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सिंधु घाटी सभ्यता की कला

जौनपुर

 06-01-2022 10:05 AM
द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

तीसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य तक, उत्तर पश्चिम भारत में सिंधु और सरस्वती नदियों के किनारे एक काफी विकसित शहरी संस्कृति मौजूद थी।सिंधु घाटी सभ्यता की कुछ ऐसी विशिष्ट विशेषताएं हैं जो प्राचीन दुनिया में कहीं भी नहीं देखी जा सकती हैं। विभिन्न उत्खनन स्थलों पर विभिन्न मूर्तियां, मुहरें, कांस्य के बर्तन, मिट्टी के बर्तन, सोने के आभूषण तथा टेराकोटा, कांस्य और स्टीटाइट (Steatite) से बनी विस्तृत मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। हड़प्पावासियों ने विभिन्न खिलौने और खेल सामग्रियां भी बनाई, जिनमें घनाकार पासे (जिसकी सतह पर एक से लेकर छह छेद मौजूद थे)शामिल थे, जो मोहनजो-दड़ो जैसी साइटों में पाए गए थे। तो आइए आज सिंधु घाटी सभ्यता की कला के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।
सिंधु घाटी सभ्यता जो दुनिया की सबसे प्रारंभिक सभ्यता में से एक है,की कलातीसरी सहस्राब्दी (कांस्य युग) के दूसरे चरण के दौरान उभरी।मानव और पशु आकृतियों का उनका चित्रण प्रकृति में अत्यधिक यथार्थवादी था।आकृतियों की मॉडलिंग अत्यंत सावधानीपूर्वक की गई थी।सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख स्थल हड़प्पा के शहर और मोहनजोदड़ो हैं।साइट नागरिक नियोजन के शुरुआती उदाहरणों में से एक को प्रदर्शित करती है।घरों, बाजारों, भंडारण सुविधाओं, कार्यालयों आदि को ग्रिड जैसे पैटर्न में व्यवस्थित किया गया था।इस पैटर्न में, सड़कें एक-दूसरे को 90-डिग्री के कोण में काटती थी,और शहर को ब्लॉकों में विभाजित कर दिया गया था। यहां एक अत्यधिक विकसित जल निकासी प्रणाली भी थी। विभिन्नकलाकृतियों को बनाने के लिए यहां के लोगों के द्वारा पत्थर, कांस्य, टेराकोटा, मिट्टी आदि का उपयोग किया गया था।सिंधु घाटी की जिन कलाओं का अभी तक उत्खनन हुआ उनमें पत्थर की मूर्तियाँ भी शामिल हैं। उत्खनन से प्राप्त दो प्रमुख पत्थर की मूर्तियों में एक दाढ़ी वाले आदमी(पुजारी आदमी) और नर धड़ शामिल है।दाढ़ी वाले आदमी की मूर्ति स्टीटाइट से बनाई गई है। माना जाता है, यह मूर्ति एक पुजारी को प्रदर्शित करती है,जिसने एक शॉल भी लपेट रखा है।शॉल को ट्रेफॉइल (Trefoil) पैटर्न से सजाया गया है। मूर्ति की आंखें लंबी और आधी बंद बनाई गई हैं, ताकि ध्यान की एकाग्रता प्रदर्शित हो।नाक को अच्छी तरह से बनाया गया है, तथा यह मध्यम आकार की है। चेहरे पर छोटी दाढ़ी और छोटी मूंछें भी बनाई गई हैं। इसी प्रकार से नर धड़ को लाल बलुआ पत्थर से निर्मित किया गया था।सिर और बाजुओं को जोड़ने के लिए गर्दन और कंधों में सॉकेट छेद बनाए गए थे। इसकी बहुत अच्छी तरह से नक्काशी और फिनिशिंग की गई थी। इस सभ्यता के लगभग सभी प्रमुख स्थलों में कांस्य या ब्रॉन्ज कास्टिंग (Bronze Casting) का व्यापक स्तर पर प्रचलन था। ब्रॉन्ज कास्टिंग के लिए लॉस्ट वैक्स (Lost Wax)तकनीक का उपयोग किया गया था।मानव और पशु मूर्तियां भी ब्रॉन्ज कास्टिंग में मौजूद थी। जानवरों की मूर्तियों में भैंस और बकरी की मूर्तियां या आकृतियां शामिल थी।लोथल के तांबे के कुत्ते और पक्षी और कालीबंगा के एक बैल की कांस्य आकृति से पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के सभी केंद्रों में कांस्य कास्टिंग लोकप्रिय थी।
कांस्य कास्टिंग के कुछ प्रमुख उदाहरणों में नृत्य करती हुई लड़की या डांसिंग गर्ल (Dancing girl) और मोहन जोदड़ो से प्राप्त बैल की मूर्ति है।डांसिंग गर्ल एक प्रागैतिहासिक कांस्य मूर्तिकला है, जिसे सिंधु घाटी सभ्यता शहर मोहनजो-दड़ो में लगभग 2300-1750 ईसा पूर्व लॉस्ट वैक्स कास्टिंग में बनाया गया था।मूर्ति 10.5 सेंटीमीटर (4.1 इंच) लंबी है, और एक नग्न युवा महिला या लड़की को दर्शाती है। मूर्ति को इस प्रकार से बनाया गया है, कि ऐसा लगता है कि लड़की आत्मविश्वास से भरी है तथा प्राकृतिक मुद्रा में खड़ी है।डांसिंग गर्ल को कला के काम के रूप में जाना जाता है, और यह सिंधु घाटी सभ्यता की एक सांस्कृतिक कलाकृति है।मूर्ति की खोज सबसे पहले ब्रिटिश पुरातत्वविद् अर्नेस्ट मैके (Ernest Mackay) ने 1926 में मोहनजोदड़ो के "एचआर क्षेत्र" में की थी। यह मूर्ति अन्य औपचारिक मुद्राओं की तुलना में अधिक लचीली विशेषताएं दिखाती है। मूर्ति को हाथों में कई चूड़ियाँ और गले में एक हार पहने दिखाया गया है। उसके बाएं हाथ में 24 से 25 चूड़ियाँ और दाहिनेहाथ में 4 चूड़ियाँ हैं।दोनों हाथ असामान्य रूप से लंबे हैं।उसके हार में तीन बड़े पेंडेंट हैं। उसके लंबे बालों को इस प्रकार से दिखाया गया है, कि वह एक बड़े बन जैसा दिखता है, जो कि उसके एक कंधे पर टिका है।उसकी आंखों को बड़ा और नाक को सपाट बनाया गया है। बैल की कांस्य आकृति को इस प्रकार बनाया गया है, कि जानवर का सिर दाईं ओर मुड़ा हुआ दिखाई देता है। इसके गले के चारों ओर एक रस्सी दिखाई गई है।गुजरात के स्थलों और कालीबंगा में टेराकोटा की मूर्तियां अधिक यथार्थवादी हैं।सबसे महत्वपूर्ण टेराकोटा की आकृतियाँ वे हैं जो देवी माँ का प्रतिनिधित्व करती हैं। उत्खनन में कई सीलें भी पाई गई, जो आमतौर पर स्टीटाइट,एगेट (Agate), चेर्ट (Chert), तांबा, टेराकोटा आदि से बने थे। इन पर बैल, गैंडा, बाघ, हाथी, बाइसन, बकरी, भैंस, आदि जानवरों की सुंदर आकृतियां उकेरी गयी थीं। उनका उपयोग ताबीज के रूप में भी किया जाता था।मानक हड़प्पा की मुहर 2 x 2 वर्ग इंच की थी।प्रत्येक मुहर एक चित्रात्मक लिपि में उकेरी गई है जिसे अभी तक समझा नहीं जा सका है। इसके अलावा कुछ सीलें सोने और हाथी दांत से भी बनाई गई थी।
इनमें पशुपति महादेव की मुहरें अत्यधिक प्रसिद्ध हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में मिट्टी के बर्तनों को प्रायः पहिए की सहायता से बनाया गया था, बहुत कम हस्तनिर्मित थे।चित्रित बर्तन की तुलना में सादे मिट्टी के बर्तन अधिक बनाए जाते थे।सादे मिट्टी के बर्तन आमतौर पर लाल मिट्टी के बने होते थे। काले रंग के बर्तन में लाल स्लिप का एक अच्छा लेप होता था,जिस पर चमकदार काले रंग में ज्यामितीय और पशु डिजाइन निष्पादित किए जाते थे।हड़प्पा के पुरुषों और महिलाओं ने कीमती धातुओं और रत्नों से लेकर हड्डी और पकी हुई मिट्टी तक हर बोधगम्य सामग्री से निर्मित विभिन्न प्रकार के गहनों से खुद को सजाया। सफेद हार, पट्टियां, बाजूबंद और अंगुलियों के छल्ले आमतौर पर दोनों लिंगों द्वारा पहने जाते थे।मोहनजोदड़ो और लोथल में मिले आभूषणों में सोने और अर्द्ध कीमती धातु पत्थरों के हार,तांबे के कंगन और मोती, सोने की बालियां और सिर के गहने शामिल हैं।

संदर्भ:
https://bit.ly/3JHzbvs
https://bit.ly/3mX9Lk1
https://bit.ly/3FZ9lki
https://bit.ly/3sZwaRd
https://bit.ly/34bJho7

चित्र संदर्भ   

1. सिन्धु घाटी से प्राप्त पुजारी राजा की प्रतिमा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. गेंडा और शिलालेख के साथ सील को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. कांस्य कास्टिंग के कुछ प्रमुख उदाहरणों में नृत्य करती हुई लड़की या डांसिंग गर्ल (Dancing girl) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. सिंध प्रांत के मोहनजोदड़ो के उत्खनित खंडहर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. हड़प्पा से चित्रित मिट्टी के बर्तनों के कलश को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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