जौनपुर के लोगों, क्या आप जानते हैं कि हमारे भारत में, जो दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश है, 1,113 उच्च शिक्षा संस्थान हैं, जहाँ 4.13 करोड़ से ज़्यादा विद्यार्थी पढ़ते हैं? अब सोचिए, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने योजना बनाई है कि दुनिया के नामी विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने के लिए आमंत्रित किया जाए, ताकि शिक्षा तक पहुँच आसान हो सके।
अब सवाल यह है, आख़िर भारत में ऐसा क्या है जो विदेशी विश्वविद्यालयों को यहाँ आकर्षित कर रहा है? इस पर चर्चा करेंगे और जानेंगे कि यह कदम कितना व्यावहारिक है और कौन-कौन सी चुनौतियाँ आ सकती हैं। और ख़ास बात—यूनाइटेड किंगडम का साउथहैम्पटन विश्वविद्यालय, भारत में अपना पहला कैंपस खोलने वाला है, जो गुरुग्राम, हरियाणा में जुलाई 2025 से शुरू होगा।
भारत, विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए एक आकर्षक गंतव्य क्यों है?
1.) बाज़ार का विकास: भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उच्च शिक्षा बाज़ार है, जहाँ 4.3 करोड़ से अधिक विद्यार्थी नामांकित हैं और कुल नामांकन अनुपात (GER) 28% है। यहाँ 1,200 विश्वविद्यालय और 58,000 से अधिक कॉलेज और संस्थान हैं। भारत सरकार का लक्ष्य 2035 तक GER को 50% तक पहुँचाना है। भारत में शिक्षा क्षेत्र का बाज़ार वर्तमान में लगभग 200 बिलियन डॉलर है और 2030 तक, 300 बिलियन डॉलर को पार कर जाएगा। इस क्षेत्र में उच्च शिक्षा का योगदान, लगभग 50% रहने का अनुमान है।
2.) लचीलापन और स्वायत्तता: 2023 में, विदेशी विश्वविद्यालयों को पूरे देश में लाभकारी कैंपस खोलने की अनुमति मिली। इन्हें पूरी स्वतंत्रता और स्वायत्तता दी गई है, जैसे कोर्स की पेशकश करना, शिक्षकों की नियुक्ति, फ़ीस निर्धारित करना और लाभ वापस ले जाना।
3.) प्रवेश का तरीका: नियमों के अनुसार, विदेशी विश्वविद्यालय, पूरी तरह से अपने संस्थान खोल सकते हैं या भारतीय संस्थानों या किसी निवेशक के साथ संयुक्त उद्यम (JV) में प्रवेश कर सकते हैं। एक शैक्षणिक संस्थान या डेवलपर के साथ संयुक्त उद्यम बनाने से परिसंपत्ति लागत कम होती है, और नए बाज़ार में प्रवेश के जोखिम को बाँटा जा सकता है।
4.) शुरुआती सफलता: ऑस्ट्रेलिया की डीकिन यूनिवर्सिटी भारत की पहली विदेशी विश्वविद्यालय कैंपस है, जो गुजरात इंटरनेशनल फ़ाइनेंस टेक-सिटी (GIFT), गुजरात में स्थित है। साइबर सुरक्षा के मास्टर्स प्रोग्राम में, केवल 100 सीटों के लिए 3,500 से अधिक इच्छुक अभ्यर्थियों ने रुचि दिखाई है। इस दो वर्षीय कार्यक्रम की ट्यूशन फ़ीस, लगभग $25,000 है, जो भारत में शीर्ष वैश्विक शिक्षा की बढ़ती माँग को दर्शाता है।
5.) आगे का रास्ता: भारत की युवा जनसंख्या उच्च शिक्षा क्षेत्र में वैश्विक विकास का नया इंजन है। यहाँ की अंग्रेज़ी बोलने वाली जनसंख्या, बढ़ता मध्यम वर्ग और शिक्षा पर ख़र्च करने की प्रवृत्ति विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए आकर्षक बनाती है। आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में विदेशी निवेश कई गुना बढ़ने की उम्मीद है।
क्या भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना का कदम सही है?भारत की शिक्षा प्रणाली में नियामक और प्रशासनिक समस्याओं का समाधान करने के बजाय, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने देश में विदेशी संस्थानों को अपने कैंपस स्थापित करने के लिए आमंत्रित करने का इरादा जताया है। एक ओर, विदेशी विश्वविद्यालयों के आने से छात्रों को उन्नत शिक्षण पद्धतियाँ, अनुसंधान के अवसर और अंतरराष्ट्रीय अनुभव मिल सकते हैं। दूसरी ओर, इससे भारतीय विश्वविद्यालयों के संसाधनों में कमी भी आ सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की सफलता, सुनियोजित और सटीक क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी।
भारत में बेरोज़गारी से अधिक बड़ी चुनौती अयोग्यता की रही है। हमारे पास कई स्नातक हैं, परंतु उनमें से अधिकतर को उचित वेतन पर सही नौकरी नहीं मिल पाती। उम्मीद की जा रही है कि ये विश्वविद्यालय, अपने अनुभव और गुणवत्ता को भारतीय कैंपसों में भी लाएँगे, जिससे इनके द्वारा दी गई डिग्री को उद्योग में पर्याप्त मान्यता मिलेगी।
हालाँकि, भारत को अपने वर्तमान शिक्षा ढाँचे में सुधार लाना चाहिए, बजाय इसके कि वो विदेशी विश्वविद्यालयों पर निर्भर हो। हमारी शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता है, जिसमें नर्सरी से लेकर उच्च शिक्षा तक का हर स्तर शामिल हो। शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम, शिक्षकों के प्रशिक्षण आदि में बदलाव लाकर विद्यार्थियों की सीखने की शैली को समृद्ध बनाने की ओर ध्यान देने की ज़रूरत है।
भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों की स्थापना में कौन-कौन सी चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं?
1.) शिक्षा की गुणवत्ता: विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों (FHEIs) द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता भारतीय संस्थानों के मानकों पर खरी नहीं उतर सकती है, जिससे भारतीय छात्रों की रोज़गार योग्यता और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
2.) फ़ीस: विदेशी विश्वविद्यालयों की फ़ीस, अक्सर भारतीय संस्थानों की तुलना में काफ़ी अधिक होती है, जिससे निम्न-आय वर्ग के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा तक पहुँच कठिन हो सकती है।
3.) निगरानी की कमी: भारत में विदेशी विश्वविद्यालयों पर नियामक निगरानी पर्याप्त नहीं हो सकती, जिससे छात्रों को किसी समस्या के समय मदद मिलना कठिन हो सकता है।
4.) सांस्कृतिक प्रभाव: विदेशी संस्थानों और छात्रों के आने से भारतीय संस्कृति और मूल्यों पर असर पड़ सकता है, और भारतीय और विदेशी छात्रों के बीच तालमेल की कमी भी हो सकती है।
5.) राष्ट्रीय सुरक्षा: विदेशी संस्थानों का उपयोग, गुप्तचर गतिविधियों और अन्य अवैध कार्यों के लिए हो सकता है, जिससे सुरक्षा संबंधी चिंताएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
6.) पर्याप्त संसाधनों की कमी: सच में प्रतिष्ठित उच्च शिक्षा संस्थान, लाभ के उद्देश्य से काम नहीं करते और बिना किसी भौतिक लाभ के विदेश में कैंपस खोलने की संभावना कम होती है। कई देशों में इस तरह के संस्थानों को आकर्षित करने के लिए भूमि लगभग बिना लागत पर उपलब्ध कराई जाती है, बुनियादी ढाँचे की लागत का बड़ा हिस्सा उठाया जाता है, और उन्हें अपने देश जैसी शैक्षणिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्वतंत्रता का वादा किया जाता है।
ब्रिटेन की साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी कैसे बनेगी भारत की पहली विदेशी यूनिवर्सिटी?
यू के की साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी ने, भारत में अपने पहले विदेशी विश्वविद्यालय का ऑफ़शोर कैंपस स्थापित करने की घोषणा की है, जो नए राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत होगा। यह जानकारी केंद्र सरकार ने गुरुवार को दी। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने 2023 में भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के कैंपस स्थापित करने और संचालन के लिए नियमों की घोषणा की तथा विदेशी मंत्री एस. जयशंकर ने एक कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के प्रतिनिधियों को आशय पत्र (Letter of Intent) सौंपा।
अधिकारियों के अनुसार, साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी ने गुरुग्राम, हरियाणा में एक शाखा कैंपस खोलने के लिए प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसे यू जी सी की स्थायी समिति ने मंज़ूरी दी। इस समिति में भारत और विदेश के प्रसिद्ध शिक्षाविद् शामिल हैं, जिन्होंने नियमों के अनुसार आशय पत्र जारी करने की स्वीकृति दी।
यू जी सी के अध्यक्ष ,जगदीश कुमार ने कहा, "भारत में साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी के कैंपस द्वारा दी जाने वाली डिग्रियाँ उसी तरह की होंगी जैसी मुख्य विश्वविद्यालय में दी जाती हैं। यहाँ के कार्यक्रमों में शैक्षणिक और गुणवत्ता मानक समान रहेंगे।"
उन्होंने बताया कि "भारत में साउथहैंपटन यूनिवर्सिटी का कैंपस, जुलाई 2025 में अपने अकादमिक कार्यक्रम शुरू करने की उम्मीद कर रहा है। यहाँ, व्यापार और प्रबंधन, कंप्यूटर, कानून, इंजीनियरिंग, कला और डिज़ाइन, बायोसाइंसेस और जीवन विज्ञान जैसे विषयों पर पाठ्यक्रम उपलब्ध होंगे।"
संदर्भ
https://tinyurl.com/34s2vzcr
https://tinyurl.com/mrxu7bmz
https://tinyurl.com/2s4znydt
https://tinyurl.com/4fmen3h9
चित्र संदर्भ
1. साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय - हाईफ़ील्ड कैम्पस को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. अशोक विश्वविद्यालय, हरियाणा के परिसर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. एक विश्वविद्यालय के मुस्कुराते छात्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. कॉलेज कैंपस में छात्रों को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)