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विश्व शांति दिवस पर जानिए परमाणु निवारण सिद्धांत और इसके महत्त्व के बारे में

जौनपुर

 21-09-2024 09:16 AM
आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
ॐ द्यौः शान्तिरन्तरिक्षं शान्तिः
पृथिवी शान्तिरापः शान्तिरोषधयः शान्तिः
वनस्पतयः शान्तिर्विश्वेदेवाः शान्तिर्ब्रह्म शान्तिः
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः सा मा शान्तिरेधि
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः
भावार्थ:
शान्ति: कीजिए प्रभु ।
त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में,
अन्तरिक्ष में, अग्नि - पवन में, औषधियों, वनस्पतियों, वन और उपवन में,
सकल विश्व में अवचेतन में,
शान्ति राष्ट्र-निर्माण और सृजन में, नगर , ग्राम और भवन में
प्रत्येक जीव के तन, मन और जगत के कण - कण में,
शान्ति कीजिए । शान्ति कीजिए । शान्ति कीजिए ।
आज विश्व शांति दिवस है, और कई दशकों से धार्मिक सौहार्द की मिसाल बनकर जी रहे जौनपुरवासी, अपने जीवन में शांति की अहमियत से बख़ूबी वाक़िफ़ हैं। हालांकि जब-जब विश्व शांति का ज़िक्र छिड़ता है, तब-तब परमाणु हथियारों का ज़िक्र भी ज़रूर होता है। इसलिए हम सभी के लिए, "परमाणु निवारण सिद्धांत " (Nuclear Deterrence) जैसे शब्दों से परिचित होना अति आवश्यक है। यह शब्द, अंतरराष्ट्रीय संबंधों में बहुत बड़ी और बहुत दिलचस्प भूमिका निभाता है। आज हम परमाणु प्रतिरोध की अहमियत और इसके नाज़ुक पहलू को समझने का प्रयास करेंगे। साथ ही हम, इसके संभावित फ़ायदों और नुकसानों पर भी एक नज़र डालेंगे। अंत में, हम दुनिया के कुछ सबसे बड़े सैन्य गठबंधनों पर भी प्रकाश डालेंगे।
परमाणु प्रतिरोध का परिचय: परमाणु प्रतिरोध या परमाणु निवारण, परमाणु सशक्त देशों द्वारा अपनाई जाने वाली एक सैन्य रणनीति है। इस रणनीति के तहत, दुश्मन देश को ख़ुद पर हमला करने से रोकने के लिए, उसे अपने परमाणु हथियारों की क्षमता और परिणामों से परिचित कराया जाता है। या फिर , यूँ कहें कि प्रत्येक देश, ऐसी चेष्ठा के परिणामों से परिचित रहता है। परमाणु निवारण का मुख्य उद्देश्य, वैश्विक शांति बनाए रखना है। इस रणनीति का प्रयोग करने से परमाणु हमलों के खतरों और आक्रामक कार्रवाइयों को रोका जा सकता है। उदाहरण के तौर पर जब कोई एक परमाणु सक्षम देश किसी दूसरे परमाणु सक्षम देश या संगठन पर हमला करने के बारे में सोचता है, तो हमलावर देश को भी,यह एहसास होता है, कि उसे ऐसा करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। ये लागत, उनके परमाणु हमले से होने वाले संभावित लाभ से अधिक हो सकती है। यही समझ, कई देशों को दूसरे देशों के खिलाफ़ परमाणु हथियारों का उपयोग करने से रोकती है।
परमाणु प्रतिरोध के पीछे का मुख्य विचार सीधा और सरल है।
इसे एक उदाहरण के तौर पर समझते हैं: उदाहरण के लिए, यदि देश A, देश B पर परमाणु हथियारों से हमला करता है, तो उस स्थिति में देश B भी, इस हमले का जवाब अपने परमाणु हथियारों से दे सकता है। इसके बाद देश B, देश A को भी पर्याप्त क्षति पहुँचा सकता है। इस स्थिति को विशेषज्ञ "पारस्परिक रूप से सुनिश्चित विनाश (Mutually Assured Destruction)" कहते हैं। परमाणु युद्ध की स्थिति में, दोनों देशों को अकल्पनीय नुकसान होगा। यह कहना, वाकई में असंभव होगा कि, कौन सा पक्ष जीता है। भले ही एक देश, दूसरे के परमाणु हथियारों को नष्ट करने की कितनी ही कोशिश कर ले। हर स्थिति में दूसरे देश के पास हमेशा पर्याप्त मात्रा में हथियार बचे रहेंगे। वह जवाबी कार्यवाही में दूसरे देश को कभी भी गंभीर नुकसान पहुँचा सकता है।
परमाणु प्रतिरोध कई संभावित लाभों को जन्म देता है। इन लाभों में शामिल हैं:
1. परमाणु हथियार वैश्विक संघर्ष को रोकते हैं।: परास्त होने का डर या परस्पर-अकल्पनीय विनाश का खतरा दुनिया की महाशक्तियों के बीच सैन्य टकराव को उस बिंदु तक पहुंचने से रोकता है, जहां पहुंचकर, परमाणु हथियारों का प्रयोग हो सकता है।
2. परमाणु हथियार किसी देश की सौदेबाज़ी की शक्ति को बढ़ाते हैं।: इसके उदाहरण के तौर पर हम उत्तर कोरिया को ले सकते हैं, जिसने इस तकनीक को स्वतंत्र रूप से विकसित किया है। जहाँ पहले अमेरिका, उसकी उपस्थिति को भी नकारता था, वहीँ आज उसे यूएसए के साथ बातचीत की मेज़ पर एक सीट मिल गई है।
3. परमाणु हथियारों में गतिशीलता का दायरा बढ़ा है।: आज परमाणु हथियारों को ज़मीन, पानी और हवा तीनों क्षेत्रों से लॉन्च किया जा सकता है। इससे परमाणु हथियारों को पारंपरिक हथियारों की तुलना में बहुत अधिक लचीलापन मिल गया है।
हालांकि इन संभावित लाभों के अलावा परमाणु प्रतिरोध के कुछ गंभीर नुकसान भी हैं। इन नुकसानों में शामिल हैं:
1. परमाणु हथियार, छोटे पैमाने के युद्ध को नहीं रोक सकते हैं।: परमाणु हथियार छोटे पैमाने या गुरिल्ला युद्ध को रोकने में विफ़ल रहते हैं। चूंकि संघर्ष बढ़ने की संभावना हमेशा बनी रहती है, इसलिए परमाणु युद्ध की संभावना को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता है ।
2. परमाणु क्षमताएँ असमान रूप से वितरित हैं।: आज की दुनिया में, परमाणु क्षमताओं के असमान वितरण के कारण, कुछ राष्ट्रों को दूसरे राष्ट्रों की तुलना में अधिक लाभ होता है।
3. परमाणु निवारण, उन परमाणु संपन्न आतंकवादियों के विरुद्ध विफ़ल रहता है, जो किसी विशिष्ट राष्ट्र से बंधे नहीं हैं।
4. विश्व शांति की कोई गारंटी नहीं है।: भले ही दोनों संघर्षरत देशों के पास परमाणु हथियार हों , लेकिन फिर भी, इस बात की कोई गारंटी नहीं है, कि दोनों में से कोई एक देश परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा। इस संबंध में सबसे प्रसिद्ध मामला, 1962 का क्यूबा मिसाइल संकट है।
यदि आप खुले दिमाग से सोचेंगे तो पाएंगे कि परमाणु प्रतिरोध, लंबे समय तक काम नहीं करेंगे। क्यों कि:
1. लोग हमेशा तर्कसंगत नहीं होते हैं, और मन को पढ़ा नहीं जा सकता है। परमाणु प्रतिरोध के प्रभावी होने के लिए, सभी पक्षों को "तर्कसंगत" और "पूर्वानुमानित" तरीके से कार्य करना चाहिए। हालाँकि, लोग इस तरह से व्यवहार नहीं करते हैं। ख़ासकर तब, जब आपके दहलीज़ पर दुश्मन की सेना खड़ी हो।
2. परमाणु हथियार शांति सुनिश्चित नहीं करते हैं। इतिहास गवाह है, कि कई देशों के पास परमाणु हथियार होने के बावजूद भी 1945 के बाद से कई भयानक संघर्ष हुए हैं। परमाणु हथियार रखने वाले देशों के खिलाफ़ भी आक्रामकता दिखाई गई है। वास्तव में, परमाणु हथियारों का इस्तेमाल केवल भाग्य के कारण नहीं किया गया है, और भाग्य हमेशा साथ नहीं देता है।
3. परमाणु हथियार युद्ध को और अधिक बदतर बना सकते हैं। 2022 में, यूक्रेन पर रूस का आक्रमण दिखाता है कि परमाणु हथियार रखने वाले नौ देशों में से कोई भी देश दूसरे देशों की प्रतिक्रियाओं को सीमित करने के लिए उन्हें धमका सकता है।
4. वास्तव में परमाणु प्रतिरोध, परमाणु उपयोग की संभावनाओं को बढ़ाते हैं। परमाणु हथियार रखने वाले देश, उन्हें लॉन्च करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
5. परमाणु हथियार, आधुनिक खतरों का समाधान नहीं करते हैं। वे 21वीं सदी में राष्ट्रों के सामने आने वाले वास्तविक सुरक्षा मुद्दों से निपटने के लिए उपयोगी नहीं हैं। इन मुद्दों में जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और साइबर हमले शामिल हैं।
आइए, अब एक नज़र दुनिया के कुछ प्रमुख सैन्य गठबंधनों पर भी डालते हैं:
इस्लामिक सैन्य गठबंधन (IMAFT): 34 सदस्यों का यह समूह सऊदी अरब के रियाद में स्थित, एक कमांड सेंटर से संचालित होता है। इसकी स्थापना की घोषणा, सऊदी रक्षा मंत्री मोहम्मद बिन सलमान अल सऊद द्वारा 14 दिसंबर, 2015 के दिन की गई थी।
नाटो (NATO): यह गठबंधन, 1999 से पूर्वी यूरोपीय देशों को एकजुट करने के लिए विकसित हुआ है। इसके तहत की गई, उत्तरी अटलांटिक संधि, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के क्षेत्रों को कवर करती है। पहले इन देशों में फ़्रांसीसी क्षेत्र अल्जीरिया भी शामिल था। लेकिन अब वह, नाटो का सदस्य नहीं है।
अमेरिकी राज्यों का संगठन: इस संगठन में उत्तर और दक्षिणअमेरिका के सभी 35 देश शामिल हैं। लेकिन वेनेज़ुएला ने इससे बाहर निकलने का निर्णय लिया है। इसके अलावा, क्यूबा ने भी इसमें भाग न लेने का फ़ैसला किया है।
सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन: यह एक सैन्य गठबंधन है, जिसमें छह पूर्व सोवियत गणराज्य “आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ” शामिल हैं।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सुरक्षा संरचना: इस गठबंधन का नेतृत्व, संयुक्त राज्य अमेरिका करता है। यह गठबंधन ईरान के साथ तनाव के समय फ़ारस की खाड़ी में सुरक्षा सुनिश्चित करने पर केंद्रित है।
ताइवान संबंध अधिनियम: इस अधिनियम के तहत, संकट की स्थिति में संयुक्त राज्य अमेरिका को ताइवान को सैन्य उपकरण प्रदान करना अनिवार्य है। यह अधिनियम चीन द्वारा ताइवान पर आक्रमण की स्थिति में वैकल्पिक सैन्य हस्तक्षेप की भी अनुमति देता है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/ycgtlyjd
https://tinyurl.com/27kg4mlq
https://tinyurl.com/22q7hkmm
https://tinyurl.com/22q7hkmm
https://tinyurl.com/2xsyxnu2

चित्र संदर्भ

1. डसॉल्ट राफ़ेल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. एक परमाणु विस्फ़ोट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. अग्नि - II मिसाइल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक लाल बटन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. नाटो शिखर सम्मेलन (NATO summit) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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