क्या गणित से डर का कारण अंक नहीं शब्द हैं?भाषा के ज्ञान का आभाव गणित की सुंदरता को धुंधलाता है
भारत ने दुनिया को श्रीनिवास रामानुजन और आर्यभट्ट जैसे महान गणितज्ञ दिए हैं, जिन्होंने आज से
हज़ारों साल पहले भी, अपनी अद्भुत गणितीय क्षमता से, तत्कालीन श्रेष्ठ गणितज्ञों को भी हैरान कर दिया
था! वह भी बिना किसी ठोस और तथाकथित प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की सहायता लिए बिना!
इससे एक बात साफ़ तौर पर स्पष्ट हो जाती है की, शिक्षा (विशेष तौर पर गणित) किसी भी शहरी या
ग्रामीण शिक्षा के मतभेदों से बिलकुल से परे है। लेकिन भाषा के ज्ञान का आभाव गणित की वास्तविक
सुंदरता को धुंधला कर देता है, किंतु क्या इस तथ्य को हमारी शिक्षा व्यवस्था समझ पाई है? चलिए जानते
हैं!
भारत में हर साल हाई स्कूल फाइनल की परीक्षा देने वाले 10 मिलियन छात्रों में से, 65% गैर-अंग्रेजी
माध्यम के स्कूलों से आते हैं। हालांकि, देश में उच्च शिक्षा, विशेष रूप से एसटीईएम विषय (STEM
subject), वर्तमान में लगभग पूरी तरह से अंग्रेजी आधारित हो गए है। वास्तव में छात्रों के लिए, अपरिचित
भाषा में कुछ भी सीखना एक अतिरिक्त चुनौती या कइयों के लिए असंभव हो सकता है, जिससे हर साल
हजारों प्रतिभाशाली लोग प्रीमियम संस्थानों से बाहर हो जाते हैं।
हाशिए के समुदायों (marginalized communities) में भाषा की बाधा तुलनात्मक रूप से अधिक गंभीर
है, जहां गणित छोड़ने वालों की दर 60% तक हो सकती है। लेकिन भारत में "मातृभाषा" में शिक्षा प्राप्तकरने की दर में वृद्धि देखी जा रही है! अब पाठ्यक्रम हिंदी, मराठी, तमिल और अन्य गैर-अंग्रेजी भाषाओं
में पढ़ाए जा रहे हैं। 2021 में, राज्य-अनुमोदित इंजीनियरिंग स्कूलों में 1,230 सीटों को देशी भाषाओं में
अध्ययन के लिए आवंटित किया गया था।
स्थानीय भाषाओं में डिजिटल सेवाओं तक पहुंच की बढ़ती मांग ने, राज्य को पिछले साल एक राष्ट्रीय भाषा
अनुवाद मिशन के निर्माण के लिए धन आवंटित करने के लिए मजबूर किया, जिसका एकमात्र फोकस
स्थानीय भाषा में अनुवाद में तेजी लाना था। तकनीकी शिक्षा के लिए भारत की सर्वोच्च संस्था, अखिल
भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने, ऑनलाइन पाठ्यक्रमों का आठ भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने के
प्रयासों को बढ़ावा दिया है।
द इंग्लिश मीडियम मिथ (The English Medium Myth) नामक पुस्तक के लेखक, संक्रांत सानू के
अनुसार, "देश की 99.9% आबादी को केवल इसलिए नज़रंदारज किया जा रहा है ताकि कुछ लोग अमेरिका
में सीईओ बन सकें।" शिक्षाविदों का मानना है कि स्थानीय भाषा की तकनीकी शिक्षा, वैश्विक मांग के
साथ असंगति पैदा करती है, और स्थानीय माध्यम उच्च शिक्षा संस्थानों से स्नातक करने वाले छात्रों को
नौकरी पाने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है। लेकिन "अंग्रेजी के नाम पर, हमने बहुत सारे नवाचारों को
मार दिया है, और अब समय आ गया है कि जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते, वे भी उत्कृष्टता प्राप्त कर सकते
हैं।"
मातृभाषा में शिक्षा की ओर रुझान को सरकार द्वारा भी बढ़ावा दिया जा रहा है। 2010 के दशक की
शुरुआत में शुरू हुई, राष्ट्रवादी राजनीति में वृद्धि ने भारतीय भाषाओं, विशेष रूप से प्राचीन भारतीय भाषा
हिंदी और संस्कृत, को बढ़ावा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में स्थानीय भाषा निगम का विस्तार
करने और क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की डिग्री देने की आवश्यकता पर बल दिया।
शिक्षा आधारित एक ऐप एडटेक (edtech app ) के अध्ययन से पता चलता है की, कक्षा 7 के बाद गणित
के प्रदर्शन में 20% की गिरावट आ जाती है, क्योंकि छात्रों को शब्द ही समझ में नहीं आते हैं! बेंगलुरु स्थित
काउंटिंगवेल (countingwell) द्वारा साल भर किये गए, अध्ययन से पता चलता है कि, सिर्फ 28% छात्रों
को ही भाषा की अच्छी समझ है, और शेष बचे छात्रों के परिणाम, उनके शब्दों की समझ के आभाव में खराब
हो जाते हैं।
नई दिल्ली में मध्य-विद्यालय के छात्रों (कक्षा 6 से 10 में पढ़ने वाले) के बीच, गणित सीखने पर एक साल
के लंबे अध्ययन से पता चला है कि, उनमें से अधिकांश के पास भाषा समझ का खराब कौशल है, जिसके
परिणामस्वरूप कक्षा में गणित के प्रदर्शन में 20 प्रतिशत की गिरावट आई है।
भाषा के ख़राब कौशल के कारण कई छात्र गणित से डरते हैं और खराब अंक प्राप्त करते हैं। लेकिन गणित
सीखने में और भी कमियां हैं जो कक्षा 7 के बाद से दिखने लगती हैं। अध्ययन में पाया गया कि भाषा की
समझ के बाद, अधिकांश छात्रों ने गणित की समस्याओं की मॉडलिंग (modeling of problems) को एक
चुनौतीपूर्ण कार्य पाया। केवल 39% निगरानी वाले छात्र ही समस्याओं का मॉडल बनाने में सक्षम थे। कक्षा
6-7 के बाद से, पाठ्यक्रम में शामिल गणितीय अवधारणाएँ अधिक सारगर्भित हो जाती हैं और एक
समस्या को हल करने के लिए छात्रों को अक्सर कई अवधारणाओं का उपयोग करने की आवश्यकता होती
है।
इसके अलावा, अध्ययन में गणित पढ़ाने में माता-पिता की भागीदारी में गिरावट देखी गई, जो समझ में
आता है, क्योंकि माता-पिता को भी अपने बच्चों को जटिल और अमूर्त अवधारणाओं को आसानी से
समझाने में मुश्किल होती है। इसके अलावा, बड़े शहरों के छात्रों और छोटे या दूरदराज के शहरों के छात्रों के
बीच गणित की प्रवीणता में अनुमानित अंतर, अध्ययन में पौराणिक साबित हुआ। इसमें पाया गया की,
शहरों के छात्र महानगरों या ग्रामीण छात्रों के बराबर ही थे। वाराणसी, मदुरै, जबलपुर या नासिक जैसे शहरों
के छात्र भी गणित के साथ दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु में पढ़ने वाले अपने समकक्षों के समान प्रदर्शन करते
पाए गए। रिपोर्ट के निष्कर्ष एक और व्यापक रूप से प्रचलित धारणा का भी खंडन करते हैं कि, लड़के,
लड़कियों की तुलना में गणित का अध्ययन करने या उसमें महारत हासिल करने में स्पष्ट रूप से बेहतर हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3FYWdfU
https://bit.ly/3sLkz7A
https://bit.ly/3t8i0gf
चित्र संदर्भ
1 गणित के डर को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. गणित के पाठ सीखते छात्रों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. द इंग्लिश मीडियम मिथ (The English Medium Myth) नामक पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (amazon)
4. गणित के प्रश्न को हल करते छात्र को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
5. पढाई करते ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
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