City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
1642 | 111 | 1753 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
जौनपुर के लोग जानते ही हैं कि, हमारे शहर को,चार्ल्स बार्लेट(Charles Barlett) नामक प्रसिद्ध अंग्रेज़ी चित्रकार ने, ‘जौनपुर’ नामक चित्र में चित्रित किया है। यह चित्र एक आम, लोकप्रिय पूर्वीय छवि है, जिसमें एक परिवार ऊंट पर सवार होकर एक पहाड़ी के किनारे यात्रा कर रहा है।उस पहाड़ी के सामने एक मंदिर है, और पृष्ठभूमि में एक मस्जिद है। तो चलिए, आज हम चार्ल्स बार्लेट जैसे कलाकारों के बारे में विस्तार से बात करेंगे। फिर हम विलियम होजेस(William Hodges)के चित्रों के माध्यम से औपनिवेशिक भारत की खोज करने का प्रयास करेंगे। इसके बाद, हम दिल्ली आर्ट गैलरी की प्रदर्शनी ‘डेस्टिनेशन इंडिया (Destination India)’ के बारे में चर्चा करेंगे, जिसमें 1857 से 1947 के बीच प्रख्यात हुए, विदेशी कलाकारों के कार्यों को शामिल किया गया है। हम मीजी युग(Meiji era) (1868-1912) के प्रसिद्ध जापानी चित्रकार हिरोशी योशिदा(Hiroshi Yoshida) के बारे में भी बात करेंगे। आगे हम उनकी कला शैली, भारतीय उपमहाद्वीप में उनकी यात्रा और आधुनिक कला में उनके योगदान के बारे में भी चर्चा करेंगे।
1913 में,चार्ल्स बार्लेट ने भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, इंडोनेशिया, चीन और जापान का दौरा करते हुए, एशिया की यात्रा की थी। 1915 में, जापान में रहते हुए उनकी मुलाकात वुडब्लॉक प्रिंट(Woodblock print) प्रकाशक शोज़ाबुरो वतनबे(Shozaburo Watanabe) से हुई। वतनबे को शिन-हंगा(Shin-Hanga) या "नए प्रिंट" आंदोलन की एक प्रेरक शक्ति माना जाता था।
वतनबे ने बार्लेट के कार्यों से,21 यात्रा प्रिंट प्रकाशित किए, जिनमें परिदृश्य, लोग और रोज़मर्रा की ज़िदगी के दृश्य शामिल हैं। बार्लेट की प्रत्येक नक़्क़ाशी, जलरंगों से हाथ से रंगी गई थी। इसलिए, छवि के लिए उनके द्वारा चुने गए रंगों के आधार पर प्रिंट बहुत भिन्न होते हैं।
इनके कुछ प्रसिद्ध प्रिंट निम्नलिखित हैं:
1.) मदुरै: इस प्रिंट में, तमिलनाडु के मदुरै में मीनाक्षी मंदिर का प्रतिष्ठित प्रवेश द्वार दिखाई देता है। 17वीं सदी का यह मंदिर भगवान शिव (सुंदरेश्वर) और उनकी पत्नी पार्वती (मीनाक्षी) को समर्पित है, जो दक्षिण भारतीय वास्तुकला के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक है। लेकिन बार्लेट ने मंदिर की वास्तुकला पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने मंदिर को मानवीय गतिविधि की पृष्ठभूमि के रूप में दर्शाया।
2.) मथुरा: कुषाण काल (पहली-तीसरी शताब्दी ईस्वी) के दौरान मथुरा बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था, और यह उन पहले स्थानों में से एक था, जहां ऐतिहासिक बुद्ध शाक्यमुनि की छवियां बनाई गईं थीं। यहां बार्लेट एक युवा लड़के को,अनुष्ठानिक स्नान के बाद मुग़ल-काल के मंडप में तौलिया लपेटते हुए दिखाते हैं।
3.) आगरा: कुछ मामलों में, बार्लेट और उनके जापानी प्रकाशक, वतनबे शोज़ाबुरो ने, कुछ प्रिंट की भिन्न छवियां तैयार की थीं । इस प्रिंट के लिए, इस प्रकार तीन अलग-अलग प्रकार ज्ञात हैं।बार्लेट ने भी अपने विषयों को पुनर्चक्रित किया था। 1916 का उनका एक प्रिंट, ताज महल को एक अलग दृष्टिकोण से दिखाता है।
4.) बनारस: वाराणसी (तत्कालीन बनारस) भारत व हमारे राज्य उत्तर प्रदेश का एक पवित्र तीर्थ स्थल है, जो अपने गंगा घाटों के लिए प्रसिद्ध है। बार्लेट के इस प्रिंट में गंगा नदी के कुछ सुंदर घाटों को चित्रित किया गया है।
5.) उदयपुर: बार्लेट के इस प्रिंट में मुसलमानों के एक समूह को उदयपुर शहर में सूर्यास्त के समय प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते हुए दिखाया गया है। उदयपुर को 1568 में राणाउदय सिंह द्वारा मेवाड़ राज्य की राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था, और बीसवीं शताब्दी तक यह एक महत्वपूर्ण राजनीतिक केंद्र बना रहा।
आइए, अब एक अन्य प्रसिद्ध ब्रिटिश चित्रकार विलियम होजेस के चित्रों के माध्यम से औपनिवेशिक भारत की खोज करते हैं।1786 में विलियम होजेस द्वारा चित्रित –यमुना नदी के तट पर स्थित आगरा के किले का एक दृश्य, ताज महल को सुंदर तरीके से दर्शाता है। चित्र में, लोग यमुना नदी पर नाव चला रहे हैं, कुछ लोग इसके रेतीले तटों पर खड़े हैं, और घनी झाड़ियों से परे आगरा किले की भव्य और विशाल प्राचीर है।
1700 के दशक के अंत में, ब्रिटेन(Britain) के कई लोगों के लिए, इन सभी कलाकारों द्वारा निर्मित पेंटिंग, भारत के सबसे प्रसिद्ध वास्तुशिल्प परिदृश्य की पहली झलक के रूप में काम करती थी। भारत में, ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन शुरू होने के बाद, लगभग दो सौ साल बाद विलियम होजेस भारत आए थे।पश्चिम भारत की ओर यात्रा करते हुए, होजेस ने मुर्शिदाबाद और राजमहल तक तथा बनारस और इलाहाबाद से होते हुए आगरा और ग्वालियर तक हुगली व गंगा नदी से यात्रा की। रास्ते में रुकते हुए, उन्होंने जीवन और स्मारकों के दृश्य बनाए, और इस प्रकार, वह पहले पेशेवर ब्रिटिश चित्रकार बन गए।
दूसरी ओर, चित्रकार और वुडब्लॉक प्रिंट कलाकार – हिरोशी योशिदा ने, मीजी युग (1868-1912) के दौरान, दुनिया के लिए जापान के उद्घाटन और वैश्विक सभ्यता के साथ जुड़ाव को, व्यापक रूप से प्रदर्शित किया। योशिदा ने चार महाद्वीपों की यात्राएं की। उनके विषयों में जापानी परिदृश्य, मिस्र के स्फिंक्स(Egypt’s Sphinx), कनाडाई रॉकीज़(Canadian Rockies) और अमेरिका का ग्रैंड कैन्यन(America’s Grand Canyon) शामिल थे।
योशिदा के शिन-हंगा प्रिंट, पश्चिमी दर्शकों के लिए बनाए गए थे। यद्यपि योशिदा व्यावसायिक रूप से समझदार थे, उनके शिल्प में “परिष्कृत तकनीकों” का उपयोग और पश्चिमी यथार्थवाद और पारंपरिक जापानी प्रिंट कला का मिश्रण शामिल था। उनका काम समकालीन भारत में उनकी यात्रा से है। योशिदा और उनके बेटे तोशी(Toshi) 1931 में, भारत की अध्ययन यात्रा पर निकले थे। 1932 की शुरुआत में, उन्होंने अपने भारतीय प्रिंटों की पहली श्रृंखला पूरी कर ली। इन प्रिंटों में सबसे प्रसिद्ध, ताज महल का चित्र संग्रह है, जो एक ही दृश्य को विभिन्न रंगों और भावों में चित्रित करता है।
योशिदा ने आगरा, दिल्ली, जयपुर और लाहौर की यात्रा की थी। ताज महल के अलावा, उनके प्रिंट संग्रह में दिल्ली की जामा मस्जिद, लाहौर के शालीमार बाग़ और जयपुर के अजमेर गेट को दर्शाया गया है।
ऐसे ही विदेशी कलाकारों का जश्न मनाने के लिए, भारत में समय-समय पर कई आयोजन किए जाते हैं।वर्तमान में, दिल्ली में 13 जुलाई 2024 से 24 अगस्त 2024 तक, ‘डेस्टिनेशन इंडिया – भारत में विदेशी कलाकार, 1857-1947’, नामक एक प्रदर्शनी आयोजित की गई है। यह प्रदर्शनी उन विदेशी कलाकारों के कार्यों की सराहना करती है, जिन्होंने प्रथम विद्रोह (1857) और पूर्ण स्वतंत्रता (1947) के बीच भारत का दौरा किया था, तथा जो पूर्वीय कला के अंतिम और परिपक़्व चरण के उदाहरण बने हैं। कुछ सबसे पहले परिदृश्य चित्रकार, जैसे कि, विलियम होजेस तथा थॉमस और विलियम डेनियल ने स्पष्ट रूप से अपने चित्रकारी लक्ष्य परिभाषित किए थे। वे वास्तुकला और परिदृश्य के सुरम्य दृश्यों की तलाश में भारत आए थे। लेकिन बाद में, उन्नीसवीं सदी के अंत और बीसवीं सदी की शुरुआत में जो कलाकार आए, उन्होंने अपनी कृतियों में विविधता लाई थी। वे स्मारकों की तुलना में लोगों और समाज तथा रोजमर्रा की ज़िदगी के दृश्यों में अधिक रुचि रखते थे। वे शैलीगत रूप से भी विविध थे। और वे ब्रिटेन के अलावा जर्मनी(Germany), हॉलैंड(Holland), डेनमार्क(Denmark), फ्रांस(France) और यहां तक कि जापान सहित कुछ अन्य देशों से आए थे।
पहले कलाकार भारत की ऐतिहासिक संस्कृतियों के प्रति, यूरोप की धारणाओं को बदलने के उद्देश्य से आए थे। होजेस और डेनियल के लिए ताज महल भी अपेक्षाकृत अज्ञात था, क्योंकि पहले किसी ने इसका चित्रण नहीं किया था। परंतु, उन्नीसवीं सदी के अंत तक, यात्रा और पर्यटन ने इसे एक आम स्मारक बना दिया था, और इसे चित्रित करने के नए तरीके खोजने पड़े। यही बात बनारस के घाटों और अन्य सभी प्रसिद्ध स्थलों पर भी लागू होती है। इनमें राजस्थान के मंदिर और किले एवं कश्मीर के बगीचों जैसे नए गंतव्य जोड़े गए थे।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2s4cawxj
https://tinyurl.com/4wvsh6mp
https://tinyurl.com/y3vwmuyu
https://tinyurl.com/497b4hm2
चित्र संदर्भ
1. विलियम होजेस द्वारा चित्रित जौनपुर पुल के चित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
2. शोज़ाबुरो वतनबे द्वारा निर्मित एक चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. विलियम होजेस के चित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
4. विलियम होजेस के द्वारा बनारस के घाट के चित्र को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
5. हिरोशी योशिदा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. हिरोशी योशिदा द्वारा दिल्ली की जामा मस्जिद के चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. हिरोशी योशिदा द्वारा सांची स्तूप के एक चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.