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मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या के कारण, अपने ही द्वीप से विलुप्त होना पड़ा जावन बाघ को

जौनपुर

 17-10-2024 09:19 AM
स्तनधारी
हमारे देश में बाघों की संख्या वैश्विक जंगली बाघों की आबादी के 70% से अधिक है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि बाघों की एक ऐसी उप प्रजाति है जो अब विलुप्त हो चुकी है। इंडोनेशिया के जावा द्वीप समूह में निवास करने वाले जावन बाघ (Javan tiger), अब एक विलुप्त बाघ उप-प्रजाति बन गई है। जीवाश्म साक्ष्य बताते हैं कि लगभग 12000 साल पहले, जावन बाघ फ़िलीपींस के बोर्नियो द्वीप और पलावन में मौजूद थे। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि बोर्नियो नमूने 200 साल पहले तक जीवित थे। यह बाघों की उन तीन प्रजाति में से एक थी, जिन्होंने 110,000-12,000 साल पहले अंतिम हिमयुग के दौरान सुंडा द्वीप समूह में निवास किया था। यह प्रजाति, जावा के अधिकांश भाग में निवास करती थी | शिकार, कृषि के लिए वनों की कटाई और बुनियादी ढांचे के लिए रूपांतरण के कारण, इसका प्राकृतिक आवास लगातार कम होता गया और 1970 के दशक के मध्य या 1980 के दशक की शुरुआत तक, इसका पूरी तरह से सफ़ाया हो गया था। माना जाता है कि जावन बाघ, 1950 और 1980 के बीच पूरी तरह विलुप्त हो गए। हालाँकि, आधिकारिक रूप से इनको अंतिम बार 1976 में देखा गया था। तो आइए, आज हम, विलुप्त हुए जावन बाघ की विशेषताओं, आवास और पारिस्थितिकी के बारे में विस्तार से जानते हैं और उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर कुछ प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम , जावन बाघ के विलुप्त होने के कारणों को समझने की कोशिश भी करेंगे।
भौतिक विशेषताएं: जावन बाघ, एशिया में पाई जाने वाली अन्य पैंथेरा टाइग्रिस उप-प्रजातियों की तुलना में थोड़े छोटे थे। हालाँकि, नर जावन बाघ, सुमात्रा बाघों से बड़े हो सकते थे । जावन बाघों की धारियाँ पतली और लंबी होती थीं, जो सुमात्रा बाघ की तुलना में संख्या में थोड़ी अधिक होती थीं। उनका पश्च तल संकरा, मांसल और तुलनात्मक रूप से लंबा था और उनकी नाक भी लंबी और संकीर्ण थी। इन सभी शारीरिक भिन्नताओं के आधार पर, इसे एक विशिष्ट प्रजाति 'पैंथेरा सोंडाइका' (Panthera sondaica) के रूप में निर्दिष्ट करने के सुझाव भी दिए गए थे। नर बाघ के शरीर की औसत लंबाई, 248 सेंटीमीटर और वज़न 100 से 141 किलोग्राम के बीच होता था। मादाएं नर से छोटी होती थीं और उनका वज़न, 75 से 115 किलोग्राम के बीच होता था। कहा जाता है कि जावन बाघ, अपने पंजों से घोड़ों या भैंसों के पैर तोड़ सकता था।
पर्यावास और पारिस्थितिकी: अधिकांश जावन बाघ, जावा में निवास करते थे, लेकिन 1940 तक, ये दूरदराज़ के पर्वतीय और जंगली इलाकों में चले गए थे। आखिरी बार ज्ञात बाघ, 1976 में मेरु बेतिरी के क्षेत्र में देखे गए थे, जो जावा के दक्षिण-पूर्व में सबसे ऊंचा पर्वत है। 1972 में इस क्षेत्र के 500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य के रूप में राजपत्रित किया गया था।
जावन बाघ, मुख्य रूप से जावन रूसा, बेंटेंग और जंगली सूअर का शिकार करते थे और जलपक्षी और सरीसृपों पर कम। द्वितीय विश्व युद्ध तक, कुछ जावन बाघों को कुछ इंडोनेशियाई चिड़ियाघरों में रखा गया था जो युद्ध के दौरान बंद कर दिए गए थे।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व: जावन बाघ, एक समय बाली और जावा सहित इंडोनेशियाई द्वीपों में खूब दिखाई देते थे। बाघ की यह उप-प्रजाति, अपने आकार के लिए जानी जाती थी, जो बंगाल टाइगर से छोटी लेकिन सुमात्रा बाघ से बड़ी थी। पूरे इतिहास में, जावन बाघ का स्थानीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
बाली में, बाघ को शक्ति और सुरक्षा से जोड़ा जाता था। इस द्वीप की अपनी विशिष्ट बाघ उप-प्रजाति, बाली बाघ भी थी, जो अत्यधिक शिकार और निवास स्थान के विनाश के कारण, 20 वीं शताब्दी में विलुप्त हो गई थी। बाली संस्कृति में इस जीव को उसकी कृपा, ताकत और बहादुरी के लिए पूजा जाता था, और स्थानीय पौराणिक कथाओं में इसे एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। जावा द्वीप पर, पारंपरिक जावानीस लोककथाएँ और साहित्य, बाघों को एक मज़बूत और रहस्यमय प्राणी के रूप में दर्शाते हैं। वे स्थानीय किंवदंतियों और कहानियों से भी जुड़े हुए थे, जो लोगों की कल्पना और सम्मान को आकर्षित करते थे।
जावन बाघ के विलुप्त होने का कारण: जावन बाघ उप-प्रजाति के विलुप्त होने के पीछे एकमात्र कारण - उसके एकमात्र शिकारी - मनुष्यों की बढ़ती जनसंख्या थी, जिसके कारण इस महान जीव को अपने ही द्वीप से विलुप्त होना पड़ा। 20वीं सदी की शुरुआत में, जावा द्वीप पर लगभग 28 मिलियन जनसंख्या निवास करती थी। लेकिन शीघ्र ही, इस जनसंख्या में अत्यंत तेज़ी से वृद्धि हुई और उन्हें अधिक चावल की खेती के लिए तराई के उष्णकटिबंधीय मूल जंगल को साफ़ करने की आवश्यकता होने लगी। 1975 तक, जावा का मूल वन क्षेत्र, केवल 8% ही बचा, और मानव आबादी बढ़कर 85 मिलियन हो गई। चावल के अलावा, प्राकृतिक जंगल की जगह सागौन, कॉफ़ी और रबर के बागानों ने ले ली। हालाँकि इस वृक्षारोपण में पेड़ और हरा आवरण शामिल है, लेकिन यह एक प्राकृतिक वन निवास स्थान नहीं था, जो बाघ के सबसे महत्वपूर्ण शिकार - रुसा हिरण का समर्थन कर सकता था । निवास स्थान की हानि और बीमारी के कारण, रुसा हिरण भी गंभीर रूप से समाप्त हो गए। उनके प्राकृतिक शिकार के इस नुकसान के कारण जावन बाघों का भी नुकसान हुआ।
जैसे-जैसे अधिक मानव बस्तियाँ बसती गईं और प्राकृतिक जंगलों के किनारे सिकुड़ते गए, मनुष्य जावा के आखिरी बाघों के साथ संघर्ष में आ गए। शिकार, ज़हर और वनों की कटाई के कारण, इन बाघों को विलुप्त होने के लिए मजबूर होना पड़ा। 1950 के दशक के मध्य तक, जावा द्वीप पर केवल 20-25 बाघ बचे थे। जावन बाघ को अंतिम बार विश्वसनीय स्रोतों के माध्यम से 1976 में माउंट बेतिरी में देखा गया था, जो द्वीप का सबसे ऊंचा और सबसे दूरस्थ हिस्सा है। उन्हें 2003 में आधिकारिक तौर पर विलुप्त घोषित कर दिया गया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/5eckyx8u
https://tinyurl.com/27fb34vb
https://tinyurl.com/mpvsj3f9
https://tinyurl.com/384j7at4

चित्र संदर्भ
1. जावन बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मारे गए बाघ की खाल के सामने खड़े शिकारी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. जावन बाघ (पैंथेरा टाइग्रिस सोंडाइका) की खोपड़ी के कंकाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. लोगों की भीड़ से घिरे एक कमज़ोर बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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