गोमती नदी, उत्तर भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक है। इसका उद्गम पीलीभीत जनपद के पूर्व में 30 किमी दूर माधोटान्डा कस्बे में फुलहार झील से होता है। लखनऊ, लखीमपुर खीरी, सुल्तानपुर और जौनपुर गोमती के किनारे पर स्थित हैं और इसके जलग्रहण क्षेत्र में से सबसे प्रमुख शहर हैं। नदी जौनपुर शहर एवं सुल्तानपुर जिले को दो भागों में विभाजित करती है और जौनपुर में व्यापक हो जाती है। गोमती नदी गंगा की एक अहम सहायक नदी है। गोमती नदी जौनपुर वासियों के लिये जीवनदायिनी नदी है क्योंकि गोमती नदी की सिंचाई प्रणाली के माध्यम से ही जौनपुर जिले में रबी और खरीफ जैसी मौसमी कृषि के लिए पानी आवंटित किया जाता है। परिणामतः संपूर्ण क्षेत्र में कृषकों द्वारा सघन कृषि की जाती है।
इस नदी की विशेषता यह है कि ये बारहमासी है। यह नदी पूरे साल काफी धीमी रफ्तार से बहती है (बारिश के मौसम के अलावा, जिस वक्त काफी भारी वर्षा होती है)। इसका 75% प्रवाह सितंबर माह में हनुमान सेतु, लखनऊ में 125 घन मीटर प्रति सेकंड रिकार्ड किया गया है और मईघाट, जौनपुर (साईं-गोमती संगम के बाद) पर 450 घन मीटर प्रति सेकंड। नदी की कुल लंबाई लगभग 940 कि.मी. है और कुल जल निकासी क्षेत्र 30,437 वर्ग कि.मी. है। सई नदी इसकी मुख्य सहायक नदी है, तथा इसकी अन्य सहायक नदियां- कठिना, भैंसी, सारायण, गोन, रेठ, सई, पिली और कल्याणी है। जौनपुर के अतिरिक्त गोमती नदी अन्य शहरों को भी जल आपूर्ति करती है, जो इसके तट पर बसे हुए हैं, जिनमें बाराबंकी, सहारनपुर, लखीमपुर, फैजाबाद, सुल्तानपुर, लखनऊ, वाराणसी और गाजीपुर आदि शामिल हैं।
परंतु इस नदी में आस पास के क्षेत्र और औद्योगिक इकाइयों का गंदा-पानी तथा औद्योगिक अपशिष्ट भी बहता है। मिलों (Mills) और कारखानों के कचरे के कारण यह नदी प्रदूषित हो चुकी है। सरकार भी मानती है कि गोमती में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है। औद्योगिक अपशिष्ट से लेकर घरेलू गंदगी के साथ, यह नदी 15 छोटे और बड़े शहरों के लिए एक बहते हुए डंपिंग यार्ड (Dumping yard) में तब्दील हो चुकी है। वर्तमान में नदी का प्रवाह नाम मात्र ही रह गया है और इसमें मौजूद ऑक्सीजन (Oxygen) की मात्रा काफी हद तक गिर गई है।
वर्तमान में गोमती में प्रदूषण का स्तर इतना बढ़ गया है कि इसका पानी पीने तो दूर नहाने के योग्य भी नहीं रह गया है। लखनऊ और जौनपुर में गोमती नदी के जल की गुणवत्ता की काफी बुरी हालत है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार, 100 क्यूबिक सेंटीमीटर पानी में 5,000 बैक्टीरिया से अधिक नहीं होना चाहिए। परंतु एक जांच में पाया गया कि लखनऊ के हनुमान सेतु से डालीगंज पुल तक गोमती नदी में 100 क्यूबिक सेंटीमीटर पानी में लगभग 1.75 लाख बैक्टीरिया उपस्थित थे। एक अनुमान के अनुसार 6.5 मिलियन लीटर अपशिष्ट पानी रोजाना गोमती में बहाया जाता है। इसके अलावा तट पर मौजूद विभिन्न घाट भी प्रदूषण को बढ़ाते हैं। गोमती नदी का औसत प्रवाह लगभग 1,500 मिलियन लीटर (Million Litre) प्रति दिन है और बारिश के दौरान, यह 45,000 मिलियन लीटर प्रतिदिन तक पहुंच जाता है जबकि गर्मियों में यह 500 मिलियन लीटर प्रतिदिन तक गिर जाता है।
इसमें से लखनऊ शहर द्वारा गोमती से लगभग 200 मिलियन लीटर पानी प्रतिदिन लिया जाता है और 210 मिलियन लीटर अपशिष्टों को प्रतिदिन शेष 300 मिलियन लीटर पानी में छोड़ा जाता है। इस प्रकार आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि इसका जल कितना दूषित हो चुका है। वक्त आ गया है कि हम गोमती को साफ रखने के लिये अपने उत्तरदायित्व को समझें और सरकार द्वारा चलाये जा रहे अभियानों में भाग लें, ताकि इस जीवनदायिनी नदी का अस्तित्व बरकरार रह सके। गोमती नदी के संरक्षण के लिए सबसे अधिक जरूरी यह है कि नदी में प्रवाहित होने वाले प्रदूषण पर रोक लगे और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जाये।
संदर्भ:
1. http://idup.gov.in/pages/en/gomti-river-topmenu/en-gr-the-gomti-river
2. https://bit.ly/2PNWJDB
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