आप जानते हैं कि हमारे शहर के चौबाहां गांव में, 1962 से हर साल रामलीला का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन यहां की रामलीला में एक अनोखी बात है—यहां रावण का वध नहीं होता। यहाँ पर दशहरे के दिन, रावण के पुतले को जलाने की परंपरा भी नहीं है। दरअसल, गांववाले रावण को ब्राह्मणों का वंशज मानते हैं, इसलिए वे उसका पुतला नहीं जलाते। रावण का चरित्र वाकई में बहुत दिलचस्प है। हालाँकि अधिकांश लोग उसे एक दुष्ट और अन्यायी दानव के रूप में देखते हैं, लेकिन कुछ स्थानों पर उसकी पूजा भी की जाती है। इसी तरह का एक और दिलचस्प चरित्र हमें अंग्रेज़ी साहित्य की एक महत्वपूर्ण कृति "बियोवुल्फ़ (Beowulf)" में भी देखने को मिलता है। "बियोवुल्फ़" एक प्राचीन अंग्रेज़ी महाकाव्य है, जो जर्मनी की वीर परंपरा का हिस्सा है। इसमें 3,182 पंक्तियाँ हैं और इसे कई बार अनुवादित किया जा चुका है। इसकी रचना, 975 से 1025 ईस्वी के बीच हुई थी। जैसे रामायण में बुराई पर अच्छाई की जीत की कहानी वर्णित है, वैसे ही "बियोवुल्फ़" में भी बुराई पर अच्छाई की विजय दिखाई गई है। तो चलिए, आज दशहरे के अवसर पर हम, इस प्रेरणादायक कहानी और इसके महत्व को समझते हैं। हम इसके पात्रों के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि दशहरे को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में क्यों मनाया जाता है।
सबसे पहले हम आपके बियोवुल्फ़ के खलनायक ग्रेंडल (Grendel) से मिलाते हैं: किसी भी फ़िल्म या किताब की कहानी में, कोई भी व्यक्ति बिना किसी कारण के खलनायक नहीं बनता। हर बुराई के पीछे एक कहानी होती है, एक वजह होती है। लेकिन ग्रेंडल के खलनायक बनने की वजह को समझना थोड़ा मुश्किल है। जब-जब हेरोट (Heorot) में कोई उत्सव होता है, तब-तब ग्रेंडल के दिल में ईर्ष्या और गुस्से की आग भड़क उठती है। कोई नहीं जानता कि वह सालों-साल से हेरोट पर हमले क्यों कर रहा है। शायद, डेन्स (Danes) को मारने के बाद उसके मन में घमंड आ गया हो।
जब पहली बार ग्रेंडल का ज़िक्र होता है, तो उसे एक हिंसक और बहिष्कृत प्राणी (outcast creature) के रूप में दिखाया जाता है। उसे नरक में रहने वाला एक भयानक दानव बताया गया है। और उसे कैन (Cain) के वंशज के रूप में देखा जाता है, जिसे ईश्वर ने उसके अपराध के लिए निर्वासित किया है। कैन ने अपने भाई हाबिल (Abel) को मारा था, और इसी कारण उसे दंडित किया गया।
इस महाकाव्य के विभिन्न अनुवादों में ग्रेंडल के बारे में अलग-अलग दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं। पांच सौ साल पहले, उसे फर से ढके एक दस फुट लंबे प्राणी के रूप में वर्णित किया गया था। लेकिन जॉन गार्डनर (John Gardner) के 1971 के उपन्यास "ग्रेंडल (Grendel)" में, उसे एक खलनायक के बजाय एक नायक के रूप में दिखाया गया है। फ़िल्मों में भी ग्रेंडल को कई रूपों में प्रस्तुत किया गया है। कभी वह एक भटका हुआ प्राणी होता है, तो कभी एक शेर जैसा राक्षस। कभी-कभी, उसे आकार बदलने वाले प्राणी के रूप में भी दर्शाया जाता है।
"बियोवुल्फ़" की कहानी में ग्रेंडेल के अलावा भी कई दिलचस्प पात्र हैं, और हर एक की अपनी एक अनोखी कहानी है।
आइए, इस कहानी के प्रमुख पात्रों से मिलते हैं:
बियोवुल्फ़ (Beowulf): कहानी का मुख्य नायक, बियोवुल्फ़, गेटलैंड (Geatland) का एक शक्तिशाली योद्धा है। वह दानव ग्रेंडल से लड़ने के लिए डेनमार्क (Denmark) में राजा रोथगर (Hrothgar) की मदद करने जाता है। बाद में, वह गेट्स (Geats) का राजा बनता है। उसकी अंतिम लड़ाई एक ड्रैगन (dragon) के साथ होती है। बियोवुल्फ़ को उसकी शक्ति, बहादुरी और अपने लोगों के प्रति वफ़ादारी के लिए जाना जाता है।
राजा रोथगर (Hrothgar): रोथगर, डेन्स का बुद्धिमान और उदार राजा है। उसने हिरोट (Heorot) के प्रसिद्ध मीड-हॉल (mead hall) का निर्माण किया। बियोवुल्फ़ के आने से पहले रोथगर, ग्रेंडल के हमलों से परेशान रहता है। वह बियोवुल्फ़ के साथ एक पिता की तरह व्यवहार करता है, उसे सलाह देता है और उसके साहस के लिए उसे पुरस्कृत भी करता है।
ग्रेंडल की माँ (Grendel's Mother): जब बियोवुल्फ़ ग्रेंडल को हराता है, तो उसकी माँ के भीतर बदले की आग भड़क उठती है। वह हिरोट पर हमला करती है और रोथगर के एक भरोसेमंद सलाहकार को भी मार देती है। ग्रेंडल की माँ को एक शक्तिशाली और प्रतिशोधी शक्ति के रूप में दिखाया गया है, जो एक अंधेरे दलदल में रहती है।
विग्लाफ़ (Wiglaf): विग्लाफ़, बियोवुल्फ़ का चचेरा भाई और एक वफ़ादार योद्धा है। वह बियोवुल्फ़ की अंतिम लड़ाई में ड्रैगन के खिलाफ खड़ा होता है। विग्लाफ़ वफ़ादारी और बहादुरी का प्रतीक है, जो उनके योद्धा समाज के मूल्यों को दर्शाता है।
अनफ़र्थ (Unferth): अनफ़र्थ एक डेनिश योद्धा है, जो शुरुआत में बियोवुल्फ़ के कौशल पर संदेह करता है। वह ग्रेंडल के साथ लड़ाई से पहले बियोवुल्फ़ को चुनौती भी देता है। लेकिन बाद में वह उसका समर्थन करता है और ग्रेंडल की माँ के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी तलवार भी उसे दे देता है।
ह्रेथेल (Hrethel): ह्रेथेल, बियोवुल्फ़ के नाना और गेट्स के पूर्व राजा हैं। उनकी कहानी बियोवुल्फ़ की पृष्ठभूमि में गहराई से जुड़ी हुई है।
वेल्थियो (Wealhtheow): वेल्थियो, रोथगर की रानी और हिरोट की दयालु परिचारिका है। वह शांति और कूटनीति का प्रतीक है। वेल्थियो बियोवुल्फ़ को उसकी बहादुरी के लिए पुरस्कार प्रदान करती है और संघर्ष के समय मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है। इन सभी पात्रों की कहानियाँ मिलकर "बियोवुल्फ़" को एक अद्भुत महाकाव्य बनाती हैं, जिसमें साहस, वफ़ादारी और प्रतिशोध की गहरी भावनाएँ भरी हुई हैं।
बियोवुल्फ़ और ग्रेंडल की कहानी क्या है?
इस कहानी में रोथगर नाम का राजा डेनमार्क पर सफलता पूर्वक शासन करता है। उसने हेरोट नामक एक भव्य मीड हॉल बनवाया है। यहीं पर उसके योद्धा शराब पीने, उपहार प्राप्त करने और कहानियाँ साझा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। राज्य के निकट के एक दलदल में ग्रेंडेल नाम का एक डरावना राक्षस रहता है। वह हेरोट से आने वाली उत्सव और प्रसन्नता भरी आवाज़ों से परेशान हो जाता है। इन आवाज़ों से क्रोधित होकर, वह हर रात हेरोट पर हमला करना शुरू कर देता है। इस दौरान, वह रोथगर के कई योद्धाओं को मार देता है, जिस कारण उनके लिए ग्रेंडेल के हमले का जवाब देना मुश्किल हो जाता है। ग्रेंडेल के आतंक से प्रताड़ित लोगों और रोथगर की मदद के लिए बियोवुल्फ़ नाम का एक युवा योद्धा उनके राज्य में आता है। वह गेटलैंड से हेरोट आता है और उनकी मदद करने का फैसला करता है।
रोथगर ने भी एक बार बियोवुल्फ़ के पिता की मदद की थी। ग्रेंडेल का सामना करने के लिए तैयार बियोवुल्फ़ योद्धाओं के एक समूह के साथ हेरोट जाता है। बियोवुल्फ़ के डेनमार्क आने के बाद रोथगर उसका कृतज्ञतापूर्वक स्वागत करता है। वे बियोवुल्फ़ के सम्मान में एक दावत भी रखता है । जिस दिन जब बियोवुल्फ़ हेरोट में होता है, उसी रात, ग्रेंडेल फिर से हेरोट पर हमला कर देता है। बियोवुल्फ़ बिना हथियारों के ग्रेंडल के साथ लड़ाई करता है। इस युद्ध में वह ग्रेंडल की बांह को चीर देता है। इसके बाद घायल ग्रेंडल मरने के लिए दलदल में भाग जाता है। लोग ग्रेंडल की कटी हुई बांह को ट्रोफ़ी के रूप में हॉल में लटका देते हैं। ग्रेंडल के पराजित होने के बाद रोथगर बेहद प्रसन्न हो जाता है, और समारोह आयोजित करके बियोवुल्फ़ को उपहारों से पुरस्कृत करता है।
इधर, अपने बेटे की मौत के बाद, ग्रेंडेल की माँ क्रोध से आग बबूला हो जाती है और हर हाल में बियोवुल्फ़ से बदला लेना चाहती है। लेकिन बियोवुल्फ़ उल्टा पानी के नीचे उसी की मांद में गोता लगा देता है और उससे लड़ता है। वह दिग्गजों के लिए बनाई गई एक पौराणिक तलवार से ग्रेंडेल की माँ को भी हरा देता है। लड़ाई के बाद, वहां पर वह ग्रेंडल के शरीर को भी देखता है और ट्रोफ़ी के रूप में वापस लाने के लिए उसका सिर काट देता है।
बाद की कहानी में, बियोवुल्फ़ को एक ड्रैगन का भी सामना करना पड़ता है। लड़ाई के दौरान, उसकी तलवार टूट जाती है। हालांकि वह ड्रैगन को मारने में सफल हो जाता है। लेकिन ड्रैगन बियोवुल्फ़ की गर्दन पर काट लेता है, और उसके मुठभेड़ के कुछ ही क्षण बाद ड्रैगन के उग्र विष से बियोवुल्फ़ की मृत्यु हो जाती है। बियोवुल्फ़ की इच्छा के अनुसार, उसके शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है और फिर समुद्र के किनारे एक बैरो में ड्रैगन के ख़जाने के साथ दफ़ना दिया जाता है। इस कहानी को आज भी वीरता, वफ़ादारी और अच्छाई और बुराई के बीच संघर्ष की मिसाल के तौर पर पेश किया जाता है!
साहित्य की दुनिया में "बियोवुल्फ़" को एक अनमोल कृति माना जाता है। बियोवुल्फ़ जितने दुर्लभ और पुराने पाठ को सुरक्षित रखना अत्यंत चुनौतीपूर्ण साबित होता है। लेकिन हमारी किस्मत अच्छी है कि इसकी मूल पांडुलिपि, आज भी मौजूद है। इस पांडुलिपि का पहले ज्ञात स्वामी एक एंग्लो-सैक्सन विद्वान (Anglo-Saxon scholar), लॉरेंस नोवेल (Lawrence Nowell) थे, जिन्होंने इसे 1563 में खोजा था। उनके निधन के बाद, यह पांडुलिपि सर रॉबर्ट कॉटन (Sir Robert Cotton) नामक एक संग्रहकर्ता के पास चली गई। लेकिन दुर्भाग्य से, 1731 में एक भयानक आग ने उनके संग्रह को गंभीर नुकसान पहुंचाया। हालांकि, इस आग के बावजूद "बियोवुल्फ़" पाठ सुरक्षित बच गया। आज यह पांडुलिपि, ब्रिटिश लाइब्रेरी (British Library) में प्रदर्शित है।
बियोवुल्फ़ की तरह भारत की सांस्कृतिक धरोहर में, रामायण न केवल एक महाकाव्य है, बल्कि जीवन के गहरे संदेशों से भरी हुई कृति है। इस महाकाव्य की कहानी हमें, बुराई (रावण) पर अच्छाई (श्री राम) की विजय का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। इसी विजय की याद में हर साल धूमधाम से मनाया जाने वाला दशहरा पर्व हमारे लिए एक ख़ास महत्व रखता है।
दशहरे की कहानी, भगवान राम और राक्षस राज रावण के बीच के संघर्ष से जुड़ी हुई है। रामायण में, रावण, एक शक्तिशाली राक्षस था। लेकिन वह प्रभु श्री राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लेता है। इस अपहरण के बाद, भगवान राम अपने परम भक्त हनुमान और वानर सेना के साथ मिलकर रावण के खिलाफ एक भयंकर युद्ध लड़ते हैं। यह युद्ध, दस दिनों तक चलता है, जिसमें भगवान राम अद्भुत साहस और धैर्य का परिचय देते हैं। अंततः, दसवें दिन, वे रावण को पराजित कर देते हैं। इसी दिन को आज विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है।
दशहरा केवल एक त्योहार नहीं है। वास्तव में यह हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, जीत हमेशा सच्चाई और अच्छाई की होती है। आज के दिन, हम न केवल प्रभु श्री राम की विजय का जश्न मनाते हैं, बल्कि अपने जीवन में भी अच्छाई को अपनाने का संकल्प भी लेते हैं। पूरे देश में इस दिन को पूरे हर्षोल्लास और उमंग के साथ मनाया जाता है, जिससे यह पर्व और भी खास बन जाता है।
तो चलिए, इस दशहरे पर हम सभी मिलकर अच्छाई की जीत का जश्न मनाएं और अपने जीवन में सच्चाई के मार्ग पर चलने का संकल्प लें। यह पर्व, हमें याद दिलाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, हमें हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yw96retx
https://tinyurl.com/yvgn2rd5
https://tinyurl.com/yls2awuq
https://tinyurl.com/yqhkan2j
https://tinyurl.com/yulm7f7f
चित्र संदर्भ
1. बियोवुल्फ़ की मृत्यु के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ग्रेंडल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बियोवुल्फ़ और ड्रैगन की लड़ाई को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक स्कैंडिनेवियाई पौराणिक (Norse Mythology) कथा के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)