्धि का हवाला दिया गया है। कपास की कीमतें जनवरी 2022 में 75,000 रुपये प्रति कैंडी (356 किलोग्राम) से बढ़कर अब 1,15,000 रुपये हो गई हैं। वहीं, यार्न की कीमतें 328 रुपये प्रति किलोग्राम से बढ़कर 399 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई हैं। इस वृद्धि के पीछे मुख्य कारण, कम घरेलू कपास उत्पादन, उच्च मांग और बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतें मानी जा रही हैं।
कृषि मंत्रालय द्वारा कपास उत्पादन के अन्य अग्रिम आंकड़ों को देखे तो, 2021-22 के फसल वर्ष में देश का कपास उत्पादन 3% यानि 35 मिलियन से अधिक, घटकर 34 मिलियन गांठ (bales) रहने का अनुमान है। लगभग 5 मिलियन गांठों को बाहर भेजे जाने की उम्मीद है। बड़े कपास व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNCs) ने, कपास की भारी मात्रा में खरीद और भंडारण किया है, और कुछ मात्रा का निर्यात भी किया गया है।
जैसे-जैसे कीमतें आसमान छू रही हैं , छोटी मिलें कार्यशील पूंजी की कमी के कारण, कपास नहीं खरीद पा रही हैं। इससे पूर्व कपड़ा इकाइयों ने कपास और धागे की ऊंची कीमतों पर, केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए, 16 और 17 मई को, तिरुपुर, करूर और इरोड (तमिलनाडु में) में अपना काम रोक दिया था। कपड़ा उत्पादों के निर्यात, आयात, उत्पादन और निर्माण में शामिल, हजारों इकाइयों ने घोषणा की कि, “वे इन दो दिनों में हड़ताल के रूप में अपना काम बंद कर देंगे।”
इस क्षेत्र के जानकारों के अनुसार, वित्तीय तनाव के कारण, मिलें अपनी क्षमता का केवल 40% काम ही कर पा रही थीं। टीईए (TEA) ने केंद्र सरकार के समक्ष कुछ मांगें रखी हैं, जिनमें कपास और धागे के निर्यात पर अस्थायी प्रतिबंध, कमोडिटी ट्रेडिंग सूची (commodity trading list) से कपास को हटाना और इसे आवश्यक वस्तु अधिनियम (essential commodities act) के तहत लाना शामिल है। यहां तक ​​​​कि, इस संबंध में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन (M.K Stalin) ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर, दक्षिणी राज्य में कपड़ा उद्योग के सामने आने वाले व्यवधानों को चिह्नित किया और उनसे मूल्य वृद्धि पर लगाम लगाने के उपाय लागू करने का आग्रह किया है। उनकी मांगों में कपास और सूत के लिए तत्काल स्टॉक की घोषणा, सभी कताई मिलों के लिए अनिवार्य किया जाना शामिल है ताकि गिन्नी और कपास व्यापारियों को कपास और यार्न की उपलब्धता पर वास्तविक डेटा मिल सके। कपास खरीदने के लिए, कताई मिलों की नकद ऋण सीमा को एक वर्ष में आठ महीने तक बढ़ाया जा सकता है, और इसी तरह, बैंकों द्वारा खरीद मूल्य के 25% पर मार्जिन मनी की मांग (margin money demand) को, 10% तक कम किया जा सकता है, क्योंकि बैंक वास्तविक खरीद और बाजार दरों की तुलना में कम दरों पर खरीद स्टॉक मूल्य की गणना करते हैं।
हालांकि दक्षिण भारत की कई छोटी मिलें, इस आग्रह का विरोध भी कर रही हैं, लेकिन हर जगह स्थिति गंभीर बनी हुई है। पश्चिमी क्षेत्र में, महाराष्ट्र में भिवंडी, मालेगांव और सोलापुर में लगभग 2.3 मिलियन बिजली करघे हैं और ये सभी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। वही इचलकरंजी में 0.12mn बिजली करघे हैं जो दैनिक आधार पर 20mn मीटर कपड़े का उत्पादन करते हैं, जबकि महाराष्ट्र हर दिन लगभग 250 mn मीटर का उत्पादन करता है। अधिकांश कस्बे की इकाइयां, इसलिए बंद रहना चाह रही हैं, क्योंकि वे कपास की ऊंची कीमतों को वहन नहीं कर सकती हैं।
इस स्थिति में बड़ी कपड़ा कंपनियां भी खुद को अविश्वसनीय स्थिति में पा रही हैं। होम टेक्सटाइल (Home Textiles) प्रमुख वेलस्पन इंडिया (Welspun India) ने, Q4FY21-22 के लिए समेकित शुद्ध लाभ (consolidated net profit)में 51.25 करोड़ रुपये में 62% की गिरावट दर्ज की है। एक अन्य उपकरण निर्माता के अनुसार, “कपड़ा फर्मों के ऑर्डर इसलिए भी कम हो गए हैं, क्योंकि सूत कातने और मौजूदा कपास की कीमतों पर, वस्त्र बुनाई कंपनियों के लिए अव्यावहारिक होता जा रहा है।” सरकार ने, पिछले महीने कीमतों को कम करने के लिए इस साल अप्रैल से सितंबर तक कपास आयात पर सीमा शुल्क माफ कर दिया था। "हालांकि तब यह उम्मीद की जा रही थी कि, आयात शुल्क में कमी से कपड़ा उद्योग को फायदा होगा और कपास तथा बाद में परिधान उद्योग के लिए सूती धागे की कीमतें कम रहेंगी!
भारत के कपड़ा उद्योग में देश भर में 3.52 मिलियन हथकरघा श्रमिकों (handloom workers) सहित लगभग 45 मिलियन श्रमिक कार्यरत हैं। भारत की उच्च लागत के कारण, पश्चिमी खरीदार भी वैकल्पिक स्रोतों की तलाश कर रहे हैं। अमेरिका के बिस्तर-लिनन (bed linen) निर्यात में, भारत की हिस्सेदारी 2021 में औसतन 55% से गिरकर, जनवरी 2022 में 44.85% हो गई है। इसके विपरीत, पाकिस्तान का हिस्सा 20% से बढ़कर 25.71% हो गया, तथा इस दौरान चीन का हिस्सा 12% से बढ़कर 19.37% हो गया है। वर्तमान में स्थिति अत्यंत अनिश्चित है, क्योंकि मूल्य श्रृंखला खंड (value chain segment), न केवल व्यापार खो रहा है, साथ ही अमेरिका जैसे बड़े देशों में बाजार हिस्सेदारी भी खो रहा है। मेड-अप्स एक्सपोर्टर्स फोरम (Made-ups Exporters Forum) ने कहा कि “कई एमएसएमई इकाइयां (MSME units) अब, बंद होने की ओर अग्रसर हैं, क्योंकि सूती धागे की कीमतों में अभूतपूर्व वृद्धि के बाद वे काम करने में असमर्थ हैं और इससे नौकरियों का भी नुकसान होगा।
हालांकि इस संबंध में, सरकार स्थिति की निगरानी कर रही है और पिछली हितधारकों की बैठक के दौरान कहा गया था कि, अगर आपूर्ति श्रृंखला, मूल्य श्रृंखला के लिए कम कीमत पर कच्चे माल को सुनिश्चित नहीं करती, तो वह सूती धागे के निर्यात पर लाभ वापस लेगी और कच्चे माल के निर्यात पर शुल्क लगाएगी। मेड-अप्स एक्सपोर्टर्स फोरम के संयोजक अमित रूपारेलिया ने कहा कि, महामारी की दूसरी लहर के बाद घरेलू वस्त्र, परिधान जैसे मूल्य वर्धित उत्पादों की अच्छी मांग थी, और यह क्षेत्र मांग को पूरा करने के लिए पूरी तरह से तैयार था। इससे पहले, सरकार ने कोविड महामारी के प्रभाव को कम करने के लिए क्रेडिट गारंटी योजना, ऋण पुनर्गठन उपायों, अधिस्थगन, ब्याज भुगतानों को स्थगित करने, आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee Scheme) और सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों के लिए क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट (credit guarantee fund trust) सहित कई उपायों के साथ उद्योग को समर्थन दिया था।

संदर्भ
https://bit.ly/3yWuLhv
https://bit.ly/3LO7Fwf

चित्र संदर्भ
1. कपास मिल में काम करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. कपास उत्पादन में आश्रित एक वृद्ध को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. बंद पड़ी कपड़ा मिल को दर्शाता एक चित्रण (Geograph)
4. कपास के पोंधे को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. कपास उत्पादन के नक़्शे (इसके उत्पादन समय के लिए उपयोग की जाने वाली भूमि का औसत प्रतिशत प्रत्येक ग्रिड सेल में औसत उपज) को दर्शाता एक चित्रण (flickr)



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